हमने दिल दे दिया - अंक १७ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक १७

 अंक १७ - बढती उलझने 

   कहानी अब हर तरफ से करवटे लेने लगी थी जिसकी वजह से अब बहुत जल्दी अंश, ख़ुशी और दिव्या के जीवन में भूचाल आने वाला था |

    इस तरफ भवानी सिंह जो वीर के कॅश में जरासा भी इच्छुक नहीं था उसके बजाय अब उस ट्रक के तालाब में से मिलने के कारण अब वह इस कॅश में बहुत ध्यान देने लगा है क्योकी उसे अब लगने लगा है की वीर का कोई अकस्मात नही हुआ था उसका जरुर मर्डर हुआ है तो अब सवाल यह है की यह मर्डर किया किसने है ? इसी सवाल के उत्तर के पीछे पड़ा है भवानी सिंह |

    भवानी सिंह अपने दफ्तर में बैठा था और कुछ फाइल्स देख रहा था | उस ट्रक को उस जगह से अब पुलिस स्टेशन ला दिया गया था | ट्रक के मालिक को भवानी सिंह ने अमदावाद से यहाँ पर बुलया था जो जल्द से जल्द पुलिस स्टेशन पहुचता है | लंबा कद काठी और लंबी धारदार मुछे थी उस ट्रक के मालिक सतेन्द्र प्रसाद की | सतेन्द्र प्रसाद पुलिस चोकी के मैदान में आते ही अपना तुटा हुआ ट्रक देख लेता है |

    साला यह ड्राईवर भी जाते जाते हमको फसाते गया ...सतेन्द्र प्रसाद ने अपने ट्रक को देखते हुए कहा |

    सतेन्द्र प्रसाद सबसे पहले पुलिस चोकी के अंदर जाता है और वहा पर बैठे हवालदार से बात-चित करता है |

    नमस्कार साहेब ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |                            

    नमस्कार बोलिए क्या काम है ... हवालदार फाइल में कुछ काम कर रहा था जिसने अपना मु फाइल की तरफ झुकाए रखते हुए कहा |

    जी में सतेन्द्र प्रसाद मुझे PI भवानी सर ने बुलाया है तो उनको मिलना था ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    इतना सुनते ही हवालदार अपना सबकुछ कामकाज छोड़कर अपनी जगह से उठकर PI भवानी सिंह के दफ्तर की तरफ जाता है | सतेन्द्र प्रसाद उनके साथ साथ जाते है |

    सर कोई सतेन्द्र प्रसाद जी आप से मिलना चाहते है बोल रहे है आप ने बुलाया है ...उस हवालदार ने दफ्तर के दरवाजे से ही कहा |

    जब हवालदार सतेन्द्र प्रसाद की बात लेकर आए तब मनसुख भाई अंदर ही थे जो भवानी सिंह के साथ मिलकर किसी दुसरे कॅश पर फाइल वर्क कर रहे थे |

    कौन सतेन्द्र प्रसाद ...भवानी सिंह ने फाइल की और देखते हुए कहा |    

    अरे साहेब यह वह ट्रक के मालिक है जिन्हें हमने यहा खास अमदावाद से बुलाया है ...मनसुख भाई ने थोडा सा हसते हुए कहा |

    अरे हा आईए आईए ...भवानी सिंह ने अपनी फाइल अपने सामने टेबल के उपर रखते हुए और सतेन्द्र प्रसाद की तरफ ध्यान देते हुए कहा |    

    सतेन्द्र प्रसाद बड़ी नम्रता के साथ दफ्तर के अंदर आते है और वो हवालदार फिर से अपनी टेबल पे जाकर बैठ जाता है जो सतेन्द्र प्रदास को दफ्तर तक छोड़ने आया हुआ था |

    नमस्कार साहेब ...सतेन्द्र प्रसाद ने दफ्तर में आकर भवानी सिंह से कहा |

    आईए आईए नमस्कार | रखिये अपनी तसरीफ इन खुरशी पे आप से तो लंबी बात करनी है हमें ...भवानी सिंह ने सतेन्द्र प्रसाद से कहा |

    सतेन्द्र प्रसाद व्यापारी आदमी था | उसका स्वभाव एकदम ठंडा और हसमुख था |

    अरे साहेब एसा मत कीजिए डर लगता है | हम सीधे सादे व्यापारी मानस है ...सतेन्द्र प्रसाद ने अपने चहरे पर थोड़ी सी मुस्कान दिखाते हुए और खुरशी पर बैठते हुए कहा |

    अरे हम कहा डरा रहे है इतने दिनों से तो आपके कारण हम डरे हुए है ...भवानी सिंह ने कहा |

    क्या बात कर रहे हो अब एसे भी मत बोला कीजिए साहेब ...सतेन्द्र प्रसाद ने हसते हुए भवानी सिंह से कहा |

    इस ट्रक को क्या मैंने खुद ने ही अपने पिछवाड़े के साथ टक्कर लगाकर तोडा है आपको ऐसा लग रहा है ...भवानी सिंह ने एकदम से गंभीरता अपने चहरे पर लाते हुए कहा |

    अरे साहेब एसा क्यों बोल रहे हो आप और आप एसा क्यों करेंगे और इस ट्रक के अकस्मात के बारे में मुझे पता भी नहीं है | हमारा क्या है हमारे ड्राईवर लोग अपनी मरजी से गुजरात में जहा मन करे वहा ट्रक को काम से ले जाते है हमारा एक ट्रक का महिना १ लाख रुपये का भाडा है वो हमें पंहुचा देते है | अब अगर उन्होंने कही टक्कर मार दी है या अकस्मात होता है तो हमें या वो बताए तब पता चलता है या तो कही और से समाचार आए तब और इस ड्राईवर के खिलाफ मैंने वस्त्राल पुलिस ठाणे में फरियाद भी लिखवाई है सर क्योकी पिछले कुछ दिनों से इसका कोई अता-पता नहीं लग रहा था ना तो फोन लग रहा था और तो और भाडा भी नहीं दिया है साहेब तो अब इसमें हमारी क्या गलती आप ही बताये ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

   चलिए यह सब बाते बाद में करते है अभी आपको पता है की आपके इस ट्रक के साथ क्या घटना घटित हुई है ...भवानी सिंह ने कहा |

    जी नहीं साहेब कृपया बताने की जहमत करे ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    जरुर पर जब बताएँगे ना तो आपकी सारी अद्बो-आदाब पिछवाड़े से होते हुए बहार आ जाएगी ...भवानी सिंह ने कहा |

    एसा क्या हुआ है साहेब ...सतेन्द्र प्रसाद ने गंभीर होते हुए कहा |

    जनमावत तालुके के राजा कहो या सबसे ताकतवर आदमी मानसिंह जादवा उनके छोटे बेटे की कार से आपके ट्रक की टक्कर हुई है और उनकी उसी वक्त मृत्यु भी हो गई है और वो इस ट्रक वाले को ढूढ़ रहे है अगर एक बार मिल गया तो सीधा वो उसे गोली मारेंगे ...भवानी सिंह ने फिर से कोई खेलने की शुरुआत करते हुए कहा |

    अरे साहेब क्या बात कर रहे हो में थोड़ी ट्रक चला रहा था ट्रक तो वो ड्राईवर चला रहा था आप उसे पकड़ लीजिए ना ...अपने दोनों हाथ जोड़कर डरते हुए सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    मै तो जो सच है वही बात कर रहा हु यहाँ पर उनका अलग कानुन चलता है | वो ही यहाँ की पुलिस और कानुन है अब आप ही बताईए क्या करे हम लोग इस में ...भवानी सिंह ने डरे हुए को और डराते हुए कहा |

    में क्या बताऊ आप ही कुछ कीजिए ना साहेब पर बचा लीजिए आपको भी पता है इस में मेरी कोई गलती नहीं है में उस ड्राईवर के सारे प्रूफ आपको दूंगा उसको पकडिए और मुझे छोड़ दीजिए क्योकी ट्रक मेरा था पर उसे चला तो कोई और रहा था ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    वो तो सही है ... भवानी सिंह ने नखरे करते हुए कहा |

