हडसन तट का ऐरा गैरा - 11 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 11

कभी ऐश और रॉकी प्रवासी पंछियों की संतान की तरह हडसन तट पर संयोग से आ गए थे, लेकिन आज इस हंसों के जोड़े का यहां नदी के किनारे एक फलता-फूलता कारोबार था। उन्होंने एक सुंदर सा बगीचा बना रखा था जिसे फल- फूल और तरह- तरह की खाने - पीने की चीज़ों से भर रखा था। बाहर के विपरीत मौसम में कई दुर्लभ और खूबसूरत पक्षी अपने- अपने देस की आपात व्याधियों से बचने को लंबी उड़ान भरके यहां आया करते थे और इस शानदार तट पर कुछ समय रहने का अलौकिक आनंद लिया करते थे। वापस जाते समय वे अपने कलेजे के टुकड़े जैसे अपने अंडे - बच्चों को ऐश और रॉकी की सरपरस्ती में यहीं छोड़ जाया करते थे।
इन्हीं प्यारे- प्यारे नन्हें - मुन्नों को मनोरंजक करतब सिखा कर ऐश और रॉकी यहां के शौकीन रहवासियों को ऊंचे दामों पर बेचा करते थे। दूर- दूर से उनके ग्राहक उनका नाम सुन कर यहां आया करते थे।
आसपास रहने वालों को इस बात की ईर्ष्या ज़रूर होती थी कि हंस और बगुले की प्रजाति के ऐश और रॉकी ये मुश्किल काम कैसे कर लेते थे? इतना ही नहीं, बल्कि ऐश और रॉकी ने तो अपना काम- धंधा संभालने के लिए कुछ युवा लड़के - लड़कियों को भी अपनी नौकरी में रख छोड़ा था। लोग जब इन लड़कों या लड़कियों को अकेला पाते थे तो कानाफूसी करके उनसे ये पूछते थे कि तुम्हारे मालिक लोग इतना धन कैसे कमा रहे हैं? वो तो परिंदे हैं!
लोग उन्हें भड़काने की चेष्टा भी करते। उनसे कहते - यार, तुम तो इंसान बच्चे हो, पाखियों की गुलामी क्यों करते हो? उन्हें किसी तरह यहां से भगा दो और तुम कारोबार संभालो। इस पर सभी युवा कर्मचारी मुस्कुरा कर रह जाते। वो उन लोगों से कहते कि तुम हमारे मालिक जोड़े को जानते नहीं हो, वो बहुत बुद्धिमान और भले प्राणी हैं।
लेकिन ये भी तो एक रहस्य की बात थी कि हडसन तट का ये पाखी जोड़ा इतना बड़ा कारोबार संभाल कैसे रहा था। इसकी भी एक दिलचस्प कहानी थी।
"एक रात की बात है, तूफान और घने - अंधेरे के बीच एक जर्जर नौका हिचकोले खाती और थपेड़े सहती नदी के किनारे से आ लगी।
ऐश और रॉकी तब खाना खाकर झाड़ियों के पीछे अपने तिनकों के आशियाने में तूफ़ान से डरे हुए आराम कर रहे थे। ये तेज़ हवाओं का बवंडर जहां ऐश को डरा रहा था वहीं रॉकी को भीतर ही भीतर गुदगुदा रहा था। क्योंकि भयभीत ऐश घबरा कर उससे चिपकी जा रही थी। रॉकी मुश्किल से ही किसी तरह अपने को संभाले हुए था।
लेकिन अपने आशियाने के समीप किनारे से आ टकराई नौका को देख कर ऐश और रॉकी बाहर निकल आए। उन्होंने देखा, एक कमज़ोर सा बेहद उम्रदराज आदमी किसी तरह रस्सी से अपनी नाव को एक खंबे से बांध कर बेदम सा हुआ किनारे पर बैठा है।
ऐश ने उसे देखा तो आगे बढ़ कर बिल्कुल उसके पास चली आई। घनी सफ़ेद दाढ़ी के बीच से निचुड़ा हुआ गुलाबी मुंह लेकर आदमी थोड़ा खुश होकर मुस्कुराया। ऐश उससे बोली - लगता है कि आप बहुत थक गए हो?
- ठीक कहती हो, तूफ़ान बहुत तेज़ था। मैं लहरों में फंस गया था। आदमी ने फूलती हुई सांस पर अब कुछ काबू करते हुए कहा।
- पास में झाड़ी के पीछे हमारा घर है, थोड़ी देर आराम कर लो, हवा मंद पड़े तो चले जाना। ऐश ने कहा।
बूढ़ा ऐश और रॉकी के पीछे - पीछे चला आया। उसके कपड़े भी भीग गए थे। बगीचे में आकर एक पत्थर पर बैठा तो रॉकी उससे बोला - भीग गए हो, कपड़े उतार कर सुखा लो, आगे जाना है तुम्हें!
बूढ़ा खड़ा होकर पूरा निर्वस्त्र हो गया। कपड़े घास पर फ़ैला दिए उसने। नंगा आदमी किसी संन्यासी सा दिखने लगा।
ऐश ने उसे कुछ मीठे फल लाकर दिए। बूढ़ा जल्दी- जल्दी उन्हें खाने लगा। शायद काफ़ी देर का भूखा था।

कुछ देर बाद जब हवा थमी तो बूढ़ा वापस जाने की तैयारी करने लगा।
लेकिन जाते- जाते एक चमत्कार हुआ। बूढ़े ने अपने पास के एक छोटे से थैले से कुछ अजीब से फल निकाल कर रॉकी और ऐश को दिए।
किसी बड़े से छिले हुए अखरोट जैसे पीले ये फल हंसों के उस जोड़े ने कभी देखे न थे।
- ये क्या है बाबा? ऐश ने चहक कर कहा।
- बेटा, ये इंसानी दिमाग है। जब जंगल में कोई मरता है या दुर्घटनावश डूबता है तो मैं उसके शव में से दिमाग़ निकाल कर सुखा कर रख लेता हूं। इसे जो भी प्राणी खा ले उसका मस्तिष्क फिर मनुष्यों की तरह ही काम करने लग जाता है।
- ओह! अदभुत। बड़े दूरदर्शी हैं आप।
रॉकी बोला - आदमी लोग तरह - तरह की कहावतें बनाते हैं, जैसे "ज़िंदा हाथी लाख का, मरा तो सवा लाख का!"... आपने तो आदमी की कहावत आदमी पर ही लगा दी।
बूढ़ा हाथ हिलाता हुआ चला गया।"