दूसरे शहर से अपने घर तक सफर और दिन के मुकाबले आज कुछ ज्यादा ही लम्बा लग रहा था, पर अभिमन्यु इतनी शांति में भी खुश था। उसके पिता दूर उसके माँ और बहन के साथ रह रहे थे और उसके कंधो पर सारी जिम्मेदारियां छोड़ गए थे। यह उसके लिए तब तक एक रिहर्सल की तरह था जब उसके पिता हमेशा हमेशा के लिए अपनी सारी जिम्मेदारियां और उसके कंधो पर डाल देंगे, पर वोह सबसे ज्यादा खुश तब होगा जब उसके पिता आनंद ओबरॉय अपने घर वापिस आ जायेंगे और यह लीगल परेशानियां खतम हो जाएंगी।
वोह जनता था की इसमें विजयराज शेट्टी की ही साजिश है उसके पिता को दूर रखने की और ऑस्ट्रेलिया में ही फसे रहने की, पर जब तक की वोह उस जानकारी को हासिल नहीं कर लेता जो उसे चाहिए था वोह शांत नहीं बैठ सकता था।
असल में अक्षरा और अभिमन्यु के बीच समझौते की शादी से दोनो परिवारों के बीच पुरानी दुश्मनी खतम होने वाली थी, पर उसकी मौत ने सब बदल दिया। उस परिवार से बिना रिश्ता जुड़े एक बार को आनंद ओबेरॉय वापिस तो आ जाता पर विजयराज शेट्टी फिर से ओबेरॉय के ज़मीन में घुसने की कोशिश करता।
विजयराज शेट्टी बहुत ही कामिना इंसान था। वोह अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।
बहुत समय लगा था अभिमन्यु ओबेरॉय को वापिस से अपना बिज़नेस खड़ा करने में और विजयराज शेट्टी की वजह से हुए नुकसान की भरपाई करने में। सालों से अभिमन्यु बस काम ही काम किए जा रहा था इसके अलावा उसने अपने सारे शौक मार दिए थे और काम में ज्यादा दुबे रहने की वजह से वोह कुछ अकेला सा होने लगा था, सभी से कटने लगा था। उसके छोटे भाई की अपनी ही दुनिया थी और वोह उसमे मगन रहता था, और उसके डैड और मॉम तो यहाँ थे ही नही। उसने अपनी बहन को भी उनके पास भेज दिया था क्योंकि वो थोड़ी स्ट्रिक्ट टाइप की लड़की थी जो उसके डैड का अच्छे से ध्यान रख सकती थी। क्योंकि वक्त के साथ साथ और इतनी परेशानियों और नुकसान से घिरने के बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी जिस पर आयशा ओबेरॉय ही अपनी स्ट्रिक्टन्स से कंट्रोल कर सकती थी वरना मिस्टर आनंद ओबेरॉय अपना ख्याल नही रखते।
अब बस जल्द से जल्द शादी होने की जल्दी थी। एक बार सेरेमनी हो जाए और सर्टिफिकेट मिल जाए उसके बाद विजयराज शेट्टी कुछ नही कर सकता था और ओबेरॉय परिवार को उससे एक हद तक कोई खतरा नहीं था। और एक बार अगर उसके खिलाफ कुछ सबूत मिल जाए तो अभिमन्यु फिर तो उसे छोड़ेगा ही नही।
अगर अभिमन्यु की दुल्हन रूप में अक्षरा शेट्टी होती तब बात ही कुछ और होती क्योंकि विजयराज अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था, पर अब सब कुछ बदल चुका था। अभिमन्यु की अब दुल्हन अनाहिता शेट्टी बनने वाली थी। अभिमन्यु को कहीं ना कहीं डर था की यह डील कितनी कामियाब रहती है।
अभिमन्यु को यह भी शक था की विजयराज अपनी बेटी को शायद छुड़ाने की कोशिश भी करेगा इसलिए उसने अपने घर की सिक्योरिटी टाइट कर रखी थी।
"क्या अनाहिता सारा दिन घर में ही रही थी?" अभिमन्यु ने शेरा से एक बार फिर पूछा जबकि वोह उसे बता चुका था की अनाहिता मैडम सारा दिन घर में ही रही थी। शेरा ही सिक्योरिटी हैड था इसलिए एक एक पल की खबर वोह अभिमन्यु को देता था। अभिमन्यु को लगता था की अनाहिता खुद भी भागने की कोशिश कर सकती है या फिर विजयराज शेट्टी कोई शरियंत्र रच रहा हो।
"वोह शाम के वक्त थोड़ी देर के लिए गार्डन में आई जरूर थी और एक बुक पढ़ रही थी पर बहुत थोड़ी देर के लिए। बाकी के समय वोह अंदर ही थी," शेरा ने अभिमन्यु को लेटेस्ट जानकारी दी जो उसे अभी थोड़ी देर पहले अपनी टीम से और लाइव कैमरे की फुटेज से पता चली थी।
अभिमन्यु ने बस गर्दन हिला दी और आगे कोई सवाल नही पूछा। उसने पहले ही माया को अपने आने की खबर दे दी थी की वोह आज का डिनर अनाहिता के साथ ही करेगा। अब तक उसने काफी देर अनाहिता को अकेले अपने रूम में रहने और यहाँ एडजस्ट करने का मौका दे दिया था पर अब और नही।
जब अभिमन्यु घर वापिस पहुँचा तो घर में बिलकुल शांति थी। वैसे तो यह सामान्य था पर आज उसे इसलिए अजीब लग क्योंकि माया दरवाज़े पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी और उसे देखने के बाद कोई भी साफ कह सकता था की वोह घबराई हुई है क्योंकि उसके हाथ बहुत बुरी तरह कांप रहे थे।
"क्या हुआ है?" अभिमन्यु ने सीढ़ियों की तरफ ऊपर देखते हुए अपने साइड में खड़ी माया से पूछा। उसे पूरा अंदाजा था की माया की घबराहट के पीछे अनाहिता ही कारण थी।
"अनाहिता.....अनाहिता आपके ऑफिस रूम में है," माया ने जवाब दिया।
"वोह वहाँ क्या कर रही है?" अभिमन्यु ने माया से पूछा, जबकि उसने ही उसे कहा था की अनाहिता को घर में कहीं भी घूमने के लिए मत रोकना। हाँ पर उसने यह भी नही कहा था की उसे उसके घर में बने ऑफिस के कमरे में जाने मत देना।
"मुझे नही पता।" माया की घबराहट और बढ़ने लगी थी। "मुझे कुछ शक तब हुआ जब उसने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।"
वोह कमरा या तो अंदर से खुल सकता था या फिर बाहर से चाबी से और इस वक्त उस कमरे की चाबी अभिमन्यु के पॉकेट में थी।
"ठीक है, मैं उस से बात कर लूंगा।"
"खाना तैयार है।"
"खाना गरम कर के टेबल पर लगाओ हम अभी आते हैं।" अभिमन्यु ने माया से कहा और सीढियां चढ़ने लगा अपने ऑफिस रूम की तरफ जाने के लिए। किसी को सबक सिखाने की जरूरत थी बदमाशी करने के लिए। अब तो सोने से पहले डिनर मिलेगा या नहीं यह निर्भर करता था अनाहिता के जवाब पर जिसका सवाल अभिमन्यु उस से पूछने जा रहा था।
जब अभिमन्यु दरवाज़े तक पहुँचा वोह कुछ पल रुक और दरवाज़े को घूरने लगा और अंदर से आवाज़ सुनने को कोशिश करने लगा। अंदर से कुछ गिरने की आवाज़ सुनाई दी तोह अभिमन्यु ने अपनी पॉकेट से चाबी निकाल ली।
उसने बिना आवाज़ किए धीरे से चाबी को लॉक में डाला। उसे अनाहिता का हैरान चेहरा देखना था, उसे सर्प्राइज करना था। वोह जानना चाहता था की अंदर अनाहिता क्या कर रही है और वोह उसे संभलने का मौका भी नही देना चाहता था ताकी वोह जो कर रही है उसे छुपा ले।
जल्दी से उसने चाबी पलटी और हैंडल घुमा दिया और वोह दरवाज़े से कमरे के अंदर था। अनाहिता अभिमन्यु के लैपटॉप में कुछ देख रही थी। पर उसके हाथ उसके कीबोर्ड पर एक दम से जम गए जब अभिमन्यु अंदर आ गया था।
उसे एक सेकंड भी पता नही चला था की कोई दरवाज़े पर था।
"अनाहिता," अभिमन्यु ने हल्के तेज़ी और सख्ती से मगर शांत लहज़े में उसे पुकारा।
"अभिमन्यु," अनाहिता उसी की टोन में कहा। जैसे की कोई छोटा बच्चा नकल उतार रहा हो।
"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" अभिमन्यु ने पूछा, वोह चल कर अपनी टेबल की तरफ आ गया था जहाँ अनाहिता बैठी थी। उसने तुरंत अपना लैपटॉप अपनी तरफ घुमा लिया इससे पहले की अनाहिता झट से उसे बंद कर दे ताकी वोह देख ना पाए की वोह क्या कर रही थी।
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अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा