इतिहास की एक दर्दीली आहः गन्ना बेगम Neelam Kulshreshtha द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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इतिहास की एक दर्दीली आहः गन्ना बेगम

नीलम कुलश्रेष्ठ

 कहते हैं अठारहवीं सदी में अब्दुल कुली खान की अपूर्व सुंदर बेटी जितनी सुंदर गज़लें लिखती थी उतने ही सुंदर अंदाज में गाती थी। वह इतना सुरीला गाती थी कि लोग उसे गन्ना बेगम कहते थे। ये हुनूर उसे अपनी माँ सुरैया से मिला था। गन्ना बेगम का जीवन भी किसी ख़ूबसूरत गायिका से अलग न था- वही जख़्मों को पीता, आँसुओं को पोंछता, काँटों पर चलता चला जाता जीवन। राजस्थान में मुरैना ज़िले से बारह किलोमीटर दूर ए.वी. रोड पर स्थित ग्राम नूराबाद में बेगम की मजार है बेगम ने अपनी मृत्यु से पूर्व सन 1774 में लिखकर अपनी इच्छा ज़ाहिर की थी कि उनकी मजार पर जो भी आये वह उनकी दर्दीली कहानी सुनकर अपनी आँखों से दो बूँद आँसू अवश्य टपकाए।

उस ख़ूबसूरत शायरा के लिये मुझमें उत्सुकता जगाई थी मुरैना निवासी वरिष्ठ साहित्यकार व मध्य प्रदेश लेखक संघ की मुरैना ज़िले की शाखा के अध्यक्ष श्री भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ जी ने वह अक्सर उसकी मजार के पास से गुजरते थे। उसके कष्टप्रद जीवन से व्यथित हो जाते थे। इस व्यथा से निज़ात पाने के लिये उसके जीवन पर कलम चलाना बहुत ज़रूरी हो गया था इसलिये उन्होंने एक खंड काव्य लिखा ‘गन्ना बेगम’, वे उसकी जीर्ण हीन उपेक्षित मजार से बहुत दुःखी थे । इस मजार की संगमरमर की जालियाँ टूट चुकी थीं। ऐसे ही लोगों के प्रयास से पुरातत्व विभाग का ध्यान इस ओर गया और उसने यहाँ मरम्मत करवाई । इस लेख में दी गई सही जानकारी श्री भगवती प्रसाद जी की पुस्तक से ली हुई है।

ये ज़हीन शायरा इस कदर लोगों के दिमाग पर छा जाती थी कि वृंदावनलाल वर्माजी ने अपने उपन्यास `महादजी सिंधिया `में इनकी जीवनी लिखी है। बंगाल के सुप्रसिद्ध साहित्यकार बंदोपाध्याय व अंग्रेज उपन्यासकार वेडले ने इनके जीवन पर ‘गन्ना बेगम’ उपन्यास लिखा है। रूपसिंह चंदेल ने ‘आहः गम-ए-गन्ना बेगम’ नाम की कहानी ‘सरिता’ के लिखी थी। उदयपुर के उपन्यासकार डॉ. राजेन्द्र भटनागर ने भी अभी हाल में ही उपन्यास लिखा है।आज के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री राजगोपाल वर्मा जी ने भी अपने किसी उपन्यास  में गन्ना बेग़म का ज़िक्र किया है।

श्री भगवतीशरणजी के खंड काव्य को साहित्य में क्या स्थान मिला है यह एक अलग बात है लेकिन उन्होंने बख़ूबी उनकी दर्द भरी कहानी को लोगों तक पहुँचाया है। गन्ना बेगम के माता-पिता का कुछ इस तरह वर्णन है; 

‘गन्ना की माँ रही सुरैया भी तो चर्चित नृत्य और संगीत की रही वह पारंगत

अब्दुल अली खान ने जब उसको देखा कितनी सुंदर है मन ही मन उसने सोचा 

उन दोनों के प्यार का फल थी गन्ना।’

इसी गन्ना की उम्र जब परवान चड़ी तो लखनऊ के नवाब शहाबुद्दीन वजीर अनेक शहज़ादे व राजकुंवर उसके दीवाने थे। उसे शादी का प्रस्ताव भेजते रहते थे किन्तु उसे अपने सपनों का शहज़ादा कोई नज़र नहीं आता था। 

जब भी कोई ग़जलों की महफ़िल सजती थी

गन्ना अक्सर उसमें शामिल होती थी

जाने कितनी ग़ज़लें उसने लिख डाली

छलक-छलक पड़ती उसकी भावों की प्याली।

एक बार वह आगरा की एक भव्य इमारत में ठहरी हुई थी । इसी इमारत के उपवन में वह घूमने निकली, वहाँ मदमस्त बयार चल रही थी कि अचानक भरतपुर का राजकुमार जवाहर सिंह वहाँ आ गया। इतने सुंदर पुरुष को सामने खड़ा देखकर गन्ना सकपका गई। जवाहर सिंह भी इतनी अपूर्व सुंदरी को देखकर ठगा सा खड़ा था।

‘उथल-पुथल मच गई हृदय में तब दोनों के 

कहा दृष्टि ने सुना दृष्टि ने तब दोनों की

पकड़ लिया कर कोमल बढ़कर हाथ गन्ना का

बना प्रेम में पागल सचमुच वह गन्ना का।’

इसी इमारत में उन दोनों का प्रेम परवान चढ़ता रहा। दोनों ही प्रकृति की सौगात पर विमुग्ध थे किन्तु भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के पिता तक ये बात पहुँच गई थी। वह आगबबूला हो गये कि उनका बेटा एक मुस्लिम लड़की से शादी करना चाहता है। उन्होंने गन्ना बेगम की माँ सुरैया को आदेश दिया कि वह गन्ना बेगम को आगरा से हटा ले। तब तक गन्ना बेगम के अब्बा की मृत्यु हो चुकी थी । सुरैया बेगम ने अपनी बेटी से बहाना किया कि उन्हें अपने भाई से मिलने फरूख़ाबाद जाना है। गन्ना बेगम ने जवाहर को खबर कर दी कि उसे आगरा से हटाया जा रहा है। गन्ना बेगम को लेकर यह काफ़िला चल पड़ा ।

रास्ते में इस काफ़िले को कुछ नकाबपोशों ने रोक लिया। गन्ना बेगम मन ही मन मुस्करा उठी कि जवाहर के आदमी आ पहुँचे हैं। वह डोली में से झाँककर देखने लगी। 

“जवाहर सिंह भी ढूँढ़ रहा था डोली डोली 

कहाँ भला गन्ना है उसकी प्रिय हमजोली।”

डोली में से झाँकती गन्ना को देखकर वह अभी उधर ही बढ़ा था कि उसके पिता सूरजमल का सैन्य दल वहाँ आ पहुँचा । दोनों दलों की तलवारें खिंच गईं। जवाहर गन्ना को रोक नहीं पाया, वह लड़ते-लड़ते घायल हो गया। पिता-पुत्र का ये युद्ध पीली पोखर के नाम से मशहूर हुआ था।

गन्ना के पिता की मृत्यु के बाद उसकी माँ इतनी घबरा गई थी कि उन्होंने अपनी पुत्री की मंगनी मुगलों के वज़ीर शहाबुद्दीन से कर दी। गन्ना बेगम दुःख से पागल हुई जा रही थी, कहाँ वह नर्म नाजुक तबियत वाली गज़लकारा कहाँ वह आलमगीर द्वितीय का बर्बर कातिल वज़ीर। वह सूरजमल का भी हितैषी था, उसका हरम तो गन्ना बेगम के आने से जैसे जगमगा उठा था।

तभी खूंखार अब्दाली ने दिल्ली पर हमला किया । उसे जब पता लगा कि शहाबुद्दीन ने गन्ना से शादी कर ली है तो वह आगबबूला हो गया क्योंकि शहाबुद्दीन ने अब्दाली से वायदा किया था कि वह उसकी बहिन की बेटी से विवाह करेगा। अब्दाली का उन दिनों इतना आतंक था कि उलने शहाबुद्दीन को हुक्म दिया कि वह उसकी भांजी उम्दा से शादी कर ले व गन्ना को दासी बना दे। इस शादी के बाद बेगम सच ही दासी की तरह रहने लगी। उसका जीवन जैसे घिसटने लगा था।

कुछ समय बाद दिल्ली में अफगानों ने उत्पात मचा दिया । उम्दा हर समय डरी सहमी रहती थी। तब साहसी गन्ना ने उसे हिम्मत दी कि वह उस पर आंच भी नहीं आने देगी। उम्दा को भी गन्ना पर तरस आया वह उसे दूसरी बेगम की इज्जत देने लगी। उधर वज़ीर शहाबुद्दीन अफगानों से गठजोड़ कर आस-पास के राज्यों पर हमला कर उन्हें हड़पने की सोचने लगा। यह बात गन्ना व उम्दा को बड़ी नागवार गुज़री। गन्ना ने पुरुष वेश धारण किया और जवाहर सिंह से मिलने भरतपुर चल पड़ी। जवाहर ने रात भर गन्ना बेगम की मनुहार की कि वह भरतपुर ही रह जाये लेकिन गन्ना यह कहकर चली आई कि समय ठीक नहीं है।

कहते हैं जब शहाबुद्दीन का घर छोड़कर गन्ना पुरुष वेश में दोबारा भरतपुर आई तो उसका जवाहर सिंह से संपर्क नहीं हो पाया। उसे रात में एक सराय में रुकना पड़ा। वहाँ जयपुर से आये सैनिक बात कर रहे थे जिसे सुनकर वह सकते की हालत में रह गई । वे बात कर रहे थे कि जवाहर से अपने भाई नाहर की नहीं पटती यहीं कोई भी एक दूसरे को राजा बनता नहीं देख सकता था। अचानक नाहर की मृत्यु हो गई थी।

“मगर जवाहर के मन में ऐसा खोट आ गया

रूप उसे भावज का अपनी बहुत भा गया।”

वह सैनिक हँस रहे थे कि अपनी भाभी को वह अपनी रानी बनाना चाहता है, उससे शादी करने वाला है। उधर गन्ना के अपनी तकदीर पर आँसू निकल पड़े। जिस घर को वह पीछे छोड़ आई थी जहाँ न उसकी इज्जत थी, वह वहाँ नहीं लौट सकती थी। वह जयपुर गई, वहाँ से फिर ग्वालियर गई । माधवजी सिंधिया की सेना में गुन्नी सिंह सिपाही के नाम से शामिल हो गई। अपनी कुशलता से वह महाराजा की अंगरक्षक नियुक्त की गई। एक बार उसने एक षड्यंत्र को विफल कर महाराजा जी की जान बचाई । वह सोचते ही रह गए कि उसके इस अहसान को कैसे चुका पाएँगे ?

 एक बार जंगल में सैनिक पीछे रह गए थे। माधवजी व उसे नदी पार करनी पड़ी। गन्ना का घोड़ा घायल था, नदी पार करते समय वह डूब गया। बेहोश गन्ना को माधवजी ने नदी से निकाल कर किनारे की घास पर लिटा दिया। उन्होंने उसके कपड़े बदलने चाहे।

 उन्होंने बाद में भी यह राज़ गन्ना पर जाहिर नहीं किया कि वे उसे पहचान गए हैं किवह एक स्त्री है। । एक दिन गन्ना का मन बहुत उदास था वह अपनी वीणा लेकर बैठ गई, उसकी उँगलियाँ वीणा पर मचलने लगीं । वह एक गज़ल गाने लगी। ये मधुर स्वर जब माधवजी के कानों में पड़े तो वह खिंचते हुए गन्ना बेगम के घर तक आ गये। उसे इतना सुंदर गाने के लिए बधाई दी लेकिन जब वीणा पर खुदा नाम देखा तो भौंचक्के रह गये कि देश की चर्चित शायरा के इतने बुरे दिन आ गये हैं कि उसे उनका अंगरक्षक बनकर रहना पड़ रहा है।

 गन्ना अपना भेद खुलता देखकर सकपका गई थी, उसके आँसू निकल पड़े थे। माधवजी उसका सौंदर्य देखकर ठगे से खड़े रह गये थे। मुग्ध स्वर में उन्होंने कहा था, “मैं बरसों से आपकी चर्चा सुनकर आपसे मिलना चाहता था। अब आप निश्चिंत रहें, मैं आपका भेद खुलने नहीं दूँगा।”

 गन्ना बेगम दुनियाँ के लिये गुन्नी सिंह बनकर ही रह रही थी। माधवजी स्वयं दोहे की रचना करते थे। जब भी समय मिलता वह उहें अपने दोहे सुनाते, गन्ना बेगम अपनी नई गज़ल रचकर, कभी उनके दोहे गाकर सुनती थी। समय ऐसे ही बीत रहा था तभी गन्ना ने सुना कि जवाहर सिंह की मौत हो गई है। वह ये खबर सुनकर टूट सी गई थी। माधवजी का साथ उसके ज़ख्मों पर मरहम रख रहा था।

 ग्वालियर राज्य विस्तार पा रहा था। इस राज्य की समृद्धि व कीर्ति से बहुत राज्य इसके शत्रु बन गये थे। मध्य प्रदेश की मराठा शक्ति में फूट पड़ रही थी । अवध के नवाब, भरतपुर के जाटों की आँखों में ग्वालियर एक कांटे की तरह चुभ रहा था। गन्ना बेगम गुन्नी सिंह बनी गुप्तचर बनकर शत्रुओं के बीच जाकर उनके षड्यंत्र विफल करती रहती थी। माधवजी उसे रोकते रह जाते थे।

 गन्ना बेगम का पति शहाबुद्दीन भरतपुर के पास नूराबाद में डेरा डाले पड़ा था। साथ में अपना हरम व सेना लाया था। उसकी योजना थी कि वह माधवजी से मित्रता व सांठ-गाँठ करके दिल्ली पर हमला करना चाहता था। 

 वह अक्सर कुछ सैनिकों के साथ ग्वालियर के मुहम्मद गौस के भव्य मकबरे पर आया करता था। जहाँ संत फ़कीर धर्म की ज्ञान की बात किया करते थे। एक दिन गन्ना बेगम भी पुरुष वेश में ज्ञान ध्यान की सुनने वहाँ आई। वहाँ शाहबुद्दीन को पहचान कर सशंकित हो गई। वह उसका वहाँ आने का मंतव्य जानने के लिये वहीं रुकी रही। उसका भेद लेने की तन्मयता में वह यह भी भूल गई कि लोग एक एक करके वहाँ से चले गये हैं। शहाबुद्दीन के सैनिकों ने देखा ग्वालियर का एक नाजुक सिपाही अभी तक रुका हुआ है। उन्होंने तुरंत ही उसे गिरफ़्तार कर लिया। व शहाबुद्धीन का काफ़िला उसे लेकर नूराबाद ले चला।

 गिरफ़्तार गन्ना बेगम के दिल में भयंकर तूफ़ान या भूचाल उठ रहा था। जिस व्यक्ति से वह नफ़रत करती थी, जिसके घर की अपमानित ज़िंदगी से भाग आई थी। उसी की कैद में जा फँसी थी। इससे पहले उसे कोई पहचान ले उसने अपनी अंगूठी में भरी ज़हर की बूँद को पी लिया। उसकी तबियत रास्ते में खराब होती चली गई। भगवतीशरण जी की ये किताब इस बात पर तो प्रकाश नहीं डालती कि उसे पहचाना कि नहीं लेकिन पहचाना ही गया होगा क्योंकि वह शहाबुद्दीन की बेगम थी इसलिये नूराबाद में उसका मकबरा बनवाकर उसकी अंतिम इच्छा पूरी की गई, उसकी मजार पर यह लिखवाकर- ‘आह: गम-ए-गन्ना बेगम।’

 

नीलम कुलश्रेष्ठ