मेरी दूसरी मोहब्बत - 77 Author Pawan Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी दूसरी मोहब्बत - 77

Part 77- Bacche ki Khushi

सोंदर्या के हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाने के बाद पवन के पिता ने पोते के आने की खुशी मे पार्टी रखी है। पार्टी में अवनी और पवन की फैमली और सोंदर्या के माता- पिता भी शामिल हैं। पवन अपने रूम मे पार्टी के लिए तैयार हो रहा है। और अवनी का सारा ध्यान बेबी को तैयार करने के लिए समान इकठ्ठा करने मे है। पवन अवनी का ध्यान अपनी ओर करने के लिए उससे मज़ाक करता है।

पवन - अवनी मेरा पर्स कहा है?

अवनी - पवन वहीं टेबल पर है।

पवन - यार! कहा है?

अवनी - ओहो! तुम्हें तो कभी कुछ मिलता ही नहीं है।

अरे! अभी तो यही था, अब कहा गया?

पवन - अवनी मिला क्या?

अवनी - नहीं अभी नहीं।

पवन - देखो कहीं यहा तो नहीं है।

अवनी - कहा?

पवन - (मुस्कराते हुए) मेरी पॉकेट में।

अवनी - पवन यार! मुझे अभी बेबी को रेडी भी करना है और तुम हो कि मुझे परेशान कर रहे हो।

पवन अवनी का हाथ पकड़ अपने पास बैठा लेता है।

पवन - अवनी मैं देख रहा हूँ कि जब से बेबी आया है तुम मुझे बहुत इग्नोर कर रही हो।

अवनी - ओह! तो जनाब जैलेसी के शिकार हो रहे हैं।

पवन - (मुस्कराते हुए) हाँ आखिर मेरा हक़ है।

अवनी - आह! पवन तुम भी ना, बस बेफिजूल की बाते करा लो तुमसे।

वेसे पवन बेबी के आने से सब लोग कितने खुश हैं न।

पवन -(खुश हो कर) हाँ सच कहा, एक नन्हा सा बच्चा घर की रौनक बन गया।

अवनी -यार पवन मुझसे वादा करो, हम हमारे बेबी को बहुत अच्छी परवरिश देंगे, उसे हमेशा खुश रखेंगे।

पवन - हाँ अवनी, अपने बच्चे को एक बेहतर जिंदगी देंगे।

अवनी अपनी खुशी जाहिर करती हुई पवन के गले लग जाती है।

अवनी - हाँ पवन।

पवन - हम्म!

अवनी - अरे! देखो तुमने फिर मुझे बातों में लगा लिया ना।

पवन - ओह! मैंने? बल्कि तुमने मुझे बातों में लगा दिया।

अवनी - अच्छा बाबा ठीक है, मैंने ही तुम्हारा टाइम वेस्ट किया।

अवनी बेबी का समान उठा कर बेबी के पास उसे तैयार करने जा रही होती है।

अवनी - पवन मैं बेबी को तैयार करने जा रही हूँ।

अवनी बेबी के पास चली जाती है।

अवनी - अरे! मैं तो इसे तैयार करने आई थी, तुमने तो पहले ही इसे तैयार कर दिया।

सोंदर्या - हाँ अवनी मैंने इसे पहले ही तैयार कर दिया, तुम फिर कभी कर देना अब।

अवनी को बुरा लगता है कि उसके बदले सोंदर्या ने बेबी को रेडी कर दिया, लेकिन अवनी फिर भी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं होने देती।

अवनी - अच्छा! चलो ठीक ही किया तुमने, वेसे भी बाहर सब लोग आ चुके हैं। लाओ बेबी को अब उसकी माँ को दे दो, बाहर सब इंतजार कर रहे हैं।

अवनी के बेबी को मांगने पर सोंदर्या उसे नहीं देना चाहती, सोंदर्या अपनी ही सोच में गुम हो जाती है।

अवनी - सोंदर्या! क्या हुआ? कहां खो गई? लाओ इसे मुझे दो।

सोंदर्या - आ... बेबी अपनी माँ के पास ही है अवनी।

अवनी - (चौंक कर) सोंदर्या! तुम क्या कह रही हो, जानती भी हो?

सोंदर्या - (सीरियस होकर) हाँ जानती हूँ । अब सब जानती हूँ।

अवनी - (हैरानी से ) सोंदर्या!

सोंदर्या - एक माँ की ममता, एक बच्चे को कभी खुद से जुदा नहीं कर सकती अवनी।

अवनी - (गुस्से में) पर तुमने तो खुद वादा किया था, तुम अब अपनी बात से नहीं मुकर सकती।

सोंदर्या - हाँ किया था, पर तब मैं इस ममता के बंधन से कोसों दूर थी, और अब जब नजदीक आई हूँ तो दूर नहीं जाना चाहती।

अवनी - (गुस्से में) तुम मेरे बेटे को मुझसे दूर नहीं ले जा सकती, ये पवन का अंश है और उसी की देख रेख मे इसकी परवरिश होगी।

सोंदर्या - लेकिन इसे नौ महीने मैंने अपनी कोख में पाला है और इसे जन्म दिया है।

अवनी तुम खुद बताओ अगर तुम मेरी जगह होती तो क्या करती?

अवनी - (इमोशनल होकर) काश! काश कि मैं तुम्हारी तरह माँ बनी होती तो इस दिन की नौबत ही न आई होती।

सोंदर्या बच्चे को लेकर बाहर जाने लगती है, अवनी बच्चे को उससे लेने की कोशिश करती है लेकिन वो वहीं गिर जाती है।

सोंदर्या - मुझे माफ कर देना लेकिन मैं ये नहीं कर सकती।

अवनी- सोंदर्या रुको, रुको ये मेरा बेटा है। इसे तुम नहीं ले जा सकती, प्लीज रुक जाओ।

सोंदर्या - अवनी! जाने दो मुझे।

अवनी - (रोते हुए) मेरा बेटा, मेरा बेटा ले लिया उसने, मेरा बच्चा।

पवन सोंदर्या को अकेला आते देख उससे अवनी के बारे में पूछता है।

पवन - सोंदर्या अवनी कहा है? वो तो तुम्हारे और बेबी के पास ही गई थी ना?

सोंदर्या नम आँखों से पवन को देखती है।

सोंदर्या - मुझे माफ कर दो पवन।

पवन सोंदर्या को देखता हुआ जल्दी से अंदर अवनी के पास जाता है।

पवन - अवनी! अवनी!

पवन अवनी को जमीन पर रोता देख घबरा जाता है।

पवन - (घबरा कर) अवनी! मेरी जान तुम रो क्यों रही हो? उठो उठो ।

अवनी - (रोते हुए) पवन वो हमारे बच्चे को ले गई, उसने कहा कि वो हमे हमारा बच्चा नहीं देगी। पवन उसे रोको प्लीज उसे रोको।

पवन ने इस तरह पहले अवनी को कभी नहीं देखा था और अवनी को देख पवन घबरा जाता है।

पवन- अवनी तुम क्यों रो रही हो? हमारे नसीब मे जो होगा वही होगा, तुम ऐसे तो नहीं रोओ।

सभी घर वाले अवनी के पास आ ही रहे होते हैं कि अवनी खुद को सम्भाल कर जल्दी से बाहर आती है।

अवनी - सोंदर्या रुक जाओ, तुम मेरे बेटे को नहीं ले जा सकती।

पवन- अवनी रुको, रुको अवनी।

सोंदर्या- (इमोशनल होकर) पवन अवनी को समझाओ न, मैं अपना बच्चा नहीं दे सकती।

पवन की माँ - (हैरान होकर) सोंदर्या! तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? जब सबकुछ पहले ही तय हो चुका था तो तुमने अपना इरादा आखिर क्यों बदल दिया?

सोंदर्या- आप ही बताइए, आप मेरी जगह होती तो क्या करती?

पवन की चाची - बात क्या करने की नहीं है, जब सब पहले ही तय हो चुका था तो अब?

पवन -( गुस्से में) सोंदर्या तुम अगर अपना बच्चा हमे नहीं दे सकती थी तो तुम्हें आस भी नहीं जगानी चाहिए थी। (गहरी सास भरते हुए) खैर! अब जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो तुम्हें यहा कोई नहीं रोकेगा, तुम अपने रास्ते जा सकती हो।

अवनी -(हैरान होकर) पवन तुम ये क्या कह रहे हो? तुम होश में तो हो। वो हमारे बच्चे को ले जा रही है, पवन तुम्हें तो उसे रोकना चाहिए।

पवन अवनी को समझाने की कोशिश करता है लेकिन अवनी उससे बच्चे को रोकने की जिद्द करती रहती है।सोंदर्या अपने बच्चे को लिए अपनी फैमली के साथ चली जाती है।

पवन- (प्यार से) अवनी तुम्हें तो शुक्र करना चाहिए कि जो कुछ सालो बाद होता वो अभी ही हो गया।

अवनी की माँ - हाँ अवनी अभी तो तुमने उसे ठीक से देखा भी नहीं था और तुम्हारा ये हाल हो गया। अगर ये सब कुछ वक़्त बाद हुआ होता तो क्या हुआ होता तुम अच्छे से जान सकती हो।

अवनी - (रोते हुए) माँ उस बच्चे को मैंने जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ? मैंने उसे नौ महीने बढ़ते हुए महसूस किया है, वो मेरा ही बेटा है माँ।

पवन अवनी की बाजुओं को पकड़ गुस्से में उसे समझाता है।

पवन - (गुस्से में) अवनी जब वो हमे अपना बेटा अपनी मर्जी से नहीं दे सकती तो हमे भी ऐसा बेटा नहीं चाहिए। तुम्हें खुद को सम्भालना होगा अवनी, आखिर तुम कब तक ऐसे रोती रहोगी?

अवनी पवन से खुद को छुड़ा कर पीछे हो जाती है।

अवनी - (इमोशनल होकर) पवन तुमसे ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी मुझे, तुमने हमारे बच्चे से उसके पैरंट्स छीन लिए, तुम बहुत बुरे हो पवन! तुमने अपने ही बच्चे को खुद से दूर कर दिया।

सोंदर्या के बच्चे को ले जाने देने पर अवनी का दिल टूट जाता है। अवनी सब कुछ छोड़ कर वहां से बाहर भाग जाती है।