हडसन तट का ऐरा गैरा - 5 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 5

एक बात तो है ऐश, हम चाहे दिन भर कितना भी पानी में तैरते रहें पर जो मज़ा झरने के नीचे नहाने में आता है उसकी तो बात ही कुछ और है। रॉकी ने झरने की धार के नीचे सिर को झटकते हुए कहा।
ऐश ने सिर हिला कर हामी भरी। लेकिन उसके चेहरे से उदासी अब भी झलक रही थी। वह बोली - आ रॉकी, अब हम थोड़ी देर आंखें बंद करके उन मछलियों और मेरे भाई को याद करें जिन्हें वह बूढ़ा खाने के लिए ले गया।
- तुझे क्या मालूम कि वो उन्हें खाने के लिए ही ले गया है। ये भी तो हो सकता है कि वो बूढ़ा बहुत गरीब हो और तेरे भाई व मछलियों को बाज़ार में बेच कर अपने बच्चों के लिए खाना ले जाने वाला हो। रॉकी ने कहा।
- बात तो वही है न, वो नहीं खायेगा तो वो दूसरे लोग खा डालेंगे जो उससे उन्हें खरीदेंगे। ऐश ने रोनी सूरत बना कर कहा।
रॉकी से उसका उदास चेहरा देखा न गया। उसने अपनी गर्दन को उसके मुंह के पास ले जाकर कुछ सहलाया और उसे चूम लिया।
ऐश ने आंखें झुका लीं।
- अच्छा एक बात बता। अब हम क्या करने वाले हैं? रॉकी ने कहा।
- क्या करेगा?
- वही तो मैं तुझसे पूछ रहा हूं। तू बता कि अब तू क्या करेगी?
ऐश ने कुछ सोचकर कहा - खाना नहीं खाना क्या? मुझे तो झरने में नहा कर बहुत भूख लग आई है।
- पर हम खायेंगे क्या?
- क्यों, अकाल पड़ा है क्या? चलो इन पथरीली चट्टानों से बाहर आओ, हम मैदान में हरी मुलायम घास पर चलेंगे। ऐश बोली।
- पर घास पर खाने को क्या मिलेगा?
- कैसी बात कर रहे हो रॉकी? वहां कीड़े - मकोड़े, पतंगे, मच्छरों, जुगनुओं का ढेर लगा है। और केंचुओं, मेंढकों की कमी है क्या!
- ऐश, क्या तुम्हें मालूम है कि ये सब छोटे - छोटे जीव- जंतु आते कहां से हैं? इन्हें कौन बनाता है?
- मैं क्या जानूं!
- प्यारी भोली और मासूम ऐश, ये सब किसी पेड़ पर नहीं उगते। और न ही आसमान से बरसते हैं।
- अच्छा।
- और क्या! इनके भी माता - पिता होते हैं। वे जब आपस में प्यार करते हैं तो प्रकृति खुश होकर उन्हें ईनाम देती है।
- सच?
- बिल्कुल।
- क्या ईनाम देती है?
- प्रकृति इनके पेट में अंडे डाल देती है। यही अंडे जब फूटते हैं तो उनमें से छोटे- छोटे बच्चे निकलते हैं।
- क्या तुम ठीक कह रहे हो?
- और क्या।
- यकीन नहीं आता! ऐश ने लापरवाही से कहा।
कुछ मुस्कुराते हुए रॉकी बोला - एक न एक दिन मैं तुम्हें ज़रूर यकीन दिलाऊंगा।
- अभी क्यों नहीं?
- अभी तुम बहुत छोटी हो।
- जा - जा, बड़ा आया। तू ही कौन सा बड़ा बुजुर्ग है।
- अच्छा चलो, झगड़ा छोड़ो। पहले हम कुछ खा तो लें।
झरने के नीचे पथरीले रास्ते से साथ - साथ चलते हुए वो कुछ आगे आए ही थे कि मिट्टी को चीर कर बाहर आने की कोशिश करता हुआ एक घोंघा उन्हें दिखा।
रॉकी ने झाड़ी के पास से काई का एक टुकड़ा चोंच में दबाते हुए उधर देखा। ऐश घोंघे पर झपट रही थी।
- नहाने के बाद भूख बहुत तेज़ लगती है न रॉकी? ऐश ने घोंघे को चबाते हुए कहा।
तभी रॉकी अचानक कहीं गायब हो गया। ऐश इधर- उधर देखती हुई उसे ढूंढने लगी।
- कहां गया? रॉकी...ओ रॉकी! मज़ाक मत कर। निकल कहां छिपा बैठा है?
लेकिन रॉकी कहीं दिखाई नहीं दिया।
- कहां चला गया, ऐसा मज़ाक कभी करता तो नहीं है। न जाने उसने कुछ खाया भी है या नहीं? बेचारा कहीं किसी मुसीबत में न फंस गया हो। ऐश को अब चिंता होने लगी।
ऐश के मन में खटका सा हुआ, वह इधर - उधर घूम कर उसे तलाश करने लगी। उसे लगा कि कहीं वही शिकारी मछलीमार फिर से तो नहीं आ गया। निर्दयी बूढ़ा। ओह, उसके भाई का कातिल। कहीं वही रॉकी को न उठा ले गया हो।
ऐश घबरा कर इधर- उधर देखने लगी।