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लावारिस

मेलाराम को बम्बई आए कुल इकतीस दिन हुए हैं। आज जैसे ही सिर पर फलों की टोकरी रख बेचने के लिए निकला एक कुत्ता भौंकते हुए उसके सामने आ गया। कुत्ते के गले में पट्टा पड़ा था। संभवतः गली के ही किसी घर का वह पालतू कुत्ता है, आज छूट गया है। अपने को बचाने की कोशिश में उसने टोकरी सिर से उतार ली। तीस किलो फल लेकर वह बेचने निकला है। गांव के पट्टीदार राम आसरे के साथ वह आया है। वे यहाँ सत्रह वर्षों से रह रहे हैं। उन्होंने पांच गलियाँ पहचनवा दी हैं, कहा, 'इसी में घूम घूम कर फल बेचौ ।' सुबह ही दो रोटी खाकर और दो बांधकर वह अड्डे से निकलता। एक दूकान से फल लेता और बेचने निकल पड़ता। आज उसकी टोकरी में दस किलो चीकू, दस किलो सेब और दस किलो सन्तरा है। कुत्ता जब भौंकते हुए निकल गया, उसने राहत की सांस ली। पच्चीस दिन में उसने फल खरीदने के लिए राम आसरे द्वारा दिए गए आठ सौ रूपये लौटा दिए हैं। खुराकी का आठ सौ बना है जिसमें छह सौ वह दे चुका है। अपनी कमाई से उसने आज फल खरीदा है। उसकी जेब में भी सौ रूपये हैं उसे लगा जैसे वह अपने बल पर खड़ा है। मन में उत्साह का भाव जगा। उसे पन्द्रहवां लग गया है। अभी रेख नहीं निकली है। घर में उससे दो साल बड़ी एक बहन वृन्दा है और तीन साल छोटा भाई तुलाराम। घर में खेती कुल एक एकड़ है। पिता एक भैंस और एक गाय पालते हैं। गांव कस्बे से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। तीन-चार लीटर दूध बेचकर वे घर का खर्च किसी प्रकार चलाते हैं।
बेटी ने जब से सोलहवां पार किया है वे उसकी शादी के लिए चिन्तित हो उठे हैं। दो एक जगह टोह लगाई पर उन्हें लगा कि बिना कुछ रूपये इक्ट्ठा किए वे शादी नहीं कर पाएँगे। लड़कियों की बढ़वार किशोरावस्था में तेज़ होती है। देखते देखते वृन्दा सयानी हो गई। कक्षा आठ तक वह पढ़ चुकी है। अब भोजन-पानी में मां की सहायता करती। घर में बिजली नहीं टी.वी. भी नहीं पर इस अवस्था में भी सपने बुनने से कौन रोक सकता है ? एक पुराना ट्रांजिस्टर दुनिया भर की खबरें देता, गाने सुनाता और एड्स से कैसे बचा जाए इसकी जानकारी देता। कुछ बातें उसकी समझ में आतीं, कुछ नहीं भी आतीं। कभी कभी छोटा भाई कुछ पूछता तो वह प्यार से बताती। जो भी किताबें कहीं मिलतीं उन्हें चाट जाती। उसे पढ़ना आ गया है थोड़ा बहुत समझना भी। तुलाराम कक्षा छह में पढ़ता हैं। गणित में जहाँ कहीं वह अटकता वह उसकी मदद कर देती। उसी की सहायता के कारण तुला अब गणित में अच्छे अंक लाने लगा है। वृन्दा ने घर का काम सँभाल लिया है। माँ का समय गाय-भैंस के खिलाने में ही निकल जाता। वह दूध दुह लेती है इसीलिए वृन्दा के पिता आत्माराम थोड़ा निश्चिन्त रहते।
इस बार जब राम आसरे बम्बई से आए तो आत्माराम ने मेलाराम के काम की चर्चा की। यह भी संकेत किया कि लड़की सयानी हो रही है। उसके विवाह में कुछ खर्च करना ही पड़ेगा। मेला कुछ कमाकर मदद कर दे तो शायद काम बन जाए। राम आसरे ने मेला को देखा-परखा। वे बम्बई चलने लगे तो उसे भी लेते गए। आत्माराम उसे पहुँचाने रेलवे स्टेशन तक गए थे। वृन्दा ने गुलबरिया और नोनबरिया के साथ थोड़ी पूड़ी-सब्जी बनाकर बांध दी थी। मेला जब घर से निकला, माँ का कलेजा मुँह को आ गया। जब उसने चार खेत पार कर पैर हुआ, माँ की आँखों से आँसुओं की धार बह चली। कुछ देर वह बेटे को अपनी छाती से चिपकाए रही। मेला भी भावुक हो गया। आत्माराम ने चेताया- गाड़ी छूट जायगी, इसे जाने दो। झोला पिता ने उठाया, मेला साथ में चल पड़ा। वृन्दा भी उसे जाते निहारती रही। राम आसरे आगे निकल गए थे। आत्माराम ने लपक कर उनका साथ लिया।
