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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 03)

मुझे मेरे घरेलू नाम से सम्बोधित करने के बाद वह टीसी उस डिब्बे से उतर कर जा चुके थे...शायद आगे की यात्रा वह इंजन में अपने सहकर्मियों के साथ बैठ कर ही करने वाले थे...मैं हतप्रभ था....मन किया कि उसके पीछे जाकर अपनी शंका का समाधान कर आऊँ,पर तब तक मुझे महसूस हुआ कि ट्रेन आगे बढ़ चली है।

तभी मैंने गौर किया कि कुछ देर पहले सामने बैठे जिस वृद्ध व्यक्ति से मैंने कुछ पूंछना चाहा था,वह तब से अभी तक लगातार मुझे घूर रहा है....उसकी नजरें लगातार मेरी ओर ही है,यह बात मुझे कुछ अजीब सी लगी.....मैंने डिब्बे में यहाँ वहाँ नजरे घुमाकर देखा तो महसूस किया कि यहां कुछ तो गड़बड़ है .…...खिड़की वाली सिंगल सीट पर एक अधेड़ महिला भी ठीक सामने बैठे व्यक्ति की तरह ही मुझे एकटक निहार रही है......उसके भावहीन चेहरे के साथ शून्य आंखें,जो बिना पलक झपकाएं बस मुझे ही देखे जा रही है......सिर्फ वही नही बगल वाले कमार्टमेंट में बैठे हुए 20-22 साल के दो युवा भी ठीक उसी अंदाज में मुझे नोटिस कर रहे थे।
मैं अभी यह समझने की कोशिश ही कर रहा था कि आखिर इनको मुझसे ऐसी भी क्या समस्या है,जो लगातार मुझे घूर रहे है......कि अचानक से तेज भागती उस ट्रेन के डिब्बे में धुप्प अंधेरा पसर गया.....शायद पॉवर कट हुआ था....सारी लाइट्स ऑफ हो चुकी थी....इससे पहले मैं कुछ समझ पाता एक जोर की खौफनाक चीख के साथ मेरी आँखों के ठीक नजदीक अंधेरे में डूबा आधा जला हुआ एक बेहद विकृत,वीभत्स, डरावना चेहरा मात्र एक सेकेंड के लिए दिखाई दिया और फिर गायब हो गया.......उसके अगले ही क्षण ट्रेन की सारी लाइट्स फिर से जल चुकी थी......मैं बुरी तरह हक्का बक्का था.....अचानक से जो मेरे साथ हुआ,उसने मेरे जिस्म को बुरी तरह से कंपा दिया था,आंखों पर भरोसा नही हो रहा था,ऐसे लग रहा था कि मानों किसी बेहद डरावनी हॉरर मूवी को कोई खौफनाक दृश्य मेरी आँखों के सामने आया हो.....मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....पर दहशत में डूब चुके मेरे ह्रदय के लिए मुश्किलें और भी बढ़ने वाली थी......क्योंकि जब मैंने अपने ठीक सामने वाली सीट पर नजर डाली तो वहां अब कोई नही था.....सामने बैठा हुआ वह वृद्ध व्यक्ति अपनी जगह पर अब नही था......सिर्फ वह ही नही विन्डो सीट पर बैठी वो अधेड़ महिला और बगल वाले कम्पार्टमेंट में बैठे हुए इक्का दुक्का वह लोग.....कोई भी नही था......मेरा दिमाग बुरी तरह से फ़टा जा रहा था....पागलों की तरह मैं सारे डिब्बे में यहां वहां दौड़ा....किसी भी सीट पर कोई भी नही था.....सारी ट्रेन खाली थी......तेजी से भागती हुई ट्रेन में से अचानक से सभी सवारियों का यूं गायब हो जाना......मेरी आँखों के सामने वह डरावना दृश्य आना.....यह सब एक सपने के जैसा ही लग रहा था......मैंने खुद को चिकोटी काट कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं यह सब भी तो मेरे पिछले सपनो की तरह ही एक बुरा सपना तो नही......पर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया था कि यह सब हक़ीक़त में हो रहा है.....एक बेहद बुरी हकीकत.......सोचा कि अपनी इस हालत के बारे में किसी को बता कर मदद ली जाए...कॉल करने के लिए पॉकेट से अपना मोबाइल फोन निकाला..पर उसकी स्क्रीन पर जैसे ही नो सिग्नल्स का नोटिफिकेशन देखा,मैं समझ गया कि बुरी तरह फंस चुका हूँ................मैं भागता हुआ ट्रेन के दरवाजे पर पहुंचा ,एक बार तो दिल किया कि इसी चलती ट्रेन से कूंद कर इस डरावनी दुनिया से बाहर निकला जाए........पर इस स्पीड में ट्रेन से कूंदने का अर्थ था अपने अच्छे खासे शरीर का हड्डियों सहित चूरमा बनवाना,जो कि मुझे किसी भी कीमत मर मंजूर नही था......तभी अचानक से मैंने कुछ नोटिस किया........रात के अंधेरे में वैसे तो ट्रेन के बाहर ज्यादा कुछ नजर नही आ रहा था.....पर फिर भी जितना जो कुछ दिख रहा था वह अंदर के दृश्यों से भी ज्यादा डरावना था..मुझे ट्रेन के दरवाजों पर कुछ विशाल पक्षी उड़ते हुए दिखाई दिए....मोबाइल का फ्लैश जला कर उन पर डाला तो मैं दंग रह गया....यह बड़े बड़े चमगादड़ थे........जो कि ट्रेन के साथ साथ ही बराबर गति से उड़ते हुए दरवाजे के चारो ओर मंडरा रहे थे,पर यह ट्रेन के अंदर प्रवेश नही कर रहे थे......इनका आकार किसी चील या गिध्द जितना बड़ा था...इनकी आँखे और दैत्याकार जबड़ो से लाल रंग का कोई द्रव्य टपक रहा था.....हो सकता है यह रक्त ही हो.....डरकर मैं ट्रेन की गैलरी में दो कदम पीछे आ गया...ऐसा लग रहा था कि मानों ये इस ट्रेन के दरवाजे के पहरेदार हो.…....

