मैं क्या हूँ ? Neelam Kulshreshtha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं क्या हूँ ?

साहित्य नोबेल पुरस्कार -2022 विजेता एनी एरनॉक्स को समर्पित लघुकथा

मैं क्या हूँ ?

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

[ कोरोनाकाल के विषय में फ़्राँस की इन लेखिका के कथन के संक्षिप्त अंश हैं -"आप भूल जाते हैं कि जिन लोगों को नगण्य और महत्वहीन [नथिंग]कहा जाता था जैसे कम वेतन वाले शिक्षक, बिजलीघर कर्मचारी, रेल, मेट्रो, मॉल, बस व पोस्ट ऑफ़िस कर्मचारी, सफ़ाई कर्मचारी, दूध व पित्ज़ा व अन्य डिलीवरी ब्यॉयज़ । आज यही नगण्य लोग ज़िंदगी चलाने के लिये देश के सब कुछ साबित हुए हैं।"मैंने भी इस बात को कोरोनाकाल में तकलीफ़ से महसूस किया था. अपनी इस लघुकथा के लिए ऐसा ही पात्र चुना था जो इन सबका प्रतिनिधित्व करता है । ]

नीटू चाचु के साथ बैठा उनके हाथ से खाना खाता जा रहा था। चाचु जतिन चाहे सारा दिन ग्रॉसरी शॉप से होम डिलीवरी करते करते कितना भी थक गया हो लेकिन नीटू तब ही खाना खाता है जब चाचु आ जायें।

लॉकडाऊन में फ़्लेट्स में सामान पहुँचाने जाओ तो लोग मास्क लगाकर दरवाज़ा खोलते हैं । कुछ लोगों ने बड़ी बड़ी बास्केट्स ही दरवाज़े के बाहर रक्खीं हुईं थीं। उनमें सामान डाल दो, पेमेंट तो ऑनलाइन हो ही जाता था। जो लोग कैश से पेमेंट करते थे वे अक्सर दस बीस रुपये पकड़ा देते थे. जतिन से उन रुपयों को लेकर भाभी की आँखों में चमक आ जाती थी। भइया की हताशा कम हो जाती क्योंकि वो शो रूम बंद था, जहाँ वे काम करते थे।

नीटू कोरोना के कहर को समझने लगा है। खाना खाते हुये वह बड़े ध्यान से टी वी पर एक डॉक्टर की सलाह सुन रहा था। वे टी वी एंकर से कह रहे थे, "मैं लोगों से अपील कर रहा हूँ घर से बाहर बिल्कुल भी न निकलें। बहुत ज़रूरी काम हो तो डबल मास्क लगाकर निकलें। आप कोरोना से तब ही बच सकते हैं जब आप घर से बाहर न निकलें। "

नीटू ने पानी का गिलास मेज़ पर रखकर रखकर पूछा, "ये वही डॉक्टर अंकल हैं न जिनके बहुत से डॉक्टर फ़्रेंड्स के लिए टीवी पर लोग ताली बजाते हैं ? "

"हाँ। "

" फिर कचरा साफ़ करने वाले के लिये क्यों ताली बजाते हैं?"

"अगर वो हमारे घर के डटस्बिन से कचरा नहीं ले जाएंगे, सड़क साफ़ नहीं करेंगे तो कोरोना और फैल जाएगा। "

"ओ। "उसने समझदारी से गर्दन हिलाई।

जतिन सुबह आठ बजे घर से निकलने ही जा रहा था कि नीटू अड़ गया, "आप बाहर मत जाइये कोरोना आपको मार डालेगा । "

"अरे ! किसने कहा ?मैं मास्क लगाकर जाता तो हूँ। "

नीतू ने उसकी बांह पकड़ ली, "अब मैं आपको बिलकुल जाने नहीं दूंगा। "

"क्यों आज क्या हुआ ?"

"आपने कल डॉक्टर अंकल की बात नहीं सुनी थी ?वे कह रहे थे  घर से बाहर बिल्कुल भी मत निकलो। "

"बच्चा ! मेरी नौकरी है। मुझे जाना ही होगा। "

"आज से तो मैं आपको बिल्कुल भी जाने नहीं दूंगा। आप बिल्कुल मत जाइये। "

"नीटू ! मैं बाहर नहीं निकलूंगा तो रूपये नहीं आएंगे। रूपये नहीं आएंगे तो हम खाना कहाँ से खाएंगे ?"

"खाना तो मम्मी बनाकर खिला देगी लेकिन आपके लिए कोई टी वी पर ताली भी नहीं बजाता फिर क्यों बाहर जाते हैं ?"

जतिन ने अपनी बाँह छुड़ाकर तेज़ी से बाहर बढ़ते हुए कसैली आवाज़ में कहा, " मैं इंसान कहाँ हूँ ? मैं तो होम डिलीवरी ब्यॉय हूँ। "

श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com