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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 07)

उस दिन सारी रात धनीराम के विकृत शरीर और रास्ते में उस साये का दिखना मेरी आँखों के सामने ही छाया रहा, फिर जब सुबह हुई तो सबसे पहले मैंने सूर्योदय को अपने पास बुलाया,और उस से रात की उस घटना के बारे में पूंछा,जिसे देखकर वह इतना डर गया था.....सूर्योदय ने बताया कि वह लैम्प की रोशनी में अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था,तभी पास में रखे हुए कपड़े के एक पुतले में हरकत हुई....वह पुतला जोर से हिलने के बाद हवा में उड़ता हुआ बिना किसी सहायता के ही ऊंचाई पर लटकने लगा और उसकी ओर घूरने लगा...उसकी आंखें सजीव लग रही थी, फिर यह पुतला उड़ते हुए खिड़की में जा गिरा....जैसे ही सूर्योदय खिड़की के करीब पहुंचा,जोर की बिजली कड़की....और बिजली की तेज रोशनी में कुछ बहुत अजीब और डरावना सा दिखाई दिया......यह इंसान था या जानवर,यह समझ नही आया....उसने अपने हाथ के पंजो से खिड़की को पकड़ रखा था ,उसके पैने नाखून बहुत ही डरावने लग रहे थे.…..बड़ी बड़ी आंखे....लम्बे व नुकीले दांत और लहराते हुए बाल.....यह सब देखकर ही सूर्योदय की डर से चीख निकली थी.....और वह उस सदमें का शिकार हो गया था।

सूर्योदय ने जो भी बताया अब उसपर मुझे भी विश्वास हो चला था...
धनीराम की मौत की छानबीन करने पुलिस आई,लाश का पोस्टमार्टम हुआ,रिपोर्ट में बताया गया कि किसी जंगली जानवर के द्वारा उसकी हत्या की गई......मगर वास्तविक कारण से अभी भी सब अनजान थे।
इस घटना के बाद से रेलवे परिसर में रहने वाले सभी मजदूर आतंकित थे......

उसके बाद अगले कुछ दिन सब कुछ सामान्य रहा....मैंने सोचा शायद अब सब ठीक हो गया,इसलिए पिछली घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया.....पर कहते है न कि छोटी घटनाओं को नजरअंदाज कर देना किसी बड़े हादसे को बुलावा देने जैसा होता है.….और फिर उस दिन वही हुआ.....

अमावस्या की उस घनी काली अंधेरी रात में मैं बिस्तर पर सोने का प्रयास कर रहा था.....कि अचानक पास के मजदूरों के घरों से चीख पुकार की आवाज सुनकर मैं हाथ में छड़ी एवं टॉर्च लेकर घर से बाहर निकला.....वहां पहुंच कर देखा तो भगदड़ मची हुई थी.....औरतें,बच्चे,बुजुर्ग सभी बदहवास से यहां वहां भाग रहे थे.....मैंने परशुराम को सामने से आता देख उस से कारण पूंछा....तो उसने रोते बिलखते हुए सामने बने एक कच्चे मकान की ओर इशारा किया....…..मैंने तुरन्त ही टॉर्च जला कर उस मकान की ओर डाली,यहां वहां घूमने के बाद टॉर्च की रोशनी जैसे ही उस मकान के खपरैल पर पड़ी.....सामने जो दृश्य दिखा,मेरे रोंगटे खड़े हो गए....."हे,प्रभु....यह क्या है?" मेरे मुंह से निकला।

एक मजबूत कद काठी वाला प्राणी,जिसका शरीर तो इंसानो के जैसा है,पर मुंह किसी आदमखोर,खतरनाक भेड़िया जैसा ....जिस्म पर लम्बे लम्बे बाल.....वस्त्रो के नाम पर शरीर पर मौजूद बस एक पेड़ो के पत्तो से बनी हुई छाल.....उसकी गोद में एक इंसानी शरीर है जिसके शरीर को वह हैवान दरिंदा हाथो के अपने नुकीले नाखूनों से चीर फाड रहा है.....और उसके जिस्म से निकलने वाले रक्त को मुंह लगाकर बड़े चाव से पी रहा है......उफ्फ़....कितना भयावह था वो दृश्य।

"बाबू जी, वो छप्पर तोड़कर खपरैल के रास्ते घर मे घुसा...और नाथू के परिवार में मौजूद चार लोगों को इसी तरीक़े से तड़पा तड़पा कर मार डाला..उसकी दस साल की बच्ची ने किसी तरह भाग कर अपने प्राण बचाएं.....उसकी सूचना पर जब हम लोग पहुंचे,तो यह नाथू के मृत शरीर को लेकर खपरैल पर चढ़ गया...."

अभी तक तो मैं उस प्राणी को देखकर दहशत में था, पर उसकी इस क्रूरतम ,जघन्य हरकत को देखकर मेरा खून खौल उठा,मैं कुछ समय के लिए भूल गया कि वह कोई इंसान है अथवा जानवर या फिर कोई शैतान है।
मैं चीखा.....
"जरूर धनीराम को भी इसी ने मारा होगा....तुम सब लोग जल्दी से अपने अपने औजार लाओ....उन्ही औजारों का उपयोग इस दुष्ट को मारने के लिए आज हम हथियारों के रूप में करेंगे।"

मेरी इस पुकार का असर हुआ.....वहाँ मौजूद लगभग आधा सैकड़ा मजदूर अपने हाथों में कुदाल ,फावड़े,सब्बल इत्यादि औजार लेकर उस घर को घेरने लगे....

वह अजीबोगरीब भयावह प्राणी अभी भी वही बैठा हुआ था…...अचानक से वह अपनी ओर बढ़ती भीड़ को देखकर उत्तेजित हो गया.....और वह उसी खपरैल पर खड़ा होकर गुस्से में जोर जोर से चीत्कार करने लगा......उसके मुंह से लगातार डरावनी आवाज निकल रही थी....किसी शेर के दहाडने से भी ज्यादा डरावनी,जिसे सुनकर वहां मौजूद कई बच्चे ,महिलाएं और कमजोर ह्रदय वाले लोग अपने अपने घरों की ओर भागने लगे......मैं उसका वह रक्तरंजित विशाल रूप देखकर विचलित तो हुआ,पर फिर भी डरा नही......मैं स्वयं भी अपने हाथ में एक कुदाल लिए हुए था,जो अभी अभी एक मजदूर से ली थी....और साथ ही वहां मौजूद भीड़ को भी उस पर हमला करने के लिए प्रेरित कर रहा था......और फिर वहां मौजूद आक्रोशित भीड़ ने ईट,पत्थरो को उठा कर उस प्राणी पर फेंक कर हमला करना आरम्भ कर दिया.......पर यह क्या...आगे जो हुआ वह एकदम अप्रत्याशित था.....वह भयावह प्राणी खपरैल से गायब हो चुका था.....इस से पहले हम कुछ समझ पाते टॉर्च और लालटेनों की रोशनी में बहुत से छोटे छोटे चमगादड़ एक समूह में उड़कर हमारे पास आते हुए दिखाई दिए.....पास आते ही वह सभी चमगादड़ एक इंसानी आकृति में परिवर्तित होने लगे....और वह आकृति जब स्पष्ट हुई तो अपने ठीक सामने हमने उसी प्राणी को खड़ा पाया....अब मेरी समझ मे आया कि वह गायब नही हुआ था,बल्कि ढेर सारे चमगादड़ों में परिवर्तित हो गया था......उसकी इस मायावी शक्ति को देखकर लोग सहम गए ....शायद उस भयानक प्राणी को यह अहसास हो गया था कि इस भीड़ को उस पर हमला करने के लिए भड़काने वाला मैं ही हूँ.....इसलिए वह चिंघाड़ता हुआ मेरी ओर बढ़ रहा था......उसका कद काठी,उसका डरावना रूप और उसकी वीभत्सता को देख कर इतनी भीड़ में से किसी की भी उस पर हमला करने की अब हिम्मत नही हो रही थी......कोई कुछ समझ पाता उस से पहले उस की मजबूत भुजाओं ने मुझे जकड़ लिया...वह जकड़ इतनी मजबूत थी कि मौ छटपटा भी नही पा रहा था......उसकी लाल अंगारे जैसी दहकती हुई आंखे वहां मौजूद सारी भीड़ में दहशत भरने के लिए काफी थी.....अगले ही पल उसका नुकीले दांत युक्त जबड़ा मेरी गर्दन की ओर बढ़ा....मैं समझ चुका था कि अब इसी पल मेरी दर्दनाक मौत निश्चित है।

पर तभी वातावरण में किसी महिला की आवाज में एक मंत्र का उच्चारण तेज आवाज में गूंजने लगा.....

"ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम्‌ क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट् स्वाहा sssssss"

यह....यह आवाज तो मैं पहचानता था.....य..यह तो मेरी मां की आवाज थी......

मैंने महसूस किया कि मेरे शरीर पर कसे हुए उस शैतानी शिकंजे की पकड़ एकदम से कमजोर हो गयी थी....मैंने मौके का फायदा उठा कर उसको पूरी ताकत से धक्का दिया.....उस शैतान के कदम लडखडाये....और मैं उसकी पकड़ से निकल आया.......

मैंने सिर घुमा कर देखा तो सामने मेरी माँ सर पर लाल चंदन का टीका लगाए हुए हाथ मे रुद्राक्ष की पवित्र माला लिए खड़ी है....और उस मन्त्र का लगातार जाप कर रही है......इस मंत्र ने उस शैतान को घुटनों पर ला दिया था....मौका सही था.....मैंने एक मजदूर के हाथ से फावड़ा छीना और उस पर हमला कर दिया,मेरे साथ साथ वहां खड़े कई लोगो ने उस पर एक साथ ही हमला किया.....पर इस से पहले हमारे हथियार उस से टकराते....तेज काली रोशनी हुई...और उस शैतान का जिस्म एक बार फिर से छोटे छोटे चमगादड़ों में परिवर्तित हो गया....जो हमारे देखते ही देखते फड़फड़ाते हुए घनघोर काले अंधेरे में ही कहीं गुम हो गए.......

आज मां ने अन्तिम समय मे मेरी जान बचा ली .....सिर्फ मैं ही नही वहां मौजूद हर एक शख्स आश्चर्य भरी हुई नजरों से मेरी माँ के इस अनजान रूप को निहार रहे थे।

..... कहानी जारी रहेगी.....


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