मुझे रास्ता दिखा के . . . Sharovan द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझे रास्ता दिखा के . . .

मुझे रास्ता दिखा के ....
***

जस्सो जब चाय का गर्म प्याला मेज पर रख कर वहीं थम गईं। उसने सिर उठा कर जस्सो की तरफ प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा तो उसने अपनी धीमी आवाज़ में उससे कहा कि,

‘साहब जी ?’

‘हां बोलो?’

‘एक खबर है, जो आपके लिये अच्छी तो नहीं हो सकती है . . .’ कहते-कहते जस्सो सहसा ही रूक गई तो वीनस तुरन्त ही अपनी कुर्सी पर घूम कर उसकी तरफ अपना मुंह करके बैठ गया। फिर उसने एक विस्मय के साथ जस्सो से पूछा कि,

‘कैसी खबर है?’

‘रीनी बीबी जी की कल रात में मृत्यु हो गई है। उनके दिल में बहुत ही बुरी तरह का जानलेवा दर्द उठा था और जब तक उन्हें हस्पताल ले जाया गया, उससे पहले ही वे मार्ग में चल बसी थीं। कल आप बड़ी देर के पश्चात आये थे इसलिये मैंने बताना अच्छा नहीं समझा था।’

‘?’

जस्सो के द्वारा मिली इस खबर को सुन कर वीनस अपनी कुर्सी पर जहां का तहां ही धंस गया। रीनी उसकी भूतपूर्व पत्नी थी, जिससे उसके सम्बध्ंा विच्छेद हो चुके थे। वे दोनों कानूनी तौर पर पति-पत्नी के रिश्तों से बाकायदा अलग हो चुके थे। हांलाकि सम्बध्ंा तोड़ने का मुख्य फैसला और जि़द रीनी की ही ओर से पहले की गई थी और उससे वीनस का अब किसी भी तरह का कोई रिश्ता रखने का प्रश्न ही नहीं उठता था। लेकिन फिर भी पति-पत्नी के सम्बंाधें की डोर किताबों और कागजों में तो काटी जा सकती है मगर मन की भावनाओं और दिल के पर्दे पर से यूं मिटा डालना आसान काम नहीं था। जीवन के इस तथ्य की वास्तविकता को हर कोई वह जानता होगा कि जिसको इस सच्चाई का तनिक भी अनुभव रहा होगा। फिर यूं भी मृत्यु की सूचना चाहे वह एक प्रकार से किसी भी दुश्मन की ही क्यों न हो, को सुन कर सुनने वाले का मन एक बार खराब तो हो ही जाता है। फिर रीनी . . . ; वह तो वीनस की पत्नी रह चुकी थी। उसके साथ बाकायदा उसने अपनी जि़न्दगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा व्यतीत किया था। उसके बारे में ऐसी खबर का मिलना वीनस के लिये किसी भी प्रकार से अच्छा तो नहीं माना जा सकता था। मानव जि़न्दगी के उतार चढ़ावों में मृत्यु का भी एक दिन एक हिस्सा होता है, विधि की इस वास्तविकता को कोई भी नकार नहीं सकता है।


जस्सो वीनस के लिये सुबह की चाय का प्याला बना कर उसकी मेज पर रख कर चली गई थी। अब वह रसोई में कोई दूसरा काम कर रही थी। बेमन से उसके लिये सुबह का नाश्ता तैयार कर रही थी। उसकी इस बात को जानते हुये कि उसका नाश्ता बनाना बेकार ही रहेगा, क्योंकि वीनस उसे खायेगा तो है नहीं। वह वीनस की बहुत सी आदतों को तब से जानती थी जब से वह उसके यहां पिछले कई वर्षों से खाना बना रही थी। वीनस को आरंभ से ही भारतीय भोजन पसंद था, इसीलिये उसने जस्सो को अपने यहां इस काम के लिये रख लिया था। सो जस्सो उसके यहां सुबह आकर चाय और नाश्ता बना देती थी और साथ ही दोपहर का लंच भी बना देती थी। फिर लंच को साथ वीनस लेकर अपने काम पर चला जाता था। शाम को वीनस के काम से लौटने से पहले ही जस्सो आकर उसके लिये शाम का खाना भी बना देती थी।


वीनस ने यहां विदेश में रहते हुये अपना एक व्यक्तिगत काम कर लिया था। इसमें उसे अच्छी आय हो जाती थी। जस्सो वीनस के घर में खाना बनाती थी, रसोई संभालती थी और साथ ही उसके निजी बिजनैस में भी तीन दिन काम कर लेती थी। वह वीनस के यहां तब से काम करती आ रही थी जब कि उसका विवाह भी नहीं हुआ था। मगर जब वीनस ने अपना विवाह कर लिया और रीनी उसकी पत्नी के रूप में उसके घर में आ गई तो फिर जस्सो ने उसके घर का रसोई का काम छोड़ दिया था। ये बहुत स्वभाविक ही था। घर में पत्नी के रहते हुये मुख्यतय: रसोई के कामों में सहायता तो की जा सकती है, परन्तु पूरी जिम्मेदारी किसी अन्य को दे देना समझदारी नहीं हो सकती है। इस बीच जस्सो केवल वीनस के बिजनैस में ही काम करती रही थी। मगर जब रीनी से वीनस के सम्बंध विच्छेद हो गये थे तो अभी लगभग पिछले चार माह से वह पुन: उसके रसोई का काम फिर से संभालने लगी थी।