    साहेब आप कुछ ले दे के ही सही पर मुझे इस में से बहार निकाल लीजिए मैंने कुछ नहीं किया ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    अरे आप इतना क्यों डरते हो आपके तो कही सारे ट्रक है तो आपके सामने तो महीने के कई सारे एसे कॅश आते होंगे ना ...भवानी सिंह ने कहा |

    जरुर आते है पर मैंने भी थोडा बहुत मानसिंह जादवा के बारे में सुना है तो आप मदद कर दीजिए ...सतेन्द्र प्रसाद ने अपने हाथ भवानी सिंह के सामने जोड़ते हुए कहा |

    अरे नहीं मुझे मरना है क्या वो मानसिंह जादवा मुझे मार डालेंगे अगर एसा किया तो ...भवानी सिंह ने अपनी लालच को बड़ा करने के कारण से कहा |

    अरे साहेब एसा क्यों करते हो आप ड्राईवर को खोज के उनके हवाले कर दीजिए मै ड्राईवर को खोजने में आपकी मदद करूँगा और फिर में आपको पैसे देने के लिए तैयार हु ना ...सतेन्द्र प्रसाद ने बिनती करते हुए कहा |

    चलिए ठीक है वैसे तो मै रिश्वत नहीं लेता लेकिन एसे रिश्क भी नहीं लेता तो यह तय रहा की आप ड्राईवर को ढूंढने में हमारी मदद करेंगे और १० लाख रूपया आपका कही नाम नहीं आएगा इसका ...भवानी सिंह ने अपनी लालच का झोला फेलाते हुए कहा |

    अरे साहेब १० लाख रुपये में कहा से लाऊंगा कुछ कम कीजिए ना ...सतेन्द्र प्रसाद ने दो हाथ जोड़कर बिनती करते हुए कहा |

    सतेन्द्र भाई में अपनी जान जोखिम में डालकर यह सब कर रहा हु और मेरी जान से तो १० लाख कम ही है अगर आप नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं में यह कॅश जैसे चल रहा है  वैसे ही चलता हु | कानून के हिसाब से आप ही इस ट्रक के मालिक है तो आप ही पहले फसेंगे क्योकी आपको बचाने के लिए मुझे कानून के साथ छेड़खानी करनी पड़ती है जिसमे बात मेरी नोकरी के सवाल तक पहुच जाती है ...भवानी सिंह ने कहा |

    ठीक है साहब में समझ गया में आपको १० लाख रूपये दे दूंगा पर आप मुझे ५ दिन की महोलत दे दीजिए ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    ठीक है चलेगा और एक और बात आपने कहा की आपके ट्रक पुरे गुजरात में काम करते है तो हमारे इलाके में भी तो काम करते ही होंगे ...भवानी सिंह ने कहा |

    भवानी सिंह के इस सवाल से सतेन्द्र प्रसाद को बिलकुल अंदाजा हो गया था की वो फिर से अपना मु खोलने वाला है | इस वजह से सतेन्द्र प्रसाद के चहरे पर चिंता की रेखाए दिखने लगती है |

    जी साहब ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    तो उसका हप्ता क्यों नहीं आ रहा पुलिस ठाणे क्या आप कायदे के हिसाब से चल रहे हो अगर चल रहे हो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन कायदे से बहार हो तो आपको यह सब रोकना होगा क्योकी में कानून का रक्षक हु और में कानून नहीं तोड़ने दुंगे किसी को भी ...भवानी सिंहे ने सीधी बात को उलटे तरीके से समझाते हुए कहा |

    समझ गया साहेब समझ गया आपको महीने का हप्ता मिल जाएगा अब में जा सकता हु ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    बड़े समझदार है आप | आप गभराना छोड़ दीजिए अब आपके साथ PI भवानी सिंह है आपको एक आच भी नहीं आने दूंगा क्योकी आपकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी ...हसते हुए भवानी सिंह ने कहा |

    ठीक है आभार ...सतेन्द्र प्रसाद ने कहा |

    मनसुख भाई इनसे उस ड्राईवर के बारे में सारी जानकारी ले लो | उसकी फोटो, नंबर से लेकर सारी जानकारी ठीक है और उसे ढूंढ निकालो साले को अपने को अब माला माल बनना है ...भवानी सिंह ने मन ही मन कहा |

    इतनी बात-चित के बाद सतेन्द्र प्रसाद वहा से चले जाते है | सतेन्द्र प्रसाद को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी की यह कॅश किसी तरीके से कानून के पन्ने पर हे ही नहीं इसी वजह से उनके साथ कोई क़ानूनी प्रक्रिया भी नहीं की गई लेकिन इस बात का अर्थ उनको एसा लग रहा था की पुलिस १० लाख के बदले मे उनकी मदद कर रही है और उन्हें यह सब ना करके बचा रही है पर असल में भवानी सिंह को उनकी कोई जरुरत थी ही नहीं उसको तो पहले से ड्राईवर ही चाहिए था पर भवानी सिंह पैसो का पुजारी था वो अब दोनों जगह से पैसे लेने लगा था | एक तरफ मानसिंह जादवा से और दुसरी तरफ प्रसाद जैसे लोगो से | अब भवानी सिंह की नजर उस ड्राईवर पर थी क्योकी ड्राईवर ही इस मौत की कड़ी का कोई नया राझ खोल सकता है अब देखना यह रसप्रद होगा की ड्राईवर कोन सा नया राझ खोलता है |

    अंश और ख़ुशी को सुरवीर अपनी पुरी कंपनी दिखाने के लिए कंपनी के प्लांट में ले जाता है और सारी मशीन वगेरा दिखाने की शुरुआत करता है उतने में वहा का एक कर्मचारी सुरवीर भाई को बुलाने के लिए आता है |

    छोटे मालिक आपको बड़े मालिक ने बुलाया है ...कर्मचारी ने कहा |

    जी में आता हु ...सुरवीर ने कहा |

    सुरवीर के कहने के बाद वह कर्मचारी वहा से चला जाता है |

    तुम दोनों आगे देखो में अभी आया ...सुरवीर ने कहा |

    जी भैया ...ख़ुशी और अंश ने कहा |

    सुरवीर अंदर ऑफिस की और चला जाता है और अंश और ख़ुशी दोनों अपने आप से कंपनी की सारी चीजे देखने की शुरुआत करते है |

    यार में तो पक्का मरने वाला हु देखना तु ...अंश ने आगे बढ़ते हुए कहा |

    क्यों तुझे एसा क्यों लगता है ...ख़ुशी ने कहा |

    मानकाका बात बात पर गन निकालके खड़े हो जाते है जब बात छोटी होती है तब भी तो हम दिव्या को भगाके जो अपराध करने वाले है वो तो बहुत बड़ा है उसमे तो उनके पास मेरी जान लेने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता ना ...अंश ने कंपनी में इधर-उधर देखते हुए कहा |

    एक तु ही है जो हमारी चिंता दुर करता है और एक तु ही है तो हमें चिंता में भी डाल देता है | अगर इतना ही कठिन लग रहा था तो क्यों भाभी को नयी उम्मीद दिलाई तुने ...ख़ुशी ने अंश से कहा |

    अरे में पीछे हटने की बात नहीं कर रहा हु मैंने जो कहा है वो तो में किसी भी किंमत में करुगा ही पर सोचना यह है की इसके अंजाम से बचा कैसे जाए ...अंश ने ख़ुशी से कहा |

    अंश तुझे तेरे आयोजन पे भरोसा नहीं है | अगर तेरे प्लान के मुताबिक हुआ तो तु कभी पकड़ा ही नहीं जाएगा ...ख़ुशी ने अंश से कहा |

    देखेंगे जो होगा वो देखा जाएगा और क्या हे मालिक अब तु ही बचा ना ...अंश ने बात को यही पर रोकते हुए कहा |

    इस तरफ मानसिंह जादवा के दफ्तर में वीर कुछ फाइले दिखाने के लिए आया हुआ था और तभी वहा पर वनराज सिंह एक बैग और अपने भाई के साथ आता है |

    अरे आओ आओ वनराज भाई क्या हाल चाल है बेठिए ...मानसिंह ने वनराज सिंह का सद्कार करते हुए कहा |

    बस आप ही की कृपा है मान साहब ...बैठते हुए वनराज सिंह ने कहा |

    वनराज सिंह और उसका भाई दोनों मानसिंह जादवा के सामने वाली सीट पर बैठते है |

    बोलिए वनराज साहब क्या बात है आज आप हमारे द्वार पे ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    हा वो मेरा एक अमदावाद में प्लोट था जो कुछ महीनो से कुछ कागज की दिक्कत की वजह से बिक नहीं रहा था जो परसों बिक गया जिसके मुझे अच्छे खासे पैसे मिले तो सोचा सबसे पहले आपका कर्ज उतार दु और बाकी की जिंदगी चिंतामुक्त निकालु ...मानसिंह जादवा ने अपने बेग से पैसे निकालते हुए कहा |

     अरे उसकी कोई दिक्कत नहीं थी मैंने माँगा आपसे कभी आप तो हमारे घर के व्यक्ति है आप की मदद करना हमारा फर्ज है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

     सही बात है आप के बहुत उपकार है हम पर जादवा साहब पर पैसे आए है तो दे देना ही सही है घर में पड़े पड़े खर्च हो जाते है तो सोचा आप ही को दे दु कल अगर जरुरत होती है तो आप कहा मना कर रहे है की दुबारा नहीं दूंगा ... हस्ते हुए अपनी झूठी बातो में मानसिंह जादवा को फ़साने की कोशिश करते हुए वनराज सिंह ने कहा |

     अपनी बेग से वनराज सिंह पुरे २५ लाख रूपये नगद निकालता है और मानसिंह जादवा के सामने रखता है |

     यह लीजिए जादवा साहब पुरे २५ लाख है यह लीजिए और मुझे मेरी जमीन के कागजात दे दीजिए जिससे में चिंतामुक्त जीवन जी सकू ...वनराज सिंह ने कहा |

     सुरवीर यह पैसा ले लो और गिनके इनके लोन के खाते को नील कर दो ...मानसिंह जादवा ने सुरवीर से कहा |

     सुरवीर टेबल पर रखे पैसे उठाता है और सोफे पर बैठकर उसे गिनने की शुरुआत करता है उतने में वहा पर विश्वराम केशवा भी वहा आ पहुचते है |

     अरे वनराज सिंह आप आईए आईए कैसे है ...विश्वराम केशवा ने कहा |

     अरे एकदम बढ़िया आप कैसे है विश्वाभाई ...वनराज सिंह ने कहा |

     वनराज सिंह आज इतना अंजान बनकर मानसिंह जादवा और विश्वराम केशवा से बातचीत कर रहा था मानो जैसे वो सच बोल रहा हो | वो किसी भी परिस्थिति में अपनी राजनैतिक चाल का पता मानसिंह जादवा को लगने देना नहीं चाहता था |

     वनराज सिंह तो आज कर्ज मुक्त होने के लिए आए हुए है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

     पैसे एकदम ठीक है पुरे २५ लाख ...सुरवीर ने कहा |

     ठीक है तो उसे जमा कर के एक पहोच बनाकर वनराज सिंह जी को दे दे कागज आपके हमारे घर पर है इसलिए में खुद मेरे आदमी के द्वारा आपके वहा पर पंहुचा दूंगा चलेगा ना वनराज सिंह ...मानसिंह जादवा ने कहा |

     कागज अभी ना देने की बात से वनराज सिंह थोडा सा नाराज थे पर क्या करे उनके पास मानसिंह जादवा की हां में हां मिलाने ले अलावा कोई और चारा भी तो नहीं था |

     अरे कोई बात नहीं जादवा साहब आप अपने तरीके से पंहुचा दीजिएगा कोई दिक्कत नहीं है ...वनराज सिंह ने न चाहते हुए भी हां कहते हुए कहा |

