शीर्षक = गुमनाम खत
"सर आप हर साल अपनी फैक्ट्री से मिलने वाला आधा मुनाफा इस कॉलेज में पढ़ रही, गरीब छात्राओं की पढ़ाई पर लगा देते है, ताकि उनकी पढ़ाई में कोई रूकावट न आये, आज कल विद्या के क्षेत्र में सबसे बड़ी रूकावट खास कर लड़कियों के लिए पैसा ही है
माँ बाप का सोचना यही रहता है, कि वो अगर पैसा लड़की की पढ़ाई पर खर्च कर देंगे तो उसके लिए दहेज़ कहा से लाएंगे, और वैसे भी लड़की किसी दुसरे की अमानत है, इसलिए उसे पढ़ाना जरूरी नही, लेकिन आप की वजह से हर साल न जाने कितनी लड़कियों की आँखों में पल रहे सपने साकार हो रहे है, वो अपने पैरों पर खड़ी हो पा रही है
मेरा आपसे एक सवाल है, आखिर आप ये क्यूँ करते है? जहाँ और बड़े बड़े उद्योग पति अपने पैसे को कही और निवेश करते है, वही आप हर साल इस कॉलेज में आने वाली गरीब लड़कियों की पढ़ाई का ज़िम्मा अपने सर ले लेते है, और जब तक वो यहाँ से पढ़ कर बाहर नही चली जाती है, और कुछ बन नही जाती है तब तक आप उन्हें सप्पोर्ट करते रहते है, आपके फॅमिली बैकग्राउंड में तो कोई ऐसा नही था, कि जिसने कभी किसी लड़के या लड़की कि पढ़ाई स्पोंसर की हो, लेकिन आप को देख कर नही लगता की आप उन्ही लोगो में से है " कॉलेज के एनुअल फंक्शन पर पधारे अर्पित सिंघानिया जी से एक प्रेस रिपोर्टर सरोजनी नामी लड़की ने पूछा
इस सवाल को सुन, पहले तो अर्पित जी थोड़ा बात को घुमाने की कोशिश करने लगे,लेकिन न जाने वो प्रेस रिपोर्टर कौन सी धुन में सवार थी की उनसे ज़िद्द पकड़ कर ही बैठ गयी यहाँ तक की वहाँ मौजूद लड़के लड़कियों से भी ज़िद्द की, ताकि वो बता दे, उनके इस तरह करने के पीछे क्या कारण है
अर्पित सिंघानिया जी, जो की 50 साल के एक व्यस्क पुरुष थे, उनके दो बच्चें और एक पत्नि जो की किन्ही कारणों वश वहाँ नही आ सके थे
सामने सब बच्चों को इतना इसरार करते देख आखिर कार अर्पित जी बोल पड़े " ठीक है, आप लोगो को जानना है तो मैं बता देता हूँ, कि आखिर मेरा इस तरह हर साल इस कॉलेज में पढ़ने आनी वाली लड़कियों कि पढ़ाई को स्पोंसर करने की वजह क्या है, तो सुनिए
कभी कभी इंसान से नादानी में कुछ ऐसी गलतियां हो जाती है, जिनका खामयाजा अगर वो खुद को बेच कर भी भरना चाहे तब भी नही भर पाता
ऐसा ही शायद आपके सामने खडे इस आदमी के जीवन में भी हुआ था, आप सब को बताता चलू ये सिर्फ आप लोगो का ही कॉलेज नही है, बल्कि मैंने भी और मेरे साथियों ने भी यही से पढ़ाई की थी
ये कहने के बाद अर्पित जी कही खो गए और उस समय में पहुंच गए जब वो एक नटखट लड़के हुआ करते थे, लोगो को तंग करने में उन्हें मजा आता था, घर से बहुत अमीर थे, जिसके चलते उनके दोस्त भी हर दम उनके साथ उनकी नादानियों को बढ़ावा देने में पीछे नही हटते थे
"यार अर्पित काफी समय गुज़र गया, किसी हसीन चहरे का दीदार नही हुआ, इस कॉलेज में " अर्पित के दोस्त सुधांशु ने कहा
"सही कहा तूने सुधांशु, अब तो फर्स्ट ईयर के दाखिले भी समाप्त हो गए, लगता है इस बार कोई ऐसा चेहरा नही आने वाला कॉलेज में जो सबसे अलग हो, " पास खडे दुसरे लड़के विक्रम ने कहा
"छोड़ो यार, हमें क्या लेना देना, हम यहाँ पढ़ने आये है, या ये सब करने चलो क्लास का समय हो रहा है " अर्पित ने कहा
"ओह हो, आज तो इन साहब को देखो बड़े पढ़ाकू कीड़ा बने फिर रहे है, बेटा इतनी मेहनत से पढ़ाई करते तो दो साल से एक ही क्लास में न अटक रहे होते, सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली, लगता है आज फिर इसके बाप ने इसकी डांट लगा दी है, इसलिए तो शरीफ बनने का नाटक कर रहा है " सुधांशु ने कहा
"नही यार, पापा के लेक्चर तो रोज़ के है, लेकिन आज माँ ने भी बहुत सुनाया क्यूंकि आज मैंने बहुत बड़ी बेवकूफी की अपने नटखट पन के चलते, वो है न हमारे घर काम करने आने वाली सावित्री, मैंने जान बूझ कर पानी जमीन पर गिरा दिया जिससे उसका पैर फिसला और वो गिर गयी,
माँ ने मुझे देख लिया था ऐसा करते हुए, उसने मुझे डांटा भी और बहुत सुनाया उसने कहा, की कभी कभी की नादानी बहुत भारी पड़ जाती है, तुम अब सुधर जाओ, और भी न जाने क्या कुछ नही सुनाया उसने " अर्पित ने कहा
"छोड़ न यार, क्या बाते लेकर बैठ गया, अभी हम जवान लड़के है, इस उम्र में छोटी मोटी नादानियाँ मज़ाक मस्ती नही करेंगे तो फिर क्या बुढ़ापे में करेंगे, छोड़ इन सब बातों को, वो देख मछर सर जा रहे है,अपने बच्चों को पढ़ाने, बच्चें पढ़ेंगे कम और इनके दुबले पन पर हसेंगे ज्यादा " विक्रम ने कहा उसके बाद तीनो हसने लगे
उन तीनो का ऐसी ही था, पूरा कॉलेज उनकी शरारतों से परेशान था, लड़का हो या लड़की उनसे बच कर नही जाता था, इसी बीच एक सीदी सादी डरी सहमी लड़की का आगमन उस कॉलेज में हुआ, वैसे तो दाखिले ख़त्म हो गए थे, इंजीनियरिंग के लेकिन फिर अचानक वो लड़की इस तरह कैसे आयी सबको यही चिंता थी
थोड़ी बहुत छान बीन करने पर पता चला की लड़की ने टॉप किया था, लेकिन उसकी तबीयत ख़राब हो जाने की वजह से वो आने में असमर्थ थी
उस लड़की का नाम अंजना था, पढ़ने में बहुत तेज थी, उसका सपना कुछ बन कर दिखाना था, हर समय क्लास और किताबों में ही घुसी रहती थी, लेकिन न जाने क्यूँ वो डरी डरी रहती थी, न किसी से बात करती और न ही कुछ और उसकी एक आद ही सहेली थी कॉलेज में
अर्पित ने भी उससे कई बार बात करनी चाही पर उसने उससे बात नही की, अर्पित की नादानियों से कॉलेज के हर बच्चें के साथ वो भी परिचित हो गयी थी, कि अर्पित केसा लड़का है, उसके मज़ाक से किसी सामने वाले पर क्या असर पड़ता है, उसे उससे कुछ लेना देना नही था, वो अपनी मस्ती में मगन रहता था
एक दिन उसे और उसके दोस्तों को न जाने क्या शरारत सूजी, उन्होंने एक गुमनाम खत लिखा, जिसमे प्यार भरी बाते लिखी और अंत में लिखा तुम्हारा गुमनाम आशिक
अब उन्हें कोई ऐसी लड़की चाहिए थी, जो कि उनके मज़ाक और नादानी से ज्यादा वाकिफ न हो जिसे वो आसानी से बेवक़ूफ़ बना सके, अंजना से ज्यादा कोई और लड़की उनके जहन में नही आयी, और उससे झूठ मूट की टककर के बहाने वो खत उसके बेग में रख दिया
ऐसा करते हुए दूर खड़ी अंजना की सहेली ने देख लिया, लेकिन उसे थोड़ा आँखों का वहम सा हुआ और उसने बात दर गुज़र कर दी
दो दिन गुज़र गए थे, लेकिन अंजना कॉलेज नही आयी, अर्पित और उसके साथियों का प्लान फ़ैल होता नजर आ रहा था, उन्हें तो उसे और खत लिख कर परेशान करना था, लेकिन ये क्या दो दिन गुज़र गए लेकिन अंजना नही आयी
