हडसन तट का ऐरा गैरा - 4 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 4

ऐश की वो प्रवासिनी मां कई शामों के ढलते अंधेरे अपने जोड़ीदार उस मेहमान के साथ गुजार कर आख़िर एक दिन घनी घास के उस कटोरेनुमा ठंडे गड्ढे में बैठ गई। मेहमान कुछ दिन तो दूर बैठा जब- तब उसे टुकुर - टुकुर देखता रहा फिर उससे दूर हो गया। मां के पास अब अपने अंडे सेने का नया काम जो आ गया था। वह ख़ाली कहां थी।
हां, उसका पेट अलबत्ता ज़रूर खाली हो गया जब दो प्यारे से गोल - मटोल अंडे उसके जिस्म से निकल कर सुनहरी घास के बीच बने उस छोटे से गड्ढे में आ गए।
सर्दियां बीतने के बाद जब सारे प्रवासी पंछी अपने घर वापस लौटने के मंसूबे बांधने लगे थे, ऐश की मां भी उसे तैरना सिखा चुकी थी। और जब ऐश तैरते- तैरते अपने नन्हें पांवों में कोई नन्हा कीट- पतंगा भी पकड़ कर अपने मुंह तक ले जाने लगी तो मां को भी ये भरोसा हो गया कि अब बेटी को उसकी ज़रूरत नहीं है। उसे भी अपनी ज़मीन याद आने लगी और एक दिन वह भी एक बड़े से जत्थे के साथ आसमान में उड़ चली।
अच्छा जी, जब बाप मां के पांव भारी करके चला गया और मां भी उसे खाना- खेलना सिखा कर टेकऑफ़ कर चली तो उसका नाम ऐश आख़िर रखा किसने? इसकी भी एक कहानी थी।
मगर कहानी सुनने से पहले ये भी तो पता चले कि गड्ढे में जब दो अंडे थे तो ऐश का कोई भाई - बहन भी तो होगा? फिर वो कहां गया?
एक दिन एक बूढ़ा हडसन के किनारे बेंच पर बैठा मछली पकड़ रहा था। उसने कांटे में कुछ खाना फंसाने के लिए जब लंबी डोरी खींची तो डोर में पैर फंस जाने के चलते एक छोटा सा नन्हा डकलिंग भी घिसटता हुआ आ गया।
उसे देख कर अंकल के मुंह में पानी आ गया। वह मछलियों के साथ- साथ उसे भी अपनी बास्केट में डाल ले गया। बस तब से ऐश इस तट पर अकेली रह गई। उसका भाई उसे फिर कभी नहीं मिला।
रॉकी ने ये सारा तमाशा दूर से देखा था। उस समय सूरजमुखी के एक पौधे के नीचे ऐश भी उसके साथ ही वहां पड़े सूखे बीज चुग रही थी।
वह अपने भाई के पकड़े जाते ही सड़क पार करके बूढ़े की बेंच की ओर दौड़ी भी। पर तभी रॉकी ने घबरा कर उसे रोकने के लिए पीछे से आवाज़ भी लगाई। वह चिल्लाता रहा - ऐ.. ऐ
लेकिन दौड़ती हुई उस नन्ही सी बच्ची के सामने उसके भाई के जीवन - मरण का सवाल था। वह अनसुनी करके दौड़ती रही। लेकिन सब व्यर्थ! जब तक वह बूढ़े के क़रीब पहुंच पाती बूढ़ा उसके भाई को बास्केट में बंद कर चुका था।
दूर से रॉकी की आवाज आई - ऐ श!
और बस, जब मायूस होकर वह वापस रॉकी के पास लौटी तो रॉकी ने ही उसे सांत्वना दी। उसका नाम भी रॉकी ने तभी से ऐश रख छोड़ा।
दोनों दोस्त बन गए।
- रॉकी, एक बात बता? वो बूढ़ा आदमी मेरे भाई को क्यों पकड़ कर ले गया? मेरे भाई ने उसका क्या बिगाड़ा था? वह तो सड़क पर खेल रहा था। ऐश ने रॉकी से पूछा।
- यार, वह तो शिकार करने ही आया था। मछली पकड़ रहा था न, मछलियों की ही गलती कहां थी। लेकिन उसे पेट की आग बुझाने के लिए कुछ तो चाहिए था। तेरा भाई उसके सामने आ गया। उसे लालच आ गया। वह मछलियों के साथ- साथ उसे भी पकड़ कर ले गया।
- ओह! ये ठीक नहीं?
- अच्छा, एक बात बता, तू अपने भाई को बचाने के लिए बिना सोचे - समझे उसकी तरफ़ दौड़ पड़ी! तू अगर वहां पहुंच भी जाती तो तू उस हट्टे - कट्टे आदमी का कर क्या लेती? वह तुझे भी पकड़ लेता।
- मैं उससे बिनती करती, उससे कहती कि मेरे भाई को छोड़ दे, चाहे उसके बदले में मुझे ले जा!
- भावुक मत बन ऐश! वह दोनों को ले जाता।
ऐश रॉकी की ओर उदास नज़रों से देखने लगी।
रॉकी ने उसे समझाया - उदास रहने से कुछ नहीं होगा, वैसे भी भाई - बहन ज़्यादा दिनों तक साथ नहीं रह पाते। चल, हम झरने की तरफ़ चलें।