चाय का प्याला ठंडा पड़ कर जैसे शान्त पड़ चुका था। इसके साथ ही वीनस जैसे अपने अतीत के जिये हुये दिनों की जगह-जगह बिखरी हुई खुरचनों को फिर से जमा कर लेना चाहता था। वीनस की आंंखों के सामने उसके अतीत का हरेक चित्र किसी चल चित्र के समान फिर से आने लगा . . . ’


बात उन दिनों से आरभं होती है जब कि अब से आठ साल पहले वह भारत में ही रहा करता था। उन दिनों वह स्नातक कक्षा का छात्र था और कालेज में पढ़ा करता था। रीनी भी तब उसके साथ ही उसी की कक्षा की छात्रा थी। दोनों ही एक ही कालेज में एक ही कक्षा में साथ-साथ थे। इसके साथ जो और भी विशेष बात थी, वह ये कि दोनों ही एक ही कस्बे और एक ही मुहल्ले में रहा भी करते थे। ईसापुर नाम की उस मसीही बस्ती में एक प्रकार से वीनस बचपन से ही रीनी को जानता था। दोनों ही के परिवारों में मित्रता और आना-जाना सदा से बना रहा था। इसका कारण भी ये ही था कि रीनी और वीनस के माता-पिता के आपसी सम्बन्ध भी बहुत गहरे थे। दोनों ही के पिता एक साथ, एक ही जगह और एक जैसा कार्य किया करते थे। मिशन में रह कर रीनी और वीनस के माता-पिता मिशन हस्पताल और मिशन स्कूल में कार्यरत् थे।


सो इस प्रकार जब रीनी और वीनस बड़े हुये और कालेज में जा पहुंचे तो रीनी का सामीप्य वीनस के दिल को समय- असमय कुरेदने लगा। शायद ऐसा होना बहुत स्वभाविक भी था। बचपन से साथ-साथ हंसते, खाते, खेलते और पढ़ते हुये वीनस ने रीनी को हर दृष्टिकोण से देखा और परखा था। ये सच था कि रीनी वीनस को पसंद थी और वह उसे अच्छी भी लगती थी और रीनी भी वीनस से सदैव ही मित्र भाव से बोलती और अपनत्व रखा करती थी। मगर भविष्य के लिये वह उसके साथ सदा के लिये जीवन संगिनी भी बन जाये; इस बारे में वीनस अपने बारे में तो कह सकता था, परन्तु रीनी के बारे में कहना उसके लिये संदिग्ध ही था। इसका कारण भी था कि वीनस के लिये कितने ही अवसर ऐसे आये थे कि जिनमें उसे रीनी का सामीप्य भी मिला था। वह उसके साथ सदा ही अपनत्व के साथ पेश भी आई थी, परन्तु फिर भी उसने अपनी ओर से ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया था कि जिससे ये कहा जा सके कि रीनी के दिल में भी वीनस का कोई विशेष स्थान है? वीनस रीनी के मन की इस भावना को सदा ही समझता और महसूस करता रहा था। एक बार को मित्रता की भावना तो प्रेम की अनुभूति में बदल सकती है, परन्तु प्रेम की भावनायें सदैव ही अपने स्थान पर स्थिर रहा करती हैं। सो वीनस रीनी का हाव-भाव अपने प्रति देख कर ये तो समझ गया था कि उसके मन में मित्रता का लगाव तो है, मगर क्या ये मित्रभाव कभी भी उसके प्रति प्रेम की अनुभूति में बदलेगा भी? इस बात के लिये वीनस बहुत चाह कर भी तब नहीं जान सका था।


सो ऐसी परिस्थिति में भी तब वीनस ने न जाने कितनी ही बार ये सोचा था कि वह अपने दिल की बात रीनी से कहे, लेकिन शायद रीनी उसके मन को अच्छी तरह से पहले ही पढ़ चुकी थी, तभी वीनस को उसने अपनी ओर से कोई भी अवसर नहीं दिया था। वीनस रीनी की इस समझदारी और चतुराई को भी समझने लगा था। उसने ये भी महसूस किया था कि भले ही रीनी उसको पसंद करती होगी, वह उससे घुल-मिल कर समय-असमय रहती ही है और जैसा वह उससे कहता है, वह उसे मानती भी आई है, मगर इन सारी बातों के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता है कि वह भी बिल्कुल वैसा ही उसके भी बारे में सोचती है जैसा कि वह सोचता रहा है। क्या पता उसकी पसंद में कोई अन्य ही हो? वह उसको जिन प्यारभरी निगाहों से देखता है क्या मालुम कि, वह भी उसको देखती भी है कि नहीं? अब तक उसने तो ऐसा कुछ भी नहीं दर्शाया है कि जिसके आधार पर ये कहा जा सके कि रीनी उसके लिये अपने जीवन साथी के रूप में विचार करती है भी कि नहीं? मनुष्य के प्रतिदिन के अपनत्व भरे संबन्धों को उसके प्यार की पसंदों जैसे महत्वपूर्ण फैसलों से नहीं जोड़ा जा सकता है।


सो रीनी के इसी प्रकार के व्यवहार को देखते हुये तब वीनस ने अपनी ओर से बहुत चाहते हुये भी उससे अपने मन की बात को नहीं कहा था। ये सच था कि वह रीनी को पसंद करने लगा था। उसको अपने जीवन साथी के चुनाव के लिये अपने मन में तब वह भविष्य के सपने देखने लगा था। मगर रीनी की ओर से कोई भी रास्ता साफ और स्पष्ट न दिखने तथा कोई भी संकेत न मिल सकने के कारण उसने अपने मन की बात को अपने मन में ही छिपा लेना उचित समझा था। उसने तब सोच लिया था कि यदि रीनी की ओर से ऐसा कोई भी संकेत उसे यदि मिला तो वह अपने मन की बात को उससे कहने के लिये चूक नहीं करेगा।


इस प्रकार वीनस अपने मन के किसी कोने के छिपे हुये स्थान में रीनी की तस्वीर को संभाले अवसर की ताक में ही था कि तभी एक दिन अचानक से उसने रीनी को एक ऐसे युवक के साथ देख लिया था कि जिसके आधार पर एक बार को ये नहीं कहा जा सकता था कि रीनी उस लड़के को अपने दिल में कोई विशेष स्थान दिये हुये है मगर; उसके व्यवहार आदि को देख कर ये बात तो स्पष्ट थी कि रीनी वीनस के बारे में उस तरह से नहीं सोचती है, जैसा कि वह सोचता है। जिस लड़के के साथ रीनी को वीनस ने देखा था वह उसके शहर में तो नहीं रहता था मगर प्राय: ही वह रीनी के घर पर समय-असमय आता-जाता रहता था। उसके परिवार वालों से भी रीनी के परिवार के बिल्कुल वैसे ही संबन्ध थे जैसे कि वीनस के परिवार से थे। ऐसे सम्बन्धों को मित्रता, मसीहियत और इंसानियत चाहे किसी भी नाम से सम्बोधित किया जा सकता है। इस प्रकार से वीनस के दिन इसी प्रकार की सोचों-विचारों और भविष्य के बनते-बिगड़ते सपनों की उन आस्थाओं पर कट रहे थे कि जिनका आधार केवल एक आशा की नींव ही थी। अभी किसी भी ठोस धरातल और मजबूत होती हुई श्रृंखला के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता था।


इसी तरह से दिन गुजरते चले गये। समय का लम्बा और एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा जैसे पलक झपकते ही व्यतीत हो गया। रीनी के साथ-साथ वीनस ने भी अपने कालेज की शिक्षा समाप्त कर ली। रीनी ने तो तब अपनी आगे की शिक्षा जारी रखी थी और उसने बिजनिस मैनेजमेंट में प्रवेश ले लिया था, मगर वीनस को विदेश आने का अवसर मिला था तो उसने इसे टालना उचित नहीं समझा था और वह बगैर कोई भी आना-कीनी किये हुये अमरीका आ गया था। विदेशी भूमि पर कदम रखते ही वह यहां की अतिव्यस्त जि़न्दगी की भूमिका में व्यस्त हो गया तो रीनी के साथ जिये हुये दिन, उसके साथ के गुजारे हुये दिनों की यादें तथा उसके लिये मन में बसाये हुये सपने और उसी के आधार पर बनाये हुये सपनों के महल देखते ही देखते न जाने कहां चले गये कि उसे कुछ पता ही नहीं चल सका। विदेश के रहन-सहन और यहां के व्यस्त जीवन के कारण उसके मानसपटल से अतीत के संभाले हुये दिन इस प्रकार से भाग गये कि जैसे वे कभी वहां थे ही नहीं।


विदेश में रहते हुये इस तरह से वीनस को पूरे सात वर्ष हो गये थे। इन सात वर्षों में शायद एक बार भी उसने रीनी को याद नहीं किया होगा। फिर याद भी वह कैसे करता? एक तो रीनी की ओर से ऐसा कोई भी आधार बाकी नहीं बचा था। वीनस के भारत छोड़ते ही और हवाई जहाज में उड़ते ही रीनी की भी समस्त स्मृतियां आसमान में उड़ कर वायुु में विलीन हो गईं थीं। दूसरा विदेश का व्यस्त वातावरण? यहां पर तो यूं भी इंसान को जैसे सांस लेने की भी फुरसत नहीं थी। किस आधार पर वह रीनी को अपने से जोड़े फिरता? लेकिन उन दिनों वीनस के लिये तब एक ऐसा धमाका सा हुआ था कि जिसे सुन कर उसे विश्वास करना तो कठिन लगा ही था, परन्तु साथ ही उसका सारा शरीर भी जैसे उसके भविष्य में आने वाली खुशियों के कारण पुलकित हो गया था। बात थी उसके विवाह के लिये। उसके माता-पिता ने भारत में रहते हुये ही उसके विवाह की खबर उसको भेजी थी। उनके अनुसार वे उसका विवाह रीनी ही से सम्पन्न करवाना चाहते थे और सबसे आश्चर्य की जो बात थी वह यही थी कि उसके इस विवाह के लिये स्वंय रीनी ने ही उसके लिये मांग की थी। दोनों ओर के माता-पिता और रीनी तो इस विवाह के लिये तैयार ही थे। बात रह गई थी केवल उसकी ही ओर से हां भर कहने की। उसके मां-बाप ने साथ में यह भी लिखा था यदि वह राज़ी है तो शीघ्र ही वह अपने आने का कार्यक्रम बनाये और उन्हें अपने बारे में आने के लिये फोन भी करे। साथ में उन्होंने रीनी की एक फोटो भेजी थी और उसका कुरूक्षेत्र का वह फोन नम्बर भी भेजा था जहां पर कि वह इस समय एक कम्पनी के बिक्री विभाग में सेल्स मैनेजर के पद पर काम कर रही थी। वीनस को अब और क्या चाहये था। जिन बातों के लिये और जिनकी इच्छा के लिये वह भारत में रहते हुये एक लम्बे समय तक प्रतीक्षा ही करता रहा था और जिनके कभी न पूरा होने के लिये उसने एक प्रकार से आशा ही छोड़ दी थी, वही जब खुद व खुद उसकी खाली झोली में गिरने के लिये आकुल हों तो फिर इससे बढ़ कर और कौन सी प्रसन्नता की बात उसके लिये हो सकती थी?


इन्हीं वापस आईं खुशियों की तरंग में तब उसने एक दिन रीनी को विदेश से फोन किया और उससे बात की। तब आरंभ में पहले दोनों की औपचारिक बात हुई, फिर उसकी समाप्ति के पश्चात रीनी ने उसको बताया था कि वह तो तब से ही उसके मुंह से ये सब सुनने के लिये न जाने कब से जैसे राह देख रही थी। मगर जब वह खुद ये काम नहीं कर सका था तो अब समय आने पर उसने खुद ही किया है। रीनी ने ही तब उससे कहा था कि,

‘जो बात तुम कभी भी चाहते हुये मुझसे नहीं कह सके थे, वह मैंने कह दी है।’

तब इस तरह से वीनस की रीनी के साथ प्राय ही बातें होती रहीं और उसका भारत जाने का कार्यक्रम भी बनता रहा था। भारत जाने और रीनी के साथ अपने विवाह के सपनों को देखते हुये तब वह प्राय ही सोचा करता था कि मानव का जीवन ही एक ऐसी पहेली है कि जिसे आज तक शायद कोई भी बूझ नहीं सका है। ये ठीक है कि मनुष्य अपने सुख के लिये अपने सपने और इरादों के बल पर प्रयास तो करता है, मगर सफलता मिलना सचमुच ही किसी दूसरे के हाथ में होती है। मनुष्य के सपनों के महल कभी बनते हैं, कभी साकार होते हैं, कभी बन कर अचानक ही टूटते हैं और कभी उसको साकार होने के पश्चात मिल भी जाते हैं, मगर वह उनका उपयोग नहीं कर पाता है। खुद अपने बारे में जिस मंजिल को पाने के लिये जो सपना उसने देखा था, उसकी भूमिका उसने बनाई थी, मगर उसका रास्ता तो एक प्रकार से रीनी ने ही उसे दिखाया है। अब इस राह पर वे दोनों अपने प्यार के फूल खिलाते हुये अपने साथ साथ हर किसी पथिक को भी मिलन और अपनेपन की खुशबुओं से महकाते जायेंगे। रीनी उसके बचपन की पसंद थी। वह उसे जीवन के एक बहुत बड़े समय से जानता आया है। अपनी इसी पसंद को अपने जीवन साथी के रूप में स्थान देकर वह अपनी जि़न्दगी के कारवां को लाकर उन राहों पर सदा आगे बढ़ता रहेगा, जिन पर रीनी के प्यार और अपनत्व की रोशनी सदा सदा तक पड़ती रहेगी।

फिर इसके पश्चात वीनस एक दिन भारत गया और वहां पर उसने रीनी से बाकायदा अपना विवाह किया। अपने इस विवाह में उसने अपने उन सब ही मित्रों और परिचितों को भी आंमत्रित किया था, जिनसे उसकी विदेश जाने के बाद बात ही नहीं हो सकी थी। उसके इस विवाह में उसके माता-पिता के साथ-साथ रीनी के भी मां-बाप अत्यन्त प्रसन्न दिखाई देते थे। और फिर उनके लिये एक प्रकार से ठीक भी था। बेटी का बोझ जब मां-बाप के सिर पर से उतर जाता है तो सचमुच वे अपने लिये एक हल्कापन महसूस करते हैं।


