हमने दिल दे दिया - अंक १६ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक १६

 अंक १६ - रुतबा और ताकत 

    अंश के जाने के बाद ख़ुशी वापस जैसे आई थी वैसे ही उपर अपने घर की छत पर पहुच जाती है और जैसे ही निचे उतरने के लिए छत का दरवाजा खोलती है तो सामने अपनी मधु भाभी को पाती है जिनके मनमे ख़ुशी के लिए शायद कोई सवाल था | भाभी को देखकर ख़ुशी गभरा जाती है |

      अरे भाभी आप यहाँ पर ...ख़ुशी ने अपने भाभी को देखते हुए कहा |

      यही सवाल में आपको पुछना चाहती हु की ख़ुशी बहन आप यहाँ पर क्या कर रही है ...भाभी ने ख़ुशी से वही सवाल करते हुए कहा |

      अ... वो ना मुझे थोड़ी गभराहट सी हो रही थी तो में यहाँ पर खुले में आ गई ...ख़ुशी ने बहाना निकालते हुए कहा |

      एसा है तो नहा लो और नास्ता कर के में तुम्हे दवाई देती हु वो लेलो सब ठीक हो जाएगा ...भाभी ने ख़ुशी से कहा |

      नहीं भाभी उसकी कोई जरुरत नहीं है वो अब ठीक है हम ...इतना बोलकर ख़ुशी और उत्तर ना देना पड़े इसलिए वहा से चली जाती है |

      ख़ुशी को सीढियों से उतरते हुए सुरवीर भाई देख लेते है और ख़ुशी की तरफ आगे बढ़ते है पर वो सीढियों के पास पहुचे उससे पहले ख़ुशी अपने कक्ष में पहुच जाती है |

      जैसे ही सुरवीर भाई सीढियों के पास पहुचते है उनकी पत्नी सीढियों से निचे उतरती हुई उनको दिखती है और वह आखो के इशारो से अपनी पत्नी से पुछते है की क्या हुआ |

      पक्का तो पता नहीं पर जब में शादी और सगाई के बिच अपने घर की छत पे इतनी सुबह एक ही कारण से जाती थी ...मधुने सुरवीर से कहा |

      और वो कारण क्या था ...सुरवीर ने कहा |     

      अरे इतना भी नहीं समझे आपसे बात करने के लिए | आप भी अभी काम में इतना खो गए है की सारी अच्छी यादे भुल गए ...इतना बोलकर मधु वहा से चली जाती है |

      अब धीरे धीरे अंजाने में ही सही [पर मधु और सुरवीर के दिमाग में एक एसा चित्र बन रहा था जिसमे ख़ुशी और अंश एक दुसरे को चाहते हो और यह शायद आगे जाके ख़ुशी और अंश के जीवन के अच्छे या सबसे बुरे दिन भी ला सकता है |

      सुबह के लगभग ९ बज रहे थे | हमेशा की तरह आज भी मानसिंह जादवा का और विश्वराम केशवा का काम घर पर पड़ी फाइल देखने से शुरू हो चुका था | सुरवीर भी उस कार्य में जुड़ा हुआ था | बा आंगन में एक झुला था वहा पर झुला झूलते हुए भगवान के नाम की माला जप रही थी |

      कुछ देर होते ही अंश वहा पर पहुचता है | सबसे पहले वो बा के पास जाता है और उनके पैर पड़ता है |

      जय श्री कृष्णा बा ...अंश ने पैर पड़ते हुए कहा |

      अरे वाह विदेश गया पर अपने संस्कार नहीं भुला तु । यह बा को पसंद आया... बा ने अंश को आशीर्वाद देते हुए कहा |

      संस्कार ही तो सबसे बड़ा पैसा होता है बा और पैसे को कभी घुमाना नहीं चाहिए ...अंश ने बहुत बड़ी बात बोलते हुए कहा |

      अंश की इस बात की और घर के सारे सदस्यों का ध्यान अंश कीऔर जाता है |

      केशवा अब तेरा बेटा बड़ा हो गया है अब इसके विवाह कर दे जिससे आवारा फिरता बंद हो ...बा ने वो बात की जिसके लिए सुरवीर इंतजार कर रहा था |

      विवाह तो आज कर दु पर उसके लायक कोई लड़की तो आप ढूढ़कर दो ...विश्वराम केशवा ने हसते हुए कहा |

      अरे उसके लिए क्यों परेशान हो रहा है केशवा यह तेरा दोस्त कब काम आएगा इसे बोल इसका भी तो बेटा है अंश ...बा ने मानसिंह जादवा की बात करते हुए कहा |

      आज बड़े लंबे समय बाद अंश की वजह से घर में कोई एसी बात हो रही थी जिससे सबके चहरे पे थोड़ी सी ख़ुशी झलक रही थी |

      अगर अंश तैयार है तो बिलकुल लड़की ढूढना कोनसी बड़ी बात है | तेरे लिए तो में लडकियो की लाइने करवा दु बेटा ...मानसिंह जादवा ने कहा |

      एक बात मानसिंह जादवा, विश्वराम केशवा, बा और अंश के बिच चल रही थी तो दुसरी और दुसरी बात सुरवीर जादवा और उससे थोड़ी दुर कक्ष की खिड़की से सबकी बात सुन रही मधु के बिच इशारो से हो रही थी | मधु सुरवीर को इशारो के द्वारा कहेना चाहती थी की आप बात छिड़ी है तो ख़ुशी और अंश की बात पापा से कर लो ना । पर सुरवीर अभी तक उसके लिए तैयार नहीं था | वो देखना चाहता था की क्या सही में अंश और ख़ुशी के बिच कुछ है | इसलिए अंश मधु को अपने हाथो और आखो के इशारे से यह समझाने की कोशिश करता है की थोड़ी धीरज रख |

      अरे नहीं अभी नहीं | थोड़े पैसे कमाने लगु अपने उपर निर्भर हो जाऊ बाद में बा ...अंश ने बा से कहा |

      उसमे क्या है तु हमारे दोस्त का बेटा है आज चल हमारे साथ केमिकल कंपनी और थोडा थोडा काम शिख ले बाद में पगभर ...मानसिंह जादवा ने अंश से कहा |

      काम तो ठीक है पर वैसे भी कंपनी आया कर तुम्हारी भी है कंपनी ...सुरवीर ने कहा |

      सही बात है भैया चलो आज ही देख लेते है में तो फ्री ही हु ...अंश ने मानसिंह जादवा, अपने पिता और सुरवीर जादवा के साथ जाने के लिए तैयार होते हुए कहा |

      ठीक है तो आज ख़ुशी भी आना चाहती है तो दोनों कंपनी देख लोगे और हम लोग काम में होंगे तो आपको एक दुसरे की कंपनी भी मिल जाएगी... सुरवीर ने ख़ुशी को भी साथ आने के लिए तैयार करते हुए कहा |

      हा कहा है वो उसे बोलो जल्दी तैयार हो ले हम उसी के इंतजार में यहाँ पर बैठे हुए है जल्दी करो ...मानसिंह जादवा ने फाइल बाजु में रखते हुए कहा |

      आई बापुजी ... तैयार होकर अपने कमरे से बहार आते हुए ख़ुशीने कहा |

      ४ गाडियों के काफिलो के साथ ख़ुशी और अंश भी आज मानसिंह जादवा, विश्वराम केशवा और सुरवीर के साथ जा रहे थे | सारे लोग उस केमिकल कंपनी पहुचते है जिसे मानसिंह जादवा ने बिना मंजुरी के चालू करवा दी थी | वहा जाते ही उन्हें कुछ एक पुलिस की गाड़ी के साथ कई सरकारी गाड़िया नजर पड़ती है जिसमे गवर्मेंट ऑफ़ गुजरात लिखा हुआ था | मानसिंह जादवा समेट सबका ध्यान उन गाडियों पर जाता है |

      मानसिंह जादवा की गाडियों का काफिला एक तरफ जाकर रुकता है | सब गाड़ी से निचे उतरते है |

      इतनी सारी गाड़िया यहाँ पर क्या कर रही है ...मानसिंह जादवा ने सरकारी गाडियों का काफिला देखते हुए कहा |

      सरकारी गाड़िया है सारी की सारी और साथ में पुलिस भी ...अंश ने कहा |

      भवानी सिंह को फोन लगा सुरवीर यह सब क्या है हम लोग अंदर जाकर देखते है ...मानसिंह जादवा ने सुरवीर से कहा |

      मानसिंह जादवा, विश्वराम केशवा, अंश और ख़ुशी कंपनी की ऑफिस की और आगे बढ़ते है | अंदर जाते ही ऑफिस के दरवाजे पर कई सारे सरकारी कपड़ो में फाइल हाथ में लेकर सरकारी नोकर मानसिंह जादवा को नजर पड़ते है | मानसिंह जादवा उन सबको देखते हुए ऑफिस का दरवाजा खोलकर अंदर पहुचते है और देखते है तो अंदर भी दो ऑफिसर बैठे हुए थे जो बड़े अफसर हो एसा मानसिंह जादवा को प्रतीत हो रहा था | मानसिंह जादवा के पीछे पीछे अंश, विश्वराम केशवा और ख़ुशी भी ऑफिस के अंदर आते है |

     ऑफिस में आते ही सबसे पहले मानसिंह जादवा उन अफसरों पर ध्यान दिए बगेर भगवान की एक फोटो मानसिंह जादवा की ऑफिस में टंगी हुई थी वहा पर जाते है और भगवान के सामने अपना शिर झुकाकर उनके दर्शन करते है और फिर बाद में अपनी खुरशी पर बैठते है | विश्वराम केशवा, अंश और ख़ुशी तीनो एक तरफ जाकर खड़े रह जाते है | मानसिंह जादवा के सामने तिन खुरशी थी तीनो में सरकारी अफसर बैठे थे जिस वजह से ऑफिस में बैठने के लिए सिर्फ और सिर्फ सोफा ही बचा था |

     अपने टेबल पर रखी स्विच दबाकर बहार से मानसिंह जादवा अपने नौकर को बुलाते है | नौकर अंदर आता है |

     जी साहब कहिए ... नौकर ने कहा |

     चार कॉफी लेकर आओ ... मानसिंह जादवा ने उस नौकर से कहा |

     जी साहब ... नौकर ने जाते हुए कहा |

     हम लोग ...तिन अफसर में से एक ने बात की शुरुआत की |

     एक मिनिट पहले आप तीनो में से एक जाकर उस सोफे पर बैठ जाईये वहा पर हमारे विश्वराम भाई की जगह है बात बाद में होगी ...मानसिंह जादवा ने जगह खाली करने की बात करते हुए कहा |

     देखिये हम लोग ... उस अफसर के इतना बोलते ही मानसिंह जादवा उन्हें रोक लेते है और खुद बोलने लगते है |

     आप जो भी आप अगर विधायक भी है तो भी इस खुरशी पर विश्वराम केशवा ही बैठते है और वही बैठेंगे यह खुरशी सरकारी नहीं है इसलिए कृपया करके खड़े हो जाईये और बड़े आदर के साथ उस सोफे पर जाकर बैठ जाइए ...मानसिंह जादवा ने तीसरे अफसर को खुरशी खाली करने के लिए कहा |

     ठीक है बैठ जाओ बात करने के बाद वैसे भी यहाँ पर एक भी खुरशी नहीं बचने वाली ... अपने चहरे पर घमंड दिखाते हुए उस सरकारी अफसर ने कहा |

     तीसरा अफसर खुरशी खाली करके सोफे पर जाकर बैठ जाता है |

     आईए विश्वा अपनी जगह पर बैठ जाईये और बच्चो आप लोग भी सोफे पर बैठ जाईये ... मानसिंह जादवा ने विश्वराम केशवा के प्रति आदर दिखाते हुए और सरकारी अफसर को अपना पावर दिखाते हुए कहा |

     अंदर मानसिंह जादवा सरकारी अफसर को अपना रुतबा दिखाने पे तुले हुए थे और बहार सुरवीर भवानी सिंह से फोन पर बात कर रहा है |

     भवानी सिंह यह सब क्या है | यहाँ पर पुलिस आई हुई है सरकारी अफसरों के साथ ...सुरवीर जादवा ने भवानी सिंह से कहा |

     हा वो सुरवीर प्रदुषण विभाग से कुछ अफसर आए हुए है तो उन्ही के साथ प्रोटेक्शन में मुझे भेजना पड़ा है पर आप चिंता ना करे वो आपके काम में कही आड़े नहीं आएंगे क्योकी वो सब बड़े अफसर है तो उनके सामने मैं कुछ नहीं कर सकता ...भवानी सिंह ने सुरवीर से कहा |

     देखो पुलिस अगर बिच में आईना तो में तुम्हे छोडूंगा नहीं ...सुरवीर जादवा ने भवानी सिंह को धमकी देते हुए कहा |

     अरे क्यों आप खामखा इतना नाराज हो रहे हो | मैंने आपको एक बार बोल दिया तो बोल दिया की पुलिस सिर्फ उनकी सुरक्षा का ढोंग करेगी और कुछ भी नहीं करेगी आप चिंतामुक्त रहिये और हमें भी रहने दीजिए ... भवानी सिंह ने सुरवीर जादवा से कहा |

     ठीक बाकी बात करनी है कॅश के बारे में पर वो बाद में करेंगे पहले इन लोगो से निपट लेते है ...सुरवीर जादवा ने फ़ो रखते हुए कहा |

     साला बाप की पुलिस हो इस तरह से व्यवहार करते है ...अपने दफ्तर में बैठे भवानी सिंह को सुरवीर जादवा की बातो और व्यवहार पे गुस्सा आ जाता है |

     सुरवीर भी फोन पर बात करने के बाद अंदर ऑफिस में जाता है | ऑफिस में मानसिंह जादवा और सरकारी अफसरों के बिच संवाद की शुरुआत होती है |

     जी कहिए आप ... मानसिंह जादवा ने उन सरकारी अफसर से कहा |

     जी हम प्रदुषण विभाग से है | में यहाँ का जनरल डिरेक्टर हु और यह इलाका मेरे निचे आता है और जहा तक मुझे माहिती मिली है वहा तक आपकी यह कंपनी गेरकायदेसर है तो आपको इसे अभी के अभी बंद करना होगा क्योकी आपको अभी इसे चालू करने की मंजुरी नहीं दी गई थी इसलिए हमें इसे सिल करना होगा ...सरकारी अफसर ने मानसिंह जादवा से कहा |

      नहीं यह तो नहीं हो पाएगा ...मानसिंह जादवा ने उस अफसर से धीमी आवाज में कहा |

      में आपको बिनती नहीं कर रहा ऑर्डर दे रहा हु | यह लो मंजुरी जाओ और सिल करो पुरी कंपनी ... बाजु में बैठे अफसर और मानसिंह जादवा को बोलते हुए कहा |

      प्रदुषण विभाग का डिरेक्टर मंजुरी पत्रक सही करके अपने जूनियर अधिकारी को देता है जो उस कागज को लेकर अपनी जगह से उठकर बहार कंपनी सिल करने के लिए जाता है पर सुरवीर उसे बहार जाने से रोक लेता है |

      यह कंपनी तो बंद नहीं होगी और में यहाँ के विधायक का भाई हु और मानिए आने वाले चुनाव के बाद में ही खुद विधायक हु तो आप शांति से यहाँ से चले जाईये वरना आप को यह कंपनी तो छोडिये अपना दफ्तर छोड़ना होगा ... मानसिंह जादवा ने उस अफसर को धमकाते हुए कहा |

      देखिये आप जो भी हो में किसी से नहीं डरता | मेरी ईमानदारी ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है और में इस गाव वालो के साथ गलत नहीं होने दूंगा आपसे जो होता है वो आप कर सकते हो ... सरकारी अफसर ने मानसिंह जादवा से उची आवाज में बात करते हुए कहा |

     बापुजी शक्तिकाका को फोन लगाऊ ...सुरवीर ने मानसिंह जादवा से कहा |

     नहीं उसकी कोई जरुरत नहीं है | मानसिंह जादवा अकेला ही काफी है | आप ने जो आखरी कुछ शब्द बोले वह बहुत गलत बोले की जो होता है कर लीजिए अब मै आपके साथ वो करूँगा जिसकी फ़रियाद आप हर जगह करेंगे पर जब मानसिंह जादवा का नाम आप किसीको देंगे तो सब बहेरे हो जायेंगे ... मानसिंह जादवा ने अपना रुतबा दिखाते हुए कहा |

     विश्वराम केशवा, ख़ुशी और अंश यह सब होता हुआ बड़ी शांति से देख रहे थे |

     ठीक है | जाओ भाई तुम इस कंपनी को सिल लगाओ और बहार से पुलिस वालो को बुलाओ में भी देखता हु यह लोग क्या करते है ... सरकारी अफसर ने अपने अफसर को आदेश देते हुए कहा |

      वो अफसर आगे जाने की कोशिश करता है पर सुरवीर उसे रोककर रखता है |

      देखिये आप हमें एसे नहीं रोक सकते पुलिस ...दुसरे अफसर ने कहा |

     सारे अफसर इक्कठा हो जाते है और मानसिंह जादवा और उनके परिवार को घेर लेते है और मानसिंह जादवा उन लोगो का यह रूतबा देखकर गुस्सा हो जाते है और अपने टेबल के निचे से अपनी गन निकालते है और उस अफसर की टांग पर सीधा गोली मार देते है जो सिल लगाने के लिए जाने वाला था | उसे गोली लगने की वजह से वो गिर जाता है और उसे देखकर बाकी के सरकारी अफसर पिछेह्ट कर लेते है और मानसिंह जादवा के सामने बैठा हुआ भी अफसर यह देखकर अंदर से थोडा डर सा जाता है | पुलिस वहा पर ही खड़ी थी लेकिन वो कुछ भी नहीं कर रही थी | डिरेक्टर अपनी जगह से उठता है और पुलिस को बोलता है |

    आप लोग खड़े क्यों है इन्हें पकडिए और हमारी सुरक्षा कीजिए ...डिरेक्टर ने कहा |

    नहीं साहब यह जादवा साहब है | इनसे उलझने से तो अच्छा है हम हमारी यह नौकरी ही छोड़ दे और आप भी मत उलझिये यही खुद यहाँ के कानून है ...वहा साथ आए पुलिस हवालदार ने कहा |

    प्रदुषण विभाग का डिरेक्टर पुलिस हवलदार की बात सुनकर सबकुछ समझ जाता है और मानसिंह जादवा की और मुड़ता है |

    सब समझ रहा हु पर आज मेरे अफसरों की सुरक्षा का सवाल है इसलिए जा रहा हु पर में यह कंपनी नहीं चलने दूंगा यह मेरा वादा है आपसे ...डिरेक्टर ने मानसिंह जादवा से कहा |

    वो तो तब ना जब में तुम्हे यहाँ से जिंदा वापस जाने दु ...उस डिरेक्टर के सामने अपनी बंदूक उगामते हुए मानसिंह जादवा ने कहा |

    जैसे ही मानसिंह जादवा अपनी बंदूक का टिगर दबाने जाते है उन्हें अंश रोक लेता है और समझाने की कोशिश करता है |

    रुक जाईये काका चुनाव आ रहे है | यह सरकारी अफसर है चुनाव तक आप रहने दीजिए ...मानसिंह जादवा के कान में फुसफुसाते हुए अंश ने कहा |

    अंश के कहने से मानसिंह जादवा अपनी बंदूक निचे रखकर उन अफसरों को छोड़ देता है और वह अफसर वहा से दुम दबाके चले जाते है |

    माफ़ करना बच्चो आप लोग पहली बार यहाँ पर आए और यह सब हो गया ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    कोई बात नहीं काका ...अंश ने कहा |

    तु काफी समझदार और होशियार हो गया है अंश ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    आप ही की कृपा है काका ...अंश ने कहा |

    आज फिर से अंश मानसिंह जादवा की ताकत से रूबरू हुआ था और मन ही मन उसके दिमाग में कही सवाल दोड़ने लगे थे |

    बाप रे बाप काका तो छोटी छोटी बात पर गोलिया चला देते है और हम जो करने वाले है वो तो बड़ा अपराध है एक विधवा को भगाने का और वो भी विधवा कौन मानसिंह जादवा के बेटे की बहु हे भगवान बचा लेना ...अंश ने मन ही मन बोलते हुए कहा |

    अब कैसे आजाद करेंगे भाभी को पापा तो बहुत खतरनाक मुड में है ... ख़ुशी ने भी मन ही मन बडबडाते हुए कहा |

    अंश और ख़ुशी दोनों एक दुसरे की तरफ देखने लगते है |

    दोनों की जोड़ी तो साथ में काफी अच्छी लग रही है और विश्वाकाका से अच्छे ससुर हमारी ख़ुशी के लिए कौन हो सकते है | आज पापा गुस्सा है इसलिए कुछ दिन के बाद ही दोनों के बारे में बात करता हु ...मन ही मन सोचते हुए सुरवीर ने अपने आप से कहा |

    अब कहानी धीरे धीरे कई सारी करवटे लेने लगी थी जो अब एसे एसे मोड़ पर जाकर रुकने वाली है जिससे अंश की दुनिया में भुचाल सा आने वाला है | सवाल कही है पर उत्तर एक ही है की पढ़ते रहिये Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |

TO BE CONTINUED NEXT PART...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY