वाजिद हुसैन की कहानी -प्रेम कथा
कश्मीर में फागुन का महीना इंसाफ की तराज़ू की तरह दिन- रात को बराबर तोल देता है - न गर्मी ज़्यादा पड़ती है और न सर्दी।... मैदान के खेतों और गांवों में बसंत-नट रंग-बिरंगे वस्त्र पहने सर्दी के बुढ़ापे व गर्मी के लड़कपन पर खुशियां मनाता है। ... यहां की वादियों में खड़े होकर कोई वसंतागमन की छटा देखें, तो वह मंत्रमुग्ध- सा हो जाए। वृक्षों की हरियाली व कोंपलों से वे सीढ़ियां हरी मखमल से ढकी प्रतीत होती है, मानो ऋतु के स्वागत के लिए ज़मीन से आसमान तक रास्ता बना हो।
ठीक अलविदा के दिन मेरी पोस्टिंग यहां के सरकारी अस्पताल मे हुई थी। यहां आए दो दिन ही हुए थे कि चांद रात का दिन आ गया। पिछले साल मैंने अपनी अम्मी के साथ चांद देखा था और नौकरी के लिए दुआ मांगी थी। मेरी अम्मी ने हमेशा की तरह मेरे लिए चांद-सी बहू की दुआ मांगी थी। हालांकि इस साल मुझे चांद का दीदार अकेले ही करना था। मुझे चांद से सरकारी नौकरी दिलाने के लिए शुक्रिया कहना था और हंसी- हंसी में एक प्रश्न भी पूछना था, 'आपने मेरी दुआ क़ुबूल कर ली, पर अम्मी की दुआ नहीं सुनी। क्या आपके यहां लेडीज़ फर्स्ट की प्रथा नहीं है? मुझे मालूम है, चांद क्या उत्तर देगा! वह कहेगा पहले नौकरी फिर छोकरी।'
... शाम का मैरून रंग आसमान के इस किनारे से उस किनारे तक फैलता गया और मैरून से सुरमई और सुरमई से सियाह होता गया। चांद के दीदार के लिए, मैं मखमली सीढ़ियों पर चढ़ता गया। अचानक चांद ने एक झलक दिखाई और बादलों में छिप गया। बादल छटे, तो मैं और चांद आमने-सामने थे। मैं अपलक उसे निहार रहा था। 'क्या चाहिए?' एक चांद-सी सुंदर लड़की ने पूछा। मैं रुमानियत से बाहर निकला, सकपका कर मैने कहा,'मैं ईद के चांद के दीदार के लिए आया था, बादलो के बीच आपको चांद समझ बैठा।' उसने शर्माकर अपना चेहरा हथेलियों से छुपा लिया। फिर कहा, 'ईद मुबारक।' और आसमान की तरफ इशारा करके कहा, 'वह रहा चांद! झट से दुआ मांगिये, फट से क़ुबूल होगी।' ...मैने कहा, 'मेरी दुआ बिन मांगे क़ुबूल हो गई, अब कुछ मांगने को नहीं बचा, सिर्फ शुक्रिया कहना है।’ उसने कहा, 'आपकी दुआ क़ुबूल हुई, मैं मुंह मीठा कराती हूं।' वह घर में गई, और मिट्टी के प्याले में फीरनी लाई, 'यह हमारी बगिया की ख़ुबानियो की है।' ... मैंने चखकर कहा, 'बहुत लज़ीज़ है, लगता है आपने अपने नाज़ुक हाथों से बनाई है।' फिर अपनी उंगली में खीर ली और उसके मुंह में रखते हुए कहा, 'डॉक्टर सुल्तान को झूठी तारीफ करने की आदत नहीं है।' उसे मसख़री सूझी, 'मेरी उंगली दांतों में हल्की सी दबाई।' मैंने दर्द से कहा, 'ओफ फो।' वह खिलखिला कर हंस पड़ी और मैं उसके मोती जैसे दातों को देखता रहा। कुछ देर बाद किसी ने उसे ज़ैनब कहकर पुकारा और वह हाथ हिलाती हुई घर में जाने लगी। मैंने पूछा, 'ईद कहां मिलोगी?' उसने चलते- चलते कहा, 'ख़ुबानी की बगिया में इसी वक्त।'
ईद की शाम ज़ैनब से मिलने का ख़ुमार मेरी रूह को खुश कर रहा था। हाथ में बुके लिए, मैं गुनगुनाता हुआ मख़मली सीढ़ियों पर चढ़ रहा था। पता ही नहीं चला, कब ख़ुबानियो की बगिया में पहुंच गया। एक युवक को बैंच पर बैठे देखा। उसके कंधे पर सिर टिकाए एक युवती बैठी थी। युवक का चेहरा साफ दिख रहा पर युवती की हंसी सुनाई पड़ रही थी। मैंने सोचा, ज़ैनब की बगिया है, तो वही होगी। जिसे मैं अपना जीवन साथी बनाने के सपने देख रहा था, उसे इस तरह फ्लर्ट करतेे देख, मेरे हाथ से बुके छूट गया और बोझिल क़दमों से अपने क्वार्टर पर लौट गया।
रात में मुझसे खाना भी नहीं खाया गया, नींद भी उचटती हुई आई। दिन भर मरीज़ों को देखने में व्यस्त रहा। अगली रात को भूख लगी।आसपास के होटल बंद हो चुके थे। ऊंचाई पर स्थित एक होटल में गया, जो नवविवाहित और प्रेमी युगल के लिए मशहूर था। वहां मुझे वही युवक दिखा जो कल बगिया में था। उसके साथ उसकी पत्नी थी जो बात -बात पर खिलखिला रही थी।
अरे गज़ब! ज़ैनब सोच रही होगी, 'डॉक्टर ईद मिलने नहीं आया, साथ क्या निभाएगा।' बद्दिली से खाना खाया और क्वार्टर पर चला गया। बिस्तर पर लेटा, तो नींद के आगोश में जाने लगा पर मन उड़ान भरने लगा।
मखमली सीढियों पर चढने लगा। एक सफेद भालू दिखा। मैने सुन रखा, भालू मृतक देह को नहीं खाता है। मैं सास रोककर लेट गया। भालू ने मुझे सूंघा और मृतक समझकर चला गया। मैं फिर सीढियों पर चढ़ने लगा। आकाषीय विधुत में मुझे ज़ैनब दिखी। उसने कहा, 'कल तुम मुझे बेवफा समझकर लौट गए थे। मैं बेवफा हरगिज़ नहीं पर तुम मुहब्बत का इम्तिहान पास न कर सके। मैंने पूछा, 'क्या करना होगा?' और उसके पीछे चल दिया। तभी बर्फ बारी शुरू हो गई और वह ठंड से कांपने लगी। मैंने अपना ओवरकोट उतार कर उसे पहना दिया। उसने कहा, 'तुमने ख़ुबानी की खीर खिलाने वाली लड़की से प्यार किया है। तुम्हें पता चलेगा, मैं वह नहीं हूं, तो मुझे छोड़कर चले जाओगे।' मैने कहा, 'तुम्हारे चांद से चेहरे ने मेरा मन मोह लिया, तुम क्या हो इससे मुझे क्या लेना देना।' ...उसने कहा, 'मैं कैसे भरोसा करूं? मर्द औरत को रिझाने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, जो मैं कहूंगी, वह करोगे।' ... 'कहकर तो देखो।' मुहब्बत के लहजे में मैने कहा। ... 'डल लेक में छलांग लगाओ।' उसने फरमाया।... ग़ुलाम की तरह, मैंने लेक में छलांग लगा दी। जब मैं लेक में गिरा, छपाक की आवाज़ हुई। मेरा दिल बुरी तरह धड़कने लगा। वाल क्लॉक की टिक- टिक ने यक़ीन दिलाया, मैं ज़िंदा हूं, ख़्वाबों की दुनिया में सैर कर रहा था।
तभी क्वार्टर के गेट पर पुलिस की गाड़ी का हूटर बजा। इंस्पैक्टर ने कहा, 'डा. सुल्तान, एक रोप्वे कार खाई में गिर गई है, जिसमें स्थानीय के साथ विदेशी पर्यटक भी हैं, आपको तुरंत चलना होगा।' मैंने इमर्जेंसी किट गाड़ी में रखा और उनके साथ हो लिया।
घटनास्थल पर एन.डी.आर.एफ.की टीम मेरा इंतज़ार कर रही थी। उन्होंने मुझसे फर्स्ट एड किट देने को कहा, ताकि वे घायलों को फर्स्ट एड दे सकें। मैंने कहा, 'मैं आपके साथ चलता हूं, ईलाज डाेॅक्टर ही कर सकता हैै।' सी.एम.ओ ने अफसर के लहजे में कहा, 'मि. सुल्तान, खाई में अनट्रेंड बंदे का जाना ख़ुदकशी होगा।' ... 'सर, न जाना बुज़दिली, मृत्यु शहादत होगी।' मैंने इमोशनल होकर कहा। 'गुड लक मेरे बच्चे।' सीएमओ ने कहा।' और आप्रेशन की कमान सम्भाल ली।
मैं रस्सी की मदद से खाई में गया। घायलों ने अपने बीच डॉक्टर को देखा, तो उनकी जीने की लालसा बढ़ गई। बेहोश मरीज होश में आने लगे। मैंने सभी को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई। उसके बाद एन.डी.आर.एफ की टीम उन्हें खाई से निकालने में सफल हो गई।
रस्सी पर लटकने से मेरी मांसपेशियों में खिंचाव हो गया था। पत्थरों पर शरीर घिसटने से ख़ून का रिसाव बढ़ रहा था। खाई से निकलने के बाद मेरी सांस थमने लगी। हज़ारों की भीड़ मेरे स्वागत के लिए जमा थी। किसी ने मुझे सुल्तान कहकर पुकारा। मुझे वह आवाज़ जैनब की लगी। मैंने आखें खोली। मेरे हाथ उसके हाथो मैं थे। वह मेरी ज़िंदगी के लिए दुआ मांग रही थी। उसकी दुआ क़ुबूल हो गई, मेरी थमती सांसे फिर से चलने लगी।
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