Entering the Mind of Killers Via Dr. Shivaratnam Lalit books and stories free download online pdf in Hindi

हत्यारों के मस्तिष् में प्रवेश डॉ, शिवारत्नम ललित वाया

नीलम कुलश्रेष्ठ

"साधारण मानव हत्यारा हो सकता है, कोई हत्यारा साधारण मानव हो सकता है इसलिए हम किसी भी मस्तिष्क को अपराधी नहीं कह सकते."ये विश्वास है इंस्टीट्यूट ऑफ़ बिहेविअरल साइंसेस, गुजरात फ़ोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी, और डाइरेक्टोरेट ऑफ़ फ़ोरेंसिक साइंस की उप निदेशक डॉ.शिवा रत्नम ललित वाया के.

"फिर भी कुछ लोग तो पैदायशी हत्यारे या अपराधी होते हीं हैं या कहना चाहिए की अपराध उनके `जींस `में होता है."

"तो भी उनका क्या दोष है ? किसी को जन्म से सुन्दरता या कुरूपता मिलती है या अपराधी `जींस `,तो ये उन्होंने तो नहीं मांगी थी."

" लेकिन जिनकी ज़िन्दगी ये अपराधी ख़राब करतें हैं,वो लोग ऐसे कैसे इन्हें मुआफ कर दें ?"

"अपराधियों को सुधारा जा सकता है.किसी को सुधारने में दो चार वर्ष या दस बीस वर्ष लगतें हैं."ऐसे आशावादी विचार किसी मनोवैज्ञानिक महिला के हो सकतें हैं वर्ना साधारणत; यही सोचा जाता है कि जन्मजात अपराधी कभी नहीं सुधरते.

डॉ.शिवारत्नम कोई साधारण महिला नहीं हैं.वे भारत की पहली क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट हैं जिन्हें सन २०१० में गृहमंत्री पुरुस्कार से सम्मानित किया है उनके फ़ोरेंसिक साइंस में किये विशेष योगदान के लिए.गुजरात के लिए भी इस तरह का ये पहला पुरुस्कार है.

इनके पिता रेलवे विभाग में काम करते थे.इनकी स्कूली शिक्षा कर्नाटक में छोटी छोटी जगह हुयी थी.बाद की सारी शिक्षा मैसूर में हुई.वहीँ से इन्होने मनोविज्ञान में एम.ए.किया था. उसके बाद मानसिक रोगियों का उपचार करने वाले संस्थान व मेडीकल कॉलेज में आठ वर्ष नौकरी की.बाद में ये अहमदाबाद के फ़ोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में उप निदेशक चुन लीं गयीं.

यहाँ पर उन्होंने इतिहास रचा सन १९८८ में उन्होंने फ़ोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में फ़ोरेंसिक साइकोलोजी डिवीजन की स्थापना की. इस तरह से वे भारत की प्रथम फ़ोरेंसिक साइंस डिवीजन की स्थापना करने वाली मनोवैज्ञानिक बनीं. बाद में अनेक शहरों में इसकी स्थापना हुयी. गुजरात यूनिवर्सिटी से उन्होंने पी एच डी.की थी.

"आपको कैसे विचार आया कि अपराधियों की जांच पड़ताल के लिए मनोविज्ञान का सहारा लेना चाहिए ?"

"एक तो मैंने जेल के कैदियों के बीच में काम किया था.यहाँ मैंने देखा कि लाइ डिटेक्टर टेस्ट की भी सीमा है क्योंकि ये एक मशीन द्वारा किया जाता है और मशीन की भी सीमा होती है.ये बात तो पहले से ही पता होती है कि अपराधी झूठ बोल रहा है तभी उसका टेस्ट होना होता है.बस इतना ही पता भी लगता है की वह झूठ बोल रहा है या सच.फ़ोरेंसिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से ये पता लगता है कि वह क्यों झूठ बोल रहा है ? धीरे धीरे हम लोग वह बात पता लगा लेतें हैं वह जो छिपाना चाहता है."

ज़ाहिर है इस जांच से पुलिस को सहायता मिलने लगी तो उनकी छान बीन का रास्ता और आसान हो गया.

"आपने हत्यारों की भी मनोवैज्ञानिक जांच की है, तो वह किस तरह के प्रश्न पूछकर जांच करतीं हैं ?"

"हम जांच पड़ताल में सीधे प्रश्न नहीं पूछते बल्कि धीरे धीरे उनका साक्षात्कार लेतें हैं.उनकी प्रष्ठभूमि व उनके जीवन से जुडी बातें पूछतें हैं.वे बहुत शांति से जवाब देतें हैं.अब ये बात उस व्यक्ति पर निर्भर है कि वह कितना बताता है,"

"यानि कि आप हत्यारों के मस्तिष्क में प्रवेश करतीं हैं?"

"जी हाँ,आप सही कह रहीं हैं किसी के मस्तिष्क में प्रवेश करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं होती.उनके बोलने से पहले उनके शरीर सञ्चालन की भाषा, उनके व्यवहार व उनके चेहरे के भाव से बहुत कुछ पता लग जाता है.."

अपराध की जांच के लिए वे फ़ोरेंसिक बयानों का विश्लेषण करतीं हैं,अपराध किये स्थान की विडियोग्राफी व फ़ोटोज़,पोलीग्राफ टेस्ट व नार्को एनालिसिस व ब्रेन सिग्नेचर प्रोफ़ाइल के विश्लेषण से वह अपनी रिपोर्ट बनातीं हैं.ज़ाहिर है ये काम उनकी टीम भी साथ में करती है. वे फ़ोरेंसिक मनोविज्ञान मंडल की प्रमुख हैं तो ये रिपोर्ट उन्हें

कोर्ट में भेजनी पड़ती है.

"इस तरह से तो अनेक विभाग आपसे सहायता लेतें होंगे ?"

"हाँ, सी.बी.आई. क्राइम,सी, आई. ड., आई.बी.,रेवेन्यु विभाग के केसों का काम आता रहता है.इसके अलावा अहमदाबाद की ऍफ़.एस.एल.के काम पर इतना भरोसा है कि सारे देश के बड़े बड़े अपराधों की जांच का काम यहाँ आता रहता है.बड़े बड़े अपराधियों को यहाँ भेजा जाता है."

भारत के समाचार पत्रों में हलचल मचाने वाले मधुमिता हत्याकांड के गवाह,यहाँ जांच के लिए भेजे जा चुके हैं,निठारी हत्याकांड का सुरेन्द्र कोहली व पंधेर यहाँ आ चुके हैं,श्रीमती वाया अरुशी हत्याकांड के तलवार दंपत्ति से भी रूबरू हो चुकीं हैं.उज्जेन का सीरियल कांड हो या फ़ेक स्टेम्प केस या रांची मल्टीपल मर्डर केस या गीर के शेरों की पोचिंग -सभी तरह के केसों की जांच शिवारात्न्म जी ले निदेशन में होती है.

अक्सर सब सुनतें हैं कि भारत के जघन्य अपराध के अपराधी या सबूत जाँच के लिए अहमदाबाद भेजे गए या बंगलौर लेकिन कोई कल्पना भी नहीं कर पता कि इनकी जाँच अहमदाबाद में रहने वाली एक महिला के निदेशन में हो रही है.

भारत में बहुप्रचिलित लोकअदालत का जन्म आदिवासी समाजसेवी ने श्री हरिवल्लभ पारिख ने रंगपुर [वडोदरा, कवांट] के अपने आश्रम में किया था. इसकी सफ़लता से प्रभावित होकर इसे बार एसोसिएशन शहरों में आयोजित करतीं हैं. जब भी अहमदाबाद में लोक अदालत आयोजित की जाती है तब डॉ.वाया की टीम को मनोवेज्ञानिक सलाह के लिए बुलाया जाता है.

"इसमें आने वाले कितने केस हल होते हैं ?"

"आपको तो पता ही है इसमें अक्सर पंद्रह बीस वर्ष से चलने वाले केस भी हल हो जातें हैं.हमारी टीम जीवन की सकारत्मक सोच का मनोवेज्ञानिक प्रभाव डालती है इसलिए जल्दी ही अच्छे हल निकलतें हैं.

"आपका डी. ऍफ़ एस में और कोई उल्लेखनीय काम ?"

"मैंने यहाँ गांधीनगर रिसोर्स सेंटर की स्थापना की है."

नौ वर्षों से वह गांधीनगर में अपने दोनों पदों उपनिदेशक ऍफ़.एस. एल व विश्वविद्ध्यालय के निदेशक के पद को सम्भाल रहीं थीं. कुछ वर्ष पहले वह ऍफ़. एस. एल से रिटायर हो गयीं हैं.उन्होंने अपराध से जुड़े चौदह विभागों को तकनीकी व प्रशासनिक रूप से संभाला.यह नशीली दवाओं, व एक्सप्लोसिव्स, बेलिस्टिक्स, डी. एन. ए., फ़ोरेंसिक मनोविज्ञान फिंगर प्रिंट ब्यूरो, क्राइम सीन यूनिट समभालनी पड़ती थी. उनके ये अनुभव बेकार नहीं गएँ हैं इन दुर्गम विषयों पर भाषण देने उन्हें भारत के पुलिस सेना से जुड़े संस्थानों में ससम्मान बुलाया जाता है.

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