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इश्क़ पर ज़ोर नहीं

वाजिद हुसैन का नाटक

पढ़ने से पहले
यह नाटक एक बुज़ुर्ग और युवक डाॅक्टर की मुलाक़ात को दर्शाता है। ...डाॅक्टर बुज़ुर्ग के बाग की दलदल में आत्महत्या करने आया था। वह पहले भी आत्महत्या का प्रयास कर चुका था, जिससे उसका चेहरा जल गया था। वह डरावने चेहरे के साथ जीना नहीं चाहता था। बुज़ुर्ग ने उसे आत्महत्या करने से रोका और नर्मी से उसे डिप्रेशन से बाहर निकाला। ... वहां डाॅक्टर की एक लड़की से मुलाक़ात हुई, जो जीवन के प्रति उत्साह पैदा करते-करते उसकी मुहब्बत में खो गई। कहते हैं, 'इश्क़ पर ज़ोर नहीं।' ... बाग में पोल्ट्री फार्म है। अचानक बिल्लियां मुर्ग़ियों पर हमला कर देतीं हैं, जिन्हें बचाने में बुज़ुर्ग दलदल में गिर जाते हैं। ... लड़की बुज़ुर्ग पर आश्रित थी। अत: वह भी बुज़ुर्ग के साथ मरने के लिए दलदल में चली गई। डॉक्टर लड़की को मुहब्बत का वास्ता देकर बाहर आने के लिए मनाता है‌ पर वह मरने को तरजीह देती है। डाॅक्टर कहता है, 'अगर तुम बाहर नहीं आईं, तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा।' यह सुनकर बुज़ुर्ग लड़की से कहते, 'मेरी प्यारी, इसकी आंखो में सच्चाई पढ़ो और विवाह कर लो।' लड़की बाहर आ जाती है। डाॅक्टर उसकी मांग फूलों की पंखुड़ियों से भर देता है, जिसे देखकर मरने से पहले बुज़ुर्ग के चेहरे पर संतोष झलकने लगा।

प्रथम दृश्य
एक सूनसान बाग ( रूक-रूककर पक्षियों की चहचहाहट और पत्तियों की खड़खड़ाहट। सौरभ धीरे- धीरे लंबी घास में चलता है, क्षण भर के लिए रुकता, इधर-उधर देखता फिर आगे बढ़ता है। एक बंद दरवाज़े के पास पहुंचकर रुकता है, फिर धीरे से दरवाज़े को धकेलता है। ... मुर्गियों का झुंड चटर- चटर करता हुआ दरवाज़े से बाहर आ गया। सौरभ अपने ठीक सामने एक बुज़ुर्ग को देखकर चौक गया ...। )
बुज़ुर्ग : मुझे स्वामी कहते हैं। ज़मीन दलदली है। आप डूब सकते हैं।
सौरभ : आई एम साेॅरी, मुर्गियां झाड़ियों में चली गईं।
मि. स्वामी : कोई बात नहीं, परेशान न हों।
सौरभ : मैंने सोचा, यह ख़ाली जगह है ...। यहां कोई नहीं है।
मि. स्वामी : यह ख़ाली ही है; आज ख़ूबसूरत दिन है; अंदर बैठने वाला दिन नहीं है, इसलिए बाहर हूं।
सौरभ : मैं यहां कुछ चुराने नहीं आया हूं।
मि. स्वामी : लडके यहां चुराने आते हैं, नवयुवक आत्महत्या करने आते हैं।
सौरभ : आपने मेरा जीवन बचाया, परंतु यह नहीं पूछा, मैं क्यों मरना चाहता था?
मि. स्वामी : आप चाहते हैं, मैं यह पूछूं तो बताइये।
सौरभ : मेरा चेहरा देखिए। क्या ऐसे चेहरे के साथ किसी को जीने की तमन्ना होगी?
मि. स्वामी : कौन इसके लिए ज़िम्मेदार है?
सौरभ : मेरे माता-पिता।
मि. स्वामी : क्या!
सौरभ : माता-पिता की कठोरता और उत्पीड़न ने मुझे जलने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने आग बुझा दी, पर मुझे डरावने चेहरे वाला निर्जीव बना दिया।
मि. स्वामी : पेरेंट्स इसे कुम्हार की तरह, मिट्टी को इच्छानुसार शक्ल देने के लिए, पीटना और तपाना मानते हैं‌।
सौरभ : बच्चा न मिट्टी है न पालतू जानवर जो पेट भरने के लिए मार सहते हैं। बच्चे में शरीर के साथ आत्मा भी होती है। आत्मसम्मान से खिलवाड़ उसके दिल पर चोट पहुंचता है जो उसे ग़लत क़दम उठाने पर मजबूर करता है।
मि. स्वामी : आपकी दूरदृष्टी है, अच्छे- बुरे अंजाम से वाक़िफ हैं, फिर आप क्यों डरते हैं?
सौरभ : लेकिन मैं नहीं. मैं नहीं डरता (पाॅज़) लोग मुझसे डरते हैं।
मि. स्वामी : कौन डरते हैं ... और क्यों?
सौरभ : हर एक है। इससे मतलब नहीं, वह कौन है या क्या करते हैं, या कैसे दिखते हैं, कैसा दिखावा करते हैं। मैं जानता हूं, मैं देख सकता हूं।
मि. स्वामी : क्या देख सकते हो?
सौरभ : क्या वे सोचते हैं?
मि. स्वामी : वे क्या सोचते हैं?
सौरभ : आप सोचते हैं। यह बुरा है। यह भयानक चीज़ है जो आपने कभी देखी। 'बेचारा आदमी, 'लेकिन मैं , बेचारा नहीं।' अंदर ही अंदर आप ख़ौफज़दह हैं। हर एक होगा। जब मैं आईने में अपना चेहरा , मैं अपने से डर जाता हूं।
मि. स्वामी : नहीं। असली सज्जन आदमी किसी बात से ख़ौफज़दह नहीं होते हैं। बेवक़ूफ वकवास बातों से लोगों को उदास करते हैं। वे शैतान परस्त दुश्मन हैं, इंसानियत और भगवान के।
सौरभ : वे गलत नहीं कहते हैं। आग ने मेरा चेहरा जला दिया। मुझे खा लियाऔर अब यह अैसा ही रहेगा और कभी नहीं बदलेगा।
मि. स्वामी : नहीं।
सौरभ : क्या आपको रूचि नहीं है?
मि. स्वामी: मुझे हर एक चीज़ में रूचि है। भगवान ने ऐसा कुछ नहीं बनाया जिसमें मुझे रूचि न हो। उधर देखो -- दूर दीवार के साथ। तुम्हें क्या दिखता है?
सौरभ : रबिश।
मि. स्वामी : रबिश? देखो, मैन, देखो -- क्या तुम देख सकते हो?
सौरभ : घास-फूस और खरपतवार।
मि. स्वामी : कुछ उन्हें खरपतवार कहते हैं। अगर आप पसंद करते हैं तब --वहां फल-फूल और औषधियों के पेड़ हैं। क्यों एक हरा- भरा पौधा खरपतवार कहलाता है और दूसरा 'फूल?' कहां अंतर है? यह जीवन है --चल रहा है, जैसे मैं और आप।
सौरभ : हम एक से नहीं हैं।
मि. स्वामी : वास्तव में, आपके पास सब कुछ है, मेरे पास कुछ नहीं। जब मैं मिलिट्री सर्विस में था, मेरा परिवार बम ब्लास्ट की भेट चढ़ गया। आप शरीर से फिट हैं, मेरी प्लास्टिक की टांग है। कुछ बच्चे कहते हैं, 'लंगड़ा स्वामी।' यह सही है। मुझे परेशान नहीं करता। मैं उस लड़की के लिए जीवित हूं मेरे दोस्त की बेटी। उसके पेरेंट्स भी उसी ब्लास्ट में मर गए थे।
सौरभ : आई एम साॅरी, मैंने आपको दुखी किया।
मि. स्वामी : आपने मेरा गम ग़लत करने में मदद की।
सौरभ : इस समय आप इतने ग़मज़दह क्यों हैं?
मि. स्वामी : मैं चिंतित हूं, अगर मैं मर गया, वह कैसे अपनी देखभाल करेगी?
सौरभ : वह सुंदर है, कोई भी हसीन नौजवान उसे अपना जीवन साथी बनाने में संकोच नहींं करेगा। मि स्वामी : कोई यतीम से रिश्ता नहीं बनाता।

द्वितीय दृश्य
लड़की चिल्लाती हुई आती है, 'लेमी अंकल कांटा लग गया।' सौरभ आगे की ओर झुक गया। उसने पांव से कांटा निकाल दिया और जड़ी बूटी लगा दी।
लड़की : थैंक यू, मैं नेहा हूं। क्या आप डॉक्टर हैं?
सौरभ : आपने कैसे अंदाज़ लगाया?
नेहा : एक डॉक्टर या असली सज्जन ही अजनबी की मदद करता है।
सौरभ : मैं डॉक्टर सौरभ हूं।
नेहा : इस आश्रम में कुछ बुजुर्ग हैं, जिंहें डॉक्टर की ज़रूरत है।
सौरभ : सौरभ ने अपने चेहरे पर स्कार्फ लपेटा और इत्मिनान से मरीज़ों की जांच की।
नेहा : आप काफी ठीक-ठाक दिखते हैं, फिर भी आपने अपना चेहरा ढका, जैसे एक पेशेवर इन्फेक्शन के डर से ढकता है।
सौरभ : मैं अपने डरावने चेहरे से उन्हें परेशान नहीं करना चाहता था।
क्या आपने उनकी आंखों में प्यार नहीं देखा?
सौरभ : क्योंकि उन्होंने मेरा चेहरा नहीं देखा। किसी ने मुझेे प्यार नहीं किया, मेरी मां ने भी।
नेहा : आह! क्या आपको एहसास है, आपने कभी किसी को प्यार किया।
सौरभ : क्या?
नेहा : लड़कियें। सुंदर लड़कियें। लम्बे बाल और बड़ी आंखों वाली।
सौरभ : मैं कभी भी अलग नहीं दिखुंगा, जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा‌, तब भी मेरा आधा चेहरा ही रहेगा।
नेहा : आप ऐसे दिखेंगे। लेकिन दुनिया ऐसी नहीं दिखेगी। दुनिया पूरे चेहरे वाली है, और दुनिया को ऐसे ही देखना है।
सौरभ : क्या आप सोचती हैं, यही दुनिया है, यह पुराना बाग।
नेहा : जब मैं यहां होती हूं, यह बाग मेरी इकलौती दुनिया होता है।
सौरभ : क्या आपको पता है, एक दिन, एक औरत ने मुझे देखा और फुसफुसाई दूसरी औरत से, 'देखो उस ख़ौफनाक शै को, कोई भी ऐसे चेहरे से प्यार नहीं कंर सकता।'
नेहा : लेकिन आपने वह नहीं सुना, जो उसने बाद में कहा।
सौरभ : क्या।
नेहा : 'क्यों ख़ुदा, नेक बंदे पर बे- रहम हो गया?'
सौरभ : आपको कैसे पता?
नेहा : लोग अपने ज़हन में बुरी बातें सजोए रहते हैं, लेकिन ख़ुशग़वार बातें आसानी से भूल जाते हैं।
सौरभ : आप अजीब हैं, अजीब बातें करती हैं। आप सवाल पूछती हैं, मैं नहीं समझ पाता।
नेहा : मुझे बातें करना पसंद है, साथ दीजिए।
सौरभ : मुझे लोगो के पास जाना पसंद नहीं हैं। जब वे घूरते हैं-- और मुझसे ख़ौफज़दह दिखते हैं।
नेहा : आप अपने को एक कमरे में बंद कर लीजिए और कभी नहीं छोड़िए। एक आदमी ने ऐसा किया। उसे डर था, आप देखिए, हर चीज़ का। हर चीज़ जो दुनिया में है, सड़क पर वह गटर में गिर सकता है और उसकी टांग टूट सकती है या गधे के लात मारने से वह‌ मर सकता है या वह एक लड़की से प्रेम करने लगे और वह उसे छोड़कर चली जाए या केले के छिलके पर फिसलकर गिर जाए और देखने वाले उसकी हंसी उड़ाएं या रात में जब वह सो रहा हो तो डकैत उसे मार दें। तो उसने बिस्तर में एक बंदूक रख ली और वहीं ठहर गया।
सौरभ : हमेशा के लिए।
नेहा : कुछ समय के लिए।
सौरभ : फिर क्या हुआ।
नेहा : सोते पर ट्रिगर दब गया। बंदूक से गोली चल गई जिससे वह मर गया।
सौरभ : (ठहाका मारकर हंस पड़ा) लेकिन --आप अब भी अजीब बातें करती हैं।
नेहा : कुछ के लिए अजीब।
सौरभ : आप दिन भर क्या करती हैं?
नेहा : मैं गरीब बच्चों को पढ़ाती हूं और आश्रम का काम-काज देखती हूं।
सौरभ : क्या आपका कोई ब्याॅय फ्रैंड है?
नेहा : नहीं, बॉयफ्रेंड होना, एक मुश्किल काम है।
सौरभ : हो सकता है मैं यहां कभी न आऊं, आप मुझसे फिर न मिल सकें, लेकिन मैं आपका दोस्त रहूंगा। हमारी उत्साहपूर्ण बातचीत हुई है। आपकी दोस्ताना दलीलों ने मेरा कॉन्फिडेंस बहाल करने में मुझे प्रोत्साहित किया।
नेहा : हंसी, एक दोस्ताना हंसी।
मि. स्वामी : मिस्टर स्वामी दूर मुर्गियों को दाना खिलाने चले जाते हैं।

तृतीय दृश्य
वे मीठे भुंटे खाने मक्का के खेतों में चले गए। बारिश होने लगी, जिसने उन्हें रोमांटिक बना दिया। वे नाचते और तितलियों के पीछे भागते। आसमानी बिजली की गर्जन ने नेहा डर गई, चीख़कर सौरभ से चिपट गई और सामान्य होने तक चिपटी रही।
नेहा : मुझे क्या हो गया, जब से मैं आपसे मिली हूं।
सौरभ : आपको प्यार हो गया।
नेहा : मैं सोचती हूं आपको भी।
सौरभ : आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं।
नेहा : कोई यतीम से प्यार नहींं करता।
सौरभ : आपके पास आपका शानदार दिल है। मेरा दिल मेरे चेहरे के साथ जल चुका है। एक कुरूप की प्रेमिका बनने की मत सोचिए।
नेहा : महत्वपूर्ण यह नहीं, आप कैसे दिखते है, महत्वपूर्ण यह हैं, आप अंदर से कैसे है। सुंदर वह है जो सुंदर करता है। सुंदरी ने जंगली जानवर से प्यार किया और वह सुंदर राजकुमार बन गया।
सौरभ : तो आप एक कुरूप से प्रेम में है।
नेहा : इश्क पर ज़ोर नहीं।‌ मैंने आप से पहली नज़र में प्यार किया है।

चौथा दृश्य
उन्हें दलदली ज़मीन से मदद के लिए पुकारने की आवाज़ सुनाई दी। दोनों द़लदली जमीन की ओर दौड़े। उन्होंने देखा, जंगली बिल्लियों ने मुर्गियों पर हमला कर दिया है। मि, स्वामी ने बिल्लियों का पीछा किया। उनकी प्लास्टिक की टांग निकल गई और वह दलदल में गिर गए। वह धीरे-धीरे दलदल में समा रहे थे।
नेहा : लेमी अंकल, मैं आपके बिना जी नहीं सकती, मरने को तरजीह दुंगी। वह दलदल में कूद गई।
सौरभ : सौरभ चिल्लाया, नेहा प्लीज मरो नहीं।अपना हाथ मुझे दो मैं, मैं तुम्हें बाहर खींच लूंगा।
नेहा : क्या आप मुझे इश्कबाज़ी के लिए बचाना चाहते हैं?
सौरभ : मैं इतना नीच नहीं हूं। मैं तुमसे प्यार करता हूं। मैं तुमसे अभी शादी करूंगा। प्लीज़ मेरा हाथ थाम लो।
मि, स्वामी : नेहा, मेरी प्रिय, उसकी आंखें पढ़ो। उसकी सच्चाई पर शक मत करो। उससे शादी कर लो। जल्दी करो।
नेहा : नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया। सौरभ ने उसे दलदल के बाहर खींच लिया।
सौरभ : सौरभ ने नेहा की मांग फूलों की पंखुड़ियों से भर दी। दलदल में समाते समय मि. स्वामी के चेहरे पर संतोष दिखा।
( ख़ामोशी)
348ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बाईपास बरेली (उ प्र) 243006 मो : 9027982074 ई मेल wajidhusain963@gmail.com

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