हमने दिल दे दिया - अंक ५ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक ५

अंक ५ श्रध्धांजली

     एक औरत पे हो रही अत्याचारों की मार आज अंश ने पहली बार देखी थी और यह देख कर उसके अंदर उदासीनता का वातावरण फेल चूका था जिसे समेटकर अपनी आखो में आशु लिए अंश आधी रात को अकेला अपने घर आता है और अपने आप को एक कमरे में केद कर लेता है और जाकर उस कमरे के कोने में बेठ जाता है | बारिश अभी भी तेज बिजली के कडाको के साथ चल रही थी और पुरे गाव में तेज बारिश के कारण बिजली जा चुकी थी | अंश कमरे के कोने में डरा सहमा सा कोई छोटा बच्चा बेठा हो वैसे बेठा हुआ था और उसकी आखो में अविरत आशुओ की धारा बहे रही थी |

     पता नहीं यह लोग इंसान है या शैतान का रूप | कोई अपने ही घर की बहु के साथ एसा व्यवहार कैसे कर सकते है इन लोगो के अंदर हृदय नाम की कोई चीज है नहीं क्या ? बा तो अपनी ही बहु के साथ भेडिये जैसा व्यवहार कर रहे थे अरे तुम्हारा लड़का मारा गया उसकी करतूतों के कारण तो उसमे उस बहु की क्या गलती है की आप उसे सजा देने पर तुली हुई हो | नहीं एसा कैसे हो सकता है नहीं नहीं हो ही नहीं सकता यह मेरा या तो वहेम है या फिर सपना अरे नहीं हो सकता ... अंत के कुछ शब्द चिल्लाते हुए और अपने आप को दो तिन चाटे मारते हुए अपने आप से अंशने कहा |

     मार लो बेटा जिससे यह तय हो जाये की यह सपना नहीं है हकीक़त है जिसके शाक्षी तुम और में हम दोनों है | यही होता आ रहा है इस गाव में बरसो से हर एक औरतो के साथ | आज जो दिव्या के साथ हुआ वो तो कुछ नहीं था इससे भी बड़ी-बड़ी सजाए गाव की कई औरते भुगत चुकी है | तुम्हारे आने के एक दिन पहले ही इस गाव वालो ने मिलकर एक लड़की और चार लडको को बेरहमी से मार डाला | लड़की को जबरदस्ती अग्निस्नान करवाया और लडको को मौत का फंदा पहनाकर उपर पेड़ से लटका दिया गया | इसलिए तुम्हे बोलता हु की इस गाव में कुछ नहीं बचा यहाँ से चले जाओ और बहार जाकर अपना जीवन बनाओ ... विश्वराम केशवा ने रूम का दरवाजा खोलकर दरवाजे के बीचो बिच खड़े रहकर कहा |

     अँधेरे में दोनों की सकले तभी ही दिखाई दे पड़ रही थी जब जोर से बिजली कड़कती थी | अंश अपनी जगह से अपने पिता की आवाज सुनकर खड़ा होता है और अपने पिता से लिपट जाता है |

     तुम क्यों रो रहे हो तुम्हारे साथ थोड़ी कुछ हुआ है ... विश्वराम केशवा ने कहा |

     मुझे माफ़ कर देना पापा की आज तक मैंने कभी भी आपकी एक ना सुनी और इतने सालो से मेरे प्यार और मेरी आश के लिए मेरी बहन तड़पती रही पर मैंने उसके साथ बात तक नहीं की पर आज सब समझ आ गया की मेरी बहन ने उस समय जो भी निर्णय लिया था वो एकदम सही निर्णय था ... अंश से भावुकता से कहा |

     जब मैने उसका रिश्ता बाजू के गाव वाले लड़के के साथ तय करने की बात रखी तो वो किसी और के साथ भाग गई जिसकी खबर सिर्फ हम दोनों को ही थी बेटा | वो रात पुरी मैंने रोकर बिताई की एसी क्या खामी मेरी परवरिश में रह गई थी की उसने एसा कदम उठाया पुरी रात सोचा पर कुछ समझ नहीं आया अंत में एक ही ख्याल आया की अगर उसके भागने की खबर मानभाई और गाव वालो तक पहुची तो वे लोग मेरी इज्जत का और गाव की इज्जत का सोचकर उसे और उस लड़के को मार डालेंगे और तब मैने सबकुछ छोड़कर एक पिता की तरह सोचने की शुरुआत की तब मन में एक ही ख्याल आया की वो बच्ची है मेरी और बच्चे तो गलती करते है और अगर उस गलती से कुछ अच्छा होता है तो वह गलती माफ़ की जा सकती है | हा यह बात अलग है की उसने भाग कर गलती की थी की किसी भी लड़की को भागना नहीं चाहिए क्योकी जब किसी बाप की लड़की भाग जाती है तो उस बाप की हालत जो होती है वो वही जानता है पर मानसी ने वह कदम इस वजह से लिया था ताकि उसे भी अपना जीवन इन रिवाजो में काटना ना पड़े और हा मानसी सिर्फ भागी थी उसने मेरी मरजी के बिना शादी का निर्णय नहीं लिया था | मैने दो चार दिन वह बहार गाव घुमने गई है एसा बहाना मानभाई के सामने बनाया और दिलीप सिंह की मदद से उसे ढूढ़ निकाला और लड़के वालो के परिवार से मिलकर उसकी शादी तय कर दी और गाव वालो के सामने बड़े धूमधाम से उसकी शादी मैने कर दी और किसी को कानो कान भी यह खबर नहीं लगने दी की मानसी कभी भाग गई थी | वो दिन है और आज का दिन है तुम्हारे जीजाजी मानसी को रानी की तरह रखते है और उसे पढ़कर कलेक्टर भी बना दिया है और अपना जीवन अच्छी तरह पसार कर रही है तभी यह ख्याल जहेन में आता है की अगर उस समय मैंने उसकी शादी पास वाले गाव के लड़के के साथ कर दी होती तो क्या आज उसका जीवन एसा होता | कभी कभी आपके साथ हो रही गलत घटनाए भी आगे जाके आपके लिए सही और फायदेमंद साबित होती है | मानकाका को आज भी यह पसंद नहीं है की मानसी नोकरी करती है पर क्या करे वो खुद कलेक्टर है और ससुर दिल्ली कोर्ट के जज तो मानसिंह जादवा उनका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते और इसी एक कारण की वजह से मुझे मानसी का उस समय लिया गया निर्णय आज सही लगता है | में खुश हु मेरी बेटी की तरह तुम भी अपना जीवन बहार जाकर बना लो बेटा ... विश्वराम केशवा ने अपनी बेटी को लेकर जो घटना कुछ साल पहले हुई थी उसका जिक्र करते हुए कहा |      

      मुझे माफ़ कर देना पापा में मानसी को भी कल फोन कर लुंगा और जल्द से जल्द इस गाव को भी छोड़ दूंगा ... अंश ने अपने पिता से कहा |

      यहाँ के लोगो के लिए जीवन रिवाजो और अपनी झूठी शान और इज्जत से बढ़कर नहीं है और जादवा परिवार के लिए सत्ता से बढ़कर कुछ नहीं है | जादवा परिवार पहले से ही अपनी झूठी शान और इज्जत की वजह से कितनो की बली चढाते आ रहे है इनसे ना उलझना ही अच्छा है ... विश्वराम केशवा ने कहा |

      इस तरफ जादवा सदन में | सभी लोग अपने अपने कक्ष में बेठे हुए थे और किसी को भी नींद नहीं आ रही थी | हर किसी की आखे नम थी | मानसिंह जादवा अपने आप को वीर की मौत के दुःख से बहार नहीं ला पा रहे थे और ना ही खुलकर रो पा रहे थे | बा अपने कक्ष में माला जप रहे थे |

      सबसे ख़राब हालत अगर किसी की थी तो वो थी वीर की पत्नी दिव्या | बारिश में भीगी हुई और कोड़े लगने की वजह से पुरे शरीर में जो जख्म हो गए थे वो दिव्या को वीर की मौत से भी ज्यादा तकलीफ दे रहे थे | दिव्या अकेली ही अपने कक्ष में बेठी थी और रोये जा रही थी | वीर और दिव्या के बिच अभी तक उतना प्रेम नहीं था पर फिर भी वह पति था जिसका थोडा सा दुःख दिव्या को लगा था लेकिन उससे कई गुना ज्यादा दुःख उसके साथ इस घर में वीर के जाने के बाद जो व्यवहार हुआ और आगे होने वाला है उसको लेकर था |

      ख़ुशी दिव्या के रूम में कुछ एसे पदार्थ लेकर आती है जिससे दिव्या के घाव की दवा की जाए जिससे दिव्या की तकलीफ कुछ कम हो सके |

      भाभी आप भीगी हुई हालत में अब तक बेठी हो आओ में आपको कपडे बदलने में मदद कर दु ... अपनी धीमी आवाज में ख़ुशी ने कहा |

     आज जो भी जादवा सदन में घटित हुआ वो सारा माहोल ख़ुशी के लिए भी नया ही था | ख़ुशी अपने पिता की तरह नहीं थी वो अपनी माँ की तरह दयालु थी और पढ़ी-लिखी होने के कारण फालतु रिवाजो में मानती नहीं थी पर परिवार के कुछ सदस्य के सामने ख़ुशी का मॉल-भाव नहीं था | ख़ुशी की आवाज सोच में खोई हुई दिव्या के पास नहीं पहुच रही थी | ख़ुशी अपनी भाभी के पास जाती है और उसे स्पर्श करती है |

     भाभी ... ख़ुशी ने कहा |

     ख़ुशी के छूने से दिव्या सोच के भवंडर से एक दम से बहार आ जाती है |

     हा... हा... ख़ुशी बहन आप यहाँ पर आप यहाँ पर मत आईए अगर आपको किसी ने देख लिए तो में विधवा हु में शापित हु ... दिव्या ने अपनी रोती हुई धीमी आवाज में कहा |

     शांत भाभी शांत में उन रिवाजो में नहीं मानती मेरे अंदर ह्रदय है आप इन घाव के साथ ज्यादा देर तक रहेंगे तो इससे यह और भी बिगड़ सकते है इसलिए आप पहले अपने आपको पोछ लीजिए और कपडे बदलकर यह दवाई लगा लीजिए ... ख़ुशी ने दवाई की चीजे आगे करते हुए अपने भाभी से कहा |

     दोनों के बिच संवाद चल ही रहा था तभी बा अचानक वहा आ पहुचते है और ख़ुशी को दिव्या के साथ देख लेते है |

     ख़ुशी ... बा ने जोर से चिल्लाते हुए कहा |

     ख़ुशी और दिव्या बा की चीख से भड़क जाते है | बा की चीख जादवा सदन के हर एक कक्ष में सुनाई देती है जिसे सुनकर सभी सदस्य अपने अपने कक्ष से बहार आ पहुचते है |

     तुम्हे हमारी मर्यादा और हमारे रिवाजो का कोई अंदाजा है अगर नहीं है तो में तुम्हे शिखा दु ... बा ने अपनी दोनों आखे अपने गुस्से से चोहडी करते हुए कहा |

     पर बा में तो सिर्फ मरहम लगाने आई थी उनको लगा हुआ है ... ख़ुशी ने बा के सामने बोलते हुए कहा |

     सामने जवाब मत दे उसे जो भी लगा है वो उसके पापो का कर्म है वो उसे भुगतने दे अगर तु उसके साथ रही तो उसका अभागन तुझे भी लग जाएगा और तु भी अभागन बन जायेगी आज से कोई भी औरत इस अभागन से बात नहीं करेगी इसे सिर्फ जब तक यहाँ है तब तक खाने पिने की चीजे चुप-चाप यहाँ दरवाजे पर पंहुचा दि जायेगी और तु निकल अभी यहाँ से वो खुद लगा लेगी जो लगाना होगा वह ... बा ने बड़े गुस्से के साथ कहा |

     बा के इतना गुस्सा होने के कारण ख़ुशी दुःखी हो जाती है और रोते हुए अपने कक्ष की और चली जाती है | बा भी दिव्या की तरफ अपनी घिनता भरी नजरे डालकर चले जाते है और बाकी के सारे सदस्य भी कुछ भी बोले बिना अपने अपने कमरे में चले जाते है |

     आपको शायद यह रिवाज बहुत कठिन लग रहा होगा पर हमारे समाज में और देश के कई कोने में आज भी इससे भी कठिन परिस्थितिओ से औरतो को गुजरना पड़ता है | नवलगढ़ गाव की और जादवा परिवार की हर औरते सिवाय बा के अच्छी तरह जानती थी की यह जो भी हो रहा है वह बहुत ही गलत हो रहा है पर उनकी आवाज यहाँ के मर्दों और समाज के कठिन रिवाजो के कारण दबी हुई थी जिनका उठाना नामुमकिन जैसा लग रहा था |     

     आज की अँधेरी रात सच में सबके लिए अँधेरी थी जो कुछ इस तरह सबके लिए बीतती है | दुसरे दिन सुबह | मानसिंह जादवा के घर तिन दिन तक वीर के श्रध्धांजली का कार्यक्रम रखा गया था | बिच आँगन में वीर की फोटो लगाई गई थी और आस-पास लोगो के लिए बेठने के लिए व्यवस्था की गई थी | घर के एक कोने में वीर की आत्मा की शांति के लिए तिन दिन के अखंड भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया था |

     बड़े व्यापारी, बड़े राजनैतिक होद्दे वाले लोग और बड़े बड़े अफसर आज जादवा सदन वीर को श्रध्धांजली पाठने के लिए आ रहे थे |

     शक्तिसिंह भी अपनी उदारता दिखाने के लिए जादवा सदन पहुचता है | जादवा सदन के आँगन में पैर रखते ही सबसे पहले शक्तिसिंह वीर की फोटो पर फूल चढ़ाता है और उसे सादर नमन करके अपने बड़े भाई मानसिंह जादवा के पास जाता है और उनके गले लगकर उनको शांत्वना देने की कोशिश करता है |

     भाईसाहब जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ वीर के साथ आप चिंता मत करियेगा हम आपके साथ है और हम आपके बेटे जैसे ही तो है ना ... आखो में मगरमच्छ के आशु के साथ शक्तिसिंह ने कहा |

     मानसिंह जादवा कुछ भी बोल नहीं रहे थे वो बस अपने आप को सँभालने की कोशिश कर रहे थे |

     हा पता है तु मेरे बेटे जैसा ही है | तुन्हें हमेशा हमारा बुरे वक्त में साथ दिया है वीर का जाना हमारे लिए बहुत ही दुःख की बात है उसके जाने के बाद हम अपने आप को संभाल नहीं पा रहे है बस अब हमारी इतनी चाहत है की अब सुरवीर के साथ तुम हमारी गाव के पास बन रही केमिकल कंपनी को संभाल लो ताकि मुझ पर से थोडा बोज कम हो सके ... मानसिंह जादवा ने अपने चचेरे भाई से कहा |

     आप चिंता ना करे आपके उपर से मे सारे बोज अपने उपर ले लुंगा आपकी हर जिम्मेवारी में अच्छे से निभाऊंगा ... शक्तिसिंह ने अपने नापाक तरीको को अपने बातो में एसे जाहिर करते हुए कहा की मानसिंह जादवा को उसकी गलत नियत दिखाई ही नहीं दे पड़ रही थी |

     शक्तिसिंह के बाद गाव के लोगो के साथ मानिसंह जादवा का जिनके जिनके साथ संबंध था वह हर कोई आज वीर को श्रध्धांजलि अर्पण करने के लिए आ रहा था | अंश भी आज वही पर हाजिर था अपने पिता के साथ और उसकी नजरे बार बार दिव्या को ही तलाश रही थी | आँगन में हर कोई हाजिर था सिवाय दिव्या के | दिव्या को रिवाज के मुताबिक अपने कक्ष में अलग ही रखा गया था | अंश के दिमाग में दिव्या के साथ क्या हुआ होगा वो ठीक तो होगी ना उसे कही कुछ हुआ तो नहीं होगा ना एसे अनेको सवाल आ रहें थे और इन सवालों से अंश से रहा नहीं गया और वह कुछ काम को लेकर जादवा सदन के अंदर के हिस्से में घुस जाया है और दिव्या का कक्ष छुपकर और बड़ी सावधानी के साथ ढुढने लगते है | जादवा परिवार एक राजवी परिवार था तो जाहिर है की जादवा सदन बड़ी हवेली जैसा ही होगा | लगभग-लगभग हवेली में कोई नहीं था | सबसे पहले अंश दिव्या को निचे के माले में चारो तरफ देखते हुए सतर्क होते हुए आगे बढ़ता है और हर एक कक्ष में नजर कर रहा था फिर पहले माले में ना मिल पाने पर अंश छुपकर दुसरे माले पे जा रही सीढ़ीयो के पास जाता है और जैसे ही चढ़ने जाता है तभी उपर से एक महिला निचे उतरती है और अंश को वो महिला  देख ले उससे पहले सीढ़ी के बाजु में थोडासा गलियारा पड़ता है वहा पर अंश छुप जाता है और वह महिला बिना अंश को देखे निचे उतरकर आँगन में जहा हर कोई बेठा था वहा पर जाकर बेठ जाती है और अंश फिर से बड़ी सावधानी के साथ उपर दुसरे माले पर चला जाता है | पुरानी हवेली थी जिसके दुसरे माले के सारे रूम के सामने झरुखा था जिससे निचे खड़े हर इंसान को दुसरा माला सही से दीखता था | अंश दुसरे माले पर जहा जाकर सीढिया ख़त्म होती है सबसे पहले वही पर कुछ देर रूककर चारो और नजरे घुमा लेता है की कही से उसे कोई देख सकता है और कहा से नहीं और साथ ही साथ वह यह भी अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था की दिव्या को किस कमरे में रखा गया होगा |

    अंश जैसे ही नजरे घुमाता है उसे एक कमरे में उस कमरे के खुले दरवाजे से दो तिन महिलाए दिखाई देती है और वह समझ जाता है की शायद यही दिव्या का कक्ष होगा लेकिन दुसरी महिलाओ के वहा पर हाजिर होने की वजह से वो तो वहा पर जा नहीं सकता लेकिन सभी माले पर झरुखा होने की वजह से दुसरे माले के हर एक रूम को तीसरे माले से देखा जा सकता था इसलिए अंश तीसरे माले पर चला जाता है जहा पर जाकर झरुखे की छोटी दीवाल के पीछे ठीक दिव्या के रूम के सामने की और बेठ जाता है और दिव्या के रूम की खुली खिड़की से देखने की कोशिश करता है की अंदर क्या चल रहा है |

     अंश को अंदर रूम में दिव्या के साथ जो होता हुआ व्यवहार दिखा उससे अंश और भी अंदर से हिल जाता है |

     अंश को खिड़की से दीखता है की दो चार औरतो के घेरे के बिच में बेठी दिव्या अपने शिर के बाल उस्तरे से खुद उतार रही थी और उसकी आखो में अविरत आशु बह रहे थे और आस-पास खड़ी औरते थोड़ी-थोड़ी देर होने के बाद दिव्या पर जल छिड़क रही थी | यह सब देखकर अंश की आखो में भी आशु आ जाते है और अंश कुछ देर वही पर ही बैठ जाता है |

     दिव्या की किस्मत अब उस मोड़ पर चली गई थी जहा पर सिर्फ और सिर्फ दुःख ही था | अंश को बार बार दिमाग में यह ख्याल आ रहा था की यह रिवाज क्यों ? इसे क्यों मिटाया नहीं जाता लेकिन वो भी अकेला था और इस परिवार के उपकारो और प्रेमजाल में फसा हुआ था इस वजह से वह कुछ भी नहीं कर सकता था और तो और अंश के पास इतनी ताकत भी नहीं थी की अंश मानसिंह जादवा के इन रिवाजो को मिटा सके | अब देखना यह रसप्रद होगा की कैसे अंश और दिव्या एक होते है और इस गाव का इतिहास बदलते है या तो खुद इतिहास बनकर रहे जाते है |

     अंश वहा से खड़ा होकर सदन के छत पर चला जाता है और जाकर मन ही मन कुछ गिडगिडाने लगता है |

     एसे लोगो को ही अगर मर्द कहते है तो साला इससे तो अच्छा ही है की नामर्द कहलाना | जो दुसरो के दुःखो को समझे उसे मर्द कहते है यहाँ पर तो औरतो को दर्द पहुचाने वालो को मर्द की उपाधी दी जाती है नहीं एसा नहीं चलेगा कुछ तो करना होगा मुझे एसा अगर हर एक औरत के साथ होता रहा तो तो एक दिन यह गाव नरक से भी ज्यादा बत्तर हो जाएगा और एक दिन यह गाव मिट जायेगा और में एसा नहीं होने दूंगा में अपने गाव के लिए जरुर कुछ ना कुछ करूँगा | मुझे हाईकोर्ट में अरजी करनी चाहिए वहा पर शायद मानसिंह जादवा का कुछ नहीं चल सकता ... अंश के मन में छत पर जाने के बाद एसे अनेको ख्याल आ रहे थे |

     सारे ख्यालो के बिच उसे अपनी बहन मानसी का भी ख्याल आता है और अपनी जेब से फ़ोन निकालकर अपनी बहन को फोन लगाता है | पहली बार में मानसी फोन नहीं उठती फिर अंश दुसरी बार फोन लगाता है और दुसरी बार मे मानसी अंश का फोन उठाती है |

     हेल्लो ... मानसी ने अपनी धीमी आवाज में कहा |

     कलेक्टर साहिबा के ५ मिनट मिल सकते है कुछ जीवन विकास की बात करनी थी ... अंश ने रोते हुए अपनी बहन से कहा |

     अंश बहुत ही भावुक व्यक्तित्व वाला था वो हर बात पे भावुक हो जाता था | अंश अपनी बहन से करीब-करीब ६ साल बाद बात कर रहा था इसलिए वो रो पड़ता है |

     अंश ... इतना बोलकर ६ साल बाद अपने भाई की आवाज सुनकर मानसी भी रो पड़ती है |

     कैसी है तु ... अंश ने चहरे पे मुस्कान और आखो में अपने आशु पोछते हुए कहा |

     अब तक का पता नहीं पर तेरी आवाज सुनकर में बहुत खुश हु मेरे छोटे ... मानसी ने भी अपने आशु पोछते हुए कहा |

     मुझे माफ़ कर दे यार में तुझे समझ नहीं पाया और मैंने तुझ से ६ साल तक बात नहीं की और ना तो तेरा हाल-चाल पूछा ... अंश ने अपनी भूल को सुधारने की कोशिश करते हुए कहा |

     तेरी एक आवाज सुनकर में तेरी हर एक गलती को भुल गई बस अब तु जल्दी से यहाँ पर मुझे मिलने आजा तुझे देखे ६ साल हो गए ... मानसी ने कहा |

     में आऊंगा मुझे भी तुझे जोर से झप्पी देनी है और तेरे पैर में पड़कर सारी गलतियों की माफ़ी मांगनी है ... अंश ने अपनी बहन से कहा |

     गाव का एकलोता मर्द है तु अंश जिसे लडकियो की इज्जत करना आता है मुझे गर्व है तुझ पर ... मानसी ने कहा |

     अच्छा तुझे पता है क्या वो वीर की मौत हो गई अकस्मात में ... अंश ने कहा |

     हा पापा का फोन आया था मुझे बिचारी उसकी पत्नी का तो इन भेडियो ने क्या हाल किया होगा ... मानसी ने कहा |

     बात मत पुछ यह सब देखकर आज मुझे पता चला की तुन्हें जो फेसला किया था वह बिलकुल सही था पर मुझे तु यह बता की तु वहा पर खुश है उन लोगो के बिच ... अंश ने यहाँ की हालत देखकर मानसी के हालात पुछते हुए कहा |

     मुझे पता है अंश की वहा की हालत देखकर तेरे दिमाग में भी यह ख्याल आया होगा की मेरे साथ भी एसी दिक्कत तो नहीं है ना क्योकी ससुराल में लडकियो की हालत अक्सर ख़राब होती है पर एसा नहीं है हर कोई एसा नहीं है | मेरे सास-ससुर मुझे अपनी बेटी की तरह रखते है और उसका सबसे बड़ा सबुत यह है की मै आज कलेक्टर हु तु मेरी चिंता ना कर और वहा पर भी ज्यादा सोच मत कुछ दिन यहाँ पर आजा ... मानसी ने कहा |

     हा देखता हु ... अंश ने अपना फ़ोन काटते हुए कहा |  

     अंश कुछ देर तक वही पर रुकता है |

     जादवा सदन में एक तरफ लोग वीर को श्रध्धांजलि अर्पण करने आ रहे थे और दुसरी तरफ मानसिंह जादवा सबसे अलग एक कमरे में विश्वराम केशवा, दिलीप सिंह और अपने बड़े बेटे सुरवीर के साथ बेठे हुए थे और कुछ सोच रहे थे |

    विश्वराम जी और दिलीप आप दोनों कुछ दिन व्यापार का सारा काम देख लेना क्योकी में और सुरवीर कुछ दिन तक काम पर आ नहीं सकेंगे और वह केमिकल की कंपनी को जल्द से जल्द शुरू करने की तैयारी कर दो ... मानसिंह जादवा ने कहा |

    आप काम की और व्यापार की बिलकुल चिंता ना करे आप अपने परिवार को संभालिए और रही बात केमिकल कंपनी की तो वो गाव के बिलकुल बगल में है इसलिए मंजुरी लेने में दिक्कत आ रही है ... विश्वराम केशवा ने कहा |

    विश्वराम जी हमारे कई व्यापार एसे है जो गलत है फिर भी हम चला रहे है वैसे ही इसको भी शुरू कर दो जल्द से जल्द ... मानसिंह जादवा ने गलत तरीके से उस कंपनी के लिए मंजुरी लेने का संकेत देते हुए कहा |

    जी बिलकुल मानभाई ... विश्वराम केशवा ने कहा |

    सुरवीर तुम जल्द से जल्द भवानी सिंह से बात करो और उसे कहो की वीर के अकस्मात के बारे में छानबीन करे की उसमे वीर की गलती है या फिर कुछ और ? और हा साथ में यह भी पता लगाओ की आखरी वक्त वीर के साथ कौन था क्योकी वीर शराब पी कर कार जरुर चला रहा था पर क्या पता वो कार ठोके उससे पहले किसी ने उसको उड़ा दिया हो ? जो भी है हमें पता नहीं है पर कैसे वीर की मृत्यु हुई यह जल्द से जल्द पता करने के लिए पुलिस को कहो और हा ध्यान रहे यह केश किसी सरकारी पन्ने पर नहीं चढ़ना चाहिए हम ही इसे अपने तरीके से देख लेंग क्योकी अगर बात बहार फेल गई की मानसिंह जादवा का बेटा शराब पीकर कार चला रहा था तो बहार हमारी बहुत बदनामी होगी जिसका नुकशान हमें चुनाव में भी हो सकता है ... मानसिंह जादवा ने अपने बेटे से कहा |

    जी ... सुरवीर ने उत्तर में कहा |

   भवानी सिंह भी उस जगह अपने दो हवालदारो के साथ पहुच चूका था जिस जगह पे वीर का अकस्मात हुआ था जहा उसकी कार अभी भी वैसी की वैसी हालत में थी | भवानी सिंह मानसिंह जादवा के आदेश का इंतजार करने वाला अफसर नहीं था | भवानी सिंह बहुत ही तेडा अफसर था जिसे हर किसी के मजे लेना का शोख था और इस वक्त उसकी नजरो में था मानसिंह जादवा |

    भवानी सिंह रोड से थोड़ी दुर पड़ी वीर की बुरी तरह से तूट चुकी कार को देख रहा था और उसके आस-पास पड़ी हर एक चीज को |

    यह खून के सैंपल ले लो क्या पता कई वीर के अलावा भी किसी और के हो ... अपने हवालदार से कहा |

    हवालदार के नाम मनसुख भाई और महेन्द्र भाई था |

    मनसुख भाई आप यह बताईए की आपको क्या लग रहा है की यहाँ पर क्या घटना घटित हुई होगी ... मनसुख भाई के कंधे पर हाथ रखते हुए भवानी सिंह ने कहा |

    अभी सर आपके साथ काम करके इतना पता चला है की यहाँ पर वही हुआ होगा जो हम मानसिंह जादवा को दिखाना चाहेंगे ... हवालदार मनसुख ने हसते हुए कहा |

    सही है अब इसके लिए सबसे पहले हमको जानना होगा की यह अकस्मात हुआ कैसे उस साले वीर की बॉडी से शराब की भी दुर्गंध आ रही थी सारा माजरा क्या है शादी के दुसरे दिन ही शराब ... भवानी सिंह ?

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY