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खिलखिलाहट

खिलखिलाहट

‘हलो माधवन..............हलो............हलो...............’
उधर से कोई आवाज़ नहीं आई। वीना ने मोबाइल मेज पर रख लिया।
‘आखिर उसने मिसकाल क्यों किया, यदि बात नहीं करनी थी।’ वीना कुछ तमतमाई उसी समय मोबाइल की घंटी फिर बज उठी।
‘हलो'
उधर से माधवन चहक उठा, 'हलो वीना, हलो...............’
'हाँ बोल रही हूँ, बोलो तो........हलो तुमने मिसकाल करके फिर मेरे फ़ोन को...............।’
'सुनो..........वीना, नाराज़ न हो..........मैं बाथरूम में था।
तुम्हारी आवाज़ सुनी थी............पर................।’
'तुम जब देखो बाथरूम में ही होते हो.........तुम्हारा बाथरूम, बाथरूम न होकर बैठक हो गया है।'
'ठीक कहती हो तुम..........बहुत लम्बा चौड़ा बाथरूम है, टाइल्स से सजा हुआ, चारों तरफ शीशे, तीन फव्वारे ठंडा गरम। बाथटब में घुस जाओ तो.................I'
'बस बस हो गया। तुम बाथरूम के ही हो गए और काम........।'
'नहीं वीना..........मैं जो भी काम करता हूँ ज़रा इत्मीनान से।"
'रोटी भी इत्मीनान से बनाते हो ।'
'बिल्कुल ठीक कहा तुमने। रोटियां भी भाँति-भाँति की बना लेता हूँ खट्टी, मीठी, गोल, चौकोर, चपाती, रूमाली, सीरीमाल। हलो वीना....…....।’
‘कहो न.............।’
'आज दोपहर का खाना मेरे यहाँ। बोलो क्या खाओगी ?"
"क्या मुझसे पूछ पूछ बनाओगे ?"
'क्यों नहीं.........क्यों नहीं ?"
'खाना बनाने वाले को पता होना चाहिए कि मेहमान को क्या पसन्द है ?"
'ठीक कहा तुमने। ऐसा करते हैं तुम ठीक दस बजे यहाँ आ जाओ। बाथरूम का भी आनन्द लो और मैं तुमसे पूछ......पूछ........।’
'हाँ हाँ, मुझसे पूछ पूछ........ठीक रहेगा। मैं आ रही हूँ ठीक दस बजे ।'
फोन रखकर बीना गुनगुना उठी माधवन भी अपने कमरे को ठीक करने लगा। किताबें आलमारी में सजा दी। बिस्तर को ठीक किया। कोने के जाले को साफ किया।
आज छुट्टी का दिन है वीना और माधवन दोनों के लिए। दोनों एक ही कम्पनी में काम करते हैं। छुट्टी पाते ही कोई संयुक्त कार्यक्रम बना लेते हैं। वीना रोज सुबह फोन करके माधवन को जगाती है। यदि कभी बीना चूक जाती है तो माधवन मिला देता है।
माधवन हर समय बीना के ही राग में डूबा रहता है। जब भी वह वीना को अपने साथ कहीं चलने के लिए कहता है, वह चल देती है। कम्पनी में उसे काफी साहसी लड़की के रूप में जाना जाता है। माधवन ने रसोई की भी सफाई की। चूल्हे को चमकाया। गैस सिलेण्डर चेक किया। काली चाय बनाई और बैठकर पीने लगा। बैकांक में एक महीना रह आया है। वहाँ के लोग काली चाय पीते हैं। कभी कभी माधवन भी काली चाय बनाकर ज़ायका बदल लेता है। बाथरूम को साफ किया। नई सफेद तौलिया रखी।
ठीक दस बजे दरवाजे की घंटी बज उठी। माधवन ने दौड़कर दरवाजा खोला। सामने वीना को देखकर खिल उठा। आगे आगे माधवन पीछे वीना । वीना सोफे पर बैठ गई। माधवन काफी बनाने लगा। वीना घर का निरीक्षण करते बाथरूम तक पहुँच गई, 'ओह' उसके मुख से निकला। काफी बन गई तो माधवन दोनों हाथों में दो कप काफी लिए आ गया। एक कप वीना ने ले लिया। दोनों सोफे पर बैठकर काफी पीने लगे।
'तो क्या खाओगी ? मैं फटाफट बनाता हूँ।' 'अभी खाने में तीन घण्टे का समय है। क्या तीन घण्टे में खाना बनाना फटाफट हुआ?"
‘अरे महारानी, यहाँ दस-दस घण्टे केवल दाल पकती रही।’
'क्यों ? दस घण्टे केवल दाल पकती रही ।’
'नवाब वाजिद अलीशाह के एक रसोइए का प्रचलित किस्सा है। हो सकता है, तुमने सुना हो।'
‘मैंने नहीं सुना। तुम्हें पता हो तो सुनाइए ।'
'नवाब वाजिद अली शाह के यहाँ रसोइयों की कमी तो थी नहीं पर एक रसोइया बाहर से आया और नवाब से काम चाहा। नवाब ने पूछा,
'क्या काम जानते हो ?"
'हुजूर, मैं दाल पकाता हूँ।'
'सिर्फ दाल पकाते हो!"
'जी सरकार ।'
'तो ठीक है दाल पकाओ।'
'पर हुजूर मेरी एक शर्त है।'
'क्या ?"
'आप दाल चखें ज़रूर ।'
‘इसमें कोई दिक्कत तो है नहीं, क्यों मम्मू खान ?' नवाब ने पूछा । 'इसमें क्या दिक्कत है ? हुजूर चख लेंगे।’ मम्मू खान ने कहा।
'जो जरूरी चीज़े हों, इन्हें मुहैया करा दी जायँ ।' नवाब ने कहा।
रसोइया ने जो सामान चाहा, दिया गया। उसने कहा, 'कल शाम को मैं दाल पकाकर दूँगा।'
'ठीक है,' मम्मू खान ने स्वीकृति दी। वीना, शाम को रसोइए ने दाल को भिगोया । कुछ बूटियों को डालना था, उन्हें भी भिगो दिया।
'सुबह से ही' वीना चौंक गई, 'सुबह से ही वह दाल पकाने में लग गया।' 'हाँ, धीमी आंच पर दाल पकती रही। दिन डूबते डूबते दाल में सुगन्ध आने लगी । सायंकाल आठ बजे के करीब दाल तैयार हुई। रसोइया इस इन्तजार में रहा कि हुक्म हो तो दाल को दस्तरख्वान पर लगाया जाय। पर नवाब अन्य रसोइयों द्वारा पकाई चीजे खाते रहे उन्हें दाल का ध्यान ही न आया। दूसरा कौन उन्हें दाल जैसी चीज़ खाने के लिए याद दिलाए ? रसोइया इन्तजार करता रहा। रात बीत गई और उसके लिए हुक्म नहीं आया।'
'अरे' बीना के मुख से निकल गया। 'वह बहुत निराश हुआ। सबेरे उसने दाल को एक ठूठ पर डाल दिया जो सूख रहा था और चला गया। उसने अपनी मजदूरी लेना भी मुनासिब नहीं समझा।
पर कमाल की बात यह है वीना कि ठूठ में पन्द्रह दिन में ही पत्तियां दिखने लगीं।'
'ओह', वीना के मुख से निकल ही गया।
'तुम अच्छे कहानीकार बन सकते हो। कहानियां लिखा करो।'
'कम्पनी का काम छोड़कर.........।'
'नहीं नहीं, कम्पनी का काम छोड़कर क्यों ?"
'कहानी लिखने के लिए समय चाहिए वीना जी और तुम्हारे जैसा श्रोता भी।'
'मैं श्रोता बनने के लिए तैयार हूँ, समय तुम निकालो। सुनो, तुम तो बाथरूम में भी कहानी लिख सकते हो।'
'अच्छा सुझाव है, देखूंगा। हाँ बोलो क्या खाओगी ?"
'जो तुम्हें रुचिकर लगे बना लो तब तक मैं तुम्हारे बाथरूम का आनन्द ले लूँ।’
'जरूर।'
वीना उठी, अपना बैग उठाया और बाथरूम में घुस गई।
गुनगुनाते हुए माथवन ने राजमा मिली दाल को पकने के लिए रखा। दाल भी चना, उर्द की मिली हुई। आंच धीमी करके बैठ गया। वह जानता है राजमा मिली दाल और चावल उसकी और वीना दोनों की पसन्द है ।
बाथरूम में वीना भी गुनगुना रही थी। इस पर शोध करने की ज़रूरत है कि नहाते समय आदमी गुनगुनाता क्यों है ?
बाथ टब को उसने नीम गर्म पानी से भर दिया। उसी में बैठ गई। घण्टों बैठी रह गई। हल्का गर्म पानी सुखद अनुभूति देता रहा। जो दाल दस मिनट में बनती थी, धीमी आंच के कारण पूरे एक घण्टे बाद भी कुकर की सीटी ने सांस न ली।
जैसे उपयुक्त परिवेश में कली मुस्करा उठती है माधवन भी उसी तरह खिला खिला सा। आखिर कुकर की सीटी बजी। थोड़ी थोड़ी देर पर दो सीटियां और बजीं। उसने दाल उतार कर रखा। चावल के लिए दूसरा कुकर चढ़ा दिया। घी में लहसुन डालकर भूना फिर चावल डालकर कुकर बन्द किया। धीमी आंच पर ही चावल भी शायद समय की गति भी धीमी हो गई है।
सलाद की सामग्री को धोया। उसे काटकर एक प्लेट में सजाने लगा। जैसे ही कुकर की सीटी बजी बाथरूम का दरवाजा भी खुल गया। वीना बिलकुल तरोताज़ा बाहर निकली।
'माधवन ने गैस बन्द किया। तुम्हारे बाथरूम का आनन्द सचमुच।' "ज्यादा तारीफ की ज़रूरत नहीं।'
'नहीं, सच कह रही हूँ मैं। मजा आ गया।'
माधवन उसके निखरे रूप को देखकर और खिल गया ।
‘मैं कौन सी मदद करूँ ?"
'मेज पर पानी रखो। मैं खाना निकालता हूँ।'
‘माधवन ने सलाद की प्लेट को मेज पर रखा। थोड़ा घी लहसुन की कलियां डाल कर गरमाया। उसी से दाल को छौंक दिया। सुगन्ध पूरे परिवेश में भर गई। दो प्लेट में राजमा मिश्रित दाल और चावल रखकर ले आया।
'कहो तो कुकर खाली कर दूँ ?" माधवन ने कहा ।
'नहीं, नहीं जितना लाए हो इतना बहुत है,' बीना बोल पड़ी।
'बहुत अच्छा बना है', वीना ने एक चम्मच चावल मुँह में डालते हुए कहा। दोनों बातें करते हुए खाते रहे। कभी कभी एक दूसरे की आँखों में झाँकते हुए।
खाने के बाद दोनों सोफे पर बैठे तो माधवन ने छेड़ दिया, 'वीना जी, क्या घर भी बसाने का इरादा है ?"
'उस अर्थ में नहीं जिस अर्थ में लोग समझते है ?"
"किस अर्थ में ?"
'यही कि शादी कर लो। एक अदद पति पाल लो।
माधवन जी, मैं पत्नी बनकर नहीं रह सकती। हाँ, कोई मित्र बनकर रहना चाहे तो विचार कर सकती हूँ।' वीना खिलखिलाकर हँस पड़ी।
'यदि कोई ऐसा मिल ही जाए तो '
'कहा न उस पर विचार करूँगी।
माता-पिता को भी बता दिया है। अपनी खिलखिलाहट को मैं बन्धक नहीं बनाना चाहती।'
'मेरे माता-पिता तो हर हफ्ते फोनकर कहते रहते हैं, लड़की देख लो।'
'मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। कोई लड़की पसन्द करो तो ।' 'यदि वह लड़की मेरे सामने ही बैठी हो तो ।'
'पागल मत बनो माधवन । मैं तुम्हारे माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाऊँगी। फिर तुम भी दुखी होगे और मैं भी। बताया न मैं विवाह के बन्धन में नहीं बँधना चाहती। मित्रवत रहने के लिए तुम्हारे माता-पिता सहमत न होंगे।'
"क्या इसीलिए हम ?"
‘हलधर जी, किसी अच्छी सी गदराई बछिया से शादी कर लो।' कहते हुए वीना हँस पड़ी। माधवन का चेहरा गम्भीर बना रहा। बीना अपनी बात कहती रही 'तुम्हारी समस्या अहम है। इस पर गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है। अगले इतवार को मेरे यहाँ बैठक रखो तब इस पर गम्भीरता से विचार किया जाएगा। एक टुइयां सी गुड़िया तुम्हारे लिए..,' कहते हुए वीना उठ पड़ी। 'अब चलूँ अपना घोंसला भी तो ठीक-ठाक करना है।'
वीना ने अपना बैग उठाया, चलने को हुई तो माधवन भी उठ पड़ा। दोनों सड़क तक साथ गए।
'तुम्हारी खिलखिलाहट को क्या हो गया माधवन ? खुश रहना सीखो।' कहते हुए वीना आटो पर बैठ गई। आटो चला तो उसने हाथ हिलाया। जवाब में माधवन का भी हाथ हिला। वह खड़ा देर तक आटो का जाना निहारता रहा।
अगली सुबह माधवन का फोन रोज की तरह बज उठा । उधर से वीना बोल रही थी 'हलो माधवन. ..हलो।' माधवन की नींद खुली तो हाथ फोन पर चला गया 'हलो वीना।' आज बहुत देर तक दोनों बात करते रहे। फोन पर बार बार वीना की खिलखिलाहट सुनाई पड़ रही थी।

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