मिशन मंगल Neelam Kulshreshtha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मिशन मंगल

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

[मेरी उन्नीस वर्ष की आयु में लिखी प्रथम लघुकथा 'रोटी'में उस रोटी की चिंता थी जो गरीबों से छीन ली जाती है।'इस लघुकथा 'मिशन मंगल में भी प्रथम लघुकथा के लिखे जाने के सैंतालीस साल के अंतराल के बाद भी 'रोटी 'के लिए वही चिंता जीवित है आठ वर्ष तक मेरी लघुकथा संग्रह 'रोटी 'की पांडुलिपी अपने प्रकाशन इंतज़ार करती रही। डॉ. नीरज शर्मा ने अपने वनिका प्रकाशन से इसे प्रकाशित किया है.और देखिये ऊपर वाले का कमाल मैंने अप्रैल २०२० में इस संग्रह की अपनी भूमिका में ये जोड़ा था --- 'अंतरिक्ष को नापने वाला विश्व अंतरिक्ष की तरफ़ से मुंह मोड़ कोरोना के भय से अपने ही अस्तित्व से जूझ रहा है। वक्त के इस भौंचक करने वाले तमाचे से, अपने अस्तित्व के मिट जाने के भय से अपनी रोटी निचले तबके को साझा करने के लिये मजबूर हो रहा है।']

''अम्मा !---अम्मा !---.''बड़कू ने झोंपड़ी में घुसते हुये बूटपॉलिश के सामान का थैला कंधे से उतारा।

''काहे को चीख रहा है ? क्या हो गया ? क्या सहर में आग लग गई ?''

''मैं पान के गल्ले के बाजू में जूते पालिस कर रहा था तो मैंने टीवी पर देखा एक पटाखे जैसा लम्बा रॉकेट दूसरे चाँद पर पहुँच गया है। सब कै रहे थे कि इस दूसरे चाँद का नाम मंगल है। ''

अम्मा चीखी, ''तो ?---तो? मैं क्या करुं ?''

बड़कू ने बुरा नहीं माना। वो जानता है जबसे अपना सहर स्मारट बना है, सड़क के चौराहे पर जो लंबा पुल बना है तो सहर को सुंदर बनाने के लिए सड़क के किनारे चाय, सब्ज़ी, कपड़ों का ठेला लगाने वालों या अम्मा की तरह नीचे कपड़ा बिछाकर टोकरी में गजरे, भाजी, चूड़ी, नकली गहने बेचने वालों को भगा दिया गया है। जाने क्यों पड़ौसिन संतो मौसी की बिटिया रात होते ही हीरोइन की तरह सज कर, गहरी लाल लिपस्टिक लगाकर पुल के नीचे खड़ी हो जाती है, किसी को उँगली से इशारे करती रहती है.चौराहे की सड़क पर ज़मीन पर टोकरी में रक्खी अम्मा की भाजी की दूकान बंद हो गई है. अम्मा का उसे पढ़ाने का सपना धरा का धरा रह गया है।

उसे भी अम्मा के साथ बोरा उठाकर कचरा बीनने जाना पड़ता है। उसे बेचकर जो मिल जाए उससे अधपेट सोना पड़ता है। जबसे वह बीमार पड़ी है तबसे उसे अकेले कचरा बीनने भी नहीं जाने देती। वह ज़िद करता है तो एक धौल उसकी पीठ पर जमा देती है, ''साले ! समझता नहीं है सब जगह गुंडा मवाली फैला हुआ है। ''

''तो मैं कौन पैसे वाला हूँ, जो मुझे लूट ले जायेगा ?''

''चुप रहा कर, हमेशा बोलता रहवे है। ''

तबसे वह चौराहे पर बूट पॉलिश का डिब्बा लेकर पान के गल्ले के पास बैठ जाता है।

आज वह टीवी पर रॉकेट देखकर बहुत उत्तेजित है, ''तुझे कुछ अचरज नहीं हो रहा ? मीलों दूर से उसका रॉकेट में लगा कैमरा महाँ के फोटू भेजेगा ?''

''तो उन फौटू का मैं अचार डालूँ ? सरकार ने इतना रुपया खरच करके इतना दूर रॉकेट काहे को भेजा है ?''

छुटकू अब तक ज़मीन पर माँ, भाई के कचरे में से बीनकर लाये टूटे खिलौनों से खेल रहा था, सिर उठाकर बोला, ''तू समझे ना है अम्मा । बो रॉकेट मंगल पर रोटी लेने गया होगा जासै हम दो बखत रोटी खा सकें। ''

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail---kneeli@rediffmail.com