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इश्क़ का जुनून




शीर्षक = इश्क़ का जूनून




स्वरा बेटा जिद्द छोड़ दे, मरे हुए लोग वापस नही आते है, संस्कार भी हम सब को छोड़ कर जा चुका है, ये बात तू मान क्यूँ नही लेती? क्यूँ पिछले पांच साल से एक मुर्दे के जिन्दा आने की आस लगाए बैठी है, और क्या सबूत चाहिए था तुझे जिससे की तुझे यकीन आ जाता की तेरा संस्कार इस दुनिया से जा चुका है, उसके कपड़े, उसके जूते सब कुछ तो सेनिको ने संस्कार की माँ के हवाले करते हुए कहा था की माफ करना माँ जी आपका बहादुर बेटा भारत माँ के आगोश में उम्र भर के लिए सौ गया है, हम चाह कर भी उसके पार्थिव शरीर को आपके पास नही ला सकते, क्यूंकि भगवान जाने उसके शरीर को जमीन निगल गयी या आसमान खा गया, सरहद का चप्पा चप्पा छान मारा सिवाय उसके खून में लत पत फटे कपड़ो के और साथ कुछ मृत आतंकवादियों के कोई और वहाँ नही मिला,


लगता है, बम ब्लास्ट में उसका शरीर टुकड़े टुकड़े हो कर सरद्द के उस पार चला गया है, स्वरा की माँ शालिनी जी और कुछ कहती उससे पहले ही स्वरा बोल पड़ी


मुझे यकीन नही है, मेरा दिल इन पांच सालों में मानने को तैयार ही नही हे, कि मेरा संस्कार मर चुका हे, मेरा दिमाग़ तो एक बार को मान भी लेता हे, लेकिन ये दिल मानने को तैयार ही नही होता हे, कि वो जा चुका हे, पांच साल तो बहुत कम अवधि हे अगर 50 साल भी मुझे उसके आने का इंतज़ार करना पड़े तब भी मैं यूं ही उसका इंतज़ार करूंगी, क्यूंकि मेरा दिल कहता हे कि संस्कार जिन्दा हे, भले ही उसकी फटी वर्दी और जूते उसके साथियों को मिल गए थे जिसके आधार पर उन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया हे, लेकिन मेरा दिल मानने को ज़ब तक तैयार न होगा ज़ब तक कि उसका पार्थिव शरीर खुद अपनी आँखों से न देख लूंगी, ज़ब तक मैं उसे मृत नही मानूंगी, देखना वो आएगा, उसे मेरा प्यार और मुझसे किया वायदा मेरे पास सही सलामत खींच कर लाएगा


"पागल हे तेरा दिल जो तुझे बेवक़ूफ़ बना रहा हे, और तू पांच साल से बेवक़ूफ़ बन रही हे, मेरी बात मान और इस झूठी आस को तोड़ दे, और अपना घर बसा ले, देख तेरे चेहरे पर झुर्रिया आने लगी हे और बाल भी पकने लगे हे, तेरी छोटी बहन का भी अपना परिवार हे, और तो और तेरी साथ की सहेलियां भी बच्चों वाली हो गयी हे, बस तू ही हे जो रंग रूप में उनसे चोक्खी होने के बावज़ूद भी इस तरह कुंवारी बैठी हे वो भी एक ऐसे आदमी के इंतज़ार में जिसे उसके घर वालों के साथ साथ सरकार भी मृत घोषित कर चुकी हे, पर ना जाने तुझे क्यूँ इतना यकीन हे कि वो ज़िंदा हे और तेरे लिए लोट कर आएगा, " शालिनी जी ने कहा


"माँ, तुम नही समझोगी, तुम मेरा घर बसाने कि ज़िद्द छोड़ दो, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, संस्कार आये या ना आये लेकिन मैं किसी और से शादी नही करूंगी, मेने अपने मन मंदिर में सिर्फ संस्कार को ही जगह दी थी और ये जगह मैं किसी और को नही दूँगी, मेने उससे और उसने मुझसे सच्चा प्यार किया था, भले ही हम दोनों कि शादी नही हुयी थी, अग्नि को साक्षी मान कर हमने साथ फेरे नही लिए थे लेकिन फिर भी मेने उसे अपना सब कुछ और उसने मुझे अपना सब कुछ मान लिया था " स्वरा ने कहा


"पागल हो गयी हे तू, तू इस तरह कहेगी और मैं मान लूंगी, मैं तुझे तेरी जिंदगी बर्बाद नही करने दूँगी, हम लोग आज हे कल नही रहेंगे, तेरे आगे पूरी जिंदगी पड़ी हे तुझे यूं इस तरह इश्क़ के जूनून में अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़ नही करने दूँगी, तेरी शादी उसके साथ हो जाती तो बात अलग थी तब तू उसकी विधवा के रूप में भी अगर अपनी जिंदगी गुज़ारना चाहती तो मैं तुझे नही रोकती, लेकिन अब बात अलग हे, अब तू जान बूझ कर अपनी जिंदगी अँधेरे कुए में धकेल रही हे, और एक माँ होने के नाते मैं तुझे इस तरह अपनी जिंदगी बर्बाद नही करने दूँगी, तुझे आज नही तो कल शादी करना ही होंगी " शालिनी जी ने कहा



