हमने दिल दे दिया - अंक १० VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हमने दिल दे दिया - अंक १०

अंक १० गुस्ताखी 

      भवानी सिंह ने आखिरकार वह ट्रक ढूढ़ ही लिया था जिसकी टक्कर वीर की कार से हुई थी और उस वजह से वीर की मौत हुई थी पर अभी तक भवानी सिंह यह तय नहीं कर सकते थे की ट्रक ने ही सबसे पहले टक्कर मारी है क्योकी वीर भी शराब के नशे में कार चला रहा था तो इस बात की भी शक्यता है की टक्कर वीर से लगी हो पर भवानी सिंह को उस ट्रक वाले पर शक किस वजह से हुआ होगा यह जानना बहुत ही रसप्रद है |

      भवानी सिंह और महेंद्र भाई दोनों अभी उसी जगह पे मौजूद थे जहा पर वह ट्रक मिला था | दोनों पुरे ट्रक को अंदर और बहार से अच्छी तरह से तलाश रहे थे ताकी उन्हें ड्राईवर का कुछ पता चल सके |

      मिला कुछ महेंद्र भाई ... भवानी सिंह ने कहा |

      नहीं सर यहाँ पर कुछ भी नहीं है | एसा लग रहा है मानो जान बुझकर यहाँ से सबकुछ निकाल लिया हो सर ... महेंद्र भाई ने ट्रक की अंदर से तलाशी लेते हुए कहा |

      ठीक है लाओ अभी मुझे एक सिगरेट दो बाद में आप ढूढ़ते रहिये ... भवानी सिंह ने अपनी सिगारेट की तलब को बुझाने के वास्ते कहा |

      महेंद्र भाई निचे आते है और भवानी सिंह को अपनी जेब से निकालकर एक सिगारेट देते है और फिर जेब से लाईटर निकालकर जलाकर भी देते है |

      धन्यवाद आपका इस गरीब का भला करने के लिए ... सिगारेट फुककर उसका धुआ महेंद्र भाई के मु पर उड़ाते हुए कहा |

      जी सुखरिया सर | अंदर सारा ट्रक छानमारा पर एक भी एसी चीज या कागजात नहीं है जिससे ड्राईवर का पता लगाया जा सके ... महेंद्र भाई ने भवानी सिंह से कहा |

      मुझे तो साला यही नहीं समझ आ रहा की मै बार बार अपने दिमाग को मनाता हु की यह कॅश अकस्मात का ही है पर पता नहीं क्यों बार बार मुझे इस कॅश की चीजे और घटनाये एसे एसे सबुत पेश करती है की मुझे फिर बार बार यह लगने लगता है की यह कॅश कोई आम अकस्मात का तो नहीं ही है ... भवानी सिंह ने अपनी सिगारेट फूकते हुए कहा |

      मुझे भी एसा ही कुछ लग रहा है ... महेंद्र भाई ने भवानी सिंह की हां में हां मिलाते हुए कहा |

      देखो अगर कोई आम आदमी के साथ एसी घटना हुई होती तो वह इतनी हिम्मत या एसा काम कभी भी नहीं कर सकता की सबुत मिटाने के लिए पुरे ट्रक को ही मिटा दे | वो या तो ट्रक छोड़कर भाग जाता या खुद को हमारे हवाले कर देता लेकिन यह काम कोई आम आदमी का नहीं है | इसमें नक्की कोई झोल है क्या है वो सिर्फ ड्राईवर ही पता लगा सकता है | महेंद्र भाई पता लगाओ की यह ट्रक किस के नाम से है उसको पकड़ो तो सबकुछ अपने आप ही मिल जाएगा ... भवानी सिंह ने कहा |

      जी सर में अभी RTO डिपार्टमेंट में फोन लगाकर पता लगाता हु की यह ट्रक किसके नाम पर है ... महेंद्र भाई ने कहा |

      और साथ ही साथ यह ट्रक यहाँ पर नवलगढ़ के रास्ते से होकर नक्की जनमावत शहर से ही गुजरा होगा तो उस रास्ते पे कई दुकानों पर और कई सरकारी जगह पर कैमरे जरुर लगे होंगे वो सारे चेक करवाओ कही तो ड्राइवर रुका होगा या कही उसे कोई तो गलती जरुर की होगी | इससे कोई भी सबुत पक्का मिलेगा आप चेक करो ... भवानी सिंह ने कहा |

      जी सर में देखता हु ... महेंद्र भाई ने कहा |  

      भवानी सिंह उतना बोलकर अपनी जिप द्वरा वहा से निकलकर ठाणे की और जाने के लिए निकल जाता है |

सरस्वती निवास, शांतिलाल झा का निवास स्थान

      दुसरे दिन सुबह | लगभग सुबह के ११ बज रहे थे | शांतिलाल झा अभी अभी नास्ता करने के बाद अपने टीवी के सामने सोफे पर बेठे हुए थे और समाचार देख रहे थे साथ ही साथ न्यूज़ पेपर पे भी नजरे घुमा रहे थे | समय होते ही वह अपनी कार के काफिले के साथ अपने कार्यालय जाने के लिए निकलते है | आधे रास्ते से उनका PA भी उनकी कार में सामिल हो जाता है | दोनों के बिच कार के अंदर एक चर्चा की शुरुआत होती है |

      अभी कुछ ही दिनों में हम अपने चुनाव का एलान करने वाले है की अब इतिहास बदलने वाला है और जनमावत तालुके में MLA का चुनाव सही से होगा और हम होंगे इन लोगो के उमेदवार पर सबसे बड़ी मुसीबत है वो मानसिह जादवा और शक्तिसिंह जादवा क्योकी मेरे एलान से भी यहाँ की जनता को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला वह लोग तो जादवा परिवार को ही वोट देने वाले है तो इसमें हमें कुछ करना होगा ... शांतिलाल झा ने अपने PA से कहा |

      सही बात है अगर आपको यहाँ पर चुनाव लड़ना है और जितना है तो सर मानसिंह जादवा के जड़ जमीन से निकालनी ही होगी तभी ही कुछ हो सकता क्योकी यहाँ के लोग मानसिंह जादवा को बहुत मानते है ... PA ने शांतिलाल झा से कहा |

      वही सोचना है की हम एसा कोनसा दाव खेले जिससे यह मानसिंह जादवा हमारे सामने घुटने टेक दे ... सोचते हुए शांतिलाल झा ने कहा |

      मैने मानसिंह जादवा के बारे में बहुत कुछ जानने की कोशिश की है और जहा तक मुझे जानने को मिला है वह इस तालुके का सबसे ताकतवर इंसान है | यहाँ का कानून कहो पुलिस कहो या जज सबकुछ मानसिंह जादवा ही है | यहाँ के लोग उसे और उसके परिवार वालो को मसीहा मानते है | उसके सामने लड़ना आसान तो नहीं होगा ... शांतिलाल झा के PA ने कहा |

      हा वो तो हम भी जानते है इसी वजह से ही तो यह इलाका पसंद किया है आसान काम करना भी किसको है | मुझे तुम यहाँ बताओ की मानसिंह जादवा व्यापार क्या क्या करता है और कौन कौन है उसके ख़ास लोग ... शांतिलाल झा ने कहा |

     मानसिंह जादवा की यहाँ पर हर एक कंपनी है | जैसे की यहाँ पर पुरे तालुके में उसके अपने चार पेट्रोल पंप है, चार पार्टी प्लोट है, दो रिसोर्ट है, छे होटल है, दो कॉटन मिल है एक बड़ी लकड़ी की कंपनी है जिसकी किंमत लगभग लगभग ५०० से ८०० करोड़ होगी और सबसे बड़ी केमिकल कंपनी है जो गाव के बिलकुल बगल में है जिसको अभी वह लोग बिन कायदेसर चला रहे है जिसकी किंमत होगी १००० करोड़ और सबसे बड़ा व्यापर जो पुरा दो नंबर है और वह है शराब का और वह भी विदेशी और सबसे बड़ी बात की आधे से भी ज्यादा गाव को वह रोजगार देते है  ... मानसिंह जादवा के व्यापर का पुरा कच्छा चिठा निकालते हुए PA ने कहा |

     और उसके सबसे नजदीकी लोग कौन कौन है ... शांतिलाल झा ने कहा |

     विश्वराम केशवा और दिलीप सिंह उनके बाहरी सबसे भरोसेमंद लोग है और उसका बेटा सुरवीर जो सबकुछ देखता है और यह दोनों उसके निचे ही काम करते है ... PA ने उत्तर में कहा |

     एसा करो विश्वराम केशवा और दिलीप सिंह की और उनके परिवार वाले की सारी कुंडली निकालकर मुझे दो और साथ ही में इन सब पर अपने लोगो को बोलो नजरे बनाए रखे ... शांतिलाल झा ने कहा |

     और एक सबसे महत्त्वपुर्ण बात की मानसिंह जादवा के छोटे बेटे का हाल ही में अकस्मात हुआ है और उसकी उसमे मौत भी हो गई है और उसकी पत्नी को विधवाव्रत का पालन करवाया जा रहा है और कई सारे अत्याचार भी और तो और एसी भी मैंने बात सुनी है की उसका अकस्मात जब हुआ था तब वो नशे की हालत में था पर कही पर भी यह बात कागज पे नहीं छपी है ... PA ने कहा |

     मतलब कुल मिलाकर यह यहाँ का बादशाह है और हमें इसको हराने के लिए यहाँ का इक्का बनना पड़ेगा ... शांतिलाल झा ने कुछ सोचते हुए कहा |

     सही सर ... PA ने हामी भरते हुए कहा |

     एसा करे तो इसका जो शराब का धंधा चल रहा है हम उसे लोगो के सामने ला कर रख दे तो यह तो अपने आप ही बदनाम हो जाएगा ... शांतिलाल झा ने कहा |

     नहीं सर यहाँ की जनता इसको बहुत चाहती है | अभी कुछ ही दिनों पहले उसके अपने गाव में ही एक लड़की को जलाकर और चार लड़के को पेड से लटकाकर मार दिया पुरे ५००० लोगो के सामने फिर भी यह बात आज तक एक भी कागज पे नहीं आ सकी है और इसका सीधा मतलब है की हम सीधा मानसिंह जादवा का विरोध करेंगे तो जनता को यही संदेश जाएगा की यह मानसिंह जादवा के विरोधी है और उससे हमें नुकशान हो सकता है सर ... PA ने अपनी बुध्दिमत्ता का उपयोग करते हुए कहा |

     हम सही बात है एसा करना बड़ी गलती हो सकती है | और कुछ बताओ इस गाव के बारे में की उनको मार दिया फिर भी किसी ने मानसिंह जादवा का विरोध क्यों नहीं किया ... शांतिलाल झा ने कहा |

     सही बात पकड़ी आप ने सर | उसका एक ही कारण है और वह है की यहाँ के लोगो को अपनी इज्जत, अपने रिवाज और मर्यादा जान से भी ज्यादा पसंद है और उन मर्यादा और रिवाज की रक्षा करता है यह मानसिंह जादवा और हाल ही में अपनी बहु पर भी रिवाजो को थोपकर मानसिंह जादवा गाव वालो में राजा का स्थान ले चूका है | हमारे पास उतना समय नहीं है की हम इन लोगो की सोच को बदल शके पर हा हम इन लोगो जैसे अगर बन जाए और उनमे घुलमिल जाए तो हम जरुर इनको अपनी तरफ मोड़ सकते है और मानसिंह जादवा की चाहत कम कर सकते है ... PA ने कहा |

     ठीक है तो फिर हम भी इनके रिवाजो की थोड़ी रक्षा कर लेते है | चलो ढूढ़ के दो हमें एसी कड़ी जिसके सहारे हम मानसिंह जादवा को सत्ता से दुर कर सके और हा साथ में मुझे उस PI से भी मुलाकात करवाओ जिसने किसी सरकारी पन्नो पर उस अकस्मात के बारे में कुछ भी आने ही नहीं दिया ... शांतिलाल झा ने भवानी सिंह के बारे में बात करते हुए कहा |

     अब देखना यह रसप्रद होगा की शांतिलाल झा अब कोनसा नया दाव खेलने वाले है जो मानसिह जादवा की मुश्केली बढ़ा सकता है |

जादवा सदन में,

     सुरवीर ने वीर के तीनो दोस्त विष्णु पवन और मितुल को ढूढ़कर मानसिंह जादवा के सामने हाजिर कर दिए थे | जादवा सदन के हॉल जितने बड़े बैठक रूम में तीनो दोस्तों को मानसिंह जादवा की खुरशी के सामने खड़ा किया गया था | तीनो को मानसिंह जादवा के डर से पसीना आने लगा था | तीनो बहुत ही डरे हुए थे | सुरवीर अंदर आता है और एक तरफ जाकर खड़ा हो जाता है | मानसिंह जादवा का प्रवेश होता है | मानसिंह जादवा के आते ही तीनो के अंदर डर का स्तर बढ़ जाता है | मानिसंह जादवा स्थान पर बैठ जाते है और तीनो को सबसे पहले ध्यान से देखते है |

      जहा तक मुझे पता है तब तक तुम वीर के सबसे करीबी तिन दोस्त हो सही है ... मानसिंह जादवा ने तीनो से सवाल करते हुए कहा |

      विष्णु और पवन का हाल मानसिंह जादवा के सामने आकर बेहाल हो गया था इस वजह से वो तो कुछ भी बोलने की हालात में नहीं थे पर मितुल बहुत समझदार और बहादुर था |

      जी काका वीर हमारा अच्छा दोस्त था ... मितुल ने कहा |

      अच्छा दोस्त था तो उसको गए हुए आज १५ से १६ दिन हो गए तुम कही पर भी दिखे नहीं ... मानसिंह जादवा ने सवाल करते हुए कहा |

      दरसल उसमे एसा है की मेरी दादी की तबियत हद से ज्यादा ख़राब है और वह अमदावाद के अस्पताल में है तो में उनके पास ही था | सुरवीर भाई साहब को मालुम है आप उनसे पूछ सकते है ... मितुल ने सही उत्तर देते हुए कहा |

      मानसिंह जादवा मितुल की बात सुनने के बाद सुरवीर की तरफ अपना चहेरा घुमाते है |

      जी बापुजी इसकी बात बिलकुल सही है लेकिन यह दोनों तो गाव में ही थे अपने घर में छुपकर बेठे हुए थे ... सुरवीर ने विष्णु और पवन की बात करते हुए कहा |

      क्यों भाई एसा क्या हुआ था की अपने सबसे करीबी दोस्त के अंतिम सफ़र में भी नहीं आ सके और उसको गए इतने दिन हो गए एक बार भी उसके फोटो के सामने उसके अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं आए ... मानसिंह जादवा ने विष्णु और पवन को सवाल करते हुए कहा |

      तीनो के शिर मानसिह जादवा के सामने झुके हुए थे | विष्णु और पवन डरे हुए थे जिनकी जबान से एक भी शब्द निकल नहीं रहा था |

      हम ने कुछ पूछा है और हमें उसका उत्तर चाहिए तुम दोनों से ... मानसिंह जादवा ने अपनी आखे चोह्डी करते हुए कहा |

      मानसिंह की आवाज मानो उन दोनों पर शेर की दहाड़ जैसे बरस रही थी | दोनों मानसिंह की उची आवाज से डर जाते है |

      हम डर गए थे काका की कही आपको एसा ना लगे की इसमें हमारी कोई गलती है ... विष्णु ने रोते हुए कहा |

      एसा क्या हुआ था तुम लोगो के बिच की तुमको डरना पड़ा ... सुरवीर ने पीछे से कहा |

      हुआ कुछ नहीं था बस हमारे साथ ही आखरी बार वीर बाबा ने शराब पी थी और उनका मूड भी ख़राब हो गया था ... पवन ने भी रोते हुए कहा |

      कैसे मुड खराब हुआ था जरा हमें भी बताओगे ... मानसिंह जादवा ने कहा |

      वो वीर बाबा के और मितुल के बिच जब वीर बाबा आखरी बार हमारे साथ थे तब उनके बिच बड़ा झगडा हो गया था जिससे दुःखी होकर वीर भाई वहा से गुस्से में अकेले ही अपनी कार लेकर चले गए और फिर पुरे दिन हमने उनको बहुत ढूढा पर वो कही नहीं मिले और आखिर में जब मिले तो उनका अकस्मात हो चूका था और वो इस दुनिया से जा चुके थे तो हम डर गए थे की कही इसमें आपको एसा ना लगे की हमारी कोई गलती है ... पवन ने सारी सच्चाई उगलते हुए कहा |

      पवन की बात सुनते ही गुस्से का मारा सुरवीर मितुल के उपर तूट पड़ता है और उसकी गर्दन पकड़ लेता है |

      क्यों अबे साले तुम में इतनी हिम्मत कब से आ गई की तु हमारे भाई के सामने लड़ने लगा ... सुरवीर ने मारते हुए मितुल से कहा |

      मितुल कुछ भी नहीं बोल रहा था वो जो भी हो रहा था उसे बस देख रहा था और सहेन कर रहा था |

      सुरवीर रुक जा और अपनी जगह पे जाकर खड़ा हो जा ... मानसिंह जादवा ने आदेश देते हुए कहा |

      सुरवीर अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता है और मितुल अपने आप को ठीकठाक करता है | कपडे और बालो को जो सुरवीर की झपट के कारण बिगड़ गए थे |

      मितुल में तुम्हे जानता हु तब तक तुम ही एक वीर के एसे दोस्त थे जिसने वीर को हमेशा सही सलाह दी है ना की इन दोनों की तरह उसकी चापलूसी की है तो मुझे लगता है उस वक्त जो भी तुम दोनों के बिच झगडा हुआ उसमे कोई ना कोई वजह तो रही होगी तो तुम मुझे बताओ की एसी क्या बात हुई जिसे लेकर तुम लोगो के बिच झगडा हो गया ... मानसिंह जादवा ने मितुल से सवाल करते हुए कहा |

      धन्यवाद जादवा साहब की आपने मुझ पर भरोसा किया और मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिया ... मितुल ने आदर के साथ बात की शुरुआत करते हुए मानसिंह जादवा से कहा |

      कोई बात नहीं अपनी बात रखो ... मानसिंह जादवा ने कहा |

     उस दिन वीर और यह दोनों शराब की महेफिल जमाकर बेठे हुए थे और में भी साथ था | फिर बातो बातो में वीर की शादी को लेकर बात निकली तब मुझे पता चला की वीर इस शादी से खुश नहीं है और लंडन में कोई उसकी गर्ल-फ्रेंड है जिससे वो बहुत प्यार करता है और उससे शादी करना चाहता है तो मैने उस बात को  लेकर उसे समझाने की कोशिश की पर वो समझा नहीं और उलटा मुझ पर चिल्लाने लगा और कहने लगा की में आने वाले ६ महीने में काम का बहाना करके फिर से लंडन चला जाऊँगा जहा जाकर में उससे शादी कर लुंगा और फिर कभी वापस नहीं आऊंगा तो फिर से मैने उसे समझाने की कोशिश की तो वो मुझ पर और आप पर भड़क गया और कुछ भी उल्टा सीधा बोलने लगा जैसे आपने यह शादी राजनैतिक फायदे के लिए करवाई थी वगेरा वगेरा और फिर मैने उसे कह दिया की तुम्हे एसा नहीं करना चाहिए किसीका जीवन बिगाड़ने का तुम्हे कोई हक नहीं है | फिर क्या था वो मुझ पर और गुस्सा हो गया और मुझे वहा से निकल जाने के लिए कहा और तब तक उसे बहुत सारी शराब पी रखी थी तो यह झगडा और ना बढे उस वजह से में वहा से निकल गया फिर क्या हुआ मुझे पता नहीं | इसके बाद मुझे उसकी मृत्यु के समाचार मिले में बस जादवा साहब इतना ही जानता हु ... मितुल ने सारी घटना को टुक में कहते हुए कहा |

     वीर एसा करने वाला था | यहाँ पर हम उसके मातम में रो रहे है और वह एसा कुछ करने वाला था जो भी हो अब तो यह सब जानने का कोई मतलब नहीं है क्योकी वो तो हमारे बिच रहा नहीं ... मानसिंह जादवा ने अपने चहरे पर चिंता की रेखा दिखाते हुए कहा |

     काका वीर भाई वहा से निकले थे आपको मिलने के लिए और वहा से यहाँ का अंतर सिर्फ २५ मिनिट का है और वीर भाई का अकस्मात वहा से निकलने के २ घंटे बाद हुआ था तो नक्की वो बिच में किसी से मिले होंगे या वो कही रुके होंगे ... विष्णु ने कहा |

     पक्का है ... सुरवीर भाई ने कहा |

     हा मतलब हमने उन्हें सारे रास्ते ढूढा पर वो कही नहीं मिले और हम जब वापस आए तो वो अकस्मात की हालत में वही पर मिले जहा से हम करीब ३० मिनिट पहले निकले थे ... पवन ने कहा |

     सारी बाते सुनकर मानसिंह जादवा कुछ देर सोचते है फिर अपनी जगह से खड़े होते है और उन तीनो के पास जाते है |

     उस दिन क्या हुआ और क्या नहीं उसका पता तो में लगा लुंगा पर तुम लोग बस उतना ध्यान रखना की वीर शराब पीकर कार चला रहा था इसका पता अगर किसीको चला तो में तुम में से किसी को भी नहीं छोडूंगा | चुनावी माहोल है ध्यान रहे और तो और तुम भी नहीं चाहोगे की कोई तुम्हारे दोस्त के बारे में एसा कहे की उसकी मौत शराब पीकर कार चलाने की वजह से हुई है ... मानसिंह जादवा ने तीनो से अपनी कड़क आवाज में कहा |

     जी जी काका हम किसी को नहीं बताएँगे ... पवन और विष्णु ने कहा |

     आप तो मुझे जानते ही है में एक सच्चा दोस्त हु और एक दोस्त होने का कर्तव्य में जरुर निभाऊंगा ... मितुल ने मानसिंह जादवा से कहा |

     ठीक है तुम लोग जा सकते हो ... तीनो को जाने का आदेश देते हुए कहा |

     सुरवीर कोई तो माजरा जरुर है तु पता लगा की वीर इस दो घंटे दरमियान कहा था और उसके साथ क्या हुआ है | कही उसके शराब पिने का किसी ने फायदा तो नहीं उठाया ना ... मानसिंह जादवा ने अपने बड़े पुत्र से कहा |

     जी बापूजी ... इतना बोलकर सुरवीर वहा से निकल जाता है |

     एक तरफ जादवा सदन से वीर के दोस्त बहार निकले थे और जादवा सदन की छत से अपने दोस्त को फोन लगाकर बुलाने की फिराक में थी ख़ुशी | ख़ुशी छत पर खड़ी अपने दोस्त अंश को बार बार फोन लगा रही थी और इस तरफ अंश बिच धुप अपने घर की छत पर चद्दर ओढ़कर सोया हुआ था | तिन बार मोबाईल की रिंग बजने के बाद अंश अपना फोन उठाता है और जैसे आदमी नींद में बात करता है अंश भी वैसे ही नींद में बात करने की शुरुआत करता है |

     हा... बोलो ख़ुशी ... अंश ने कहा |

     तु अभी तक सोया हुआ है | कुंभकरण की औलाद है या विश्वाकाका की ... ख़ुशी ने गुस्से से कहा |

     अभी फ्री इंसान और करेगा भी क्या सोयेगा नहीं तो | तु बोलना तुझे क्या काम है ... अंश ने अपनी खाट से उठते हुए और अपनी आलस निकालते हुए कहा |

     मुझे तुझ से थोडा गंभीर काम है अगर तु करेगा तो और थोडा रिस्की भी ... ख़ुशी ने अंश से कहा |

     उसमे क्या है बोल ना मुझे वैसे भी एसे कामो में मजा आता है ... अंश ने छत से निचे उतरते हुए कहा |

     अ... मुझे भाभी के पास जाना है ... ख़ुशी ने कहा |

     हां तो उसमे क्या है जात है ना ... अंश का ध्यान बातो में सबसे पहले नहीं था ...क्या तुझे उस हवेली में जाना है ... अंश ने मन ही मन कुछ सोचते हुए कहा |

     अंश के मन में डर था की कल जो हवेली में घटना हुई है उसके और पराग को जाने को लेकर अगर ख़ुशी को वहा जाने से उसके बारे में पता लग गया तो न जाने ख़ुशी क्या सोचेगी |

     हा मुझे भाभी से मिलना है उनके साथ बात करनी है और उनके लिए कुछ अच्छा सा खाना भी लेकर जाना है ... ख़ुशी ने अपनी बातो में अपनी भाभी के लिए चिंता जाहिर करते हुए कहा |

     हा तो चली जा उसमे मेरी क्या मदद चाहिए तुम को तु तो सीधा घुस सकती है ना तुझे कोनसा हवेली के पीछे से घुसना है ... अंश ने नल चालू करके अपना मु पानी से धोते हुए कहा |

     मुझे पता था की तुझे पीछे से जाने का कोई ना कोई रास्ता जरुर सूझेगा इसी वजह से मैंने तुझे फोन किया है | मुझे वहा जाने पर पाबंदी है तो मुझे छुपकर ही जाना होगा और इसमें मेरी मदद सिर्फ तु ही कर सकता है यार अंश मान जाना यार ... ख़ुशी ने अंश को मनाते हुए कहा |

     तु भी मुझे मरवाने वाले ही काम क्यों देती है | अगर इस बात की भनक काका को लग गई तो मेरी लग जायेगी तु तो उनकी बेटी है में इसमें खामखा फस सकता हु ... अंश कोई भी और किसी भी तरह की बाते बनाकर उसे रोकने की कोशिश कर रहा था |

     ठीक है में अकेली ही चली जाउंगी मुझे क्या पता तु सिर्फ मुश्किल वक्त में साथ निभाने की खाली बाते ही करता होगा ... ख़ुशी ने कटाक्ष करते हुए कहा |

     मुझे पता है में कितना भी बोल लू तु नहीं मानेगी क्योकी तु अपने बाप पर गई है एक दम जिद्दी | तो ठीक है में ले जाऊंगा पर कल सुबह ४ बजे जब गाव पुरा सोया हुआ हो ... अंश ने ख़ुशी से कहा |                

     नहीं नहीं कल सुबह में कैसे में यहाँ से कैसे निकलू एसा कर कल दुपहर को रख तब में कॉलेज के बहाने घर से निकल सकती हु ... ख़ुशी ने अंश से कहा |

     कल दुपहर मतलब डबल खतरा एक तो हवेली में जाने का रिश्क और दुसरा तुम्हारे साथ भरी दुपहर में घुमने का रिश्क | मतलब तुम्हे मुझे मारने का हिसाब लगा ही लिया है ... अंश ने अपनी दोस्त ख़ुशी से कहा |

     अंश कर दे ना इतना यार अपनी दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकता तु ... ख़ुशी ने अंश को पिघलाते हुए कहा |

     ठीक है में अपने दोस्तों से बाते करके पुरा आयोजन करके तुम्हे बताता हु ... अंश ने कहा |

     thank you thank you अंश में तुम्हारा यह अहसान कभी नहीं भुलुंगी ... ख़ुशी ने थोडा सा खुश होते हुए कहा |

     दोनों बात पुर्ण करने के बाद अपना अपना फोन रख देते है | अंश थोड़ी देर सोचता है फिर अपने सारे दोस्तों को अपने घर बुलाता है | सारे दोस्त अंश के बुलावे पर घर पहुचते है और एक जगह बेठते है और अंश ख़ुशी के साथ जो बात हुई उसे दोहराहकर सबको बताता है | अंश की यह बात सुनने के बाद सारे दोस्त चौके हुए थे | सारे के मु खुले के खुले रह गए थे क्यों वो आगे पढ़िए |

     तेरे दिमाग में घुसा भरा हुआ है | इतना कम था की हम मानसिंह जादवा की बहु को मिलने गए एक अपराध करके की अब तु भरी दुपहर में उसकी लड़की को लेकर उस हवेली में घुसेगा और उनकी बहु से मिलन करवाएगा जो मानसिंह जादवा की नजरो में बहुत बड़ा गुनाह है | साले तेरे जैसा इंसान नहीं देखा तु एक बार में सैतान की बेटी और बहु दोनों को छेड़ रहा है और तो और छेड़ रहा है उसकी तो बात छोडो उसमे हमें भी सामिल करना चाहता है | नहीं भाई नहीं में नहीं आऊंगा ... चिराग ने कहा |

     में भी नहीं आऊंगा ... अशोक ने कहा |

     में तो तेरी चप्पल खाकर मर और पुरा जीवन बिना गुटखा खाए बिता लू पर में नहीं आऊंगा भाई ... पराग ने गुटखा चबाते हुए कहा |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY