'मां' को तो वैसे भी भगवान का दर्जा प्राप्त है,और जब आज अंतिम समय मे माँ ने मेरे प्राणो की रक्षा की तो ऐसा लगा कि साक्षात भगवान ने ही आकर हमारी जान बचा ली हो...पर आखिर माँ ने ऐसा किया कैसे.....जब मैंने उनसे यह पूंछा तो उन्होंने बताया कि उनका परिवार पीढ़ियों से धार्मिक एवं तांत्रिक क्रियाकलापों से जुड़ा रहा है, उनके पिता जी अर्थात मेरे नाना वाराणसी के एक प्रसिद्ध धर्मशास्त्री रहे है, उनके पास तन्त्र,मन्त्र,साधना के ज्ञान का अपार भंडार था.....वाराणसी तन्त्र मन्त्र से भरपूर तमाम अद्भुत एवं रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र माना जाता है, भारत का सबसे बड़ा शमशान घाट मणिकर्णिका घाट यहीं स्थित है....यहां पर रहने वाले अघोरियों के पास दुनिया के सबसे जटिलतम काली शक्तियों तक के राज भी मौजूद है.....बस बाबा विश्वनाथ की इसी नगरी वाराणसी से ही मैंने इन बुरी शक्तियों पर काबू पाने के कुछ तरीके बचपन में ही सीख लिए थे,जो आज काम आ गए.....
मां ने आगे बताया कि उन्हें पिछले कुछ दिनों से लगातार शक था कि कोई बुरी एवं दुष्ट आत्मा हमारे आसपास ही विचरण कर रही है, जिस दिन सूर्योदय को खिड़की से इसी खतरनाक प्राणी के रूप में वह दुष्ट आत्मा दिखाई पड़ी थी,उस घटना से पहले ही वह सारे घर को तांत्रिक क्रिया के द्वारा सुरक्षित कर चुकी थी.....इसीलिए वह दुष्ट आत्मा सूर्योदय पर हमला करने के लिए घर मे प्रवेश नही कर पाई थी......
"श्याम,मैने महसूस किया है कि यह कोई साधाहरण आत्मा नही है,यह वर्षी पुरानी बेहद शक्तिशाली कोई बड़ी काली शक्ति है,जो किसी खास मकसद से ही उत्पन्न हुई है....इसे समाप्त करना आसान नही है...."
"मतलब वह अजीबोगरीब खौफनाक प्राणी दोबारा जरूर आएगा।".....मैंने चिंता जाहिर की।
पास खड़े सभी मजदूरों के चेहरे बुरी तरह से मुरझा गए थे।
"बिल्कुल,वह दोबारा हमला करेगा.....और उसका शिकार कोई भी हो सकता है....पर....सोचने की बात तो यह है कि हम इस स्थान पर वर्षो से रह रहे है,इस प्रकार की कोई गतिविधि हमने आजतक महसूस नहीं की...फिर अचानक से आज इतनी ताकतवर शैतानी शक्ति आखिर जाग्रत हुई कैसे?" मां का सवाल सही था,कुछ तो वजह होगी इस बुरी शक्ति के यूं खुल्लमखुल्ला दहशत मचाने के पीछे....
और अगले ही पल जबाब भी तुरंत ही हमारे सामने आ गया।
"बाबू जी.....यह सब हमारे लालच की वजह से ही हुआ है......हमें माफ कर दीजिए.....यह गलती हम नीच,लालचियों के ही स्वार्थ का नतीजा है।"
सामने खड़े परशुराम ने मेरे एवं मां के सामने बुरी तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा।
जब हमने उसे पूरा माजरा साफ साफ बताने को कहा...तब उसने बताया कि पिछले कुछ दिनों पहले रेल इंजन को चलाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कोयले की जो खेप शिमला से आई थी,उसको सुरक्षित रखने के लिए रैक बनाने के लिए स्टेशन के बाहर पीपल के पेड़ के पास जिस ऊबड़खाबड़ जगह को फावड़ों की सहायता से समतल करने के लिये मजदूरों का जो दल कार्यरत था,उसमे अन्य लोगो के साथ साथ वह एवं छेदीलाल भी शामिल थे
उसी समय उसे जमीन में एक छोटी सी सुरंग दिखाई दी, जिसकी कुछ देर फावड़े द्वारा ही खुदाई करने के बाद पीतल का एक पुराना कलश उसे मिला.…..साथी मजदूरों का ध्यान भटका कर परशुराम और छेदीलाल ने उस कलश को पास की झाड़ियों में छिपा दिया....उन्हें पूरा विश्वास था कि इस कलश में जरूर सोने के आभूषण एवं अन्य कीमती दौलत ही होगी....बाद में जब सब मजदूर चले गए तो मौका देख कर उन दोनों ने उस कलश पर लगा किसी विशिष्ट धातु का ढक्कन हटाया....उनकी आंखें उस कलश से निकलने वाले सोना चांदी को देखने के लिए तरस रही थी... पर हुआ कुछ और ही....उस कलश से काले रंग का गाढ़ा धुंआ निकला ....जिसे देखकर वह दोनों हड़बड़ा गए....और फिर हवा में उड़ता हुआ वह धुंआ ढेर सारे छोटे छोटे चमगादड़ों में परिवर्तित हो गया.....यह दृश्य देख वह दोनों बुरी तरह डर गये...और उस पीतल के कलश को उठा कर वहां से भाग आये.....वह कलश एकदम खाली था,जबकि खोलने से पहले उसमें काफी वजन महसूस हो रहा था..... उन्हीने बताया कि डर की वजह से इस घटना का जिक्र उन्होंने किसी से भी नही किया....पर आज जब उन्होंने उस शैतान को उसी प्रकार के चमगादड़ों के झुंड में बदलते देखा तो वह समझ गए कि यह शैतान पीतल के उसी कलश के अंदर से आये है......
"परशुराम.... वह कलश ले कर मेरे पास आओ"
मां ने सारी कहानी सुनकर परशुराम से कहा।
परशुराम दौड़ता हुआ पास स्थित अपने घर गया,और तुरंत ही वापस भी आ गया.....उसके हाथ में वहीँ पीतल का कलश था,जो देखने मे काफी पुराना दिखाई पड़ रहा था.....माँ ने उसे अपने हाथों में लेकर बड़ी गौर से देखा और फिर उसे मुझे सौंपते हुए कहा।
"श्याम...तुम इसे लेकर सुबह ही काशी के लिए प्रस्थान कर जाओ"
मैंने हैरान होकर मां की ओर देखा,तो माँ ने आगे बताया...
"आज अमावस्या थी,आज की रात इस प्रकार की काली शक्तियां काफी ताकतवर हो जाती है,इसी लिए अभी तक छिप छिप कर स्वयं का अहसास कराने वाला यह शैतान आज खुलेआम कत्लेआम मचाने लगा....चूंकि वह शैतान अभी अभी किसी पुरानी कैद से आजाद हुआ है, तो वह खुद की शक्तियां बढ़ाने के लिए इस प्रकार का खून खराबा आगे भी करेगा.....आज तो मैंने उस पर काबू कर लिया पर हो मुझे आशंका है की अगली अमावस्या तक वह इतना अधिक शक्तिशाली हो जायेगा कि हम सभी पर हावी हो जाएगा........इसलिए अगली अमावस्या के पहले उसे उसके सही स्थान पर भेजना जरूरी है.....तुम कल काशी जाकर स्वामी बटुकनाथ से उनके आश्रम पर मिलोगे...साथ में मेरे द्वारा लिखा गया पत्र भी ले जाना......वह मेरे पिताजी के प्रिय शिष्य थे, जो पिताजी के देहांत के पश्चात उनके अनुकर्ता के रूप में उनकी गद्दी पर आसीन होकर उनकी विद्या का प्रचार प्रसार लोकहित में कर रहे है.....वह हमारी मदद अवश्य करेंगे......क्योंकि आने वाली जिस विकराल तबाही का जो पूर्वाभास मुझे हो रहा है,उसे रोकने का यही एकमात्र तरीका है. ।"
मां की बात एकदम सही थी,यह शैतानी समस्या सच में बड़ी विकराल थी....और मैं जानता था कि शासन स्तर पर हमें इस समस्या से निपटने में कोई भी मदद नही मिलने वाली है, उल्टा मुझ पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने का आरोप लगा कर उपहास का पात्र बना दिया जाएगा......मां ने डरे सहमे मजदूरों को आश्वस्त किया कि जब तक मैं काशी से इस समस्या का समाधान लेकर नही आ जाता, वह इस शैतानी आपदा से उनकी रक्षा करेंगी......
उन्होंने उसी वक्त हमारे घर मे रखा हुआ पवित्र गंगाजल एवं कुछ अन्य पवित्र वस्तुएं मंगवा कर उससे बनी हुई एक अभिमन्त्रित रेखा सारे रेल्वे परिसर के चारो ओर खिंचवा दिया.....यह शैतानी शक्तियों से रक्षा हेतु एक तात्कालिक उपाय था....
उसके बाद मां को लेकर मैं घर आ गया....और सुबह काशी जाने के लिए अपना सामान पैक करने के बाद नौकरी से कुछ दिन का अवकाश प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र लिखने में व्यस्त हो गया.....माँ के अनुसार इस भयंकर शैतान से जुड़े सभी रहस्यों एवं सवालो का जबाब मुझे काशी में ही मिलने वाले थे।
.....कहानी जारी रहेगी....