माँ तुम गलत कर रही हो, मैं शादी नही करुँगी, मैं मौत को गले लगा लूंगी लेकिन किसी और कि जिंदगी बर्बाद नही करुँगी जानते बूझते हुए, मैं चाह कर भी अपने दिल से संस्कार को नही निकाल पाऊँगी और किसी और शख्स को इस दिल में तो क्या अपने दिमाग़ में भी जगह नही दे सकती, माँ तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, मैं संस्कार की जगह किसी को नही दे सकती हूँ,



माँ, तुम परेशान न हो, मैं तुम पर बोझ नही बनूँगी, जैसा की इन पांच सालों में, मैं तुम पर और पिता जी पर या और घर के किसी अन्य सदस्य पर बोझ नही बनी ठीक उसी तरह आगे भी नही बनूँगी, क्यूंकि तुमने और पिता जी ने मुझे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया हे, और ये एहसान मैं जिंदगी भर नही उतार पाऊँगी, जैसा की अब तक चलता आ रहा हे आगे भी चलता रहेगा, मैं अपनी जिंदगी में संस्कार की यादों और उसके आने की आस लिए खुश हूँ और इसी तरह अपनी जिंदगी की गाड़ी चला लूंगी, मुझे अकेले जिंदगी गुज़रने में कोई आपत्ति नही हे, लेकिन हाँ अगर तुम ने जबरदस्ती मेरी जिंदगी में एक ऐसे मर्द को लाकर खड़ा कर दिया जिसे मैं चाह कर भी वो मक़ाम नही दे सकती जिसका वो हक़दार होगा तब मैं एक मुजरिम जरूर बन जाउंगी, इसलिए माँ मुझे उस जुर्म का मुजरिम बनाने की कोशिश मत करो जिसकी सजा मैं और मेरी जिंदगी में शामिल वो मर्द हर दिन भुगत्ता रहे जिसका कोई कसूर भी न हो


माँ, मैं जानती हूँ तुम्हे मेरी चिंता हे, तुम मुझे छोटी की तरह हस्ता बस्ता देखना चाहती हो, लेकिन मैं मजबूर हूँ, मुझे संस्कार के प्रेम ने जकड़ रखा हे,उसके इश्क का जूनून ही है जिसने मुझे अभी तक मरने नही दिया है, एक आस है कि शायद कभी जिंदगी के आख़री दिनों में भी अगर वो वापस आ जाए तब मैं गर्व से कह सकूँ कि मैं आज भी उसकी हूँ पूरी की पूरी उसकी हूँ, उसके इंतज़ार में सादिया गुज़ार दी, उसकी जगह मेने किसी को नही दी, माँ मुझे मेरी जिंदगी जीने दो, मुझे मेरी जिंदगी संस्कार के ज़िंदा वापस लोट कर आने की आस में गुज़ारने दो, मैं नही चाहती की कभी वो लोट कर आये तब मुझे किसी और के साथ देख कर वो मुझ पर हसे मेरे उसके साथ किए वायदे मुझे याद दिला कर शर्मिंदा करे मैं खुद को तो उसके सामने झुका सकती हूँ लेकिन मेरा प्यार झुक जाए ये मैं बर्दाश्त नही कर सकती, इसलिए माँ तुम जबरदस्ती मत करो, वरना ये स्वरा अपने इश्क़ के जूनून में कुछ ऐसा कर बैठेगी जिसके बाद तुम सिर्फ पछतावे के कुछ नही कर सकोगी


फिर तुम जी भर के रो लेना मेरी लाश पर मुझे उठाने की भी कोशिश करना लेकिन मैं नही उठूंगी



अपनी बेटी को इस तरह देख अब तो शालिनी जी की भी हिम्मत जवाब दे गयी थी,लेकिन फिर भी उन्होंने समझाने के लिए और उसे इस तरह अपनी जिंदगी को तबाह करने से रोकने के लिए कुछ कहना चाहा लेकिन तब ही उनके पति जो पीछे खड़े माँ बेटी की बाते सुन रहे थे, और उन्होंने ही अपनी पत्नि को अपनी बेटी को समझाने और उसे शादी करने के लिए मनाने भेजा था, क्यूंकि माता पिता का हृदय बहुत कोमल होता है, वो अपने ऊपर आने वाली तकलीफ को तो बर्दाश्त कर लेते है लेकिन अपनी औलाद पर आयी एक खारोंच से भी डर और सहम जाते है, और यहां तो उनकी बेटी पूरी जिंदगी एक ऐसे इंसान के इंतज़ार में बर्बाद ( ओरो के लिए तो बर्बाद ही करना हुयी, जबकी स्वरा के लिए अपने प्रेम का इंतज़ार करना, ऐसे प्रेम का वापस आने का इंतज़ार करना जो की दुनिया वालों की नजर में मर चुका है, अपने प्यार का सबूत देने जैसा है ) कर रही है, जिसके जिन्दा होने न होने की कल्पना करना भी एक मूर्खता है, तब वो भला कैसे खामोश बैठते, लेकिन अब अपनी बेटी की बाते सुन कर अब उन्हें भी विश्वास हो चला था की वो उसका घर बसा कर उसे जिंदगी भर का मुजरिम बना देंगे


इसलिए उन्होंने अपनी पत्नि को रोक लिया और फिर अपनी बेटी को अपने सीने से लगा कर, ईश्वर से उसे शक्ति देने की प्रार्थना की और ये भी दुआ की, कि अगर उसका प्यार ज़िंदा है उसका विश्वास सच्चा है तो उसके जीते जी ही संस्कार वापस आ जाए, ताकि वो भी देख ले कि उसका प्रेम कितना सच्चा और आयने कि भांति कितना साफ है



समाप्त.......







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