हमने दिल दे दिया - अंक ८ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक ८

अंक - - जीवन  

    तेरे दिमाग में घुसा भरा हुआ है | इतना कम था की हम मानसिंह जादवा की बहु को मिलने गए एक अपराध करके की अब तु भरी दुपहर में उसकी लड़की को लेकर उस हवेली में घुसेगा और उनकी बहु से मिलन करवाएगा जो मानसिंह जादवा की नजरो में बहुत बड़ा गुनाह है | साले तेरे जैसा इंसान नहीं देखा तु एक बार में सैतान की बेटी और बहु दोनों को छेड़ रहा है और तो और छेड़ रहा है उसकी तो बात छोडो उसमे हमें भी सामिल करना चाहता है | नहीं भाई नहीं में नहीं आऊंगा ... चिराग ने कहा |

     में भी नहीं आऊंगा ... अशोक ने कहा |

     में तो तेरी चप्पल खाकर मरजाऊ और पुरा जीवन बिना गुटखा खाए बिता लु पर में नहीं आऊंगा भाई ... पराग ने गुटखा चबाते हुए कहा |

    मतलन तुम लोग मेरी बात नहीं मानोगे ... अंश ने अपने दोस्तों से कहा |

    बिलकुल नहीं तेरे लिए मर जाएंगे पर ख़ुशी के लिए क्यों मरे हम ... चिराग ने कहा |

    में बताती हु की मेरी मदद क्यों करनी चाहिए ... ख़ुशी ने घर का मुख्य दरवाजा खोलकर अंदर आते हुए कहा |

    ख़ुशी तुम अभी यहाँ पर ... अंश ने ख़ुशी से कहा |

    हा कुछ सामान लेने बाजार आई हुई थी | आप मेरी मदद इसलिए करो की में आपके दोस्त की सबसे अच्छी दोस्त हु और इस गाव में में ही हु जो इन रिवाजो को नहीं मानती तो में भी आपके जैसी हु और में कितने अत्याचार सहेन कर रही हु मेरी भाभी की मदद करना चाहती हु ताकि उनको यह जीवन जहर ना लगे और उनके लिए कुछ करना चाहती हु पर यह आप लोगो की मदद के बिना नहीं होगा प्लीज यार मदद कर दो प्लीज... मुझे पता है की दुपहर को वहा जाना बहुत ही रिश्की है पर क्या करू में भी एक औरत हु और मेरे पास घर से निकलने के लिए यही एक वक्त है ... ख़ुशी ने अंश के सारे दोस्तों से थोडा सा भावुक होते हुए कहा |

     यार ख़ुशी तु हमें रुलाने की कोशिश कर रही है यार चल ठीक है एक बार फिर खुद ख़ुशी करने की कोशिश कर लेंगे और क्या ...चिराग ने कहा |

     लेकिन उसकी एक किंमत होगी जो तुम्हे चुकानी होगी ... अशोक ने ख़ुशी से कहा |

     हा बोलो ना क्या काम करना होगा ... ख़ुशी ने कहा |

     अ... आप हसना मत यारो ... ख़ुशी यार भिड़ा की एक लड़की है ...अशोक के इतना बोलते ही चिराग, अंश और पराग हसने लगते है ... चुप रहो बे सालो तुम्हारी भी होगी ... उसके साथ मेरी शादी की बात चल रही है तो तुम्हे पता लगाना है की वो लड़की कैसी है अपने स्वभाव से ... अशोक ने अपने दोस्तों की हसी के बिच कहा |

     ठीक है तुम मुझे आज नाम और पता दे देना में अपनी कॉलेज फ्रेंड से पूछ लुंगी ... ख़ुशी ने कहा |

     थैंक यु ... अशोक ने ख़ुशी से कहा |

     थैंक यु तो मुझे आप लोगो को कहना चाहिए ... ख़ुशी ने कहा |

     दुपहर का समय होता है | ख़ुशी समेट सारे दोस्त अंश के घर पर इक्कठा होते है | ख़ुशी अपना पुरा मु कपडे से ढँक लेती है ताकि उसे कोई पहचान ना सके |

     अंश तुम और ख़ुशी गाव के पीछे वाले हिस्से से आओगे जिससे तुम्हे कोई गाव वाला देख ना ले ठीक है और हम लोग आगे से जाकर तुम्हारा वहा पर इंतजार करेंगे... चिराग ने कहा |

