नीड़
एक ऊँचा आम का वृक्ष तालाब के किनारे लगा था। अनेक पक्षियों ने उसमें अपने घोंसले बना रखे थे। एक कपोत-कपोती के जोड़े ने इस ऊँचे विशाल वृक्ष पर अपना नीड़ बनाया। काफी दूर तक ऐसा ऊँचा पेड़ नहीं था। दोनों निश्चिन्त थे । कपोती के अंडे देने के दिन निकट आ रहे थे। नीड़ को दोनों सुखद बनाते, बतियाते और भविष्य की योजनाएँ बनाते। अचानक एक दिन पेड़ पर कुल्हाड़ी चल गई। पेड़ बिक गया था। काटने वाले कुल्हाड़ी, आरा लाकर काटने लगे। यही वह बड़ा ऊँचा पेड़ था जिस पर सुरक्षित नीड़ बनाया जा सकता था। पेड़ काटते समय हिलने से सभी पक्षी हड़बडाए । सबेरे का समय था पक्षी भागने लगे। कपोत-कपोती भी दुखी मन से अपना नीड़ छोड़कर बाहर आ गए। एक छोटे से पेड़ की डाल पर बैठकर धूप सेंकते हुए सोचने लगे ।
'बड़े ऊँचे पेड़ कट रहे हैं। कहाँ रहेंगे हम लोग? सुरक्षित खंडहर भी नहीं रहे।' कपोती ने कपोत के गर्दन पर अपनी गर्दन रखते हुए कहा। कपोत के शरीर में झुरझुरी सी पैदा हुई। प्रेम की इस सहज अभिव्यक्ति से उसके शब्द संगीतमय हो उठे। अवसाद के क्षण को स्नेह में बदलते हुए उसने कहा,“कहीं न कहीं खोज ही लेंगे हम अपना नीड़। आदमी प्रकृति का विनाश करेगा तो प्रकृति क्या चुप बैठेगी ?"
'और हम लोग ही इसमें पिसेंगे न? अपने बच्चों के लिए जगह कहाँ बनाएँगे हम?’
'कोई सुरक्षित जगह खोजनी होगी।’
'जल्दी करो। बच्चों को जन्म देने का समय निकट आ रहा है मुनमुन।' पहली बार कपोती ने कपोत को मुनमुन कहा।
'जल्दी ही खोजेंगे चिनी।' कपोत ने कपोती के मुख में चोंच डालकर कहा। अब दोनों मुनमुन और चिनी ही कहकर एक दूसरे से स्नेह प्रकट कर आलिंगन करते। कपोत ने एक छलांग लगाई। कुछ दूर पर पड़े अरहर के दो दाने ले आया । चिनी के मुँह में दोनों डालने लगा।
'नहीं मुनमुन एक तुम खाओ।'
'नहीं चिनी तुम्हें बच्चों के लिए भी खाना है। मैं फिर छलांग लगा दूंगा। तुम अभी आराम करो।'
इसी बीच एक आदमी बंदूक लिए दिखाई पड़ा। मुनमुन की नज़र पड़ी।
'चलो उड़ो, जल्दी करो।' मुनमुन कहकर उड़ा साथ में चिनी थी। आदमी निशाना साधते ही रह गया। दोनों नीड़ की तलाश में भागते हुए एक नदी के किनारे पहुँचे । चिनी को प्यास लगी थी। वह नदी का पानी पीना चाहती थी।
'रुको चिनी। पहले मैं इस पानी को चख लूँ उसके बाद तुम पियो।' 'नहीं, नहीं मुनमुन पानी अगर दूषित होगा तो तुम्हें भी नुक्सान कर सकता है ।'
'मैं बर्दाश्त कर लूँगा। तुम्हारे पेट में हमारा भविष्य है।'
कपोत ने दो बूंद पानी गले के अन्दर उतारा। कुछ समय तक बैठा रहा। पानी का कोई कलुषित प्रभाव न दिखने पर उसने कहा, 'चिन्नी अब तुम पानी पी लो।' कपोती ने पानी पिया।
दोनों पानी पीकर निश्चिंत बैठना चाहते थे कि गुलेल हाथ में लिए एक लड़का दिखा। कपोत ने कहा, 'उड़ो भागो।' दोनों उड़ चले।
'हम विश्राम भी नहीं कर सकते मुनमुन'
'आदमी स्वयं भी अशान्त है, हम लोगों को भी..................।’
'हम लोगों को तंग कर मनुष्य चैन न पाएगा।’
'लेकिन आदमी बहुत चालाक हो गया है।'
'चालाकी से कहीं शान्ति मिलती है?"
'हम लोग नीड़ के लिए भाग रहे हैं।'
'आदमी को भी भागना पड़ेगा। इसी तरह सुरक्षित नीड़ के लिए।' दोनों उड़ते हुए एक महानगर के ऊपर पहुँच गए।
'यहाँ बहुत ऊँची ऊँची इमारतें दिखती हैं।'
'हाँ, दिखती तो हैं।'
'क्या उत्तर लिया जाए?"
'हाँ, एक छत पर उतर कर देखा जाए।'
'बहुत सावधान रहना होगा। यहाँ कहीं बिजली के तार न छू जाएँ?”
'एक बात अच्छी है यहाँ। बिजली के खुले तार नहीं हैं। सब कुछ ज़मीन और दीवालों के अन्दर है।'
दोनों एक ऊंची इमारत की छत पर उतर गए।
धीरे धीरे टहलते रहे।
'दाने के लिए बहुत भागना पड़ेगा यहाँ।'
"हाँ, खुला दाना कहीं दिखता नहीं।'
"तब ?"
"सब कुछ डिब्बा बंद है यहाँ ।'
'हम लोग क्या खाएंगे ?' यहाँ रहना मुश्किल होगा। रहने की जगह भी तो नहीं दिखती।............ रोशनदान में थोड़ी जगह मिल सकती है।'
'नहीं, इतनी जगह में नहीं रहा जा सकता। हमारे बच्चे कैसे पलेंगे ?"
'यहाँ शोर भी बहुत है। इतने शोर में हम लोग पागल हो जाएँगे।'
'आदमी कैसे इनमें रह लेता है?'
'आदमी कहाँ रहा? वह तो पागल हो गया है।'
'तभी तो मरता है, मारता है। आत्मघाती बन जाता है।""
'क्या आदमी जीना नहीं चाहता?"
'यह तो उसी से पूछना पड़ेगा।
'चलो मुनमुन । यहाँ ज़िन्दगी नहीं है। पेड़ की जगह ऊँची इमारतें हैं आसमान
छूती हुई।'
'चलो।' दोनों उड़े।
उड़ते उड़ते थक गए शाम होने लगी। एक झुरमुट में एक खंडहर दिखाई पड़ा। दोनों उसी और बढ़ गए। सोचते रहे यहाँ शायद आदमी नहीं होगा। हम शान्तिपूर्वक रह सकेंगे। तभी कबूतर के दो जोड़े उधर से ही भागते हुए आए।
'क्यों भाग रहे हो भाई' चिनी ने पूछा।
'उथर खतरा बहुत है।'
'क्यों ?'
"यह व्याध का घर है।’
उलटे पांव लौट पड़े दोनों नीड़ की तलाश में।
'अँधेरा हो रहा है चिनी। अँधेरे में किसी डाल पर रात गुजार देंगे।'
'चलो देखते हैं।'
दोनो उड़ते रहे। अँधेरा बढ़ गया तो खेत के किनारे लगे एक झुरमुट के बीच बैठ गए।
'रात यहीं काट देंगे चिनी ।'
'हाँ रात तो काटनी ही है। सबेरे चल निकलेंगे।'
'हमारे बच्चों के लिए बहुत मुश्किल दिन आ रहे हैं चिनी।'
'यह मत कहो मुनमुन । हमें अपने बच्चों के लिए सुरक्षित नीड़ की तलाश करनी है।'
दोनों सोने की तैयारी करने लगे।
'सॅंट जाओ मुनमुन ।'
'बस जरा एक नज़र डाल लूँ।'
'अँधेरे में दिखता कहाँ है?
'कुछ अन्दाज़ तो लगता है न ?' मुनमुन ने अपने पंख से चिनी को ढक लिया। दोनो आलिंगन बद्ध एक दूसरे को आत्मसात करते हुए। दोनों को झपकी आ गई। झुरमुट से सटी एक पगडंडी। पगडंडी से कुछ लोगों के आने की ध्वनि । एक टार्च की रोशनी झुरमुट में मुनमुन की आँख पर पड़ती है।
'चिनी उठो, भागो कोई आ रहा है। जरूर कोई आदमी होगा। रोशनी उसी की ओर से आ रही है।’
'आराम करने को मन कर रहा है मुनमुन ।'
'हम पकड़ लिए जाएँगे। उठो।'
चिनी उठ पड़ती है। दोनो झुरमुट छोड़कर भागते हैं।
'अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ता मुनमुन ।'
'भागना तो पड़ेगा ही।'
'नहीं मुनमुन अँधेरे में भागना संभव नहीं, किसी खेत में बैठ जाओ। रात काट लेंगे।'
'खतरा बहुत है चिनी रातें भी खतरे से खाली नहीं। आदमी निशाचर हो गया है। रात में भी वह कहीं दिख सकता है।'
'अब चला नहीं जाता मुनमुन जोखिम उठाकर भी आराम करना है।'
'यहीं मेड़ के किनारे बैठ जाओ।'
'देख लो नजदीक कहीं पकडंडी न हो।'
'नहीं है चिनी। पर आदमी हमेशा पगडंडी पर ही नहीं चलता। खतरा रहेगा
ही पगडंडी न होने पर भी।'
'अच्छा। आओ सो लें, थोड़ी देर ही सही। ’
'तुम सो लो में रखवाली कर लेता हूँ।'
'नहीं मुनमुन में अकेले सो नहीं पाऊँगी। बिना तुम्हारी ऊष्मा के।' 'नहीं, चिनी। ख़तरा मोल लेना ठीक नहीं। मैं तुम्हारे साथ चिपक कर रखवाली करता हूँ।'
'यह संभव नहीं है मुनमुन हम दोनों साथ ही सो सकेंगे।'
'तो बिना सोए ही विश्राम करें।'
'आदमी इतना भयंकर क्यों होता जा रहा है मुनमुन? उसे जानना चाहिए कि पशु, पक्षी, पेड़ पौधे सभी के रहने पर ही वह भी जीवित रह सकेगा।'
'आदमी कभी कभी अहंकार भरे कदम उठा लेता है।’
'क्या उसको सुरक्षित नीड़ की ज़रूरत नहीं होती?’
'होती क्यों नहीं? पर आदमी का दिमाग कुछ ज्यादा ही काम करने लगा है। वह दिनरात किसी न किसी फितरत में ही लगा रहता है। उसी के कारण यह पृथ्वी सुरक्षित नहीं रह गई है। रोज आदमी मरता है, मारता है।'
'और खुश रहता है?'
'खुशी दूसरों को सुख देने में होती है दुख देने में नहीं।'
'यही तो लोग समझ नहीं पा रहे हैं।'
इसी बीच दो लोग खेतों के बीच से भागते हुए दिखे।
'देखो आदमी यहाँ भी पहुँच गया। मुनमुन ने चिनी को झकझोर दिया।
'चोरी नहीं कर पाए तो क्या हुआ? भागते हुए भी कुछ अच्छी चीजें हाथ लग जाती हैं। देखो मेड़ के किनारे एक कबूतर का जोड़ा।' एक ने कहा।
'चुप रहो। अँधेरे में इसे पकड़ा जा सकता है।' दूसरे ने अपना स्कार्फ इनके ऊपर डालकर पकड़ना चाहा।
मुनमुन और चिनी सजग हो गए थे। स्कार्फ जब तक मेड़ पर गिरता दोनों उड़ गए।
'देखा, मैंने कहा था कोई ठिकाना नहीं आदमी का। वह ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चल पड़ता है।' मुनमुन ने चिनी के बगल में उड़ते हुए कहा।
'अँधेरे में दूर तक उड़ भी तो नहीं सकते।.......
‘एक सुरक्षित बसेरे के लिए कितना भागना पड़ेगा मुनमुन?' चिनी की आँखों में उभरा यह प्रश्न बार बार हवा में लहराता है। मुनमुन के आश्वासनों से चिनी को राहत नहीं मिल पाती।
'अब उड़ नहीं पाऊँगी।' चिनी ने कहा।
उषा का उजास वातावरण में भरने लगा था। पक्षी इधर- उधर निकलने लगे। एक महिला अपने बच्चे को पीठ पर लटकाए एक ओड़िया में दही की मटकी सिर पर रख दही बेचने के लिए जाती दिखाई पड़ी।
'कुछ करो मुनमुन, अब बिल्कुल नहीं उड़ पाऊँगी।"
'बस थोड़ा और... मुनमुन ने कहा।
'अब कुछ नहीं हो सकता मुनमुन' कहते हुए चिनी ओड़िया में बैठ गई। उसी के साथ मुनमुन भी। महिला को एक दबाव सा अनुभव हुआ। उसने ओड़िया को उतार कर ज़मीन पर रखा तब तक चिनी से एक अण्डा बाहर आ चुका था। मुनमुन अपने पंख से उसे ढकने की कोशिश कर रहा था।
'ओह, तुम्हें जगह नहीं मिल सकी न।' महिला के मुख से निकला। पीठ पर बँथा बच्चा भी कुनमुनाया।
'चलो मेरे ही घर रहो कुछ दिन।' कहकर महिला ने ओड़िया सिर पर रखा और घर की ओर मुड़ पड़ी। थोड़ी दूर पर एक छोटा सा पुरवा। कुल सात घर। थोड़ी खेती के साथ दही बेच कर खर्च चलाने वालों का परिवार। महिला अपने घर आ गई। उसका पति भैंस से दूध निकाल कर खूंटी में टांग आया था। उसे नांद पर बांध रहा था कि पत्नी के लौटने पर चौंक पड़ा। 'कैसे लीट आई?"
"एक जरूरी काम आ गया। पति भैंस को दाना पानी देने में लगा रहा। महिला का छोटा सा खपड़ेल घर था। उसने बच्चे को चारपाई पर लिटा दिया। अन्दर गई। एक बित्ता कपड़े के टुकड़े के चारों कोनों को रस्सी से बाँधा। फिर उसे धरन के साथ लटका दिया। उसी में मक्का और गेहूं के कुछ दाने डाल दिए । अण्डे सहित चिनी और मुनमुन को उसमें बिठाया।
'आज नहीं जाऊँगी बाजार। तुम दोनो आराम से रहो।' उसने दोनों को सुनाते हुए कहा।
'सुनते हो धीरू के बप्पा।'
'कहो क्या बात है?' पति ने पूछा।
'हमारे घर में एक परिवार और आ गया है। थके हारे पंछियों का जोड़ा।' कहते हुए महिला पति के निकट आ गई। हँसते हुए पूरी बात बताई। बात खत्म होते ही पति ने उसकी हथेली चूम लिया जैसे आश्वस्त कर रहा हो कि तुमने ठीक किया।