गोंडा स्टेशन पहुँचने पर लोगों ने बान्द्रा का टिकट लिया। थोड़ी देर में ही गाड़ी आ गई। सामान्य डिब्बे में भीड़ थी पर किसी तरह थोड़ी सी जगह मिली यद्यपि पुलिस ने उतनी ही जगह के लिए पचास रूपया माँगा किसी तरह चालीस रूपया लेकर ही हटा। आठ-दस लोगों से उसने रूपया वसूला और चलता बना। मेला को शरीर टेकने के लिए कुल छह अंगुल जगह मिली थी। आत्माराम बेटे को बैठाकर नीचे उतरे। राम आसरे से कहते रहे, 'भैया देखना । मेलाराम बहुत नादान है।' वे बच्चे की और एकटक देखते रहे आँसुओं को जबर्दस्ती रोके । मेलाराम चुपचाप दबा, सिमटा बैठा था उसे याद आ रहा है अपना गांव, घर, गाय और भैंस, माई, वृन्दा, तुला और संगी साथी.......। वह दूर जा रहा है घर से बहुत दूर........। अचानक गाड़ी ने सीटी दी। उसके बापू अपने को रोक नहीं सके। उनकी आँखों से आँसू झरने लगे । मेलाराम की भी आँखें भर आईं। चाय बेचने वाले अब भी चिल्ला रहे थे 'चाय चाय।', समोसा और पकोड़ी बेचने वाले दनादन गाड़ी से उतर गए। गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली।
राम आसरे ने मेला राम को बम्बई के रागरंग से अवगत कराकर छह सौ रूपये का फल खरीदवा फल बेचने में लगा दिया था।
आज उसके चेहरे पर आत्म विश्वास की दमक थी। वह मराठी के कुछ शब्दों को पकड़ने की कोशिश करता पर गलती न हो जाए इस संकोच से 'चीकू, सेव, संतरे' कहकर ही रुक जाता। स्कूल में शब्दों के गलत उच्चारण पर लोग चिढ़ाते रहते थे। यहाँ भी वह सोचता कि मराठी शब्दों के गलत उच्चारण पर लोग हँसेंगे, खिल्ली उड़ाएंगे।
'चीकू, सेव, सन्तरे' की आवाज लगाता हुआ वह आगे बढ़ गया। तीसरी गली में एक कोठी से रोज एक लड़की निकलकर कभी 'चीकू-सेव' कभी 'सेव-सन्तरे' खरीदती थी। उसने आवाज़ लगाई। थोड़ी देर ठिटका रहा शायद लड़की खरीदने के लिए आ ही जाए। हुआ भी वही, लड़की भीगे बालों को फटकारते निकली। आते ही बोल पड़ी 'तुम गैर मराठी हो न ?
'जी' मेलाराम ने धीरे से कहा।
'सावधान रहना, नव निर्माण वाले आग उगल रहे हैं, उसने कहा ।
'जी।' कहते हुए उसने सेव और सन्तरे तोल दिए ।
'तुम यू०पी० के हो न ?
"जी’
‘ठीक है, मैं भी गाजियाबाद से हूँ।" कहकर लड़की सेव सन्तरे की थैली लेकर चली गई।
मेलाराम ने अभ्यासवश 'जी' तो कह दिया पर वह लड़की के कहे हुए निहितार्थ को समझ नहीं सका। फल बेचकर जब अपने अड्डे पर पहुँचा, नौ बजे के आसपास राम आसरे भी आ गए। दोनों मिलकर रोटी बनाने लगे तो मेलाराम ने पूछा, 'दादू, यह नव निर्माण वाले कौन लोग हैं ?’
'क्या किसी से भेंट हुई थी ?' राम आसरे ने रोटी को तवे पर डालते हुए पूछा।
'मुझसे भेंट तो नहीं हुई पर तीसरी गली में फल खरीदते हुए एक लड़की ने पूछा था, 'क्या तुम यू.पी. के हो ?' मेरे 'हाँ' कहने पर उसने कहा था, 'नवनिर्माण वालों से सावधान रहना।'
'नवनिर्माण वाले कौन लोग हैं दादू ?"
‘बम्बई में मराठी और गैर मराठी का झगड़ा चला करता है। नवनिर्माण वाले मराठी लोग हैं।'
‘क्या हम लोगों को बम्बई से भागना पड़ेगा ?"
'नहीं रे, इस समय नवनिर्माण वाले अपना मराठी वोट पक्का करने के लिए आग उगल रहे हैं। तू जिस गली में फल बेचता है वहाँ मराठी ज्यादा नहीं हैं। कोई डरने की ज़रूरत नहीं है।
'नव निर्माण वाले क्या मारपीट करते हैं दादू ?’
'वे बहुत कुछ करते हैं पर तू चुपचाप फल बेचता रह, किसी से टंटा करने की ज़रूरत नहीं है।'
'मैं क्यों टंटा करूँगा दादू ।'
दूसरे दिन खोली से निकला तो मेलाराम अपने कमाए रूपये जोड़ रहा था। वह धीरे धीरे रूपये बचाकर घर भेज सकेगा। माई और बापू दोनों कितने खुश होंगे बेटा कुछ कमाने लगा है। उसे यह बात अखरती है कि यहाँ चांदनी का पता ही नहीं चलता। गांव में चांदनी कितनी अच्छी लगती थी ? चांदनी में ही कबड्डी खेल लिया जाता। यहाँ तो चांदनी के दर्शन ही.........। वह जा रहा है सपनों का जाल बुनते हुए। फल खरीदते वक़्त उसे ध्यान आया कि उस लड़की ने अंगूर की मांग की थी। उसने दस किलो सेव दस किलो अंगूर और दस किलो संतरा खरीदा। फलों को कपड़े से पोछ कर टोकरी में रखा। खुराकी का दो सौ रूपया भी आज उसने चुका दिया था। किसी का कर्ज नहीं, आज वह फल बेचने के लिए निकला तो अत्यन्त प्रसन्न था । चार-छह महीने में घर की मदद करने लायक हो जायगा वह।
'सेव, अंगूर, सन्तरे' की आवाज़ लगाता हुआ वह गली में घुस गया। पहली और दूसरी गली का चक्कर लगा कर वह पांच किलो फल बेच चुका था। तीसरी गली में गाजियाबाद वाली लड़की की कोठी के सामने रुका ही था कि सामने हल्ला मचाते 'आमची मुम्बई' का नारा लगाते लोगों का झुण्ड सामने आ गया।
एक ने पूछा, 'तुझा नाव काए ?’
'मेलाराम,' उसने डरते हुए कहा।
‘तुझा कुटे नागला ?"
मेलाराम चुप रहा । फिर वही प्रश्न मेलाराम अब भी चुप रहा।
यह वही तो है जिसकी तलाश में वे हैं। एक ने हाथ पकड़ कर खींचा। टोकरी बचाने की चेष्टा में वह स्वयं गिर पड़ा। सिर में चोट लगी। सिर पकड़ लिया पर थोड़ी ही देर में उसे चक्कर आ गया। भीड़ ने एक एक फल लिया। जो सड़क पर बिखर गए, उन्हें जूतों से रौंद दिया। टोकरी पर चढ़कर तोड़ दी।
मेलाराम के ओंठ फरफराए। वाणी नहीं फूटी पर भीड़ ने समझा मन ही मन गाली दे रहा है। उस पर थप्पड़, मुक्के पड़ने लगे। उसकी जेब में कुछ रूपये दिख रहे थे। एक ने रूपये निकाल लिए। भीड़ उसे छोड़ दूसरे शिकार की तलाश में आगे बढ़ गई।
गाजियाबाद वाली लड़की निकली। उसके बाल भीगे थे। संभवतः वह बाल धोकर सुखा रही थी। दो चार कुचले हुए सन्तरे और टूटी हुई टोकरी उसने देखी। थोड़ी दूर पर नाली के पास मेलाराम पड़ा था। वह दौड़कर गेटमैन से बोली, 'इसे उठा लो।'
‘बिना मालिक के हुक्म के हम नहीं उठा सकते।' गेट मैन ने कहा । लड़की अपने पिता को फोन करने अन्दर गई तब तक पुलिस की गाड़ी आ गई। मेलाराम बेहोश था उसे लादकर अस्पताल पहुँचा दिया। वहाँ सघन चिकित्साकक्ष में भी भीड़ लगी थी। उसे पहुँचा कागजी कार्यवाही कर पुलिस चली गई। उसकी जाँच हुई तो डाक्टरों ने उसे न्यूरो विभाग को संदर्भित कर दिया। रात में न्यूरो में आपरेशन के लिए डाक्टर उपलब्ध नहीं थे। वे उस समय एक प्राइवेट नर्सिंग होम में आपरेशन कर रहे थे। जूनियर डाक्टर ने कम्पाउन्डर से कहा, 'इसके अभिभावक से कहो कुछ रूपये का इन्तजाम तत्काल करें- आपरेशन से इसे बचाया जा सकता है। प्राइवेट नर्सिंग होम में कहीं.......।’ कम्पाउन्डर अपने काम में लगा रहा तो डाक्टर ने फिर कहा, 'उससे बोलो न ?”
'लावारिस है साहब,' कहकर कम्पाउन्डर अपने काम में पुनः लग गया।
सबेरे अखबार में सूचना थी- कल भड़की हिंसा में जितने लोगों को अस्पताल में भरती कराया गया उसमें एक लावारिस भी था। डाक्टरों के अथक परिश्रम के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका।

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