     चिराग, पराग और अशोक तीनो एक मोटर-साईकल में जाते है और अंश और ख़ुशी एक मोटर-साईकल में जाते है | अंश ने भी अपने शिर पर हेलमेट पहन लिया था जिससे कोई उसे पहचान ना पाए और ख़ुशी ने भी कपडे से अपना पुरा मु ढक लिया था | सभी अपने अपने रास्ते निकल जाते है | ख़ुशी और अंश दोनों गाव के पीछे वाले रास्ते से जा रहे थे जहा गाव का कोई व्यक्ति नहीं होता क्योकी अंश के घर से थोड़ी दुर जाकर गाव ख़त्म हो जाता है |

     thank you अंश तुम मेरी हर वक्त मदद करते हो ... ख़ुशी ने अंश से कहा |

     तु बार बार यह अंग्रेजन बनकर मुझे thank you, thank you मत बोलाकर में तेरा दोस्त हु और हर वक्त में तेरी मदद करूँगा ... अंश ने ख़ुशी से कहा |

     अंश और ख़ुशी गाव के पीछे से जाने वाले स्टेट हाईवे पर थे | वो लोग हवेली की तरफ जा रहे थे और उनके बिलकुल सामने से सुरवीर और उनकी पत्नी कार में वहा से पसार हो रहे थे | सुरवीर और उनकी पत्नी मधु दोनों पीछे की तरफ बेठे थे और आगे ड्राईवर कार चला रहा था | ख़ुशी और अंश उनको दीखते है पर वह पहचान नहीं पाते की वह ख़ुशी और अंश ही थे | उन लोगो को देखकर मधु के दिमाग में ख़ुशी के बारे में ख्याल आता है और उस वक्त का जब छत पर अंश और ख़ुशी गले लगकर एक दुसरे से प्रेमीओ की तरह बात कर रहे थे | मधु अपने पति सुरवीर से यह बात बताना चाहती थी लेकिन वो बता नहीं पा रही थी | बात बताने के पीछे का मधु का उदेश्य एक ही था की अगर मधु के ससुर यानी मानसिंह जादवा को इस बारे में पता लग गया तो वे ख़ुशी और अंश के साथ कैसा व्यवहार करेंगे वो कोई नहीं बता सकता | इसी वजह से मधु चाहती थी की वह ख़ुशी और अंश के बिच शायद प्यार है एसा सुरवीर को बताए और सुरवीर यह तय करके दोनों की मंगनी करवा दे और समय होते ही शादी | जिससे बिना अपने ससुर को पता चले ख़ुशी को अपना सही वर मिल जाए और परिवार की इज्जत भी बच जायेगी पर वो यह बात बार बार सोच ही रही थी पर अपने पति को बताने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी |  

     इस तरफ अंश और ख़ुशी समेत सारे मित्र हवेली के पीछे की और पहुच चुके थे |

     देखो अभी भरी दुपहर है और यहाँ पर कभी भी कोई भी आ सकता है हमें देखेगा तो किसी के दिमाग में कोई ख्याल नहीं आएगा लेकिन हम चारो के साथ किसी ने लड़की देखली तो गाव में बात होने लगेगी क्या होगी पता नहीं इसलिए जल्द से जल्द अंदर चले जाओ और इस बार आप दोनों ही जाईये हम तिन बहार निगरानी के लिए रुकते है ... चिराग ने कहा |

     ठीक है तो जल्दी से यहाँ पर मोटर-साईकल खड़ी करो हम दोनों जल्द से जल्द अंदर चले जाते है ... अंश ने अपने दोस्तों से कहा |

     इस बैग को मत भुल अंश यह ले इसमें ख़ुशी कुछ खाना लेकर आई है ... अशोक ने ख़ुशी के बैग अंश को देते हुए कहा |

     अशोक दीवार के बरोबर पास एक मोटर-साईकल खड़ी करता है जिस पे सबसे पहले अंश चढ़ जाता है और वह उपर दीवार पर भी चढ़ जाता है फिर ख़ुशी मोटर-साईकल पर चढ़ती है जहा से अंश का हाथ पकड़कर वो दीवार पर चढ़ती है फिर पहले जैसे हुआ था वैसे ही दोनों दीवार पर थोडा चलकर उस पेड की और जाते है और फिर उस पेड के द्वारा दोनों हवेली के अंदर की और उतर जाते है |

     बाप रे बाप यह तो बहुत कठिन है ... ख़ुशी ने निचे उतरकर अपने कपडे साफ़ करते हुए कहा |

     तु मेरे को एक बात बता ख़ुशी तुम लोगो को भगवान ने इतनी बड़ी हवेली दी और तुम लोगो ने इसे खंडर क्यों बना के छोड़ दिया है ... अंश ने ख़ुशी से सवाल करते हुए कहा |

     वो इसलिए क्योकी हमारे पापा के पापा जो थे उनका मानना था की हवेली में रहकर नुकशान के अलावा हमें कुछ नहीं मिलता था यह हवेली हमारे लिए सही नहीं थी पता नहीं इसमें क्या है पर उसी अंधश्रध्धा के कारण यह हवेली खंडर बनी पड़ी है | किस तरफ जाना है ... ख़ुशी ने अंश से कहा |

      चल इस तरफ चलते है ... अंश ने ख़ुशी से कहा |

      दोनों झाड़ियो को चीरते हुए पीछे के दरवाजे की तरफ जा रहे थे जहा अंश और पराग पहली बार में गए थे | दोनों सीधा उस दरवाजे के पास पहुचते है पर वो झाड़ियो से बहार निकले इससे पहले उन्हें वह बॉडीगार्ड दिखता है जो हवेली के चारो और चक्कर लगाने के लिए निकला था | उसे देखकर अंश और ख़ुशी दोनों सावधान हो जाते है और झाडी के पीछे छुप जाते है | अंश का ध्यान उस बोडिगार्ड के उपर इसलिए था क्योकी कही वह बॉडीगार्ड फिर वह ताला तुटा हुआ ना देख ले क्योकी दुसरी बार अगर उसने ताला तुटा हुआ देखा तो उसे पुरा शक हो जाएगा लेकिन वह बॉडीगार्ड दरवाजा बंद होने की वजह से दरवाजे पर लगे तुटे ताले को देखे बिना ही वहा से चला जाता है और फिर ख़ुशी और अंश उस झाड़ियो में से बड़ी सावधानी के साथ बहार निकलते है और उसी सावधानी के साथ उस पीछे वाले दरवाजे से होते हुए हवेली के अंदर घुस जाते है और इस बार अंश दरवाजा बंद कर देता है जिससे कोई उसे खुला देख ना ले |

     अंदर जाते ही अपनी राजमहाल जैसी हवेली को ख़ुशी चारो और से देखने लगती है |

      यार बड़े समय के बाद मैंने इस हवेली को देखा है क्योकी जब हम छोटे थे तब यहाँ पर खेलने आया करते थे पर मुझे यहाँ बता की तुमने इस हवेली को पहले कभी देखा हुआ है ... ख़ुशी ने अंश से सवाल करते हुए कहा |

     क्यों तेरे दिमाग में एसा ख्याल क्यों आ रहा है ... अंश ने कहा |

     क्योकी तु मुझे इतनी बड़ी जगह में बिच झाडी से होते हुए सीधा उसी दरवाजे के पास ले आया जहा से हमें जाना था और वो दरवाजा भी बड़ी आसानी से खुल गया मानो जैसे इसे कुछ दीन पहले खोला गया हो ...ख़ुशी ने एक औरत की तरह अंश पे शक करते हुए कहा |

     अंश बस यही सोच रहा था की अगर उसने ख़ुशी को यह बोल दिया की वह दिव्या के पास आया था तो पता नहीं ख़ुशी उस बात को किस नजरिये से देखेगी | अंश मन ही मन इस बात को लेकर चिंतित था पर अंश ख़ुशी से झूठ भी नहीं बोलना चाहता था |

     अंश किसी भी तरीके का उत्तर दे इससे पहले अपने रूम के सामने वाले झरुखे से दिव्या ख़ुशी को देख लेती है और अपनी दर्द भरी धीमी आवाज में उपर से बोलती है |

     ख़ुशी बेन ... दिव्या ने अपनी हलकी और धीमी दर्द भरी आवाज में कहा |

     अपनी भाभी की आवाज सुनकर ख़ुशी का ध्यान अंश से सवाल करने से खीचकर अपनी भाभी की आवाज की और चला जाता है |

     भाभी ... बीते कुछ दुःख के दिनों के बाद आज अपनी भाभी को देखकर ख़ुशी के चहरे पे थोड़ी मुस्कान आती है |

     ख़ुशी अपने भाभी को देखकर सीधा सीढि से होकर उपर अपने भाभी को जाकर गले लग जाती है | अंश आसमान में देखकर अपना शिर हिलाता है मानो जैसे भगवान का आभार मान रहा हो |

     बच गया ... इतना बोलकर अंश भी उपर जाता है |

     दिव्या और ख़ुशी दोनों एक दुसरे को कसके गले लगे हुए थे मानो जैसे बरसो बिछड़ी दो बहने मिली हो | दोनों आज जी भरके रो रही थी जैसे मानो मेघा जी भरके बरखा बरसा रही हो | दोनों को रोते देख अंश की आखो में भी आशु आ गए थे | एक तरफ ख़ुशी थी जिसे अपने भाभी की इतनी चिंता थी की वो अपने परिवार वालो की फ़िक्र करे बिना अपनी भाभी के दुःख में हिस्सा लेने के लिए पहुची हुई थी और दुसरी तरफ वह स्त्री जिसने कुछ नहीं किया था पर फिर भी वह सजा काट रही थी |

     सफ़ेद सारी और शिर पर कोई बाल नहीं सीधी ओढ़ी हुई सारी एसी लग रही थी जैसे बिन बरखा की सुखी जमीन हो | अभी भी कोड़ो के काले घाव थे और आखो में नमी और चहरे पे गायब सी ख़ुशी और रौनक | दिव्या की हालत बहुत खराब थी जिसे सुधारने के लिए अंश और ख़ुशी यहाँ पर आए हुए थे |

     दोनों के अंदर एक दुसरे के लिए बहुत प्यार और इज्जत भरी हुई थी | कुछ देर तक दोनों एक दुसरे को गले लगाये रखती है और दिल खोलकर रो लेती है | रोने के बाद दोनों के अंदर एक हलकापन जरुर महसुस हुआ होगा | अंश अपने आशु पोछता है और फिर दोनों के थोडा नजदीक आता है |

     अंदर चले ख़ुशी यहाँ पर कभी भी वह बॉडीगार्ड चक्कर लगाने के लिए आ सकता है... अंश ने ख़ुशी से कहा |

     दिव्या और ख़ुशी दोनों एक दुसरे से गले लगने के बाद अलग होते है |

     आप फिर से ... दिव्या ने अंश को देखते हुए कहा |

     क्या मतलब भाभी ... ख़ुशी ने अंश को देखते हुए कहा |

     यह कल भी यहाँ पर आए थे अपने दोस्तों के साथ ...दिव्या ने अंश को देखते हुए कहा |

     दिव्या के मु से बात निकलने के बाद अंश ख़ुशी कुछ भी बोले उससे पहले अपनी सफाई देने की शुरुआत कर देता है |

     देख ख़ुशी तु गलत मत समझना, हा में कल यहाँ आया था पर सिर्फ और सिर्फ इनकी मदद के लिए और तु तो जानती है मुझे की मै औरत की कितनी इज्जत करता हु | तुझे पता है ना की हम लोग यहाँ पर हवेली के पीछे ही बैठते है तो मुझे इनकी चिंता हुई की इनती बड़ी और डरावनी हवेली में यह अकेली कैसी होगी और तो और बहुत दिन हो गए लेकिन इनके कोड़ो की मार का कोई इलाज ... अंश के इतना बोलते ही ख़ुशी उसे रोक देती है |

     बस अंश रुक जा मेरी जान रुक तुझे मुझे इतनी सफाई देने की जरुरत नहीं है मैं जानती हु तेरे स्वभाव को और तुझे भी की तु यहाँ पर आया होगा तो किसी की भलाई के लिए ही आया होगा ... ख़ुशी ने कहा |

     मतलब मेरे यहाँ आने पर तेरे दिमाग में कोई सवाल नहीं है ... अंश ने कहा |

     नहीं और होंगे भी क्यों यार कितने साल से तु साथ में है मेरे ... ख़ुशी ने कहा |

     अंश राहत की साँस लेता है |

     उफ़ मुझे लगा तुझे अगर पता चलेगा तो तु क्या क्या सोच बैठेगी ... अंश ने कहा |

     चलो अंदर चलते है यहाँ पर हर २ घंटे में एक बार बॉडीगार्ड देखने के लिए आता है ...दिव्या ने दोनों से कहा |

     तीनो अंदर जाते है और तीनो के बिच संवाद की शुरुआत होती है | तीनो तिन अलग अलग दिशाओ में निचे जमीन पर बैठे हुए थे |

     मुझे माफ़ कर देना भाभी की मेरे परिवार के कारण आपकी आज यह हालत हुई है ... खुशीने अफ़सोस जताते हुए कहा |

     दिव्या अपना ध्यान जमीन की और करके बैठी थी और हाथ अपने दोनों घुटनों पर रखे हुए थे  |

     आप क्यों एसा बोल रही है इस में आपकी कोई गलती नहीं है | गलती मेरे भाग्य की है मैंने ही शायद कोई एसा पाप किया होगा जिनकी सजा में आज भुगत रही हूँ ... दिव्या ने धीमी आवाज में कहा |

     फिर भी आप की जो यह हालत है उसकी वजह तो मेरा परिवार ही है ना अगर उनकी सोच सही होती तो आज आपकी हालत एसी नहीं होती ... ख़ुशी ने कहा

     अगर यह गलत सोच गाव वालो के दिमाग में से नहीं निकली तो यह गाव एक दिन मिट जाएगा ... अंश ने कहा |

     जब एसा पल आता है तो एक पल में आपकी दुनिया आपके परिवार वाले, आपके सपने और आपका सबकुछ आपकी आखो के सामने जलते हुए नजर आता है और वह नजरिया आपको अंदर से पल पल तोड़ने लगता है | आपको कुछ समझ नहीं आता की आपके साथ हो क्या रहा है मानो एसा लगता है जैसे यही जीवन का अंत है पर यह जीवन भी बहुत अजीब है यह एसे मरने भी नहीं देता, यह पुरी सजा यही पर कटवाकर ही आपको छोड़ेगा कभी कभी तो एसे एसे ख्याल आने लगते है | एक पल में जीवन उजड़ता हुआ दीखता है तो एक पल मन मै पता नहीं कहा से और किस वजह से पर एसी आश जगती है जो आपको महसुस कराती है की नहीं अभी भी जीवन बचा है जो आपको मिलेगा पर कैसे इसका कुछ पता नहीं ... दिव्या ने अपने अंदर की हालत को बया करते हुए कहा |

     यही तो जीवन होता है दिव्या जी | जब मेरी माँ अपने जीवन के आखरी पल गिन रही थी तब वह मेरी गोद में थी और मेरे पास मेरी बहन और पापा बैठे हुए थे | माँ बस हमको देखे जा रही थी एक दम शांत और चित मन से पता नहीं पर उसके अंदर एक शांति सी छाई हुई थी और हम तीनो रोए जा रहे थे | हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, हमें मानो एसा लग रहा था जैसे माँ के जाने के साथ साथ हमारा जीवन या हमारे जीवन जीने का मकसत या कारण मानो जैसे जा रहा था पता नहीं लग रहा था की किसके लिए जिए और क्यों... फिर माँ चली गई कुछ दिन बहुत मुश्किल से निकले | हर दिन माँ के बगेर मरने का मन होता है पर हम तीनो एक दुसरे को देखते और एक दुसरे के लिए जीने लगते कहते है इश्वर सबकुछ बहुत सोच समझकर करता है अगर वो किसी को कोई घाव देता है तो उस घाव का मरहम भी वही बनाता है फिर मेरी माँ का स्थान मेरी बड़ी बहन ने ले लिया और मेरे जीवन मै फिर से रंग भर दिए | हम तीनो को वक्त ने एक दुसरे के लिए जीवन जीना सिखा दिया तो यही है जिंदगी यह खुद कुछ छिनती है फिर कुछ सिखाती है फिर खुद ही जो हमारे पास है उसका महत्व हमें समझाकर फिर से जीना सिखा देती है ...अंश ने जीवन का मतलब सिखाते हुए कहा |

      में सब समझती हु की जीवन यही है की एक पल में ख़ुशी और एक पल में दुःख पर जीवन में एक बार समय एसा भी आता है जब जीवन अपने भार तले हमें दबोच देता है और उसमे से बहार निकलना, ना निकलना वह हमारे उपर निर्भर होता है | कुछ लोग पुरा जीवन इस भार के साथ जीते है और कुछ इससे निकलते है | में उन्ही में से हु जो पुरा जीवन इस भार को लेकर चलते है क्योकी मेरे पिता भी इस सोच के गुलाम है जिस वजह से मेरी शादी के बाद उन्होंने मुड़कर भी नहीं देखा की मेरे साथ क्या हो रहा है और तो और मेरी माँ भी मेरी चिंता में मरी जा रही होगी पर क्या करे हमारे यहाँ औरतो के हाथ में कुछ नहीं होता ... दिव्या ने अपने आशु पोछते हुए कहा |

      मेरे जीवन में भी कई पल एसे आए जब मुझे लगा की एसे जीने से तो अच्छा है की में मार जाऊ | जब से छोटी थी तब से में भी गाव की हर औरतो की तरह रिवाजो की बेडियो में बंधी हुई थी | एक गुलाम जैसा जीवन जी रही थी | मुझे भी शहर की औरतो जैसा जीवन जीना था मुझे भी बहार खाने जाने की इच्छा होती थी, घुमने की, खुले हिरोइन जैसे कपडे पहनने की, मूवी देखने की और तो और मेरा भी एक फ्रेंड सर्कल हो पर यह सब मेरे जीवन में संभव नहीं था क्योकी में जिस जगह और परिवार में जन्मी थी वहा उन लोगो के लिए औरतो की ख़ुशी से ज्यादा रिवाजो की बेडिया ज्यादा जरुरी थी | मैंने अपना पुरा बचपन एसे काट दिया और एक दिन मैंने तय किया की मैं छत पर जाकर कूदकर अपनी जान दे दूंगी | में छत पर जा रही थी मुझे लगा की बस यह जीवन यही समाप्त हो जायेगा इसका कोई मतलब नहीं है और मेरे लिए जीते जी मरने से तो मरजाने का रास्ता सही है तो में चली गई जहा मुझे यह बंदर(अंश) मिला जिसने मुझे उस छत से गिरने नहीं दिया और मेरे परिवार से छुपकर मेरे हर एक शोख को और सपने को पुरा किया जिसे में जीना चाहती थी | विश्वा अंकल को कहकर मुझे हॉस्टल में कॉलेज में पढने जाने के लिए मंजुरी दिलाई जिससे में हॉस्टल से छुपकर निकल जाती और अपने हिसाब से अपना जीवन बिताती | यह कमीना तो विदेश में था पर वहा रह कर मेरे लिए सारा बंदोबस्त कर देता जिससे मुझे इन सब के बिच कभी भी घुटन ना महसुस हो तब मुझे यह अहसास हुआ की जब हमको लगे की अब बस जीवन पुरा हो गया तो हमें आश नहीं हारनी चाहिए क्योकी की जीवन के पासे बहुत अजीब होते है यह कब बदल जाए और कब आपको जीवन जीने का कारण दे जाए कोई नहीं बता सकता ... ख़ुशी ने अपने जीवन के बारे में अपना अनुभव बताते हुए कहा |

     आप भी हिम्मत मत हारो आपको भी एक दिन इस जंजाल से निकालकर भगवान जरुर जीवन जीने का कोई ना कोई कारण देगा जिससे आपको जीने की इच्छा होगी ... अंश ने दिव्या से कहा |

     मै सबकुछ जानती हु पर पिछले कुछ दिनों में मेरे साथ एसा एसा व्यवहार हुआ है की अब मन में कोई उम्मीद और कोई आश बची ही नहीं है और यहाँ पर एसा अकेलापन महसुस होता है बार बार घुटन होने लगती है और यहाँ पर तो करने के लिए कोई काम भी तो नहीं है बस दिन रात बैठे बैठे सोचते रहो ... दिव्या ने अपना दुःख बताते हुए कहा |

     तीनो के बिच आज मन भरके बाते हो रही थी | इतनो दिनों अपने अंदर बहुत कुछ भरके बैठी दिव्या आज अपने ह्रदय का पिटारा खोलकर अंश और ख़ुशी के सामने रख रही थी | बहुत दिनों बाद आज दिव्या के मन का और ह्रदय का भार हलका हुआ हो एसा लग रहा था |

     चलो छोडो यह सब दुःख की बाते और आज अभी जो पल मिला है उसे जीते है बहार की दुनिया को छोड़कर | में सबके लिए अच्छा खाना लाई हु साथ मिलकर खाते है ... ख़ुशी ने खाने की बैग खोलते हुए कहा |

     ख़ुशी सबके बिच खाना रखती है और तीनो मिल झूलकर खाना खाते है और इसी खाने के साथ आज दिव्या और अंश के बिच एक पहचान की शुरुआत होती है जिससे वे अब एक दुसरे के लिए अंजान नहीं थे | अब शुरुआत उस दास्तान की होने वाली है जो इस गाव और जिले का इतिहास बदल देगी | पढ़ते रहिएगा Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |        

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY