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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 05)

जान बचाकर आखिर कौन नही भागना चाहता.....मैं कुछ देर पहले मौत के जिस मायाजाल से बच कर निकला था,आखिर क्यों दोबारा उस के आसपास भी जाने का दुस्साहस करूंगा?......पर जब मैं ट्रेन में बैठ कर वापस जाने का फैसला कर चुका था,तो ऐसा लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे जाने से रोक रही हो......वो अदृश्य शक्ति मेरे द्वारा दादा जी के अंतिम समय में दिया हुआ वचन था या फिर कुछ और.....पर जो कुछ भी था उसने मेरे मस्तिष्क को झकझोर कर मुझे ट्रेन से उतार ही लिया था.......
'क्या दादाजी को यहाँ मौजूद खतरों के बारे में पता था?
यदि पता था तो मुझे इस सब के बारे में बताए बिना ही ऐसी जगह क्यूँ भेजा,क्यूँ छिपाए उन्होंने मुझसे यहां के रहस्य?
जबकि वह मुझसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते थे.....क्योंकि आखिर था ही कौन मेरा उनके अलावा............'.यह सब सवाल मैं स्वयं से करते हुए प्लेटफार्म पर आगे बढ़ रहा था था........और दादाजी से जुड़ी हुई स्मृतियां मेरे दिमाग में एक चलचित्र के जैसे क्लिक कर रही थी......तभी अचानक मुझे याद आई वह मोटी सी डायरी ,जो दादाजी ने अंतिम समय में मुझे देकर कहा था.....कि जब तुम देवगढ़ जाओगे,तो रास्ते में खाली समय में इसको पढ़ना.....इसमें बहुत कुछ है तुम्हारे लिए......

और मैं ......डायरी को बैग में तो रख कर ले आया था.....पर सफर के खाली समय में मोबाइल से समय व्यतीत करने में मशगूल रहा.....जरूरी ही नही समझा उस डायरी को पढ़ना.....पर अब ,जब देवगढ़ और उस ट्रेन के रहस्यों के बारे में जानना चाहता हूँ,तो अचानक से दिमाग ने उस डायरी की ओर भी इशारा किया,कि शायद उसी मे मुझे मेरे सवालो के जबाब मिल जायें.....और फिर मैं बिना देर किए ही स्टेशन पर मौजूद टीनशेड के नीचे बैठ कर अपने बैग का सामान यहां वहां करते हुए डायरी खोजने लगा, इस जगह पर्याप्त रोशनी भी हो रही थी...जल्दी ही लाल जिल्द वाली वह पुरानी सी नीली डायरी मेरे हाथो में है.....मैने जल्दी से बैग को एक ओर रखा और उस डायरी को बड़ी ही उत्सुकता के साथ पढ़ना आरम्भ किया.....

डायरी के प्रथम पेज पर दादाजी की ही सुंदर हैंडराइटिंग में सिर्फ श्री गणेशाय नमः लिखा हुआ था,दूसरे पेज पर पूरा का पूरा हनुमान चालीसा ,एवं तीसरे पेज पर गायत्री मंत्र की पंक्तिया अंकित थी.....चूंकि दादा जी बेहद ही धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण यह सब लिखा होना मुझे एकदम सामान्य सा लिखा.......चौथे पेज पर लिखा हुआ सन्देश देख कर मैं ठिठक गया.....यह संदेश मेरे लिए ही लिखा गया था।

"प्रिय गोलू, सदा खुश रहो
जिस वक्त तुम यह सब पढ़ रहे होंगे,उस वक्त तक मैं इस दुनिया से जा चुका होऊंगा.....हो सकता है इस डायरी को पढ़ते वक्त तुम संकट में हो अथवा तुम्हारे मन में कई शंकाएं एवं सवाल हो....धैर्य रखो तुम्हारे सारे प्रश्नों के जबाब तुम्हे इस डायरी में मिल जाएंगे.....बस इस डायरी को पढ़ने के पश्चात बेहद सूझबूझ एवं हिम्मत के साथ तुम्हे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा,प्रभु के आशीर्वाद से तुम कामयाब जरूर होंगे.....यह सब बातें मैं आत्मग्लानि के बोध के चलते जीवित रहते हुए तुम्हे न बचा सका,इसलिए इस जीवन बन्धन से मुक्त होने के पश्चात बता रहा हूँ।
- 'तुम्हारे प्यारे दादा जी'

कौन से राज बताने वाले है दादाजी,मेरी उत्सुकता उच्चतम स्तर पर थी......और फिर मैंने पन्ना पलटा......अगले पन्ने से दादाजी द्वारा लिखी गयी एक विस्तृत महागाथा मेरे सामने थी।
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वर्ष 1977.....एक छोटे से कर्मचारी के रूप में शुरू की गई अपनी रेलवे की नौकरी में मैं लगातार तरक्की करते हुए इसी वर्ष स्टेशन मास्टर के पद पर प्रोन्नत हुआ था....मजे की बात यह थी कि मेरी नौकरी के सत्रह साल इसी देवगढ़ स्टेशन पर ही अलग अलग पदों पर सेवा करते हुए व्यतीत हुए थे......वैसे तो मैं बिहार के चम्पारण जिले के एक छोटे से गांव से था,जहां नौकरी के अगले कुछ वर्षों तक जाना आना भी रहा....पर कुछ वर्षों बाद पिता का देहांत हो जाने के बाद मां को अपने साथ यहीं देवगढ़ ले आया.....गांव में जमीन जायदाद बची नही थी...पुस्तैनी मकान कच्चा एवं जर्जर था....तो फिर वहां से नाता ही टूट गया......अब तो मेरा घर,गांव,कस्बा सब कुछ यही देवगढ़ था......सात साल पहले मेरी माँ ने इसी क्षेत्र की एक घरेलू सजातीय लड़की देख कर मेरा विवाह भी करा दिया था

वह अगस्त माह का एक दिन था,शाम के साढ़े छः बजे होंगे.....

"बाबू जी सिग्नल बदल दूं क्या.....ट्रेन स्टेशन ने निकल चुकी है।"

सिग्नल के पास मौजूद स्टेशन के चपरासी धनीराम ने मेरी ओर हाथ हिलाते हुए दूर से ही पूंछा....धनीराम मुझे अक्सर बाबूजी कह कर ही सम्बोधित किया करता था।

मैंने केबिन की खिड़की से ही इशारा करते हुए उसे जबाब दिया..."हां धनीराम कर दें,और गेट भी खोल दे।"

उसके बाद धनीराम ने हाथ मे लिए हुए लालटेन की रोशनी में लोहे के छल्लो को बदल कर सिग्नल परिवर्तित किया....और उसके बाद हाथ से एक रॉड को चारों ओर घुमाते हुए क्रॉसिंग पर सड़क से आवागमन प्रतिबंधित करने के लिए बनाई गई रेलवे क्रॉसिंग के बैरियर(गेट) को ऊपर उठाया।

और इसी के साथ देवगढ़ स्टेशन से जाने वाली वही एकमात्र देवगढ़-पालमपुर पैसेंजर ट्रेन अपने गंतव्य स्थल की ओर रवाना हो चुकी थी, यह ट्रेन यात्रियों को लेकर दिन में दो बार जाती और दो बार आती थी,और शाम 6 बजे इसका अंतिम चक्कर होता था......मैं अब स्टेशन से फ्री हो गया था.....भूख भी लग आई थी....तो धनीराम से केबिन बन्द करने का बोल कर पैदल ही घर की ओर बढ़ने लगा...तभी देखा पिछले कुछ समय से हो रही बूंदाबांदी,अब तेज बारिश में बदल गयी थी...

"बाबूजी छाता लेते जाइये"

धनीराम दौड़ता हुआ मेरे पास छाता लेकर आया,और मुझे देकर वापस केबिन में चला गया

मुझे रेलवे स्टेशन के ठीक पास ही मौजूद रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए 8-10 मकानों में से एक सरकारी क्वार्टर मिल रखा था.....दरअसल देवगढ़ कस्बे से रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 1 किमी थी...तो दिन में तो यात्रियों के आवागमन से असपास कुछ चहल पहल भी रहती थी,पर रात में यह जगह एकदम सुनसान हो जाया करती थी।

फिलहाल मैं घर पहुंच चुका था.....पता चला माँ की तबियत आज ज्यादा खराब है....उन्हें तेज बुखार था,एवं आंखे लाल हो रखी थी.…..
"श्याम ...आ गए....इधर मेरे पास आओ..." मां ने लड़खड़ाती जुबान में मुझे पास बुलाया

मैं मां के पास खाट पर बैठ कर उनका सर दबाने लगा.....

"आपको तेज बुखार है माँ ,रुको मैं चने का सूखा साग आपके तलवो और सिर पर लगाता हूँ,उस से आपको आराम मिलेगा।"
और मैंने अपनी पत्नी मालती को आवाज देते हुए चने का साग मंगवाया......मालती अभी रसोई में कुछ काम कर रही थी,तो उसने मेरे पांच साल के बेटे 'सूर्योदय' के हाथों चने का सूखा हुआ साग भिजवा दिया।
जिसको मैंने पानी से भिंगो कर मां के सिर व तलवों पर लगाना आरम्भ किया।

"बेटा.....कुछ बताना है तुमको" मां ने मुझसे कहा.....
"पिछले कुछ दिनों से मैं चारो ओर कुछ अजीब सा महसूस कर रही हूँ.....यहां कुछ तो गलत हो रहा है।"

मैंने आश्चर्य से मां की ओर देखा और पूंछा "मां कैसा गलत?"

"बेटा मुझे कुछ अजीब सी नकारात्मक शक्तियों का अहसास हो रहा है .....आसपास टहलने वाले कुत्ते बिल्लियां भी आजकल ज्यादा रो रहे है.....रात को भी कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई देती है,कभी किसी के रोने की,त..तो कभी किसी के हंसने की....और वह पायलों और चूड़ियों के खनखनाहट की आवाज....पता है कल रात को मैंने घर के पीछे वाले उस पीपल के पेड़ की ओर एक साये को जाते हुए देखा....और...और तुमने गौर किया ...हमारा सूर्योदय भी कितना चिड़चिड़ा सा हो गया है आजकल.......यह सब अशुभ संकेत है श्याम........"

मां की बात सुनकर मैं मुस्कुराया और कहा
"मां,तुम निहायत ही परेशान हो रही हो,ऐसा कुछ नही....हम वर्षो से यहां रह रहे है, कभी ऐसी कोई समस्या नही हुई.....बरसात का मौसम है शायद इसीलिये पानी की बूंदों और तेज हवा से पेड़ के पत्तो की आवाज सुनकर आपको गलतफहमी हुई होगी.....और फिर आपको तेज बुखार भी है शायद इसलिए आप को इस प्रकार के वहम हो रहे है।"

थोड़ी देर तक मां के सिर और पैर दबाने के बाद उन्हें आराम मिला,और वह निंद्रालीन हो गयी.....मालती ने अब तक खाना परोस दिया था....मैं खाना खाने बैठ चुका था......अभी मैंने खाना खाने को निवाला तोड़ा ही था....कि घर के दूसरे कमरे से सूर्योदय की जोरदार चीख सुनाई पड़ी,जिसे सुनकर मैं और मालती घबरा गए।

.......कहानी जारी रहेगी......


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