Humne Dil De Diya - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

हमने दिल दे दिया - अंक ९

     अगर आपने आगे के ८ अंको को अभी तक नहीं पढ़ा है तो सबसे पहले उन अंको को पढ़ ले ताकी आपको यह अंक अच्छे से समझ आए |

     भाई मुझे बहार जाना ही होगा मुझे जोर से पेशाब आई है भाई ... पराग ने खरे मौके पर कहा |

     अबे बहार बा पहुचती ही होगी अगर तु गया तो दुसरी बार कभी पेशाब नहीं लगेगी ... अंश ने पराग से कहा |

     जो भी हो में जा रहा हु मुझसे नहीं रहा जाएगा ... अपनी जगह से खड़े होकर पराग ने कहा |

     जैसे ही पराग पेशाब के लिए बाहर जाने के लिए अपनी जगह से खड़ा होता है उधर बहार उसी वक्त बा दिव्या के कक्ष का दरवाजा खटखटाती है |

     दिव्या बताना मत बा को ... मन ही मन अंश ने दिव्या को दरवाजा खोलने जाते हुए देख कहा |

     दिव्या सबसे पहले अपनी साडी सही करती है और घुघट तानती है क्योकी इस बार उसे पता था की बहार और कोई नहीं बा है | अपने बदन में पुरी तरह साड़ी ढकने के बाद दिव्या दरवाजा खोलती है और सामने बा को पाती है |

     जय श्री कृष्णा बा ... दिव्या ने बा को देखकर अपना शिर निचे झुकाकर कहा |

    अरे वाह विधवा होने का एक नियम तो तु शिख गई ... सुबह जल्दी उठने का ... बा ने अपने साथ आए लोगो के साथ अंदर आते हुए कहा |

     आज कल नींद ही कहा आ रही है बा ... दिव्या ने बा से कहा |

    अगर बा को एसे जवाब देने लगेगी तो नींद के साथ जबान भी चली जायेगी ... कक्ष में इधर-उधर देखते हुए बा ने कहा |

    अबे यह बा हर तरफ क्यों नजरे घुमा रही है सीधा अपना काम कर और निकल ... अंश ने कमरे में हर तरफ नजरे घुमा रही बा को देखते हुए कहा |

    भाई इसका कुछ कर वरना में यही पर मुत दूंगा ... पराग ने अंश से कहा |

    पराग की बाते सुनकर अंश इधर उधर देखता है जहा उसे एक खाली बोटल दिखती है वो उठाकर पराग को देता है |

    यह ले इसमें कर ले और हा शांति से बिना आवाज के और अपनी जुबान बंद रखना ... अंश ने बोटल देते हुए कहा |

    चलो पंडित तुम अपनी जो भी विधि है उसकी शुरुआत करो ... रूम में एक तरफ सामान था और एक तरफ खुरशी थी जिसके उपर बा अपना एक पैर चढ़ाकर बैठती है |

     बा अपने साथ पंडित और औरतो को दिव्या के लिए कुछ विधि करवाने के वास्ते सभी को यहाँ पर लाए थे |

     आप इधर बिच में बैठ जाईये जी और अपना घूँघट निकाल दीजिए ... पंडित जी ने दिव्या से कहा |

     दिव्या अपने शिर से घूँघट निकालती है और सबके बिच जाकर बैठ जाती है | दिव्या के शिर पे एक भी बाल नहीं था और ना ही पुरे शरीर पर कोई गहेना | सारी ओढने के बाद शरीर का जितना भी हिस्सा दीखता था उस सारे हिस्से पर कोड़े लगने के निशान अब भी दिख रहे थे जो समय बीतने पर काले पड़ गए थे | जादवा परिवार और गाव वालो ने मिलकर दिव्या के जीवन के सारे सिंगार और अपने दोनों ही छीन लिए थे | आज भी देश में कई जगाए एसी है जहा पर विधवा होना पाप से भी बढ़कर माना जाता है |

    पंडित जी दिव्या को बिच में बिठाकर विधिवत तरीको से सारी विधि की शुरुआत करता है | सबसे पहले दिव्या के उपर कुछ चमच जल डालता है जैसे हम भगवान की विधि करते है तब जैसे उनको नहेलाते है वैसे ही कुछ | पाच बार जल डालने के बाद फिर उसी चमच से पंचामृत का पाच बार छिडकाव करता है और फिर से पाच बार पंडित जी जल का छिडकाव करते है |

    यह सारा छिडकाव दिव्या के शिर पर हो रहा था जिस पर बिलकुल बाल नहीं थे | औरतो के बाल को मुंडवा देना औरतो के लिए बड़ी ही अपमान जनक बात होती है और यह सारी विधिया बार बार दिव्या को अंदर से तोड़ रही थी | दिव्या की आखो में यह सब देखकर आशु आ जाते है |

    जो कुछ भी हो रहा था वो सबकुछ सामान के पीछे छुपा हुआ अंश देख रहा था और दिव्या के दर्द को भालीभाती महसुस कर रहा था |

    यार यह बा तो किसी डायन से कम नहीं है यार अंश ... पराग ने सबकुछ देखते हुए कहा |

    मेरा तो मन कर रहा है की अभी यहाँ से उठाकर साले उस पंडित की और बा दोनों की धुलाई कर दु पर क्या करे एसे परिस्थिति बिगड़ सकती है और कुछ नहीं हो सकता ... अंश ने सबकुछ देखते हुए कहा |

    विधि अपने हिसाब से चल रही थी | पंडित जी मंत्रजाप करते हुए दिव्या के हाथ पर कुछ धागे बाँध रहे थे और फिर उनको चंदन और केशर से नहेलाने का पंडित आदेश करता है |

    बा वो घड़ा(पानी भरने का साधन) केशर और चंदन का ... पंडित जी ने बा से कहा |

    अरे वो तो गाड़ी में ही छुट गया जाईये कोई एक और लेकर आईए ... बा ने साथ आई कुछ औरतो में से एक से कहा |

    साथ आई औरत में से एक उस घड़े को लेने के लिए जाती है और जाते वक्त पीछे का दरवाजा जो अंश और पराग ने खोला था जो अभी भी खुला पड़ा था उसे देख लेती है और कुछ सोचते हुए बहार गाड़ी में पड़े उस घड़े को लेने के लिए चली जाती है | ५ मिनिट समय बीतता है | वह औरत घड़ा लेकर उपर के कक्ष में पहुचती है और पंडित जी को सोपती है |

    पंडित जी उस घड़े पर भी कुछ विधि करते है जिस पर अबिल और गुलाल फेकते है जिसके बाद वह थोडा गुलाला और अबिल दिव्या के शिर पर भी डालते है और बाद में साथ आई औरतो को कहते है |

    यह घड़ा लीजिए और चारो और घुमते हुए इनको पवित्र स्नान करवाईए ... पंडितजी ने कहा |

    साथ आई वह औरते अपने हाथ में वह घड़ा साथ मिलकर उठाती है और दिव्या के चारो और घुमते हुए उसे केशर और चंदन के रस से भरे प्रवाही से उसे नहेलाती है |

    दिव्या की आखो में यह सब देखकर आशु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे | शादी के जोड़े में सजी दुल्हन जब हजारो सपने अपने साथ सजाकर जिस घर में लाई हो और वही घर उन सपनो की चिता बना कर उसे जला डाले और उन पर अत्याचार की छत डाल दे तब उस औरत की तकलीफ असहेनीय होती है | आज दिव्या की भी हालत बिलकुल वैसी ही थी | दिव्या की आखो में आशु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और तो और दिव्या से यह सब देखा नहीं जा रहा था | हर रोज उसके साथ रिवाजो के नाम पर कुछ ना कुछ किया जा रहा था | दिव्या मानो जैसे जादवा परिवार और गाव वालो के लिए अपना रिवाज बनाए रखने का एक खिलोना बन गई थी जिसके साथ हर दिन बा के द्वारा कुछ ना कुछ नया खेल खेला जा रहा था |

    अंश भी यह सब देखने के लिए तैयार नहीं था उसे भी यह सब देखकर उसका खून खोलता था पर क्या करे वह अभी इतना सक्षम नहीं था की इन सभी की सोच के सामने लड़ सके इस वजह से वह भी सबकुछ बस देखे जा रहा था |

    विधि को पुर्ण होते होते करीबन १ घंटा और ४५ मिनिट गुजर चुके थे और अभी भी सभी अपनी अपनी जगह पर ही थे | अशोक और चिराग बहार अंश और पराग का इंतजार कर रहे थे और मन ही मन गभरा भी रहे थे की कही पराग और अंश पकडे तो नहीं गए होंगे ना | उन्हें कुछ सूज नहीं रहा था |

    जरा उन्हें फोन लगाकर तो देख ... चिराग ने अशोक से कहा |

    नहीं लगा सकते यार अगर वो बा के आस-पास कही छुपे होंगे और हमने फोन किया तो फोन की आवाज से वह लोग पकडे भी जा सकते है इस से अच्छा है की हम वही करे जो हमारे दिमाग में अभी आ रहा है क्योकी में ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता ... अशोक ने कहा |

    ठीक है तो फिर यही सही ... चिराग ने भी हामी भरते हुए कहा |

    इस तरफ चिराग और अशोक असमंजस में थे की अंदर हवेली में गए हुए पराग और अंश का क्या हुआ होगा और अंदर दिव्या के साथ जो व्यवहार हो रहा है उसे देखकर अंश और पराग बहार जाने की चिंता या बहार की सारी स्थिति को भुल चुके थे उन्हें बस दिव्या के साथ जो गलत व्यवहार हो रहा है वही दिख रहा था |

    अब विधि संपन्न होती है आप अब ईश्वरीय स्नान के बाद के हर एक माया से पवित्र है और इस पवित्रता के साथ आप अब अपना विधवाव्रत पुरी निष्ठां और पवित्रता के साथ निभा सकते है | बा यह विधि कार्य संपन्न हो गया है अब बस ब्राह्मण को दक्षिणा दे दे जिससे विधि पुरी तरह संपन्न हो जाए ... ब्राह्मण ने अपनी जगह से उठते हुए कहा |

    बा अपनी जगह से उठकर दिव्या के पास आती है |

    आपको आपकी दक्षिणा मिल जायेगी पंडितजी और आप अब से एक पवित्र विधवा है और आपको जो यह सफ़ेद सारी पहनाई जा रही है यह आपके पवित्रता की निशानी है | अब से इस पवित्रता को संभालकर रखना आपकी जिम्मेवारी है | इसे दाग ना आ पाए इसका ध्यान रखियेगा | अब से ३ महीने तक आपको यही पर रखा जाएगा | आपको अपना सारा काम खुद ही करना होगा आपकी जरुरत का सारा सामान आपको यहाँ पर पंहुचा दिया जाएगा और आपकी सुरक्षा भी अच्छी तरह से की जायेगी आपको बस इतना ख्याल रखना है की आपका विधवाव्रत हमेशा ही सलामत रहना चाहिए | आपके लिए यह कक्ष ही दुनिया है आपको रात दिन का पता ना हो एसे जीवन बिताना है और पुरे दिन से लेकर पुरा जीवन अपने जा चुके पति के लिए भगवान का नाम जपना है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले और उनका अगला जन्म बहुत अच्छा हो | तिन महीने के बाद जब आपको यह सब करने की आदत लग चुकी होगी और माया से आप मुक्त हो चुकी होगी तब आपको गाव के आश्रम में भगवान की सेवा के लिए ले जाया जायेगा जहा आपको अपने जीवन के २५ साल तक सच्ची निष्ठां और भक्तिभाव से भगवान की सेवा करनी है | बाद में आप अपने घर यानी जादवा सदन लौट सकते है और यहाँ आकर भी आपको माया मुक्त ही रहना होगा | जय माताजी हम लोग चलते है ... बा ने जाते वक्त कहा |      

    बा वो पीछे का दरवाजा खुला पड़ा है ... जाते वक्त उस औरत ने बा को कहा जिसने दरवाजा खुला देखा था |

    दरवाजे की बात अंश और पराग सुन लेते है और उसी वक्त दोनों की धड़कने तेज हो जाती है |

    अबे यह क्या मुशीबत है अगर दरवाजा फिर से बहार से लॉक हो गया तो क्या करेंगे ... अंश ने धीमे से कहा |

    बा हवेली के मुख्य द्वार से होते हुए वहा से निकल जाते है |

    दिव्या यह सब देखकर और हर रोज एक नयी अड़चन के बारे में सुन-सुनकर अंदर से पुरी तरह से तूट चुकी थी | केशर और चंदन से भीगी हुई दिव्या अपनी जगह पे एकदम स्तब्ध होकर खड़ी थी | एसा लग रहा था जैसे सोचे के सेलाब ने दिव्या को डुबो दिया हो | अंश और पराग अपनी जगह से बहार निकलते है | पराग अपने हाथ में पेशाब भरी बोटल साथ लेकर निकलता है |

    भाई तुम यही रहो में बहार आपका इंतजार करता हु ... अपने पीछे बोटल छुपाते-छुपाते पराग दिव्या के सामने से निकल जाता है |

    दिव्या अपनी सोच में एसी डूबी हुई थी की उसको पता ही नहीं था की अंश उसके सामने खड़ा है और पराग अभी अभी वहा से गुजरा है |

    इस तरफ बहार बा सिक्योरिटी को एक खास सुचना देकर वहा से निकलती है |

    पीछे का दरवाजा खुला हुआ है जिसे बंद कर दो और वहा पर ताला लगा दो और हा ध्यान रहे कोई भी हवेली में बिना हमारी मजूरी के आना नहीं चाहिए ... बा ने जाते वक्त बॉडीगार्ड से कहा |

    एक तरफ जहा एक बॉडीगार्ड हवेली की चारो तरफ देखते हुए पीछे की और जा रहा था वही दुसरी और अपने दोस्तों की सही स्थिति को तलाशते हुए चिराग और अशोक दोनों हवेली में घुसते है |

    हेल्लो दिव्या जी ... अंश ने धीरे से कहा |

    दिव्या अभी भी सोच के भवंडर में फसी हुई थी जिसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था |

    दिव्या जी आप सुन रही है ... अंश ने थोड़ी जोर से कहा |

    हा... जी... जी... कहिए ... दिव्या ने अचानक से अपने सोच के भवंडर से निकलते हुए कहा |

    में अंश ख़ुशी का दोस्त और विश्वराम केशवा का पुत्र जिन्हें आप जानते ही है ... अंश ने दिव्या से कहा |

    मुझे पता है आप ख़ुशी के मित्र है पर आप यहाँ पर क्यों आए है | आप चले जाईये यहाँ से और मुझे अपने पापो की सजा काटने दीजिए महेरबानी करके ... दिव्या ने अंश से कहा |

    पहले तो सुखरिया बा से हमें बचाने के लिए और आप ने कोई पाप नहीं किया है | मुझे आपकी मदद करनी है में नहीं मानता इन सारी बेतुकी बातो को | मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं आपको कैसे समझाऊ ... अंश ने अपने लड़खड़ाते हुए शब्दों में कहा |

    मुझे आपकी कोई मदद नहीं चाहिए और आप जल्द से जल्द यहाँ से चले जाइये पराई औरत के पास आपको खड़े रहना या तो पराये मर्द के पास मुझे खड़े रहेना शोभा नहीं देता | आप जल्द से जल्द यहाँ से चले जाईये मुझे आपकी या किसी की जरुरत नहीं है मुझे अकेला छोड़ दीजिए प्लीज ... आखो में आशु के साथ जमीन पर बेठते हुए दिव्या ने कहा |

    लेकिन में ... अंश इतना ही बोलता है और उसे दिव्या से उत्तर मिल जाता है |

    आपको ख़ुशी की कसम है आप यहाँ से चले जाईये | मुझे इस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा आप बस यहाँ से चले जाईये प्लीज ... दिव्या ने अंश से कहा |

    दिव्या इस वक्त उस मानसिकता में थी ही नहीं की वो सही गलत सोच और समझकर कोई उत्तर दे सके या तो निर्णय ले सके |

    अंश भी दिव्या की इस हालत को अच्छे से समझता था और उसके पास ख़ुशी की कसम दिव्या के द्वारा देने के बाद कोई और चारा ही नहीं बचा था | वो दिव्या के सामने एक मलम ( घाव पर लगाने की एक प्रकार की दवाई ) रखता है जो शरीर के उपर के घाव को ठीक करने का काम करता है |

    दिव्या जी यह लगा लीजियेगा आपके शरीर पर लगे घाव इससे भर जायेंगे ... इतना बोलकर अंश कक्ष से बहार निकल जाता है |

    अंश के जाने के बाद दिव्या अपने अंदर का सारा दर्द अपने आशुओ के द्वारा बहार निकालती है और मन ही मन बोलती है |

    हे भगवान शरीर के घाव के लिए मलम बनाया | लेकिन ह्रदय में जो घाव लगा है उसकी दवाई या मलम क्यों नहीं बनाया तुन्हें ... रोते हुए दिव्या ने कहा |

    दिव्या इस वक्त बहुत ही दुःखी थी और अपने आप को बहुत ही अकेला पा रही थी | यहाँ का रिवाज इतना कठिन था की पति के मरने के बाद लड़की अपने बाप से या दुनिया के किसी भी व्यक्ति से बात या मिलना झुलना नहीं कर सकती थी |

    अंश बहार निकलते हुए पराग के पास पहुचता है जो उस दरवाजे के पास पंहुचा था पर इस वक्त दरवाजा बंद हो चूका था जिसको बॉडीगार्ड ने बहार से ताला लगाकर रख दिया था |

    अंश अभी बुरे फसे | उस बॉडीगार्ड ने तो बहार से ताला लगा दिया है अभी क्या करे ... पराग ने अंश से कहा |

    कोई बात नहीं यह इतनी भी बड़ी दिक्कत नहीं है जितनी दिव्या के अंदर चल रही है ... अंश ने कहा |

    इस तरफ अंश और पराग के दोनों दोस्त चिराग और अशोक अंदर आ चुके थे |

    चिराग को फोन लगा ... अंश ने कहा |

    पराग चिराग को फोन लगाता है और उनके साथ पुरी बात चित होती है और फिर से वही ताले को तोड़ने के बाद चिराग और अशोक अंश और पराग को वहा से निकालते है और सभी साथ में उस हवेली से सही-सलामत निकल जाते है |

       सारे दोस्त उस हवेली से निकलने के बाद जनमावत शहर चले जाते है जहा के एक अच्छे से कॉफ़ी शॉप पर जाकर बेठते है जहा पर कॉफ़ी के साथ सबके बिच कुछ संवाद होता है |

    बाल बाल बचे यार | जिंदगी में इतने सारे झटके आज तक एक साथ कभी नहीं लगे जितना उस हवेली में जाने के बाद लगे थे ... पराग ने राहत की साँस लेते हुए कहा |

    उस हवेली में घुसना और दिव्या से मिलना मतलब मानसिंह जादवा नाम के शेर के मु में अपना हाथ डालने जैसी बात है ... अशोक ने कहा |

    सही बात है | पराग देखी तुन्हें हालत उस लड़की की जो वहा रहकर बिना कोई गलती सजा काट रही है ... अंश ने कहा |

    हा यार एक बार अगर आप लोगो ने दिव्या की हालत देखी होती तो आप लोग अपने जीवन के सारे दुःख भुल जाते | बहुत हरामी है यह जादवा परिवार के लोग और खास करके वो बा ... पराग ने कहा |

    सिर्फ जादवा परिवार नहीं बल्कि पुरा गाव जो जादवा परिवार की सोच को मानता है और उसे ताकतवर बनाता | अगर एसा ही रहा तो एक दिन जरुर यह गाव या तो गाव वाले ख़त्म हो जायेंगे ... अंश ने कहा |

    सही बात है पर हम लोग और कर भी तो क्या सकते है ... अशोक ने कहा |

    बिच संवाद वहा काम करने वाला आदमी सबके लिए कॉफ़ी लेकर पहुचता है | सभी अपने अपने कॉफ़ी का ग्लास उठाते है और कॉफ़ी की चुस्की लगाते है |

    कुछ देर सभी के बिच शांत सा वातावरण बना रहता है |

    में कल फिर से वहा जाऊंगा ... अंश ने सभी से कहा |

    अंश के इस शब्दों को सुनते ही बाकी के तीनो दोस्तों के मु में जो कॉफ़ी थी वह बहार आ जाती है |

    अबे पागल हो गया है क्या ... पराग ने कहा |

    मेरे भाई तु क्यों सबको मारने के पीछे पड़ा है | तु कुछ समझदार बन और यह सब छोड़ दे हमें पेड पे लटकर मरने का कोई शोख नहीं है यार ... चिराग ने कहा |

    में तुम लोगो को कुछ नहीं होने दूंगा और कल से में अकेला ही वहा जाऊंगा अगर जरुरत होगी तो ही तुम लोगो से कहूँगा ...अंश ने अपनी कॉफी ख़त्म करके वहा से बहार निकलते हुए कहा |

    अबे इसको उस दिव्या से कोई प्यार व्यार तो नहीं हो गया ना | अगर हो गया है तो भाई को रोको क्योकी दिव्या से प्यार करना मतलब राँझा बनके मरने जैसा है ... अशोक ने बहार जाते हुए अंश को देखते हुए कहा |

    एक तरफ अंश दिव्या को किसी भी किम्मत में इस मुश्किल से निकालना चाहता था जो बहुत ही मुश्किल कार्य था तो दुसरी तरफ भवानी सिंह यह जानने की कोशिश में पड़ा था की वीर का अकस्मात उसकी गलती से हुआ है या किसी ने उसे ठोक दिया है | अगर ठोक दिया है तो क्या उससे गलती से हो गया है या फिर जिसकी शक्यता बहुत कम लग रही है वही हुआ है की वीर की हत्या की गई है |

     भवानी सिंह ने उस लाईट के टुकड़े लेकर अपने हवालदार को यह पता लगा ने के लिए भेजा था की यह किस ट्रक का टुकड़ा है | हवालदार उसकी खोज में लाईट वाले की दुकान पर जाता है और पता लगाता है की यह लाईट किसी बड़े ट्रक की है | यह तो तय हो गया था की वीर की कार की टक्कर किसी ट्रक से ही हुई थी पर अब यह पता लगाना था की टक्कर मारी किसने | टक्कर वीर से लगी या सामने वाले से यह पता लगाने के लिए उस ट्रक वाले को पकड़ना जरुरी था जिसके लिए भवानीसिंह के हवालदार द्वारा कोशिश जारी थी |

     भवानी सिंह के हवालदार हर उस जगह जाते थे जहा पर ट्रक को ठीक किया जाता हो और वहा जाकर पुछ्ताज की जाती थी की कही कोई ट्रक रिपेरिंग के लिए आया हुआ है | साथ में भवानी सिंह के द्वारा यह भी चेक किया जा रहा था की कही कोई ट्रक चोरी होने की रिपोर्ट भी आई है या नहीं |

     मानसिंह जादवा के कहने पर भवानी सिंह ने इस कॅश को सरकारी पन्नो से हटा दिया था जिसकी खबर और किसी को भी नहीं थी और जैसे बात हुई थी वैसे ही मानसिंह जादवा का आदमी एडवांस के पैसे भवानी सिंह को पंहुचा दिए जाते है |

     ट्रक की तलाश करते करते शाम हो जाती है | हवालदार महेंद्र सिंह वापस पुलिस स्टेशन पहुचते है और सीधा भवानी सिंह के दफ्तर में जाते है और उनसे कहते है | भवानी सिंह अपने स्थान पर बेठे हुए थे और कुछ फाईले देख रहे थे |

     आईए महेंद्र भाई आईए | बोलिए क्या निकला पुरे दिन का नतीजा बताईए ... भावनी सिंह ने कहा | भवानी सिंह का पुरा ध्यान फाईल में ही था |

     नतीजा बहुत अच्छा निकला है अगर आप भी देखेंगे तो खुश हो जायेंगे ... महेंद्र भाई ने भवानी सिंह से कहा |

     अच्छा एसा क्या मिला है जरा हमें भी कहिए ... अपनी फाइल टेबल पर रखते हुए भवानी सिंह ने कहा |

     सर बताऊंगा नहीं आपको मेरे साथ चलना होगा में आपको सीधा दिखाऊंगा ... हवालदार महेंद्र ने कहा |

     चलिए फिर ... भवानी सिंह ने हवालदार महेंद्र भाई की बात सुनते हुए कहा |

     भवानी सिंह और महेंद्रभाई दोनों भवानी सिंह की जीप में बैठकर उस जगह जाने के लिए निकलते है जहा ले जाने के लिए हवालदार महेंद्र आया हुआ था | दोनों कुछ मिनिट का सफ़र तय करके जनमावत शहर से करीब ३० किलोमीटर दुर एक वीरान जगह पर पहुचते है जहा कोई आया जाया नहीं करता था जहा बिच मैदान में एक खाई थी जो बहुत बड़ी थी और पुरी की पुरी खाई में पानी भरा हुआ था और उस पानी से भवानी सिंह के आने से कुछ समय पहले उस ट्रक को निकाला गया था जिसकी तलाश भवानी सिंह को थी | यह वही ट्रक था जिसकी टक्कर वीर की कार से हुई थी |

      अरे वाह महेंद्र भाई आप ने तो बिलकुल खुश होने वाली चीज ढूढ़ निकाली है ... जिप से उतरते हुए भवानी सिंह ने कहा |

      भवानी सिंह ट्रक के पास आता है और ट्रक को अच्छी तरह से देखता है | ट्रक का आगे का हिस्सा तुटा हुआ था और ट्रक की लाईटे भी तुटी हुई थी |

      महेंद्र भाई जल्दी से उस ढाबे वाले को यहाँ पर बुलाकर इस ट्रक की पहचान करवा लो अगर यह वही ट्रक है तो फिर वीर के कॅश में कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ... भवानी सिंह ने अपना दिमाग चलाते हुए कहा |

      भवानी सिंह के आदेश अनुसार उस ढाबे वाले भाई को हवालदार महेंद्र भाई ढाबे से उस जगह पर ले आते है जहा से वो ट्रक निकला था |

      जरा यह ट्रक देखिये क्या यही वह ट्रक है जिसने वीर के अकस्मात के दिन आपने देखा था ... भवानी सिंह ने उस हवालदार से पुछते हुए कहा |

      वो ढाबे वाला आदमी ट्रक को सही से देखता है और फिर उस दिन की घटना को याद करता है फिर भवानी सिंह को उत्तर देता है |

      जी सर बिलकुल यही वो ट्रक है जिसे हमने उस दिन देखा था ... ढाबे वाले ने कहा |

     पक्का यही है ना कोई गलती तो नहीं हो रही है ना ... भवानी सिंह ने कहा |

      बिलकुल नहीं सर हमें पक्का यकीन है सर उस दिन यही ट्रक था जिससे शायद वीर भाई की कार का अकस्मात हुआ था ... उस ढाबे वाले ने कहा |

      ठीक है | महेंद्र भाई इनको वापस ढाबे पर छोड़ दीजिए ... भवानी सिंह ने कहा |

      जी सर ... महेंद्र भाई ने कहा |

      यह खेल तो हमने सोचा नहीं था उतना बड़ा होता जा रहा है | अब तो यह कोई अकस्मात नहीं है भाई कोई तो झोल जरुर है इसमें | देखते है कोनसा पक्षी अब इसमें फसता है भाई मजा आएगा ... मंद मंद हसते हुए भवानी सिंह ने कहा |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY 

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