Meri Dusri Mohabbat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी दूसरी मोहब्बत - 3

Part 3- Pehli Koshish

रात का समय है।

पवन इधर- उधर देखता है। क्या करूँ? ओह वो रही, इसकी इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। एक लम्बी मोटी लम्बी रस्सी.... जिसे देखकर पवन की आँखों में चमक आ जाती है। अब तो आव देखा न ताव तुरन्त पवन रस्सी को उठाकर दबे पाँव कमरे की खिड़की से रस्सी को लटकाता है।

अचानक से अवनि के पिताजी करवट लेते हैं, पवन तुरन्त दीवार के पीछे छिप जाता है। जैसे- तैसे करके डरते डराते रस्सी की मदद से वह खिड़की से नीचे आ ही जाता है। उसके पास कोई सामान नहीं होता इसलिए जल्दी ही भागते-भागते वह बस स्टॉप पर पहुँचता है। बस स्टाॅप पर पहुँचने पर उसके मन में कई विचार एक-साथ आते हैं - जैसे अगर वह भागता नहीं तो उसकी शादी अवनि से हो जाती। एक लड़की जिसकी जान बचाने में तो कामयाब हो गया। लेकिन अवनि ने तो अपने पिताजी के डर से ही शादी के लिए हाँ की है। वह मन से शादी के लिए तैयार नहीं है, तो मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ। किसी की मजबूरी का कैसे फायदा उठाऊँ। अवनि को बिना बताए मैं भाग तो आया हूँ,

पता नहीं सही है या ग़लत। अब अवनि के साथ क्या होगा, क्या वह अपने पहले प्यार को भुला पाएगी? उसके घरवाले उसकी इच्छा को जान भी पाएंगे या नहीं या फिर वह दुबारा सुसाॅइड करने की कोशिश करेगी.... अपने मन में आए प्रश्नों के बारे में पवन सोच ही रहा था कि अचानक से रात के अंधेरे में एक हाथ उसके कंधे पर आता है... पिताजी- पवन बेटा क्या हुआ? नींद नहीं आ रही थी। अवनि के पिताजी पवन से पूछते हैं।

पवन - नहीं..नहीं अंकल ऐसा नहीं है।

पिताजी- फिर क्या वाकिंग के लिए आए हो। पवन चौंकते हुए बोला .... जी अंकल ... अरे ! बेटा अंकल नहीं पापा कहो। अब हमने आपको दिल से अपना दामाद मान लिया है।  पवन-जी ... जी पापा जी ..चलिए घर चलते हैं। मेरी वज़ह से आपकी नींद में ख़राब हुई साॅरी....

पिताजी- अरे ! भई कोई बात नहीं हम दिल्ली वाले बड़े दिल वाले हैं ।जब एक बार किसी को अपना बनाते हैं तो पूरे दिल से अपनाते हैं। आज हम भी तुम्हारे साथ वाॅक करेंगे।अब तो तुम हमारे लिए अवनि से भी बढ़कर हो। पवन - जी.. थैंक्यू।

पिताजी - अब तो बरखुरदार आप भी हमारे फैमिली मैंबर हैं।

यह कहते हुए अवनि के पापा ने पवन को गले लगा लिया।अवनि के पापा का यह प्यार भरा रूप देखकर पवन का मन खुश हो जाता है।

पिताजी - चलो आपको कुल्फी खिलाते हैं।

कुल्फी वाले के पास पहुँचकर - हाँ भई प्रकाश दो बढ़िया कुल्फी दे दो। कुल्फी लेते हुए पता है बेटा अवनि को कुल्फी खाना बहुत पसंद है। उसकी हर छोटी-बड़ी पसंद का हमें पता होता था। उसका मैं बहुत ध्यान रखता हूँ। बाहर से सख़्त हूँ पर अपनी लाड़ो की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। हाँ तब बहुत गुस्से में था। लेकिन अब ठीक है । मैंने अपने को मना लिया है। तुझे देखकर मेरा गुस्सा छू मंतर हो गया।

दोनों एक साथ हँसते हुए.......

पिताजी- पता नहीं कब अवनि यह कदम उठा बैठी और हमें पता भी नहीं चला। मैंने शुरू से उसके लिए कुछ और ही सोचा था। लेकिन रब को कुछ और ही मंजूर था।

पवन ने डर के मारे पापा की हाँ में हाँ मिलायी।

पिताजी - चलो कोई नहीं अब तो बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है । बस इस शादी के लिए अवनि के ताया जी भी मान जाए।

पवन - सोचते हुए ...अभी तो और भी अड़चन है, पिताजी के बाद ताया जी को भी मनाना है।

अभी और भी दिक्कतें हैं। चलों फिर कोई नहीं इसका मतलब मेरी और अवनि की शादी आसानी से नहीं होगी। मैं ऐसे ही शादी से भाग रहा था। अभी तो शादी ही भाग रही है। ठीक है तब तक अवनि अपने घरवालों को सच बता ही देगी। पवन मन ही मन खुश हो रहा था। कुल्फी खाते- खाते दोनों एक दूसरे के साथ सहज हो रहे थे। अब पवन को भी लगने लगा था कि शायद वह अवनि के पिताजी की सारे हालात समझा पाएगा।

पिताजी - पवन मेरे भाई साहब अवनि के ताया जी कनाडा में रहते हैं, बचपन से उन्होंने अवनि के लिए अलग सपने देखे थे। अवनि उनकी लाडली है। उन्होंने कनाडा में अपने दोस्त से अवनि के रिश्ते की बात चला रखी है।

पवन पिताजी की ओर देखते हुए कुछ बोलने वाला होता है तभी...

पिताजी - ओए चिंता न कर, मैं समझाऊँगा उनको।बस तुझे विश्वास दिलाना है कि तू ही चंगा मुंडा है।

तुम अवनि से सच्चा प्यार तो करते हो न। खुश रखोगे ना मेरी लाडो को। कहते हुए गला भर सा आता है।

पवन - पिताजी आप अपनी बेटी पर भरोसा रखिए।

पिताजी - ओए अब तो अवनि और तुझ पर, दोनों पर भरोसा है। तेरे से अच्छा जीवन साथी उसे मिलेगा। अब हमें भी अपनी अवनि की पसंद भाने लगी है।

पवन - जी .... कुछ सकुचाते हुए।

क्या पवन अवनि के पिताजी के साथ साथ उसके ताया जी का भरोसा भी जीत पाएगा।

या सब सच कहकर अवनि की जिंदगी से चला जाएगा।

लेकिन अभी तो वह पिताजी के साथ कुल्फी खत्म करके घर पहुँच गया है। इस समय पिताजी की हाँ में हाँ कहने के सिवाय उसे कुछ नहीं सूझ रहा था।

चलों आपको बताते हैं कि घर पर अवनि का क्या हाल है?

अवनि घर में पवन और पापा को कमरे में न पाकर बहुत बैचेन हो उठती है । इधर से उधर घूमे जा रही रही है मन कैसे कैसे ख्याल आ रहें हैं। कहीं पापा जी को सब सच तो पता नहीं चल गया होगा, यदि पवन चला गया होगा वह सबको क्या कहेगी, क्या पता पवन ने ही सबकुछ बता दिया हो।लेकिन अब अवनि ने पूरी हिम्मत जुटाकर सोच लिया था कि - वह अपने घरवालों को सब सच बता देगी। झूठी आस में अपने घरवालों को नहीं रहने देगी। विश्वास दुबारा नहीं तोडेगी।

वह अपनी माँ के पास दौड़ी- दौड़ी आती है। माँ, ओ माँ उठो ना कुछ बताना है।

माँ - क्या अवनि नींद आ रही है,कल बात करियो सो जा, मुझे भी सोने दे।

अवनि - नहीं माँ मुझे अभी बात करनी है।

माँ- आँख मलते हुए, हाँ बोल रात में ही क्या आफत आ गई।

अवनि- माँ पवन कमरे में नहीं है। पिताजी भी नहीं है।

माँ - वो कहाँ गए हैं अब रात में।

देख ले बाहर बाॅलकोनी में होंगे।

अवनि - नहीं है देख लिया सब जगह ।

माँ - अरे तो क्या आस-पास घूमने गए होंगे, फोन कर ले।

अवनि - माँ फोन घर पर ही छोड़ गए।

माँ - पवन को कर।

अवनि - नंबर नहीं है।

माँ - क्या तेरे पास फोन नं नहीं है उसका ?, क्या कह रही है।

माँ की गोद में सिर रखते हुए,माँ उउउउउउ।

अवनि माँ को सच बताने की हिम्मत जुटाती है....लेकिन  क्या अवनि अपनी माँ को सब सच बता पाएगी ?

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