हडसन तट का ऐरा गैरा - 8 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 8

आज पानी के किनारे टहलते- टहलते ही ऐश और रॉकी काफी दूर निकल आए। मौसम भी बहुत सुहाना था। बादल छाए हुए होने से धूप नहीं थी और रात की वर्षा ने गर्मी से भी छुटकारा दिला दिया था और ठंडी हवा चल रही थी।
तभी रॉकी ने देखा कि ऐश कुछ चिंतामग्न सी बैठी है।
- क्या हुआ, किस सोच में बैठी है? मौसम की बेइज्जती मत कर ऐश! रॉकी ने कहा।
- मैं ये सोच रही थी रॉकी, हम परिंदे हैं तो क्या हुआ, हम रहते तो एक संपन्न देश के खूबसूरत शहर में हैं। यहां ढेर सारी सुविधाओं का भी भंडार है। तो क्यों न हम भी ज़िंदगी में कुछ बड़ा काम करने की सोचें। केवल दाना चुगने, घूमने और सो जाने में ज़िंदगी का क्या मज़ा है। ऐश ने कहा।
रॉकी हैरानी से बोला - वाह, बात तो तू बहुत ऊंची कर रही है। पर हम कर क्या सकते हैं? तेरे दिमाग़ में कोई प्लान भी है?
- प्लान तो बनाने से बनता है। देख, तेरे- मेरे माता- पिता कितनी दूर से यहां आए थे। मम्मी ने मुझे बताया था कि जहां वो लोग रहते हैं, वहां न साफ़ पानी है और न कोई ख़ास हरियाली। इसलिए जब वहां खराब मौसम में पानी की बहुत कमी हो जाती है तो उन लोगों को दर- बदर होकर इधर- उधर जाकर रहना पड़ता है।
यहां हमें पूरे साल खूबसूरत इमारतों के साए में भरपूर हरियाली और पानी मिलते हैं। तो क्यों न हम ऐसा कुछ करें कि बाहर से यहां आकर रहने वाले परिंदों के लिए एक बड़ा सा सुंदर बाग बनाएं जिसमें फलों से लदे खूब सारे पेड़ हों, ठंडा मीठा पानी हो और पक्षियों के रहने और घोंसले बनाने के लिए तरह- तरह के आकर्षक स्थान हों, ताकि उसमें रह कर दूर से चलकर आने वाले पखेरू आराम से अपने दिन काट सकें। ऐश ने कहा। ये सब कहते हुए उसकी आंखों में अपने मां- बाप की तसवीर कौंध गई जिन्हें उसने बचपन के बाद कभी न देखा था।
रॉकी का मन भी ऐश की बातों से भीग सा गया। वह बोला - ये काम तो कोई ज़्यादा मुश्किल नहीं है। हमारे पास सागर सी चौड़ी हडसन नदी का बेशुमार पानी है और हरियाली की तो दूर- दूर तक कोई कमी ही नहीं है। हम ऐसी जगह ज़रूर बना सकते हैं। लेकिन एक बात बता, इतनी सब मेहनत करके हमें क्या मिलेगा? क्या लाभ होगा हमारा?
- छी... छी, तू हमेशा अपने ही फायदे की बात क्यों सोचता रहता है? क्या दूसरों का भला करने का कोई मोल नहीं है? ऐश का मन रॉकी की बात से बुझ गया। पर साहस बटोर कर बोली - इस काम में भी हम खूब कमा सकते हैं।
- क्या कमा सकते हैं? रॉकी की बांछें खिल गईं।
- दाम भी और नाम भी। ऐश ने कहा।
- वो कैसे?
ऐश बोली - तुझे पता है प्राणियों के रंग और नस्ल को लेकर कितने लड़ाई - झगड़े होते रहते हैं। खून हो जाते हैं, हिंसा होती है, आतंक फैलता है!
- हां हां, ये सब तो मुझे मालूम है पर इसमें हम क्या कर सकते हैं। सबके नस्ल और रंग तो वैसे ही होंगे जैसे कुदरत चाहेगी। रॉकी ने मायूस होकर कहा।
- तू बुद्धू है, कुछ नहीं समझता। अरे हम अपने बगीचे में ये भेदभाव मिटाने की कोशिश करेंगे। यहां के नियम तो हम बनाएंगे न? यहां रहने वाले पंछियों को अपने ही रंग वाले साथी के साथ जोड़ा बनाने की अनुमति नहीं मिलेगी। यहां जो जैसा है उसे अपने से अलग रंग वाले प्राणी से विवाह करना होगा, तभी उन्हें यहां रहने की अनुमति दी जाएगी। जैसे श्वेत पक्षी श्याम वर्णी जीवन साथी चुने। अगर कोई भूरा है तो वो किसी भूरे पक्षी के साथ नहीं रह सकता। उसे काले, सफेद, सलेटी, पीले, सुनहरे या किसी भी अन्य रंग का साथी ही चुनना होगा!
- इससे क्या होगा? रॉकी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
- इससे उनकी जो भी संतान होगी वो उनकी जैसी नहीं बल्कि अलग होगी। और जो लोग केवल अपने जैसे लोगों को ही अपना समझ कर गैरों से लड़ने- मरने पर उतारू हो जाते हैं उनकी कमी होगी दुनिया में!
रॉकी ने दांतों तले अंगुली दबा ली। उसे भारी अचंभा हुआ। लो, जिसे वो भोली- भाली और नादान समझ रहा था वो तो इतनी दूर की सोच रखती है?
रॉकी के मन ही मन लड्डू फ़ूटने लगे। उसने सोचा ऐश उतनी नादान और नासमझ नहीं है जितनी वो उसे समझ रहा था।
वाह, ये बात तो काफ़ी समझदारी की कर रही है। वह बोला - पर इससे हम नाम और दाम कैसे कमाएंगे?
- सब्र कर, बताती हूं। ऐश बोली।