आखिर कार उन्होंने अपनी ही एक दोस्त को अंजना के घर भेजा पता लगाने के लिए, जब वो उसके घर गयी तो उसके घर की हालत देख वो पागल ही हो गयी थी
अंजना के सर पर चोट लगी हुयी थी और साथ ही उसकी माँ भी जख़्मी थी, पूछने पर पता चला तो पाया की उसके पिता ने उन दोनों को मारा है, क्यूंकि अंजना की माँ की ज़िद्द की वजह से ही अंजना कॉलेज गयी थी पढ़ने जब उसने टॉप किया था लेकिन अपने पिता को मनाते मनाते उसे इतने दिन लग गए थे की कॉलेज शुरू हुए भी कई सप्ताह हो गए थे, तब जाकर उसे कॉलेज के दर्शन नसीब हुए,
उसका पढ़ कर कुछ बनने का सपना साकार होता नज़र आने लगा था, लेकिन इस गुमनाम प्रेम पत्र ने जो की उसके पिता के हाथ लग गया था, जिसे पढ़ने के बाद उसने उन माँ बेटी दोनों को जल्लादो की तरह मारा, और अब दोनों का ही घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है
अंजना ने अपने पिता को बहुत समझाया की वो किसी भी ऐसे लड़के को नही जानती है, जो उसे इस तरह के खत लिखें, लेकिन उसके पिता ने एक न सुनी और उसे घर में ही कैद कर दिया
ये बात जब उस लड़की को पता चली तो उसे समझ आ गया था की वो गुमनाम खत किसका और किसने और क्यूँ रखा था
कॉलेज आकर उसने उन तीनो को बहुत सुनाई, क्यूंकि उनके एक छोटे से मज़ाक के चलते किसी की पूरी दुनिया पलट गयी थी
अर्पित, सुधांशु और विक्रम तीनो ने उसके घर जाकर अपना जुर्म क़ुबूल किया, उसके पिता ने जो कहा उसके बाद उनका माफ़ी मांगना भी बेकार था " वो यकीन करना नही चाहते थे, और अगर यकीन कर भी लिया था फिर भी वो अब अंजना को कॉलेज भेजना नही चाहते थे, क्यूंकि उसकी वजह से आज तीन तीन लड़के उसके घर आ गए थे, उसका पिता एक अजीब दिमाग़ का आदमी था, उसने उन सब के सामने ही साफ साफ अपनी बेटी की शादी की बात कर दी, और कुछ ही दिनों में उसका ब्याह भी कर दिया न जाने अपने ही जैसे शराबी के साथ "
उस गुमनाम खत, उस बेहूदा मज़ाक ने अंजना की जिंदगी तबह कर दी थी, वो लड़की जो पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी, अपने सपनो को साकार करना चाहती थी किसी के मज़ाक की भेट चढ़ गयी थी
वो सब याद कर आज भी अर्पित जी की आँख भर आयी,जब उन्होंने सब कुछ सामने बैठे बच्चों को बताया तो सब की आँखे नम हो गयी थी, सब समझ गए थे की अर्पित जी आज भी अपने उस बेहूदा मज़ाक का पछियाताप कर रहे है और न जाने कब तक करते रहेगे
उस गुमनाम खत ने किस तरह एक लड़की की जिंदगी बदल कर रख दी ये अर्पित जी से बेहतर कोई नही जानता था, उनकी माँ की बात सच साबित हुयी की तुमसे अनजाने में कभी ऐसा मज़ाक भी हो जाएगा जिसका खामयाजा तुम जिंदगी भर भी अगर भरते रहोगे तो भर नही सकोगे, आज इतनी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा करने के बाद भी मानो अंजना आज भी उनके सामने ख़डी रो रही हो, और पूछ रही हो कि आखिर क्यूँ तुमने मेरे सपनो को ऊँचाई तक पहुंचने से पहले तोड़ दिया, मैं तुम्हे कभी माफ नही करूंगी, तुम्हारे उस गुमनाम खत ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी
समाप्त.....