अब तक तो मेरी हालत पतली हो चुकी थी.....दहशत के साये में लिपटा हुआ मैं डर के मारे कड़कड़ाती इस सर्द रात में भी पसीने से बुरी तरह तरबतर हो गया था.......मेरे ठीक सामने एक बेहद पुरानी डिजायन का वॉशबेसिन लगा हुआ था, मैंने आव देखा न ताव,सीधे उसके सामने पहुंच के नल को दबाया और अपने दोनों हाथों में पानी भरते हुए सीधा अपने मुंह पर उड़ेलते हुए कुछ राहत पाने की कोशिश की........पर अगले ही पल मुझे अहसास हुआ कि यह पानी नही कुछ और ही है.......चेहरे व हाथों में चिपचिपापन महसूस हो रहा था....... लाइट के उजाले में मैंने जैसे ही अपने हाथों को देखा...तो मेरी तेज चीख निकल गयी......मेरे पैर बुरी तरह लड़खड़ाने लगे.......दर असल मेरे दोनो हाथ लाल,गाढ़े खून से भीगे हुए थे, मेरे चेहरे से भी वही खून टपक रहा था जिसे अभी अभी मैने पानी समझ कर अपने चेहरे को धोया था.......और वॉशबेसिन का नल अभी भी चालू था........उसमें से तेजी के साथ अभी भी वहीँ खून बह रहा था........

मुझे मेरा जीवन समाप्ति की ओर लगातार अग्रसर होता हुआ दिख रहा था.....एक न्यूज रिपोर्टर होने के नाते मैंने जीवन भर भूतप्रेत जैसे विषयों को हमेशा ही अंधविश्वास साबित करते हुए तमाम रिपोर्ट्स तैयार की.......पर आज जब मुझे इस बात का अहसास हुआ कि यह सब अंधविश्वास नही इसी दुनिया का एक अभिन्न अंग है.....तो इस मोड़ पर आकर मैं अपने भविष्य के रूप में इस जीवन को बस कुछ ही देर में खत्म होता मान चुका था........
मेरे पास अब कोई विकल्प ही न था.......वापस अपनी सीट पर आया, बैग में से तौलिया निकाला,अपने हाथों और चेहरे को पोंछा.....और तौलिये को सामने वाली सीट पर फेंक दिया.......
पर यह क्या......तौलिये पर जैसे ही मेरी नजर पड़ी मैं एक बार फिर चौंक गया था........यह बिल्कुल साफ सुथरी थी....मैंने उसे उठाकर अच्छे से पलट कर देखा,पर रक्त का कोई नामों निशान नहीँ......कोई लाल धब्बा नही.......हाथ भी एक दम साफ सुथरे.......मोबाइल का फ्रंट कैमरा ऑन कर के अपना चेहरा भी देखा,तो उस पर भी किसी प्रकार का कोई खून नही......
क्या था यह सब..? आखिर कैसा मायाजाल है यह? मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था.........बस दिमाग में सिर्फ उस एक इंटरव्यू के कुछ शब्द गूंज रहे थे,जो मैंने कुछ माह पहले अपने चैनल के लाइव शो के दौरान लिया था.......डॉक्टर प्रियंका भदौरिया, देश की मशहूर पैरानॉर्मल एक्टिविटीज एक्सपर्ट.......उनके इंटरव्यू शो के दौरान जब उन्हें लगा कि उनका इंटरव्यू ले रहे रिपोर्टर....अर्थात मुझें......भूत,प्रेत सब कुछ सिर्फ कोरी कल्पना ही लग रही है.....तब उन्होंने ऑफ द इंटरव्यू कहा था....."बरखुरदार,भगवान से प्रार्थना कीजिये कि आपका यह भ्रम जीवन भर न टूटे, क्योंकि जिस दिन आपका यह भ्रम टूटेगा, वह दिन आपके जीवन का सबसे बुरा दिन साबित होगा।"

और आज मेरा भ्रम सच में टूट चुका है..मैं धम्म से अपनी सीट पर निढाल सा बैठ गया...मन किया कि अपने फोन में मौजूद डॉक्टर भदौरिया को अभी कॉल करके सारी स्थिति बता कर इससे बचने का कोई उपाय भी पूंछ लिया जाए......पर इस भुतहा चक्रव्यूह में ऐसा फंसाया गया था कि चाह कर भी किसी से मदद नही ली जा सकती थी.....दिमाग अभी इसी सोच विचार में डूबा हुआ ही था....कि अचानक से मेरे कानों में मेरे ठीक बगल से किसी के सिसकारी लेकर रोने की आवाज आई.......अपने ठीक बगल में किसी के होने के अहसास ने एक बार फिर मेरी रूह कांप गयी......किसी तरह हिम्मत करके मैंने अपनी गर्दन बगल की ओर घुमाईं......मैंने जो देखा उसे देखकर मेरी जान हलक में आ गयी......आंखे आश्चर्य से फ़टी की फटी रह गयी।

..... कहानी जारी रहेगी......

कैसा रहा ये पार्ट?....जरूर बताएं😊



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