हडसन तट का ऐरा गैरा - 9 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 9

रॉकी ध्यान से ऐश की ओर देखने लगा। उसे जल्दी से जानना था कि नदी के तट पर हरियाली और रास्ता बनाने से जब प्रवासी परिंदे आयेंगे तो उनसे नाम और दाम कैसे मिलेगा।
उसे सहज ही ये विश्वास नहीं हो पा रहा था कि उसे बैठे- बिठाए बिजनेस करने का मौक़ा मिल सकता है, वो भी इतनी आसानी से।
वह किसी मासूम बच्चे की तरह ऐश की ओर ताकने लगा जो किसी टीचर की भांति उसे अपना आइडिया समझाने के लिए तैयार बैठी थी।
ऐश बोली - देखो, दुनिया भर से प्रवासी पक्षी यहां आयेंगे, यदि उन्हें यहां हमारी थोड़ी सी कोशिश से रहने के लिए अच्छी और हरीभरी जगह मिल जाए, ठंडा बहता हुआ ताज़ा पानी मिल जाए, खाने को फल - फूल या जीव - जंतु मिल जाएं तो वो वापस लौट कर अपने देश में सब से इस जगह की तारीफ़ ज़रूर करेंगे। सोचो, अगर ऐसा हुआ तो क्या दुनिया भर में हमारा नाम न होगा?
- ये तो है, नाम तो होगा। तारीफ भी होगी। लोग हमारी मेहमाननवाजी को याद तो ज़रूर रखेंगे।
- यही तो मैं कह रही हूं। ऐश ने चहक कर कहा।
- लेकिन इससे हमें धन कैसे मिलेगा? बेचारे पंछी- पखेरु हमें दुआओं के अलावा और दे ही क्या सकते हैं? रॉकी ने कुछ उतावला होकर कहा।
ऐश ने किसी बड़े रहस्य की तरह राज की बात बताई, बोली - तुम तो बहुत दिन से हडसन नदी के तट पर रहते हो। रोज़ देखते नहीं कि ढेरों लोग एक से बढ़ कर एक सुंदर कुत्तों को लेकर यहां घुमाने लाते हैं। वो कुत्तों को शौक से पालते हैं, ऊंचे दामों पर ख़रीद कर लाते हैं।
- ये तो है। लोगों को कुत्ते, मछलियां, बिल्ली आदि पालने का चाव तो होता है। रॉकी ने कहा।
- बिल्कुल सही, तो इसी तरह अगर हम लोगों को अच्छी और नई नस्ल के बेहतर पंछी बेचें तो वो उन्हें ज़रूर खरीदेंगे। ऐश बोली।
- मगर हम अच्छी नस्ल के पंछी लायेंगे कहां से?
- रहे न तुम बुद्धू के बुद्धू। अरे हज़ारों प्रवासी पक्षी जब हमारे बाग में कई दिनों तक ठहर कर रंगरेलियां मनाएंगे तो उनके बाल- बच्चे तो होंगे ही न। ये परदेसी पखेरू वापस लौटते समय अपने नवजात शिशुओं को अपने साथ लेकर नहीं जाते। बच्चों को यहीं छोड़ कर जाते हैं।
इन बच्चों का लालन - पालन हम करेंगे और शौक़ीन लोगों को इन्हें देंगे। अर्थात बेचेंगे। जब वो कुत्तों, मछलियों, बिल्लियों आदि के लिए ढेर सारा धन खर्च करते हैं तो क्या हमें इन उत्तम पक्षियों की कीमत नहीं देंगे?
- वाह! ब्रिलिएंट। क्या आइडिया है, यानी आम के आम और गुठलियों के दाम। रॉकी की आंखों में चमक आ गई।
ऐश उत्साहित होकर बोली - तुम देखना, एक दिन न्यूयॉर्क शहर के घर - घर में हमारी तरह सुंदर हंसों के जोड़े होंगे। तब हमें मालामाल होने में देर नहीं लगेगी।
ऐश की बातों से रॉकी को दोहरी खुशी हो रही थी। एक तो वो भारी मुनाफे का तरीक़ा बता रही थी, दूसरे रॉकी के मन में ये सोच- सोच कर लड्डू फ़ूटने लगे थे कि ये भोली सी मासूम दिखने वाली ऐश दुनियादारी के तमाम प्रपंच और धरम- करम जानती थी। इसे सब मालूम था कि प्रेम - प्यार क्या होता है और उसका नतीजा क्या होता है। रॉकी को जल्दी ही अपने अच्छे दिन आने की उम्मीद होने लगी।
लेकिन अच्छे दिन यूंही नहीं आते। इसके लिए कठिन परीक्षा देनी पड़ती है। कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
ऐश और रॉकी ने अगले दिन नदी के किनारे कुछ प्राणियों की एक मीटिंग बुलाने का फ़ैसला किया। इतना बड़ा काम कोई अकेले तो हो नहीं सकता था। इसके लिए मेहनत करने वाले दस - बीस साथी और चाहिए थे!
अगली सुबह नदी तट पर मेंढक, कछुआ, बतख, उदबिलाव, मछलियों आदि का एक बड़ा हुजूम उमड़ पड़ा। ख़बर सभी को मिली थी। उम्मीद तो ये भी थी कि मगरमच्छ खुद भी तशरीफ़ लाने वाला है।
- अरे नहीं, मगरमच्छ जैसा महाबली आ गया तो वो सारा मुनाफा खुद ही हड़प जाएगा। उसे मत बुलाओ। सभी की ऐसी ही राय थी।
वैसे भी मगरमच्छ महाशय की नींद सुबह जल्दी खुलती ही न थी। सूरज जब सिर पर आकर तपने लगता तब श्रीमान जी पानी के गर्म होने पर कसमसा कर उठते थे। मीटिंग तो सुबह जल्दी ही थी।
ऐश और रॉकी के पास सबको बताने के लिए पूरी योजना तैयार थी।
मीटिंग बहुत सफ़ल रही।
वहां से लौट कर सब खुशी से झूमने लगे।