हमने दिल दे दिया - अंक १५ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हमने दिल दे दिया - अंक १५

अंक १५ - दोस्ती और प्यार की शुरुआत 

     हम राक्षसों के बिच है अंश हम से कुछ नहीं हो सकता अब तो बस जैसे तैसे यह जीवन कट जाए ...दिव्या ने कहा |

     आप एसा मत बोलिए ...अंश ने कहा |

     एसा ना बोलु तो क्या बोलु में एक बार मेरे जैसा जीवन जीके देखो तब आपको पता चलेगा | एसा जीवन जीने के बाद तो मौत भी आसान लगने लगती है अंश तुम कुछ करो मै एसा जीवन नहीं जी सकती | पहले लग रहा था की एसे ही जिंदगी कट जायेगी पर नहीं मुझसे यह सब नहीं हो रहा इससे अच्छा तो में मर जाऊ ... रोती हुई दिव्या ने कहा |

     आप एसा मत बोलिए दिव्या जी ...अंश ने थोडा सा दिव्या और ख़ुशी के पास आते हुए कहा |

     तो क्या बोलु एसा जीवन मुझ से नहीं कटेगा या तो मुझे यहाँ से आजाद होना होगा या तो फिर में मर जाउंगी ...दिव्या ने कहा |

     नहीं आप एसा कोई कदम नहीं उठाएंगी जिससे आपको हानी पहुचे | हम आपको यहाँ से आजाद करवाएंगे ...अंश ने कहा |

     जीवन में कई दिक्कते एसी भी आती है जो आपके सारे गलत सिधांत को तोड़ने पर मजबुर कर देती है यहाँ पर दिव्या के साथ भी यही हो रहा था | दिव्या ने बहुत सोचा की भगवान की दी हुई इस परिस्थति को वो सेह लेगी लेकिन उससे एसा नहीं हो रहा था उसके पास दो ही रास्ते थे या तो जीवन जिए या तो मर जाए |

      क्या ...ख़ुशी, चिराग, अशोक और पराग ने एक साथ मिलकर कहा |

      तु क्या बात कर रहा है तु इनको आजाद कैसे करवाएगा...अशोक ने अंश की और आते हुए कहा |

      हा अंश तु किसीको भी झूठी उम्मीद मत दे ...चिराग ने कहा |

      में कोई झूठी उम्मीद नहीं दे रहा | मैंने कहा की में आपको आजाद करवाऊंगा तो करवाऊंगा फिर उसके लिए मेरी जान क्यों ना चली जाए | साला डर डर के जीने से तो अच्छा है की शेर की मौत मर ही जाए ...अंश ने कहा |

      हा पर कैसे और तु क्या करने वाला है इनकी आजादी के लिए ...पराग ने कहा |

      इन लोगो की हुकूमत इसी जिल्ले तक है में इनको भागकर दिल्ली अपनी बहन के पास छोड़ दूंगा वहा किसी की भी हिम्मत नहीं है की इन्हें कोई पकड़ सके या इनका कुछ भी बिगाड़ सके... अंश ने अपनी सोच को सबके साथ शेयर करते हुए कहा |

      हा पर कब और कैसे ... अशोक ने कहा |

      डेढ़ महीने में वो अमावस है जब गाव के सारे लोग एक साथ मिलकर गाव के बहार महाकाली माँ के मंदिर उनकी पूजा के लिए जाते है तब सभी लोग वही होंगे और उसी वक्त में दिव्या जी को गाव के बहार निकाल लुंगा और फिर वहा से अमदावाद और फिर वहा से प्लेन में बैठकर दिल्ली ...अंश ने अपना प्लान बताते हुए कहा |

      अबे यह सब तुझे आसान लग रहा है और सुनने में आसान लग रहा है पर है नहीं अगर इसकी भनक भी मानसिंह काका को लगी ना तो तुम्हारे साथ तुम्हारे पिता और हम सबको भी मार डालेंगे ...चिराग ने बात की गंभीरता को बताते हुए कहा |

       यार कब तक यह सब सोचकर डरते रहेंगे और अगर सही ढंग से आयोजन किया जाए तो किसी को भनक भी नहीं लग सकती की हम ने कब दिव्या जी को भगा दिया और उन्हें कहा पंहुचा दिया ...अंश ने अपने दोस्तों से कहा |

      मानसिंह काका दिल्ली भी पहुच सकते है अगर दिव्या जी कही बहार बाजार में निकली और वहा से उनके लोगो ने उठा लिया तो ...अशोक ने कहा |

      उसके लिए भी मेरे पास जवाब है में दिव्या जी को एकाद साल के लिए दिल्ली से उनका पासपोर्ट बनाकर दिल्ली से लंडन अपने दोस्त के वहा पंहुचा दूंगा जहा मानकाका खुद भी पहुच जाए तो भी कुछ नहीं हो सकता ...अंश ने कहा |

      अरे यह सब करना इतना आसान नहीं है जितना तुम लोग सोच रहे हो ...चिराग ने कहा |

      भले ही आसान ना हो अंश लेकिन भाभी का जीवन अच्छा अगर इससे होता है तो में तैयार हु तुम्हारा साथ देने के लिए | वो मेरे पिता है तो क्या हुआ है तो गलत ही ना | हम भाभी को यहाँ से जरुर निकालेंगे ...ख़ुशी ने अंश से कहा |

      और हा तुम लोग मत डरो तुम लोगो को में इस प्लान में सामिल नहीं कर रहा इसलिए तुम लोग सुरक्षित हो यह सब में अकेला करूँगा और ख़ुशी तुम्हे भी इसमें सामिल होने की जरुरत नहीं है क्योकी कही दिव्या जी के जीवन को बनाने में कही तुम्हारा जीवन ना बिगड़ जाए अगर एसा हुए तो बात तो वही होगी जो अभी है ...अंश ने कहा |

       नहीं यार हम में भले ही हिम्मत ना हो या हम डरपोक हो लेकिन हम तुझे अकेले तो नहीं मरने देंगे क्योकी हम दोस्ती निभाने में तो एक नंबर है | गुटखा की कसम अंत तक तुम्हारा साथ दूंगा ... पराग ने अंश से कहा |

       हा यार सही बात है इस गुटखे की आज तक कभी तुम्हारा साथ छोड़ा है की आज छोड़ेंगे | चल एक बार फिर से कहता हु की साथ में मरते है ...चिराग ने भी पराग की बातो में हामी भरते हुए कहा |

       सही है चलो फिर जीवन में कुछ तो एसा काम करेंगे जो अपनी औकात से बहार होगा ...अशोक ने हसते हुए अंश से कहा |

      चारो दोस्त एक दुसरे को गले लगा लेते है | दिव्या के लिए सबने इतना सहयोग दिखाया इसे देखकर दिव्या की आखो में आशु आ जाते है |

      आप सबकी में आभारी पुरा जीवनभर रहूंगी ... दो हाथ जोड़ते हुए दिव्या ने कहा |

      अरे बस कीजिये भाभी ...अशोक ने दिव्या जी से कहा |

       ठीक है फिर डेढ़ महिना निकाल लीजिए इस हवेली में बाद में आप को आजाद कर देंगे और हा तब तक हमें यहाँ पर आने की आजादी दे दीजिए की जब मरजी हो में ख़ुशी और यह सब आपके साथ समय पसार करने आ सके ...अंश ने कहा |

       बिलकुल ...दिव्या ने अंश की बात में हामी भरते हुए कहा |

      अब यह इस चिंताजनक माहोल को हमें आपका जन्मदिन मनाकर दुर करना चाहिए ...पराग ने कहा |

       हा यार अब तो हम आपका जन्मदिन मना ही सकते है और आप भी | बहुत खर्चा किया है मान जाईयेना महेरबानी करके ...अंश ने दिव्या से कहा |

      ठीक है पर उपर छत पे वहा पर बैठने का मजा कुछ और ही होता है ...दिव्या जी ने कहा |

      ठीक है फिर चलो उपर ...ख़ुशी ने ख़ुशी से कहा |

      सारे लोग जन्मदिन के सामान के साथ उपर छत पर चले जाते है और साथ में निचे से सबकुछ फ्राई करने के साधन भी साथ में ले जाते है और वहा जाकर जितनी हो सके उतनी सजावट करके बिच में केक रख देते है | सबने कुछ एसा तय किया था जो उनके जीवन में भुचाल लाने वाला था जिसका अंदेशा किसी को भी नहीं था | दिव्या ने पिछले कुछ दिनों में इतना कुछ सहा था की उसको सारी मुश्किलों के बिच बस आजादी ही दिख रही थी उसे भी इस चीज का कोई अंदेशा नहीं था की उनका यह कदम उनके लिए कितना भजनक साबित होने वाला है |

      आईए दिव्या जी आकर इस मोमबत्ती को बुझाकर कर केक काटे ...अशोक ने दिव्या से कहा |

       दिव्या केक के पास जाती है और सबसे पहले अपने दोस्तों का सुखरिया अदा कुछ शब्दों में करती है |

       आप सबका फिर से धन्यवाद की आपने मेरे अपने ना होने के बावजूद मेरे लिए कितना कुछ कर रहे है और आगे करने वाले है में आपका यह एहसान कभी नहीं भुलुंगी और खास अंश आप धन्यवाद ... दिव्या ने अंश के सामने देखते हुए कहा |

       अरे अभी छोडिये वो सब और यह केक काटिए बाकि सब बाद मे देखेंगे अभी भुख लगी है ...अंश ने बातो को घुमाते हुए कहा |

        सारे अंश की इस बात पे हसने लगते है | दिव्या केक कटिंग करती है और अपना जन्मदिन मनाती है | सारे दोस्त आज बहुत ख़ुश थे | सारे एक दुसरे को केक खिला रहे थे और दिव्या के चहरे पर आज बहुत दिनों के बाद हसी दिख रही थी क्योकी आज उसे इन दोस्तों में अपने नए जीवन की आश दिख रही थी उसे उसका बरबाद होता और उजड़ा हुआ जीवन आज फिर से बनता हुआ दिख रहा था पर असल में एसा होने वाला नहीं था अब जो होने वाला था वो शायद हमारी और आपकी सोच के बहार का होने वाला था |

       तो भाईलोग अब केक कटिंग हो गया है तो अब बारी है कुछ और कटिंग करने की मतलब खोलने की ...पराग ने कहा |

       हा अब तलब सी जगी है जल्द से खोल डालो ...चिराग ने कहा |

       क्या खोलने की बात कर रहे है यह लोग ...दिव्या ने कहा |

       इन लडको को और क्या हो सकता है | शराब की बात कर रहे है यह लोग ... ख़ुशी ने दिव्या से कहा |

       क्या शराब ...दिव्या ने चौकते हुए कहा |

       अरे कभी कभी पिने से कुछ नहीं होता आपको भी पीनी हो तो बतलाईए ...अंश ने दोनों लडकियो को ऑफर करते हुए कहा |

       अरे नहीं हम लक्ष्मी है हमें यह सब सोभा नहीं देता और यह सही चीज नहीं है तो तुम लोग ही पीओ... दिव्या ने सही बात करते हुए कहा |

       ( शराब सेहत के लिए हानिकारक होती है और शराब पिने से आज तक कई जीवन उजड़े है तो शराब ना पिए यहाँ पर कहानी को रसप्रद बनाने के लिए सबकुछ दिखाया गया है में लेखक वरुण एस पटेल शराब का खुल्ला विरोधी हु और आपको भी इसका विरोधी बनने का आमंत्रण देता हु )

       ठीक है वैसे भी हमारे पास एक ही बोटल बची है तो हम ही पीते है | आज पेग में बनाता हु ...अशोक ने कहा |

       सारे दोस्त एक तरफ शराब की महेफिल जमाकर बैठे हुए थे और एक तरफ दिव्या और ख़ुशी के बिच बातचीत चल रही थी |

       भाभी यह लीजिए यह मेरी तरफ से आपके लिए ...ख़ुशी ने एक बैग में तोहफे के रूप में कुछ देते हुए कहा |

      अरे यह क्या है सिंधुर और साड़ी साथ में कंगन यह सब में कैसे ...दिव्या के मन में अनेको सवाल गूंज रहे थे ख़ुशी के इस तोहफे को लेकर |

       मुझे पता है की आपने कभी मेरे भाई वीर से प्रेम नहीं किया है और ना ही वीर ने आपसे तो फिर उसके लिए अपना सिंगार और जीवन का त्याग क्यों जो हुआ वो नियती थी और हम जो जीते है वो हमारी मरजी और इच्छा होती है तो में नहीं चाहती की आप एसे सफ़ेद सारी में हर पल रहे भले आज नहीं पर आपको जब भी इच्छा हो या जब भी आप चाहे इसे जरुर पहनियेगा ...ख़ुशी ने समजदारी वाली बात करते हुए कहा |

        दिव्या ख़ुशी की इस बात को सुनकर और उसकी इस सोच को देखकर खुश हो जाती है और उसे गले लगा लेती है |

       आप कितने अच्छे है ख़ुशी ...दिव्या ने कहा |

        हम नहीं यह सारी सोच अंश की थी में तो बस एक अच्छी सोच को बढ़ावा दे रही हु ...ख़ुशी ने शराब की मजा ले रहे अंश की तरफ देखते हुए कहा |

        दिव्या भी अंश की और देखती है | अब धीरे धीरे दिव्या अंश से प्रभावित होने लगी थी | उसकी अच्छी सोच, लडकियो का सम्मान करना और खास करके उसकी सच्ची मर्दानगी से दिव्या ज्यादा प्रभावित हो रही थी |

        आप दोनों एक दुसरे से प्यार करते हो ...दिव्या ने ख़ुशी से सवाल करते हुए कहा |

        ख़ुशी दिव्या को कोई भी उत्तर दे इससे पहले अंश दोनों को अपने साथ नास्ता करने के लिए बुला लेता है |

        अरे ख़ुशी आप लोग क्या कर रहे हो इधर आओ यह भुट्टे अभी अभी फ्राई किए है फिर ठंडे हो जायेंगे ...अंश ने दोनों को बुलाते हुए कहा |

        हा ठीक है आ रहे है | चलिए भाभी दावत का मजा लेते है ...ख़ुशी ने दिव्या से कहा |

        दोनों अंश और उनके दोस्तों के साथ जाकर बैठते है और भुट्टे के साथ और भी कही तरह के खाने का इंतजाम था जिसके मजे लेते है |

        इस तरफ सारे दोस्त गाव, समाज और उनके सारे रिवाजो को छत पर कोने में रखकर जीवन के मजे ले रहे थे उसी वक्त जनमावत तालुके की सत्ता को अपने हाथो में लेने के लिए शांतिलाल झा किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे | रात के लगभग लगभग २ बज चुके थे लेकिन अभी भी शांतिलाल झा सोए नहीं थे और उन्होंने अपने PA को भी तत्काल नींद से जगाकर अपने घर बुलवाया था | PA फटाफट से शांतिलाल झा के घर पहुचता है और शांतिलाल झा के घर की डोरबेल बजाता है |

        कौन ... घर के हॉल में सोफे पर बैठे हुए शांतिलाल ने कहा |

        में आपका PA सर ... PA ने कहा |

        हा हा अंदर आजाओ खुला ही है दरवाजा ...शांतिलाल झा ने कहा |

        शांतिलाल झा किसी फाइल में कुछ देख रहे थे |

       जी आपने मुझे इतनी रात को बुलाया कुछ तत्काल में काम था सर ... PA ने घर में आकर शांतिलाल झा के पास बैठते हुए कहा |

        हा बैठो बताता हु ... शांतिलाल झा ने कहा |

        जी सुखरिया सर ... सोफे पर बैठते हुए PA ने कहा |

        तुमने मुझे गाव के कुछ लोगो की फ़ाइल बनाकर दी थी जो हमें इस चुनाव में मददरूप हो सकते है तो पुरी रात में वही देख रहा था और मै चुनाव के बारे में सोच रहा था | बाकी सब तो ठीक है पर यह एक इंसान एसा है जो नवलगढ़ गाव का ही है और बहुत नामदार व्यक्ति भी है यह वनराज सिंह और मानसिंह जादवा जितना ही ताकतवर है तो इसने कभी भी मानसिंह जादवा के सामने खड़े होने की जुर्रत क्यों नहीं की यह भी चाहता तो MLA का चुनाव लड़ सकता था इसकी कहानी मुझे तुम अच्छे से समझाओ | में इस पात्र में थोडा रसप्रद हु ... शांतिलाल झा ने कहा |

       मुझे आपसे यही उम्मीद थी और भरोसा भी था की आप इसी को चुनेंगे | में आपको सब बताता हु | आप भी जानते है और हम भी जानते है की चुनाव दिमाग से लड़ा जाता है और उसमे थोडा असुरी दिमाग भी लगाना पड़ता है वनराज चावड़ा के पास भी सबकुछ है पर मानसिंह जादवा के आसुरी दिमाग के कारण यह आज तक मानसिंह जादवा के सामने कभी भी कही भी खड़ा नहीं हो पाया और इस बात को वो भी जानता है पर क्या करे अभी जादवा के अहसान तले दबा हुआ है | हुआ एसा की मानसिंह जादवा को यह भलीभाती पता था की एक ही आदमी गाव में है जो मानसिंह जादवा को टक्कर दे सकता है क्योकी जैसे रिवाजो का जाल बनाकर मानसिंह जादवा गाव वालो को फसाता है वैसे ही वनराज सिंह भी कर सकता है | इस वजह से मानसिंह जादवा ने एक चाल चली और उसने अपने एक आदमी को वनराज सिंह के पीछे भेजा वो आदमी सबसे पहले वनराज चावड़ा के बेटे का दोस्त बना फिर उसे धीरे धीरे जुए की लत लगाई और फिर उसे इतना कर्ज में डूबा दिया की उसकी सात पीढ़ी भी इससे बहार ना आ सके इस चिंता में वनराज सिंह के बेटे ने आत्म हत्या कर ली | वनराज सिंह बहुत ही स्वाभिमानी व्यक्ति था इसलिए उसने अपने बेटे का सारा कर्ज चुकाने का फेसला किया | कर्जे की रकम बहुत बड़ी थी और गाव में उसे इतने सारे पैसे एक ही आदमी दे सकता था और वह था मानसिंह जादवा तो उसने मानसिंह जादवा की मदद ली और मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह की सारी जमीन अपने यहाँ पर गिरवी रखवाकर उसे पैसे दिए तब से लेकर वनराज सिंह आज तक वनराज सिंह उसका कर्जा चुका रहा है जो अभी भी २५ लाख जितना बचा हुआ है | अभी अगर वनराज सिंह चुनाव के लिए खड़ा होता है तो दो मुश्किलें उसके लिए पैदा होगी एक पैसो की बिना पैसे तो चुनाव होता नहीं है और दुसरी की अगर वो मानसिंह जादवा के सामने खड़ा हुआ तो उसकी सारी जमीन जो गिरवी है वो मानसिह जादवा हड़प लेगा जिसकी किंमत २५ लाख से बहुत ज्यादा है ... वनराज सिंह के बारे में सबकुछ बताते हुए PA ने कहा |

       तो यही है हमारा सबसे बड़ा मोहरा | वनराज सिंह के उपर मानसिंह जादवा ने दाव खेला था अब हम लोग खेलेंगे | देखो अगर में इस सिट पर खड़ा हुआ तो यह लोग अपना आदमी अपना आदमी एसा करके मानसिंह जादवा को ही वोट देंगे पर अगर में उनमे से ही किसी एक को खड़ा कर दु तो वो सवाल तो ख़त्म ही हो जाएगा और चाहे गद्दी पे मै बैठु या वो सत्ता तो अपनी ही है ना तो चलो फिर चलते है अभी के अभी वनराज सिंह के घर और अपना दाव खेलते है ...अपनी जगह से खड़े होकर शांतिलाल झा ने कहा |

       अभी जायेंगे ...PA ने खड़े होकर कहा |

       हा अभी और अभी इसलिए ताकि हमारी इस चाल की भनक मानसिह जादवा को ना लगे | अगर दिन में जाएंगे तो जादवा को पता लग जाएगा...शांतिलाल झा ने बहार जाते हुए कहा |

       शांतिलाल झा और PA देर रात एक ही कार लेकर नवलगढ़ जाने के लिए निकलते है | २० मिनिट का सफ़र तय करने के बाद बड़ी सावधानी के साथ शांतिलाल झा और उनका PA वनराज सिंह के घर पहुचते है | सबसे पहले PA कार से उतरकर वनराज सिंह का दरवाजा खटखटाता है | वनराज सिंह खुद दरवाजा खोलते है |

        जी कहिए ...वनराज सिंह से दरवाजा खोलते हुए कहा |

        जी वो में विकास दल पार्टी के अध्यक्ष शांतिलाल झा का PA हु और सर आपसे मिलना चाहते है अगर आपकी इजाजत हो तो ...PA ने बिनती करते हुए वनराज सिंह से कहा |

        वनराज सिंह थोडा सोचते है फिर अपना उत्तर देते है |

        जी आईए अंदर बुला लीजिए साहब को ...वनराज सिंह ने घर में जाते हुए कहा |

        तीनो घर के आँगन में बैठे हुए थे और तीनो के बिच संवाद हो चल रहा था |

        देखिये वनराज सिंहजी आपसे कोई घुमा फिराकर बात नहीं करेंगे सीधी सीधी बात यह है की हमें आपकी जरुरत है और उसके बदलेमे हम आपकी मदद करना चाहते है | मैंने सुना आपके साथ जो भी बरसो पहले घटना हुई और बड़ा दुःख भी हुआ की उस घटना में आपके बेटे को आपने खो दिया जो हुआ उसे तो भुला नहीं जा सकता लेकिन में चाहता हु की अब आपको आपकी सही जगह मिले और आप हमारी तरफ से जिसने आपकी यह हालात सियासी चाल खेलकर की उसको आप उत्तर सियासी चाल से ही दे और आप हमारी तरफ से इस बार का MLA का चुनाव लड़े और जीते एसी हमारी इच्छा है ...शांतिलाल झा ने अपनी चाल खेलते हुए कहा |

         हा पर में यह नहीं कर सकता में अभी भी उसके एहसानों तले दबा हुआ हु अगर मैंने यह किया तो वो मेरी सारी जमीन जप्त कर लेगा जो उसके पास गिरवी है ...वनराज सिंह ने अपनी दिक्कत जताते हुए कहा |

        आप चिता क्यों कर रहे है हम इसमें आपकी मदद करेंगे हम आपको देंगे २५ लाख रूपये बदले मे आप हमें इस तालुके की सिट दिलादो फिर हम वो २५ लाख मानसिंह जादवा से ही वसूल कर लेंगे उसके कई काले व्यापर चलते है अगर आपको मंजूर है तो आपको कल २५ लाख रुपये मिल जाएगे आप लेकर उसके पास जाईये कुछ बहाना बनाईये और जमीन छुडवा लीजिए बाद में हम आप चुनाव लड़ रहे है इस बारे में एलान कर देंगे ...शांतिलाल झा ने वनराज सिंह को लालच देते हुए कहा |

        बात तो सही है लेकिन मुझे सोचने के लिए थोडा वक्त चाहिए ...वनराज सिंह ने कहा |

        जी बिलकुल आप कल तक का वक्त ले लीजिए आप पर कोई जोर जबरजस्ती नहीं है अगर आपको जमे तो ही | सीधी बात है हम आपके साथ कोई खेल नहीं खेल रहे हमें बस इस तालुके की सीट चाहिए जो आप हमें दिला सकते है और इसके लिए हमें आपको कर्जे से बहार निकालना होगा बस यही हमारा इरादा है हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है ...शांतिलाल झा ने अपनी बातो में फ़साने की कोशिश करते हुए कहा |

         सही बात है आपकी पर में थोडा वक्त लुंगा ...वनराज सिंह ने कहा |

         कोई बात नहीं आपको जितना वक्त चाहिए आप लीजिए | चलिए हम चलते है ...अपनी जगह से खड़े होकर दो हाथ जोड़कर वनराज सिंह से शांतिलाल झा ने कहा |

         अरे रुकिए चाय कॉफी कुछ तो लेते जाईये ...वनराज सिंह ने आग्रह के साथ कहा |

         नहीं वो सब आपके उत्तर और निर्णय के बाद ...शांतिलाल झा ने जाते हुए कहा |

         शांतिलाल झा बिच रात मानसिंह जादवा की नाक के निचे से होते हुए उसके विरुध अपनी चाल खेलकर चले जाते है |

         इस तरफ अभी भी हवेली का माहोल खुशनुमा बना हुआ था | जो हवेली आज तक डरावनी लगती थी वही हवेली में आज सब पार्टी कर रहे है | निचे की और दोनों वोचमेन शराब का लुप्त उठा रहे है और उपर सारे दोस्त | सबके बिच आज जमके हसी मजाक और खाना पीना हो रहा था | सभी अलग अलग बैठे हुए थे | दिव्या सबसे अलग उठकर जाती है और हवेली से गाव की और देखने लगती है | अंश दिव्या के पास आता है और दोनों के बिच बात-चित की शुरुआत होती है |

        किस सोच में डूबी हुई है आप दिव्या जी ...अंश ने शराब का ग्लास लेकर दिव्या के पास आते हुए कहा |

        कुछ नहीं बस देख रही थी इस गाव को जो रात को कितना सुंदर दीखता है और दिन में कितना भयानक ...दिव्या ने कहा |

        सही बात है आपकी इस गाव में बहुत कुछ है पर इस गाव वालो की सोच में कुछ नहीं रखा है | यहाँ के लोगो को औरतो की इज्जत करना ही नहीं आता है | एक तरफ माँ को भगवान का दर्जा देते है और दुसरी और अपनी लड़की और बहु पर अत्याचार करते है | सारे के सारे गधे है दिव्या जी ...अंश ने कहा |

        दिव्या जी मत कहो यार दिव्या कहो दिव्या जी से बूढी होने की फिलिंग आती है ...दिव्या नने हसते हुए कहा |

        ठीक है फिर दिव्या | अब तो आप खुश होंगी की अब आप आजाद होने जा रही है ...अंश ने कहा |

        हा खुश तो हु बस एक बार यहाँ से आजाद हो जाऊ फिर तो पढ़ी लिखी हु कुछ भी करके अपनी जिंदगी बना लुंगी ...दिव्या ने कहा |

        आजादी बहुत कीमती होती है ...अंश ने शराब पीते हुए कहा |

        तुम मेरी इतनी मदद अपनी जान जोखिम में डालकर क्यों कर रहे हो ... दिव्या ने अंश से कहा |

        सही सवाल है | सच बोलू तो मुझे गलत मत लेना पर आपसे मेरा पुराना नाता हो एसा लगता है जब भी आपसे मिलता हु और दुसरा कारण की आप ख़ुशी की दोस्त और भाभी हो और वो मेरी दोस्त है तो उसके लिए भी और एक अच्छे इंसान होने के नाते में आपकी मदद कर रहा हु ...अंश ने अपनी शराब के ग्लास को पुरा करते हुए कहा |

        नाता तो पता नहीं पर औरतो को लेकर तुम्हारी जो सोच है वो बहुत अच्छी है तो आज से हम अच्छे दोस्त जरुर है ...दिव्या ने दोस्ती का हाथ आगे करते हुए कहा |

        अंश दिव्या के लिए इतना कुछ कर रहा था जिसे देखकर दिव्या बहुत ही खुश थी और इसी वजह से उसे अंश से दोस्ती करना ठीक लग रहा था |

        सच फिर तो में तुम्हे दिव्या बोल ही सकता हु ...अंश ने दिव्या से कहा |

       बिलकुल क्यों नहीं ...दिव्या ने कहा |

       वैसे आपका यह डेढ़ महिना भी हम लोग मिलकर अच्छा बनाने वाले है हम सब तुमको अकेलापन महसुस बिलकुल नहीं होने देने वाले ...अंश ने दिव्या से कहा |

       सही है फिर तो आपके लिए और भी धन्यवाद ...दोनों इस बात पर हस पड़ते है |

      अच्छा अंश यह बताओ तुम्हारे और ख़ुशी के बिच कुछ चल रहा है ...दिव्या ने अंश से कहा |

      नहीं बिलकुल नहीं सारे देखने वाले को एसा ही लगता है पर हमारे बिच बस वो पक्की वाली दोस्ती ही है और कुछ नहीं और आगे भी जाकर नहीं क्योकी मैंने उसके लिए कभी यह सब महसुस किया ही नहीं है ...अंश ने दिव्या से कहा |

      बड़ी सही दोस्ती है तुम्हारी | तुमने कभी औरतो का फायदा उठाना नहीं सिखा वरना आज कल तो लोग बस औरतो का फायदा लेना जानते है ...दिव्या ने कहा |

      दोनों के बिच बात चल ही रही थी तभी ख़ुशी वहा पर आती है |

      चलो अंश अभी हमें चलना चाहिए रात के ४ बज चुके है घर पहुचते पहुचते ४ बजकर ३० मिनिट हो जायेंगे और भाभी सुबह जल्दी उठ जाते है ...ख़ुशी ने अंश से कहा |

      हा ठीक है चलो फिर | चलो दिव्या हम लोग चलते है ...अंश ने अपने दोस्तों के पास जाते हुए कहा |

      सुखरिया ख़ुशी ...दिव्या ने ख़ुशी के गले लगते हुए कहा |

      भाभी आपके लिए तो कुछ भी ...ख़ुशी ने कहा |

      तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है इसे कभी मत छोड़ना ...दिव्या ने ख़ुशी को अंश के बारे में बताते हुए कहा |

      हा जरुर चलती हु आप निचे नहीं आ रहे ...ख़ुशी ने जाते वक्त कहा |

      नहीं में कुछ देर यही पर रुकना चाहती हु ...दिव्या ने कहा |

      सारे दोस्त वहा से निचे चले जाते है | दिव्या अकेली उपर छत पर खड़ी रहती है | जाते वक्त ख़ुशी के मन में दिव्या की कही हुई बाते चल रही थी वो अब धीरे धीरे अंश से प्यार करने लगी थी | ख़ुशी अब अंश के बहुत करीब आने लगी थी जिसकी भनक तक अंश को नहीं थी |  

       सब निचे जाते है और जैसे ही दरवाजा खोलते है दरवाजा खुलता ही नहीं है | वो वोचमेन फिर से अपनी जगह पर आ चूका था और उसने दरवाजा बंद कर दिया था | अंश दरवाजा खटखटाता है | बहार वोचमेन सिगारेट फुक रहा था |

       मुझे तुम सब अंदर गए और उपर जो धमाल मस्ती की उसके बारे में सब पता है अब कल सबेरे मालिक के आने तक अंदर ही रहो | दरवाजा तो कल सुबह ही खुलेगा ...वोचमेन ने अपने मु से धुआ उड़ाते हुए कहा |

       सारे दोस्त वोचामेन की यह बात सुनकर डर जाते है |

       अबे यह क्या हो गया अब तो गए काम से ...चिराग ने कहा |

       अंश पापा तो सीधा पेड़ पे लटका देंगे तुझे कहा था की बहार कैसे निकलेंगे ...ख़ुशीने गभराहट के मारे कहा |

       भाई बचा ले में बिनविवाहित नहीं मरना चाहता ...पराग ने जमीन पर हताश होकर बैठते हुए कहा |

       अब क्या करे अंश ...अशोक ने कहा |

       किसी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था सब डरे हुए थे और सभी को मानसिंह जादवा का गुस्से वाला चहेरा नजर आ रहा था लेकिन अंश इतनी बड़ी गलती करे वैसा इंसान नहीं था |

       तुम लोग चिंता मत करो मै उतना भी पागल नहीं हु मैंने सारा इंतजाम कर के रखा है तुम लोग बस अब देखते जाओ | ठीक है तो फिर आने दो अपने मालिक को मै भी तुम्हारा शराब पीते हुए का वीडियो दिखा दूंगा फिर तो तुम अपने मालिक को जानते ही हो हमें तो पेड पे लटकायेंगे साथ में तुम दोनों को भी जान से मार देंगे क्योकी उनकी बहु जहा है उनकी सुरक्षा के समय शराब पीना मतलब सबसे पहले तुम ही मरोगे ...अंश ने अपनी चाल चलते हुए कहा |

       अबे वीडियो कब बनाली तुमने ... चिराग ने कहा |

       जब पेशाब करने गया तभी ... अंश ने कहा |

       गार्ड यह सब सुनकर डर जाता है और दरवाजा खोलता है पर किसी को बहार नहीं जाने देता |

       दिखाओ कहा है वीडियो एसे ही बातो से में डरने नहीं वाला ...अंश से गार्ड ने कहा |

       अंश अपना मोबाइल निकालकर वीडियो दिखता है और वह गार्ड अंश के हाथ से मोबाइल छिनने की कोशिश करता है और न चाहते हुए भी अंश को गार्ड को अपने मार्सल आर्ट्स का उपयोग करके मारना पड़ता है |

       एसी चालाकी मुझसे ना करना | अभी जा रहे है अगर कल या कभी भी किसी को भी हमारे यहाँ आने के बारे में तुने बताया तो सुनले हमारे साथ तुम दोनों भी मरोगे ...अंश ने अपने दोस्तों के साथ पीछे के दरबाजे से निकलते हुए कहा |

        सारे दोस्त अंश की सूझ-बुझ की वजह से वहा से सुरक्षित निकल जाते है | अंश अकेला ही ख़ुशी को छोड़ने के लिए जादवा सदन पहुचता है और ख़ुशी को निचे उतारकर अंश वहा से चला जाता है और उसको जाते हुए ख़ुशी कुछ वहा खड़ी रहकर अंश को जाते हुए बड़े प्यार से देख रही थी और मन ही मन कुछ सपने बुन रही थी |

       यार कब हम दोनों दिल से एक हो जायेंगे | मुझे प्यार हो गया है पागल तुझसे ...अंश को जाते देख ख़ुशी ने मन ही मन कहा |

       अंश के जाने के बाद ख़ुशी वापस जैसे आई थी वैसे ही उपर अपने घर की छत पर पहुच जाती है और जैसे ही निचे उतरने के लिए छत का दरवाजा खोलती है तो सामने अपनी मधु भाभी को पाती है जिनके मनमे ख़ुशी के लिए शायद कोई सवाल था | भाभी को देखकर ख़ुशी गभरा जाती है |

TO BE CONTINUED NEXT PART...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY