"मेहनत करके पैसा कमाते हो।सारी कमाई बड़े भाई के हवाले कर देते हो।जरूरत पड़ने पर भाई के आगे भिखारी की तरह हाथ पसारना पड़ता है।इससे बढ़िया अलग क्यो नही हो जाते?"
मोहन की बात का समर्थन रमेश के दूसरे दोस्तो ने भी किया था।रमेश दोस्तो से बटवारे की बात सुनकर बहुत नाराज हुआ था।लेकिन दोस्तो ने उसे सब्जबाग दिखाए।अलग होने के फायदे बताए।तब उसके दिमाग मे भी यह बात बेथ गयी।और एक दिन रमेश ने बड़े भाई से अलग होने की इच्छा प्रकट कर दी।
सुरेश ,रमेश के मुह से बटवारे की बात सुनकर चौका था
उनके पिता दीनानाथ इस संसार को छोड़ने से पहले दोनो भाइयो को मिल जुलकर रहने की सलाह दे गए थे।इसलिए सुरेश ने रमेश से पूछा,"तुम्हे क्या दुख है।क्यो अलग होना चाहते हो।कोई बात है तो बताओ?"
रमेश कुछ नही बोला।सुरेश चाहता था,भाई उसके साथ ही रहे।पर उसका मन न देखकर उसे बटवारे के लिए तैयार होना पड़ा।
एक दिन सुरेश ने अपने रिश्तेदातो को बुलाया।और उनके सामने सम्पति का ब्यौरा रखकर कहा,"हम दोनों भाई अलग होना चाहते है।आप लोग बटवारा कर दे"
रिस्तेदारो ने मकान जेवर व पैसा दो हिस्सों में बांट दिया।दुकान एक ही थी।उसका बटवारा करने के दो तरीके थे।या तो दुकान बेचकर पैसा बांट दिया जाए या दुकान के दो हिस्से कर दिए जाय।सुरेश को दोनो तरीके पसन्द नही थे।वह न तो दुकान बेचना चाहता था।न ही उसके दो हिस्से करना चाहता था।इसलिए उसने अपनी इच्छा से दुकान रमेश को दे दी।
सुरेश ने एक नई दुकान खरीद ली।उसने उसमें किराने का सामान दाल लिया।दुकान नाइ थी पर सुरेश ईमानदार और मेहनती था।धीरे धीरे उसकी दुकान चल निकली और वह दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करने लगा।
रमेश को जमी जमाई दुकान मिली थी।मुख्य बाजार में होने के कारण अच्छी कमाई होती थी।लेकिन रमेश की संगत अच्छी नही थी।उसने दुकान नौकरों के हवाले कर दी।खुद दोस्तो के साथ क्लब और पार्टियों में मस्त रहने लगा।
रमेश को शराब की लत तो पहले से ही थी।दोस्तो ने उसे जुए की लत और डाल दी।इधर वह शराब और जुए में पैसा उड़ाने लगा।उधर नौकर भी बेईमानी करने लगे।जिसकी वजह से दुकान में घाटा होने लगा।जिसकी वजह से दुकान चौपट हो गयी।
रमेश ने पहले घाटे का रोना रोकर पत्नी के सारे जेवर बेच डाले।जब बेचने को कुछ नही रहा तो बाजार से हजारों रुपये कर्ज ले लिया।ये सारा पैसा भी जुए और शराब की भेंट चढ़ गया।अपने कर्मो की वजह से रमेश दाने दाने को मोहताज हो गया।जब उसके पास पैसा नही रहा तो दोस्त साथ छोड़ गए।
धीरे धीरे समय गुजरता गया।रमेश की बेटी कमला जवान हो गयी।रमेश को उसकी शादी की चिंता सताने लगी।उसने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू की।वह जहाँ भी रिश्ते के लिए गया।मोटे दहेज कज मांग की गई।उसके पास कहा रखा था,इतना पैसा।
रमेश हतास हो गया।पति को परेशान देखकर सुधा बोली,"तुम जेठजी से क्यो नही बात करते?"
"किस मुह से उनके पास जाऊ।भैया ने बटवारे के लिए मना किया था।पर दोस्तो के बहकावे में आकर---
जब सुधा के काफी समझाने पर भी रमेश जाने के लिए तैयार नही हुआ,तब सुधा ने जाने का निर्णय लिया।
"अरे तुम,"घूंघट निकाले खड़ी सुधा को देखकर सुरेश बोला,"क्या बात है?"
"आप दोनों भाइयों के सम्पति के बटवारे के समय क्या इज्जत का बटवारा भी हो गया था?"
"खानदान की इज्जत कैसे बट सकती है।"इज्जत चाहे मेरी हो या रमेश की।इज्जत एक ही है।"
"इज्जत एक है तो आपका ध्यान कमला पर क्यो नही गया।वह जवान हो गयी है।हम दहेज के अभाव में शादी नही कर पा रहे।अगर कमला की शादी नही हुई और उसने जवानी के जोश में गलत कदम उठा लिया।तब इज्जत का क्याहोग/"
सुधा ने सुरेश जी आंखे खोल दी।वह बोला,"कमला रमेश की ही नही मेरी भी बेटी है।तुम उसकी शादी कज चिंता मुझ पर छोड़ दो।"