विवाह के समय पर अच्छी और खराब खबरें या फिर बातें होना एक आम बात थी। वीनस को भी तब कुछेक उड़ती हुई बातें और खबरें रीनी के बारें में सुनने को तो अवश्य ही मिलीं थीं, मगर वह दूसरे खुले विचारोंवाला मनुष्य था और बगैर अपनी आंख से देखे हुये तथा स्पष्ट सबूत के ऐसी बातों पर विश्वास नहीं कर सकता था। सो उसने तत्काल इस प्रकार की बातों को अपने मस्तिष्क से निकाल भी दिया था। किसी भी प्रकार से इन्हें अन्यथा नहीं लिया था। इसके पश्चात वह अपना विवाह करके वापस विदेश आ गया था। बाद में उसने रीनी को भी लगभग छ: माह के बाद अपने पास बुला लिया था।


विवाह के पश्चात रीनी बाकायदा उसकी पत्नी के रूप में उसके साथ रहने लगी थी। आय और जीविका के नाम पर वीनस चाहता था कि रीनी उसके साथ ही उसके बिजनैस में काम करे और उसका हाथ बंटाये मगर रीनी की इच्छा थी कि वह कहीं अनयत्र काम करे और अपनी उस शिक्षा का लाभ प्राप्त करे जो कि उसने भारत में रहते हुये पूरी की थी। सो रीनी की इसी इच्छा को सामने रखते हुये वीनस ने उसकी मर्जी पूरी की थी। इसी कारण रीनी वीनस का अपना निजी व्यापार होते हुये भी स्थानीय फोन कम्पनी में सेल्स प्रतिनिधि का काम करने लगी थी। बाद में उसके काम और अनुभव के आधार पर उसको पदोन्नत्ति का लाभ मिला था और वह सेल्स मैनेजर बन गई थी।


वीनस के विवाह के आरंभ के दिन रीनी के साथ बहुत ही मधुर और प्रिय व्यतीत हुये थे। मगर बाद में स्वात: ही उन दोनों के मध्य एक अलगाव की रेखा खिंचने लगी थी। रीनी के स्वभाव में एक तनाव और मानसिक खिंचाव के भाव उजागर होने लगे तो वीनस का माथा तो ठनका था, मगर फिर भी उसने रीनी से अब तक कुछ भी नहीं कहा था। वह सब कुछ अपनी आंखों से देखते और समझते हुये भी चुपचाप सहन करता रहा। सहन करता रहा और वीनस की शायद यही वह कमजोरी रही कि जिसका लाभ पूरी तरह से रीनी ने उठाया भी। फिर ऐसा चलते-चलते एक दिन ऐसा आया कि रीनी जो अब तक केवल अपने हावभाव और आचार-व्यवहार से ही वीनस के प्रति अलगाव की भावना को दर्शाया करती थी, वही अब मुख से भी करने लगी। पहले उसने वीनस में ख़ामियां और कमजोरियां तथा उसकी हीनभावनायें बतानी आरंभ कीं, तत्पश्चात वह उसके चरित्र पर भी लांछन लगाने लगी थी। चरित्र के नाम पर उसने उसके घर में विवाह से पहले उसके यहां खाना बनाने को आने वाली जस्सो को लेकर सन्देह किया और आरोप लगाया और बाद में अन्य दूसरियों को लेकर उसके ऊपर अपने रूष्ट व्यवहार की सारी कीचड़ ही थोप दी। सो रीनी के इस प्रकार के व्यवहार का परिणाम ये हुआ कि वीनस के घर में से शान्ति और चैन समाप्त होते फिर देर भी नहीं लगी। दोनों पति-पत्नी एक ही घर की एक ही छत के नीचे रहते हुये भी बेगाने थे। आपस के मध्य आपसी प्रेम, अपनत्व और लगाव वाली जैसी कोई बात ही नहीं रही थी। दोनों ही कम बात करते। चुपचाप अपने काम पर जाते। कभी ख्याल आया तो एक साथ एक ही मेज पर बैठ जाते। चुपचाप खाना खाते और फिर बगैर किसी से कुछ भी कहे हुये उठ जाते थे।

तब एक दिन जब इसी तरह के घर के माहौल और तनाव में रहते हुये वीनस तंग आने लगा तो उसने एक दिन रीनी से पूछ लिया। वह बोला कि,

‘रीनी।’

‘?’

बाहर निकलते-निकलते रीनी के पैर अचानक ही ठिठके तो वह आश्चर्य से उसकी ओर निहारने लगी। तो उसे देखते हुये वीनस ने कहा कि,

‘मैं पिछले न जाने कितने दिनों से देख रहा हूं कि . . .’

‘मैं अचानक ही बदल गई हूं न।’

वीनस अपनी बात पूरी कर भी नहीं सका था कि रीनी ने जैसे उसके मन की बात पहले ही से दोहरा दी।

‘हां। तुम बदल गई हो या फिर जानबूझ कर ऐसा कर रही हो। मैं नहीं जानता। मगर ऐसा कब तक चलेगा और इस समस्या का कोई हल भी है कि नहीं?’ वीनस ने अपनी परेशानी बताई तो रीनी तपाक से निसंकोच बोली,

‘पश्चिमी देशों का एक चलन है कि, जब दो जनों का साथ रहना दुश्वार हो जाता है तो फिर लोग अपने बसेरे और साथी को बदलने में देर नहीं किया करते हैं।’

‘?’

वीनस सुन कर ही दंग रह गया। जिस बात का उसे डर था, वही बात रीनी कितनी आसानी से कह भी सकती है? इसका उसे अनुमान भी नहीं था। बगैर कोई भी उत्तर दिये हुये वह इस बात के लिये सोचने लगा कि कितने आश्चर्य की बात थी कि, बचपन से भारत में रहने वाली में भारतीय संस्कृति के ज़रा भी चिन्ह नहीं थे और वह पिछले लगभग बारह वर्षों से विदेश में रह कर भी कभी विदेशी रहन-सहन और रवैयों का आदी नहीं हो सका था। रीनी को जो भविष्य में जो करना है, उसे वह एक दिन कर के ही रहेगी। इस बात का उसे अब पूरा पूरा यकीन हो चुका था। इसके साथ ही उसे ये भी आभास होने लगा था कि रीनी ने ना तो उससे पहले ही कभी प्यार किया था और ना ही वह अब करती है। वह तो जिसे पहले चाहती थी, उसी को आज भी दूसरे की पत्नी बनने के पश्चात भी नहीं भूल सकी है। उससे विवाह का ढोंग रचाना तो महज विदेश आने के लिये अपने लिये एक माध्यम और अपने कागजातों की पूत्‍​र्ति ही करना भर था। क्योंकि शादी के पश्चात भी अपने प्रेमी को ई-मेल भेजना और उससे अपने पति की अनुपस्थिति में फोन पर बातें करना, न केवल अपने पतिधर्म के प्रति बेइमान बनना था, बल्कि धार्मिक मान्यताओं में भी एक ईसाई युवती होकर परमेश्वर की दृष्टि में पाप करना था। ऐसे तनाव पूर्ण वातावरण में रहने से तो अच्छा है कि वह जो चाहती है उसे वही करने को उसे स्वतन्त्र कर दिया जाये। झूठे आदर्शों के बनावटी ईमानों की नींव पर वह कितने दिनों तक अपने जमीर को खड़ा किये रख सकता है? कब तक वह दुनियां की नज़रों में एक झूठा पति बन कर अपने आपको धोखा देता रहेगा? जि़न्दगी के आयाम यदि बदल जायें तो उनको फिर से संवारा जा सकता है, लेकिन यदि जिन आयामों की नींव पर जीवन खड़ा रहता है, यदि वही हिलने लगे तो इससे तो बेहतर है कि वह जगह ही बदल दी जाये कि जहां पर मानव का बसेरा हुआ करता है। ऐसा ही कुछ सोचने-विचारने के पश्चात बड़ी देर की ख़ामोशी के़ बाद वीनस ने जैसे अपने भरे हुये गले से रीनी से कहा कि,

‘रीनी। अपनी जि़न्दगी के बचपन से ही मैंने तुमको चाहा, अपने दिल में जगह दी, पसंद किया और तुमसे शादी भी की। पता नहीं वह मेरी भूल थी या फिर कोई ना समझी? मैं तो जिस तरफ भी तुम्हारे प्यार की खुशबू के आगोश में जा रहा था, वहां से तुम्हारी तरफ से जब कोई भी इशारा नहीं मिला था तो चुपचाप वापस भी आ गया था। तुम्हारी चाहत और पसंद को दूसरे की तरफ बढ़ता देख मैंने किसी तरह से अपने आपको समझा भी लिया था। जीने लगा था कैसे भी। मगर तुम्हीं ने मुझको आवाज़ दी। रोशनी दिखाई मेरे मार्ग पर। मैंने सुना और सोचा कुछ भी नहीं। वापस आ भी गया तुम्हारे पास। दिल में तो तुम पहले ही से थीं, फिर अपने घर की मालकिन भी बनाया, मगर अब, तुम्हारा जो भी फैसला है, उसमें मैं कोई भी हस्तक्षेप नहीं करूंगा। शादी का आंमत्रण तुम्हारा था। मेरे घर में आने का इरादा भी तुम्हारा ही बना था और अब इस घर से निकलने का निर्णय भी केवल तुम्हारा ही है। मेरी ओर से तुम बिल्कुल ही स्वतन्त्र हो। जब तुम्हारे जी में आये चली जाना। तलाक की याचिका भी तुम जब चाहो, कोर्ट में दाखिल कर देना। जो तुम्हारी मर्जी में आये इस घर और घर के बाहर बैंक से भी ले जाना, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि यहां से जाने के लिये कोई भी तमाशा आदि मत करना, नहीं तो . . . ’

वीनस कहते कहते अचानक ही थमा तो रीनी ने उसे प्रश्नसूचक नज़र से निहारा। तब वीनस ने अपनी बात पूरी की। वह बोला कि,

‘नहीं तो लोग तुम पर नहीं, मेरी चाहत पर शक करने लगेंगे।’

इतना कहने के पश्चात दोनों के मघ्य की बात समाप्त हो गई थी। बाद में फिर दोनों में कोई भी विवाद या समझौते वाली बात भी नहीं रही थी। सब कुछ जैसा जहां से समाप्त हुआ था, वैसा ही चलता रहा था। किसी भी प्रकार की तब्दीली या परिवर्तन के चिन्ह भी नहीं दिखाई दिये थे। यदि घर में कोई वस्तु बाकी रह गई थी तो वह थी घर की दीवारों और हरेक स्थान पर जी भर के बसी हुई वह मनहूस ख़ामोशी और चुप्पी कि जिसके कारण वीनस का सुख और चैन पूरी तरह से छिन चुका था।


फिर कुछ समय के पश्चात वीनस को रीनी के वकील की ओर से उसके तलाक का पहला नोटिस मिला तो वीनस ने उसमें कोई भी आपत्ति उठाये बगैर अपनी सहमति दे दी थी। अपनी सहमति के बाद एक दिन दोनों का कानूनी तौर पर तलाक हो गया। तलाक के पश्चात रीनी वीनस को छोड़ कर अपने द्वारा खुद पहले ही से खरीदे गये मकान में जाकर अकेली रहने लगी थी। बाद में कुछ समय के लिये वह भारत गई और वीनस को ज्ञात हुआ था कि वहां जाकर उसने फिर से अपना दूसरा विवाह भी उसी युवक से किया था जिसके बारे में विवाह के समय पर उससे कुछ लोगों ने दबी-दबी आवाज में कह कर उसे आगाह भी किया था तथा जिससे रीनी का सम्बध्ंा उससे विवाह करने के पश्चात भी बना ही रहा था। अपना विवाह करने के पश्चात रीनी पुन: अमरीका लौट आई थी। अपने वापस अमरीका आने के बाद उसने एक दिन अपने नये तथा दूसरे पति को भी अपने पास ही बुला लिया था।

अपने दूसरे विवाह और दूसरे पति के आगमन पर एक दिन रीनी ने बाकायदा एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया था और निमंत्रण के तौर पर उसने वीनस को भी एक कार्ड भेजा था। हांलाकि रीनी के निमंत्रण का कार्ड पाकर वीनस को कोई खुशी होती, इसका तो प्रश्न ही नहीं उठता था। मगर उसे जाना चाहिये और अपनी तलाकशुदा पत्नी को उसके दूसरे विवाह के लिये बधाई देना. . . ; इसमें अवश्य ही एक प्रश्न और सन्देह के चिन्ह थे।

तब बाद में, बहुत कुछ सोचने और विचारने के पश्चात वह रीनी की विवाह पार्टी में जाने लगा था तो चेतावनी के तौर पर उसको जस्सो ने मना भी किया था। मना करने के लिये जस्सो ने केवल इतना ही कहा था कि,

‘जब आपका सम्बध्ं ही टूट गया है तो फिर किस रिश्ते से वहां जा रहे हैं?’

मगर जस्सो की बात को गंभीरता से सुनने के बाद भी वीनस वहां चला गया था। शायद उसका वहां जाने का मकसद ही कुछ और था? तब वहां जाकर उसने बाकायदा उसकी पार्टी में हिस्सा लिया था। पार्टी में बढि़या और महंगे भोजन से लेकर हर तरह की शराब का भी प्रबन्ध किया गया था। आने वाले मेहमान जी भर के अंधाधुंध

पी-पीकर जैसे नीचे लेमीनेट के फिसलते हुये फर्श पर लोटने लगे थे। खुद रीनी अपने नये पति के साथ नाच रही थी।


फिर जब सब कुछ सामान्य हो गया तथा पार्टी का नशा हल्का होने लगा था तो लोग जाने लगे थे। जाते समय सब ही रीनी और उसके नये पति को बधाईयां देते जा रहे थे तथा हाथ भी मिला रहे थे। शादी के उपहार तो सबने पहले ही से लाकर दे दिये थे। वापस जाते समय जब वीनस का अवसर आया तो वह अपने आप पर फिर संयम नहीं रख सका था। जाने से पहले वह रीनी से बोला था कि,

‘तुम्हें बधाई हो इस बात की कि तुमने कितना अच्छा खेल खेला है। बधाई हो इसलिये कि तुमने कितनी खुबसूरती से मुझे बेबकूफ बनाया और अपना मतलब पूरा कर लिया। मुझे रास्ता दिखा कर, मेरे ही कारवां को लूटने और अमरीका आने तथा यहां का ग्रीन कार्ड लेने का तुम्हारा इससे अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था? जब तुम अपने नये पति की बाहों में जाओ तो उससे यह कहना किश् हमारे इसी आज के लिये किसी ने अपना कल लुटा दिया है। शब्दों के रूप में मेरी यही बधाई है, तथा देने के लिये जो मैं तुम्हें अपने साथ लाया हूं, वह यह है कि,

‘तड़ाक . . .। ’

वीनस ने आवेश में इतने ज़ोर का थप्पड़ रीनी के गाल पर मारा कि, वह लहरा कर एक ओर गिर पड़ी थी। वीनस की इस हरकत और बदले-बिगड़े मिजाज़ को देख कर वहां आये हुये समस्त लोगों में हलचल मच गई। सब ही अचंभे से वीनस को घूरने लगे थे। रीनी के नये पति ने जब ये सब देखा तो वह भी गुस्से में उतावला होकर वीनस पर झपटने को हुआ, मगर तब ही कुछेक लोगों ने उसे पकड़ लिया। इसी बीच किसी ने चुपचाप पुलिस को फोन कर दिया था। पलक झपकते ही वहां पुलिस आ गई और सारी बात को सुनने के उपरान्त वह वीनस को हथकड़ी लगा कर अपने साथ ले गई थी। विदेश में किसी पर भी हाथ उठाना अपराध माना जाता हैए बगैर इस बात के कि पिटनेवाले का भले ही दोष क्यों न हो।


उसके बाद, पुलिस ने पूरा मुआयना किया। वीनस की सारी बात सुनी तब उसको कहीं भी अपने वकील या फिर किसी भी जमानती को फोन करने के लिये इजाजत दी। वीनस के फोन पर जस्सो पुलिस के कार्यालय में पहुंची और अपनी जमानत पर उसको छुड़ा कर लाई थी। घर पर आने के पश्चात जस्सो ने दो-एक बातें वीनस को इंसानियत के नाते समझाने के उद्देश्य से अवश्य ही कहीं थीं। हांलाकि वह उसका एक प्रकार से अधिकारी था। उसके ही बिजनैस में वह एक कर्मचारी के रूप में काम करती थी, मगर फिर भी एक ही देश भारतवर्ष के निवासी होने तथा भारतीय होने के नाते जस्सो केवल उसे समझा ही तो सकती थी। इसी एक इंसानियत के नाते उसने वीनस को केवल समझाया ही भर था।


बाद में वीनस पर मुकदमा चला और अपनी भूतपूर्व पत्नी पर हाथ छोड़ने तथा भरी पार्टी में उसका अपमान करने के अपराध में उस पर 5000 डॉलर का अर्थदंड हुआ, जिसे तुरन्त भर कर वह उस जाल से मुक्त हो सका था, जिसको एक प्रकार से खुद उसने ही भावावेश में फंसने के लिये बगैर कुछ भी सोचे समझे बुन लिया था।

इतना सब कुछ होने के बाद मौसम बदला, दिन बदले और तीरीखें आगे बढ़ी तो सब कुछ जैसे फिर से सामान्य भी हो गया। वीनस ने मौजूदा परिस्थिति को देखते हुये अपने काम में ध्यान लगाया। वह व्यस्त हो गया तो रीनी की ओर से उसके प्यार की खिदमत में दिये गये ज़हर के इंजेक्शन का विष भी धीरे-धीरे बेअसर हो गया। रीनी की बात को उसने अपने जीवन की एक कड़वी भूल समझ कर अतीत के कब्रिस्थान में सदा के लिये दफन कर दिया था। भूल गया था कि कभी उसने एक स्त्री को नारी के स्थान पर मानवी समझ कर प्यार की हसरतों से उसकी उपासना भी की थी . . . ’


सोचते-सोचते अचानक ही वीनस को ख्याल आया कि कोई उसके पीछे खड़ा हुआ जैसे उसकी सारी हरकतों को निहार रहा है। ये सोचते ही उसने पीछे अपनी गर्दन घुमा कर देखा तो जस्सो चाय का भाप उड़ाता हुआ प्याला लिये हुये खड़ी थी। उसे देख कर वह कुछ कहता उससे पहले ही जस्सो ने उससे कहा कि,

‘दो बार ठंडी चाय उठाकर ले जा चुकी हूं मैं। अब ये नई बना कर लाई हूं।’

ये कहते हुये उसने चाय का प्याला मेज पर रख दिया। रख दिया तो वीनस ने तुरन्त ही प्याला उठा लिया। जाहिर था कि वह इस बार जरूर ही चाय पी लेगा। फिर जैसे ही उसने चाय का प्याला अपने होठों से लगाना चाहा तो जस्सो ने उससे कहा कि,

‘साहब जी।’

‘?’

वीनस का प्याला होठों तक जाते-जाते अचानक ही रूक गया। उसने आश्चर्य से जस्सो को देखा तो उसने उससे कहा कि,

‘मैंने आपको पहले कभी बीबी जी की दूसरी शादी की पार्टी में जाने से मना किया था, मगर आज कहती हूं कि उनके अंतिम संस्कार में आप अवश्य ही हो आइये। मरने वाले के साथ केवल एक ही रिश्ता रह जाता है और वह है कि एक दिन हमको भी मरना है।’

जस्सो यह कह कर चली गई तो उसने चाय का प्याला फिर से मेज पर रख दिया और सोचने लगा कि, रीनी के साथ तो उसका पत्नी का सम्बन्ध था, मगर जस्सो के साथ उसका कौन सा रिश्ता है? इंसानियत का? मित्रता का? या फिर दिल के किसी छुपे हुये स्थान में उन प्यारी-प्यारी आरजुओं और हसरतों का कि, जिनको इंसान कभी-कभी बहुत चाहते हुये भी कोई नाम नहीं दे पाता है।

समाप्त।