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घुटन - भाग १२

वीर प्रताप यह नाटक देख कर ख़ुद भी भूतकाल के काले साए में समाते जा रहे थे।

प्रिया को उदास देखकर उसकी माँ ने पूछा, "प्रिया क्या हुआ बेटा, तुम इतनी उदास क्यों हो?"

"माँ अमर ने मुझे धोखा दे दिया।"

"यह क्या कह रही हो बेटा?" 

"हाँ माँ मैं सच कह रही हूँ, वह किसी और से विवाह करने जा रहा है।"

प्रिया आगे कुछ और कहे उसके पहले ही उसकी माँ इस आघात को सुनकर चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर पड़ीं। प्रिया की माँ उस समय ठीक तो हो गईं लेकिन जब उसे यह पता चला कि उसकी बेटी माँ बनने वाली है तो वह अपनी साँसों को रोक नहीं पाई और उसका स्वर्गवास हो गया।

एक हफ़्ते के लिए बाहर गए प्रिया के पिता अपनी पत्नी की मृत्यु की ख़बर सुनकर वापस आए। वह अपनी जीती जागती पत्नी को छोड़ कर गए थे और जब वापस लौटे तो उसका पार्थिव शरीर देखकर वह निढाल होकर उसके मृत शरीर के पास बैठ गए। वह अपनी पत्नी की तरफ़ एक टक देख रहे थे। उन्होंने उसके सर पर हाथ फिराते हुए जब उसके माथे का चुंबन लिया तब वह अपने रुदन को रोक नहीं पाए और उनकी आँखों से आँसू बह निकले।

प्रिया तुरंत ही उनके पास आई और उनके आँसू पोंछने लगी।

कुछ ही देर में वह अपनी पत्नी को जीवन की अंतिम यात्रा पर ले गए। जब वह अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करके लौटे तब प्रिया अपने पिता से लिपट कर बहुत रोई। 

वह प्रिया को समझाने लगे, "प्रिया बेटा रोओ नहीं शायद वह इतनी ही साँसें लेकर आई थी।"  

"नहीं पापा माँ की मृत्यु का कारण अमर है।"

"यह क्या कह रही हो बेटा?"

"हाँ पापा उसने मुझे धोखा दे दिया, वह किसी और के साथ विवाह करने जा रहा है। माँ इस दुःख को बर्दाश्त नहीं कर पाई, इसीलिए माँ ने यह दुनिया छोड़ दी इसके अलावा. . .  " 

"इसके अलावा क्या बेटा?" 

"पापा माँ समझ गई थी कि मैं . . . " 

"प्रिया क्या कहना चाह रही हो साफ़-साफ़ कहो ना?"

"पापा यही कि मैं माँ बनने वाली हूँ। यह पता चलते ही माँ की साँसें टूट गईं। पापा मुझे माफ़ कर दो. . . "

उसके पिता ने अपनी बेटी को सीने से लगाते हुए कहा, “प्रिया मेरी बच्ची उस पापी धोखेबाज को मैं . . ."  

"नहीं पापा मुझे किसी से कोई बदला नहीं लेना है, ना ही जबरदस्ती किसी के गले पड़ना है। मैं-मैं कहीं चली जाऊँगी पापा।"

"नहीं बेटा मैं हूँ ना, मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा। प्रिया बेटा मैं जानता हूं तुम्हारे विश्वास का, तुम्हारे प्यार का बीज तुम्हारे गर्भ में पल रहा है। ग़लती तो उस अमर की है जिसने वादा करके तुम्हें मँझधार में छोड़ दिया लेकिन मैं तुम्हारा पापा हमेशा तुम्हारा साथ दूँगा। बेटा तुम डरो नहीं, शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं। तुम्हारी ग़लती सिर्फ़ इतनी है कि तुमने ग़लत इंसान पर विश्वास कर लिया।"

प्रिया अपने पिता से लिपटकर बहुत रोई। 

उसके बाद पर्दा बंद हो गया और पीछे से आवाज़ आई फिर प्रिया ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह उसे रोज़ एक कहानी सुनाती थी जो उसके ख़ुद के जीवन की सच्ची कहानी थी। वह कहानी सुनते-सुनते ही वह बच्चा बड़ा हो रहा था। देखते-देखते वह लड़का अठारह वर्ष का हो गया फिर स्टेज का पर्दा खुलता है और एंट्री होती है प्रिया के बेटे तिलक की।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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