     सुरवीर वनराज सिंह के लिए कुछ ठंडा मंगवा ले ना ...सारे पैसे अपनी बैग में भरते हुए सुरवीर को मानसिंह जादवा ने कहा |

     जी अभी मंगवाता हु ...सुरवीर ने कहा |

     अरे नहीं इसकी क्या जरुरत है मुझे निकलना है और भी सगे संबंधी को पैसे लौटाने के लिए जाना है ...वनराज सिंह ने कहा |

      वनराज सिंह ने जान बुझकर सगे संबंधी को पैसे लौटाने की बात की ताकि मानसिंह जादवा को उनकी राजनैतिक प्रवेश की बु ना आ जाए |

      थोडा समय बीतता है | सुरवीर पैसे जमा होने की एक पहोच बनाकर देता है | नौकर ठंडा सरबत लेके आता है और ऑफिस में बैठे सभी को देता है |

      प्लांट में भी दो महेमान है उन्हें भी जाकर यह सरबत दे आओ ठीक है... मानसिंह जादवा ने अपने नौकर से कहा |

      और बताईए जादवा साहब क्या चल रहा है सारे व्यापारों में ...वनराज सिंह ने बाते छेड़ते हुए कहा |

      बस व्यापर सारे ठीक चल रहे है और अब चुनाव में खड़े होने की सोच रहे है अगर आप जैसो की दया रही हर बार की तरह तो वो भी जित जाएंगे ...मानसिंह जादवा ने कहा |

      अरे क्यों नहीं हम पहले भी आपके साथ थे और आगे भी गाव और तालुके के विकास में हमारा योगदान जरुर रहेगा मान साहब ...राजनैतिक उत्तर देते हुए वनराज सिंह ने कहा |

      मानसिंह जादवा वनराज सिंह की इतनी मीठी बातो के बावजुद भी उसके इस राजनैतिक उत्तर को समझ नहीं पाए थे |

      आप साथ होते हो तो हमारे सामने खड़ा होने वाला और कोई तो है ही नहीं वनराज सिंह ...वनराज सिंह के सामने देखते हुए मानसिंह जादवा ने मन ही मन कहा |

      हर बार हम साथ होते है जिस वजह से आपके सामने कोई उमेदवार खड़ा हो ही नहीं पाता लेकिन इस बार हम खुद ही आपके सामने खड़े होंगे तब आप कैसे जीतते है देखते है जादवा ...मानसिंह जादवा के सामने देखते हुए मन ही मन वनराज सिंह ने कहा |

      आपका आज तक अच्छा समर्थन रहा है और आप भी गाव में जादवा की तरह उनके रिवाजो का उनके हक का अच्छा ध्यान रखते है अगर आप साथ होंगे तो अब तक जैसे गाव की सेवा की है वैसे ही पुरे तालुके की सेवा करेंगे जादवा साहब ...विश्वराम केशवा ने कहा |

      आप MLA बनेंगे तो शक्तिभाई आगे से सरपंच का पद संभालेंगे ...वनराज सिंह ने सवाल करते हुए कहा |

     नहीं उसको तो हम अपना सलाहकार बनाने वाले है और हमारा यह कारोबार उसे सँभालने के लिए देने वाले है और सरपंच का पद सुरवीर को देने वाले है लेकिन अगर आप चाहे तो हम आपको सरपंच का पद दे सकते है ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह को बातो ही बातो में लालच देते हुए कहा |

     अरे नहीं जादवा साहब अब हम और चिंता का भार नहीं उठाना चाहते हम एक समर्थक बनकर ही ठीक है ...वनराज सिंह ने कहा |

     वनराज सिंह इतनी होशियारी के साथ उत्तर दे रहें थे की मानसिंह जादवा को उसके इरादों की भनक भी नहीं लग रही थी |

      सब मिलकर ठंडा पीते है फिर वनराज सिंह और उनका भाई अपनी जगह से खड़े होते है और मानसिंह जादवा से जाने के लिए इजाजत मांगते है |

      चलिए फिर जादवा साहब हम लोग निकलते है ...वनराज सिंह ने कहा |

      ठीक है आते रहिएगा ...मानसिंह जादवा ने कहा |

      हा जरुर आप वो कागज़ जादवा साहब भिजवा देना तो में उस पे थोडा काम काज करके अपना घर चला शकु ...वनराज सिंह ने जानबूझकर अपनी बातो में लाचारी जताते हुए कहा |

      हा हा आप चिंता ना करे वो में भिजवाता हु ...मानसिंह जादवा ने कहा |

      वनराज सिंह और उसके भाई दोनों वहा से चले जाते है | उनके जाने के बाद मानसिंह जादवा सुरवीर को कुछ सुचना देते है |

      सुरवीर इस आदमी पर नजर रख अब यह हमारे एहसानों से मुक्त है कही इसकी आगे कोई चाल तो नहीं है क्योकी इस आदमी को दबाके रखना बहुत जरुरी है और हो सके उतने दिन इसके कागज अपने पास ही रोककर रख जब तक पता ना चल जाए की यह सच में सिर्फ हमारे पैसे ही लौटाने के लिए आया हुआ था ...मानसिंह जादवा ने कहा |

      जी जरुर पिताजी ...सुरवीर जादवा ने कहा |

      इस तरफ अपने घर जाते हुए वनराज सिंह के दिमाग में भी कागज़ को लेकर कही सारे सवाल चल रहे थे |

      इस जादवा का कोई भरोसा नहीं | इसके पास से जल्द से जल्द कागज़ लेने होंगे अगर कागज़ नहीं आएंगे तो में चुनाव नहीं लड़ सकूँगा क्योकी मेरी जमीन पद से ज्यादा महत्व रखती है मुझे कुछ भी करके जमीन के कागज जादवा के पास से निकालने होंगे ...मन ही मन अनेको सवाल वनराज सिंह के दिमाग में चल रहे थे |       

     इस तरफ ख़ुशी और अंश के बिच कंपनी देखने के साथ साथ में मजाक मस्ती भी चल रही थी और चलते चलते बिच में रास्ते पे गिरा हुआ केमिकल दोनों की नजर नहीं आता और ख़ुशी गलती से उस के उपर चल देती है और उसके पैर स्लीप हो जाते है और उसे अंश गिर ने से बचाता है और उसे उसी तरह पकड़ता है जैसे फिल्मो में हिरोइन को हीरो पकड़ते है कमर से और उसी वक्त सुरवीर जादवा अंश और ख़ुशी की और आ रहे थे और उन्हें देख लेते है | सुरवीर जादवा को यह नहीं दीखता की ख़ुशी को अंश ने कैसे पकड़ा है क्योकी उसने ख़ुशी को स्लीप होते हुए देखा पर उसको जैसे अंश ख़ुशी की देगभाल करता है वो देख रहें थे |

     ख़ुशी तुम ठीक तो हो ना ...अंश ने कहा |

     हा में ठीक हु थोड़ी कमर में लचक सी आ गई हो एसा लग रहा है और मेरे जूते की लेस भी छुट गई है और मेरा मुड़ना मुश्किल है अंश ...ख़ुशी ने केमिकल से अपना पैर बहार निकालते हुए कहा |

     कोई बात नहीं में बांध देता हु तु खड़ी रहे...अंश ने ख़ुशी से कहा |

     अंश खुद निचे बैठकर ख़ुशी के जुतो की लेस बांधता है और ख़ुशी उसे बड़े प्यार से देख रही थी क्योकी अब ख़ुशी को भी अंश से प्यार हो गया था |

     i love you अंश तुम मेरा कितना ध्यान रखते हो और तुम सबके लिए कितना कुछ करते हो में तुम्हे कभी नहीं खो सकती में जल्द से जल्द मौका देखकर तुमसे अपने दिल की बात कर दुंगी तु सिर्फ मेरा है ...मन ही मन अंश के सामने देखकर ख़ुशी ने कहा |

     ख़ुशी की आखो में और चहेरो में जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी झलक रही थी |

     अंश ख़ुशी का जिस तरीके से ध्यान रख रहा था वो सुरवीर जादवा की नजरो में ख़ुशी के लिए सबसे अच्छा इंसान बन चूका था |

     हमारे यहाँ औरतो के लिए साला यहाँ झुकता ही कौन है | सही बात है मधु की ख़ुशी के लिए इससे अच्छा लड़का और कोई नहीं हो सकता अच्छा सा मौका देखकर जरुर पिताजी को ख़ुशी की अंश से सगाई की बात कर दूंगा ...सुरवीर जादवा ने दोनों को देखते हुए मन ही मन कहा |

     चलो हो गया ...अंश ने उठकर कहा |

     दोनों बाते करते हुए आगे बढ़ जाते है | कंपनी देखने के बाद सुरवीर दोनों को घर छोड़ देता है |

     शाम के लगभग चार बज रहे थे |

     यार तुम तीनो कहा पर हो में यहाँ पर अकेला अकेला बोर हो रहा हु ...अंश ने फ़ोन पर अशोक से कहा |

     हम तीनो शहर आए हुए है कॉलेज के कुछ काम से ६ बजे तक आ जाएंगे ...अशोक ने फोन रखते हुए कहा |

     अबे ६ बजे तक में यहाँ पर क्या करूँगा ...अंश ने कहा |

     घर बैठा अंश मन ही मन कुछ ना कुछ सोचने लगता है | अंश जब भी कुछ सोचने की कोशिश करता तो उसके दिमाग में सबसे पहले दिव्या के बारे में ही ख्याल आता | जब अंश ने पहली बार दिव्या को देखा तो उसे वो बहुत सुंदर लगी थी और फिर उसके साथ जो जो भी घटना हुई वो भी अंश मन ही मन सोच रहा था और उसी घटनाओ के कारण अब अंश धीरे धीरे दिव्या के नजदीक आ रहा था जो उसके लिए बहुत भयानक साबित हो सकता है पर कहते है ना की प्रेम और भावनाओ पर किसी का अधिकार नहीं होता उसे आप जितना ही टालने की कोशिश करो वो और बढ़ता जाता है यहाँ पर अंश के साथ भी वही हो रहा था |

    चलो यार दिव्या से मिलते है आज सुबह से नहीं मिला उससे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    अंश किसी भी चीज की परवा किए बिना अकेला ही दिव्या से मिलने के लिए चला जाता है और हवेली के पीछे से होते हुए उस वोचमेन के सामने से वो अंदर हवेली में घुस जाता है क्योकी अब गार्ड उसके निचे दबा हुआ था क्योकी अंश के पास उनका वीडियो था | अंश ख़ुशी ख़ुशी दिव्या के रूम पर जाता है और दरवाजा खटखटाता है पर दिव्या दरवाजा नहीं खोलती | अंश और दो तिन बार दरवाजा खटखटाता है और दिव्या... दिव्या... एसे चिल्लाता भी है पर पता नहीं क्यों पर दिव्या दरवाजा नहीं खोलती इस वजह से वो कक्ष की खिड़की के पास जाता है और वहा जाकर देखता है तो दिव्या जमीन पर गिरी हुई थी और शायद बेहोश थी |

     द... दिव्या ...उठो दिव्या ...अंश दिव्या को बेहोश देखकर गभरा जाता है |

     अंश गभराया हुआ था और मन ही मन कुछ सोचने की कोशिश कर रहा था क्योकी उसके मन में कई सवाल दोड रहे थे जैसे आपके मन में भी दोड़ते होंगे की अंश दिव्या को कैसे मदद करेगा क्योकी दिव्या बेहोश है अगर इस बात की खबर जादवा सदन में करेगा तो अंश पकड़ा जाएगा और नहीं करेगा तो दिव्या की जान को खतरा है और खुद भी तो अस्पताल ले जा नहीं सकता वरना गाव वालो को अंश के बारे में पता चल जाएगा | सवाल कही है पर उत्तर एक ही है की पढ़ते रहिये Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...    

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY