हडसन तट का ऐरा गैरा - 12 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 12

ऐश और रॉकी का कारोबार दिनों- दिन खूब फल- फूल रहा था। जबसे उन्होंने बूढ़े नाविक का दिया हुआ मनुष्य का दिमाग़ खाया था तब से तो उनको खूब नए- नए विचार सूझते थे। नए - नए आइडियाज़ आते और वो खूब तरक्की करते।
और क्या, परिंदों और इंसानों में फ़र्क ही क्या था? एक दिमाग का ही तो अंतर था। इंसान बस दिमाग़ के सहारे ही हर बात में आगे बढ़ कर कहां से कहां पहुंच गया था जबकि अन्य प्राणी बेचारे वहीं के वहीं थे जहां वो दुनिया शुरू होने के समय थे।
खाना, सोना, बच्चे पैदा करना, सांस लेना, नहाना, मल मूत्र विसर्जन करना, लड़ना - झगड़ना यही सब काम तो आदमी करता था और यही सब दूसरे प्राणी भी। बल्कि कई काम तो ऐसे थे जिनमें अन्य प्राणी इंसान से भी आगे थे।
लेकिन आदमी को देखो, इन्हीं कामों में कितने नाज़- नखरे बना लिए। खाना हज़ार तरह का, रहने के लिए आशियाना हज़ार तरह का, पहनने के लिए कपड़ा हज़ार तरह का, शरीर की साज - सज्जा हज़ार तरह की।
आदमी ने वक्त को मुट्ठी में कर लिया।
सालों- साल का खाना जोड़ कर रख लो, जिंदगी भर का आशियाना बना लो, कई पीढ़ियों के लिए ज़मीन- जायदाद इकट्ठी कर के रख लो, सजने के लिए सौ तरह के गहने - जेवर दबा लो , अपार अकूत धनदौलत जोड़ कर रख लो... ये सब नहीं आता था बेचारे जीव- जंतुओं को।
ऐश और रॉकी किस्मत वाले थे कि उन्हें आदमी का दिमाग़ खाने को मिल गया। और आदमी के दिमाग़ की बदौलत वह भी कुछ अच्छा सीख गए।
लेकिन कभी - कभी रॉकी के मन में ये बात आती थी कि केवल धन और यश कमाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उन लोगों को इससे आगे बढ़ कर भी कुछ सोचना चाहिए।
ये ठीक था कि उन्होंने प्रवासी पक्षियों के हित के लिए सारी व्यवस्थाएं करके एक बेहतर काम ही किया था जिसका लाभ पूरे पक्षी - जगत को मिल रहा था पर फिर भी जितनी दौलत वो कमा रहे थे उसका भी कोई बेहतर इस्तेमाल करने की बात अक्सर उसके दिल में आती थी।
रॉकी सोचता था कि जितना बड़ा हमारा पेट है उससे अधिक हम खा नहीं सकते, जो हमारा प्राकृतिक भोजन है उससे अलग कुछ पचने वाला नहीं है। पंखों का आवरण हमें कुदरत ने स्वयं ही दिया है, इसे हटा कर या इसे छिपा कर कोई और कीमती वस्त्र धारण करना बेमानी है।
फिर धन एकत्र करने का मतलब ही क्या?
रॉकी ने सोचा कि अब तो उसे किसी तरह ऐश को मनाना चाहिए कि वो रॉकी से विवाह कर ले ताकि उन दोनों का घर भी बसे, उनके भी बाल - बच्चे हों और उनके कारोबार को संभालें।
लेकिन ऐश न जाने इस बारे में क्या सोचती थी। उसने रॉकी से अब तक केवल मित्रता ही रखी थी। ऐसा कोई संकेत कभी नहीं दिया था कि वो रॉकी से प्यार करती है और उससे विवाह करना चाहती है।
रॉकी अभी बैठा- बैठा यही सब सोच रहा था कि ऐश उसके पास आई। ऐश ने कुछ मुस्कुराते हुए उससे कहा - अब कुछ दिन काम से छुट्टी लेने की सोचो।
- क्यों? रॉकी का माथा ठनका।
- अरे, काम - धंधे में ही लगे रहना है या फिर कुछ अपने बारे में भी सोचना है? ऐश बोली।
- क्या मतलब? रॉकी के मन में लड्डू फ़ूटने लगे। आख़िर ये क्या कहना चाहती है, रॉकी ने सोचा। फिर भी अनजान बनते हुए बोला - और क्या सोचना है, काम- काज में लगे हुए तो हैं!
ऐश मुस्कुराई। बोली - तुम्हें कुछ पता भी है तुम अब जवान हो गए हो। अच्छे खासे मर्द। थोड़े दिन में सड़क पर चलता कोई भी अनजाना तुम्हें अंकल कहने लगेगा। अब सब भैया- भैया कहते नहीं रहेंगे हमेशा।
- तो?
- बुद्धू, शादी की बात नहीं सोचनी? अब तैयारी करो, शादी का समय तो अबकी बार अच्छे मौसम में आना ही चाहिए। तुम्हारा घर बसे, बाल- बच्चे हों। ऐश ने अब साफ़ - साफ़ ही संकेत दिया।
रॉकी का दिल बल्लियों उछलने लगा। उससे मन की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी। उसका बचपन का सपना पूरा होने जा रहा था। उसका दिल हुआ कि ऐश को बांहों में कस कर उसे चूम ले। चूमता ही रहे।
लेकिन उसने दिल पर भरसक काबू रखने की कोशिश की।