राधेश्याम और रजनी Wajid Husain द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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राधेश्याम और रजनी

वाजिद हुसैन की कहानी- प्रेमकथा

दिन भर की स्कूल की बकझक से दिमाग़ वैसी ख़ाली हो रहा था। शरीर भी थका था। बुझे मन से क्वार्टर की सीढ़ियां चढ़ी। चमोली के इस स्कूल में मेरी पहली पोस्टिंग थी। अचानक गाज़ियाबाद से कपिल के फोन ने चौका दिया। वह मेरे साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ा था। ... अरे सुन, 'कल शाम तुझ से मिलने राधे आ रहा है।' ...'राधे!' ...'अरे वही, राधेश्याम। वह डी. एम. चमोली हो गया है।' ... 'मेरा पता क्यूं बताया?' बड़बड़ाते हुए मैंने कहा।... 'कैसे नहीं बताता? उसके चेहरे के हाव-भाव से लग रहा था, तेरा पुराना आशिक़ तुझसे मिलने को बेताब है।' ... 'हूं आशिक़! उसका बस चले तो मुझे कालकोठरी मेंं बंद करके चाबी दरिया में डाल दे।' ... 'तू ठीक कहती है। यूनिवर्सिटी में उसके हाव-भाव से ऐसा ही लगता था।' फिर मज़ाक़िया लहजे में बोला, 'सच बता, तूने अपनी रुसवाई की परवाह न करके, उसे रेस्टीकेट होने से क्यूं बचाया? उससे प्यार करती है ना।' ... 'अच्छा बकवास बंद कर और फोन रख दे।' मैंने कहा।
मैं आईने के सामने खड़ी, गाल पर लटकी उस लट को घुमाने लगी, जिसे वर्षों पहले मैं भूल चुकी थी। स्टूडेंट लाइफ में हर धड़कता दिल इस लट का दीवाना था परंतु मैं उस बुझे दिये को चाहती थी। जो मुझसे मिलने आ रहा है।
मैं निश्चित नहीं कर पा रही थी वह क्यूं आ रहा है। मेरी वीराने को रोशन करने या जीवन के इक्का-दुक्का खुले झरोखों को बंद करने। यही कशमकश मुझे अतीत में ले गई।
वह अच्छे नाक- नक्शे का गोरा- चिट्टा युवक था। किताबों से भरा झोला लिए, बेमेल कपड़े पहने हुए यूनिवर्सिटी आता था। वह कक्षा में जिस सीट पर बैठता, पास बैठी लड़की बोरिंग कहती हुई उठ जाती। मैं इस अवसर का लाभ उठाती और उसके पास बैठ जाती थी। वह मेरी आंखों में आंखें डालकर मुस्कुराता, कुछ पूछता या सुनाता और मेरे चेहरे पर आई लालिमा को देखकर गहरी सांस लेता। फिर उसकी निगाह प्रोफेसर और बोर्ड पर फोकस हो जाती, आसपास से बेख़बर। उसने अपने ही दम पर यूनिवर्सिटी तक का सफर तय किया था। उसकी मंजिल आकाश पर विचरण करने की थी। मुझे किसी प्रश्न में उलझा देखकर प्यार से कहता, 'रजनी, मैं समझा देता हूं।' और मेरी चाहत में इज़ाफा हो जाता था।'
कक्षा में एक लड़की थी उमा, हुस्न और पैसे की मलिका। रोमांच और रोमांस के लिए यूनिवर्सिटी आती थी। किसी से अपने हुस्न के जाल में राधे को फंसाने की शर्त लगा बैठी।' सारे हथकंडे अपना लिए पर पर्वत की तरह जमे राधे को डिगा न सकी। अपना गुरुर ढहता देख, वह शैतानियत पर उतर आई। उसने मेरे पर्स से मोबाइल निकालकर राधे के झोले में रख दिया।
मोबाइल खोने से विचलित होकर मैं प्रोफेसर से मोबाइल ढूंढने की मिन्नतें करने लगी। प्रोफेसर के मोबाइल ढूंढने के सारे प्रयास विफल रहे तो उन्होंने प्रॉक्टर को सूचित किया‌। तलाशी अभियान में प्रॉक्टर ने राधेश्याम का झोला उल्ट दिया। फर्श पर पड़ा मोबाइल उसके जुर्म की गवाही दे रहा था पर बिखरे चने और आंखों से टपकते आंसू उसकी बेगुनाही की गाथा कह रहे थे। वह अपने बचाव में दलीलें देता रहा पर प्रॉक्टर ने रेस्टिकेशन का फरमान सुना दिया।
उसका कैरियर फिनिश होता देखकर, मैंने इल्ज़ाम अपने ऊपर ले लिया। उन्होंने रेस्टिकेशन तो वापस ले लिया पर मुझे जी भरके खरी-खोटी सुनाईं । राधेश्याम मेरे पास से उठकर उमा की बैंच पर बैठ गया। इस तरह उमा की उससे दोस्ती हो गई। वह शर्त जीत गई और मैं उस अपराध का बोझ ढोती रही, जो मैंने किया ही नहीं था।
निराशा में दिन कटते रहे। परीक्षा शुल्क जमा करने की आख़िरी तिथि आ गई। इत्तिफाक़न लाइन में राधेश्याम मुझसे आगे खड़ा था। मैंने फीस क्लर्क मिस्टर बनर्जी को कहते सुना, 'दो हज़ार का नोट नक़ली है।' उसका चेहरा झक सफेद पड़ गया, बोला, 'दे दीजिए, बदल कर लाता हूं।' फीस विंडो बंद होने का समय आ गया, पर वह लौट कर नहीं आया। मैंने फीस क्लर्क को दो हज़ार रुपये दे दिए। इस तरह वह परीक्षा देने से वंचित नहीं हुआ। उसे परीक्षा में सम्मिलित देखकर मै़ प्रसन्न थी पर पीड़ा असहनीय हो गई, जब देखा, वह उस शुभचिंतक को ढूंढता फिर रहा है, जिसने उसकी फीस जमा की थी पर मुझे देखकर मुंह मोड़ लेता था।
अगली शाम मैं क्वार्टर के बाहर खड़ी सोच रही थी, एक कुर्सी और एक पलंग वाले मेरे कमरे में डी.एम. का क़ाफिला कैसे समाएगा? तभी राधेश्याम अपनी पुरानी चाल-ढाल में आता दिखा। मुझ देखते ही आंखों में पश्चाताप के आंसू झलक पड़े फिर कहा, 'रजनी, यूनिवर्सिटी नेे मेरे स्वागत के लिए एक आयोजन किया था। समारोह में मुझे प्राॅक्टर से पता चला तुम्हारा मोबाइल उमा ने मेरे झोले में रखा था‌। मुझे रेस्टीकेशन से बचाने के लिए इल्ज़ाम तुमने अपने ऊपर ले लिया था और तुम्हें घोर अपमान सहना पड़ा था। मुझे फीस क्लर्क मिस्टर बनर्जी से पता चला, 'मेरी फीस में दो हज़ार रुपये कम थे वह भी तुमने जमा किए और मैं परीक्षा में सम्मिलित हो पाया। तुमने दो बार मेरा जीवन नष्ट होने से बचाया, मैं तुम्हारा क्या लगता हूं?' ... मेरी आंखों से टपकी दो बूंद आंसूओं ने, मुख से बिना शब्द निकले उसके प्रश्न का उत्तर दे दिया था। आंसुओं की झड़ी लगने से पहले ही उसने अपने हाथ बढ़ा कर आंसू पोछ दिए और मेरी फेवरेट चॉकलेट मेरे मुंह में रख दी। ऐसा वह पहले भी करता था, जब मेरा मूड आफ होता था।
फिर उसने कहा, 'तुम और उमा कितनी अलग हो। लगता है बनाने वाले ने तुम्हें बनाने के बाद सांचे और ठप्पे को कहीं दूर फेक दिया। तुम जैसी दूसरी न बन सकी। उमा को बनाते समय, कुछ चूक हो गई, बनाना था लोमड़ी, बन गई लड़की। रूप-रंग लड़की जैसा, फितरत लोमड़ी की आ गई। उसने मेरी प्रतिभा देख मुझे राईसिंग स्टार समझ लिया था। मुझे पाने के लिए स्वांग रचा। सबसे पहले तुम्हे मुझसे दूर किया। फिर प्यार मुहब्बत का ऐसा चक्कर चलाया, नौबत शादी तक आ गई। मेरी गुडलक थी जो मुझे समय रहते सब कुछ पता चल गया।
शिकायतों का पुलिंदा लिए मैं बैठी थी पर उसे खोल न सकी। क्या करूं बनाने वाले ने मुझे बनाया ही ऐसा है, किसी ने प्यार के दो शब्द बोले और मोम की तरह पिघल गई। गिले-शिकवे भुलाकर चाय बनाने में मशगूल हो गई और ढेर सारी बातें की।
फिर उसने मेरे हाथ अपने हाथों में लेकर चूम लिए और कहा, 'तुमसे कुछ मांगना चाहता हूं, 'मना तो नहीं करोगी।' ... 'मेरी जान मांग कर देखो।' मैंने कहा। ... 'जान नहीं, तुम्हारा हाथ चाहिए। आज रात मेरी उमा से सगाई है। उससे पहले मैं तुमसे सगाई करना चाहता हूं।'
उसे मुस्कुराहट के साथ एक गर्दन स्वीकृति में हिलती दिखी, तभी उसने अपनी जेब से अंगूठी निकाली और मुझे पहना दी। हमारी सगाई के समय न कोई रिश्तेदार था न नातेदार। खिला चांद हमारी सगाई की गवाही दे रहा था और टिमटिमाते सितारे मेहमानों की तरह अठखेलियां कर रहे थे। उसने मेरे साथ सेल्फी ली और उमा को भेज दी। फिर कहा, 'उसके कर्मों की यह सज़ा भी कम है।'
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