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घुटन - भाग ७ 

रागिनी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा, "तिलक बेटा कई बार लोग एक चेहरे के ऊपर कई चेहरे लगा लेते हैं जिसके कारण उनका असली रूप पहचान में नहीं आता। वह नायक तो पीठ दिखा कर हमेशा-हमेशा के लिए चला गया परंतु वह नायिका प्यार की आग में जलती रही। समाज के तानों की चिंता छोड़ कर हर दुःख दर्द सह कर उसने अपने बेटे को जन्म दिया। नायिका के पिता ने हमेशा उसका साथ दिया। अपनी बेटी को आदर सत्कार दिया। उसके प्यार का उन्होंने सम्मान किया। वह जानते थे कि उनकी बेटी तो अपने प्यार को पूजा मानती थी। ग़लती तो उसकी है जो इंसानियत से नाता तोड़ गया। वह हमेशा उसे समझाते थे कि बेटा ऐसे इंसान के लिए क्या आँसू बहाना।" 

आज रागिनी अपने बेटे को कहानी की नायिका की सच्चाई बताना चाहती थी इसलिए कहानी का अंत सुनाते समय उसकी आँखें केवल डबडबाई नहीं बल्कि बरस पड़ीं।

तिलक ने पूछा, "क्या हुआ माँ?  क्या इस कहानी की नायिका आप ही हैं?"  

तिलक के ऐसा पूछते ही रागिनी का तन-मन सिहर उठा उसे कंपकंपी छूट गई। उसने अपनी लड़खड़ाती ज़ुबान से कहा, "हाँ बेटा वह अभागन तुम्हारी यह माँ ही है।"

तिलक ने अपनी माँ को सीने से चिपकाते हुए कहा, " माँ आप अभागन नहीं हैं, अभागा तो वह इंसान है जो आपको इस तरह छोड़ गया। माँ मैं आज उस पापी का नाम जानना चाहता हूँ जिसने आपको ऐसे दलदल में फेंक दिया। जिसने आपके दिन और रातों का सुकून आपसे छीन लिया। अब मैं भी उसके जीवन से. . ."

"नहीं तिलक इसके आगे कुछ ना कहना, ना ही सोचना।"

"प्लीज़ माँ आप मुझे उसका नाम . . . "

"हाँ तिलक तुम्हें पूरा हक़ है उसका नाम जानने का, उसका नाम है वीर प्रताप सिंह, वही हैं तुम्हारे पिता। उनकी कपड़ों की बड़ी मील है और वह एक जाने माने बिज़नेस मैन हैं। आज उनके पास दौलत शौहरत सब कुछ है।"

"माँ उसे मेरा पिता मत कहो। वह केवल एक झूठा, धोखेबाज, फरेबी, स्वार्थी इंसान है इससे ज्यादा और कुछ नहीं।"

"तिलक वह तुम्हारे पिता हैं, यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे तुम हरगिज़ झुठला नहीं सकते और यह सच्चाई कभी बदल भी नहीं सकती।"

"इस पाप की सजा उसे ज़रूर मिलेगी माँ। उसे अपनी ग़लती का पछतावा ज़रूर होगा और वह पछतावा उसे मैं कराऊँगा।"

"नहीं तिलक मैंने इतने वर्षों तक तुम्हें यह कहानी इसलिए नहीं सुनाई कि तुम उससे बदला लो। यह कहानी तुम्हारी रग-रग में मैंने इसलिए फैलाई है कि तुम अपनी माँ को, मुझे कभी ग़लत ना समझो। तिलक यदि कोई स्त्री किसी को सच्चा प्यार करती है और उसे धोखा मिलता है तो उसके बाद उस स्त्री का जीवन कैसा हो जाता है; उसके जीवन की कहानी मेरी जुबानी मैंने तुम्हें सुनाई है बेटा। मैंने यह राज़ इतने वर्षों तक अपने मन में छुपा कर रखा था; तुम्हें बताने में मैं डरती थी कि कहीं तुम मुझसे नफ़. . ."

तिलक ने रागिनी के होंठों को अपनी हथेली से बंद करते हुए कहा, "माँ यह कहानी आप की है यह सुनने के बाद आपके प्रति मेरा प्यार और सम्मान और भी अधिक हो गया है। मेरी वज़ह से ही तो आपने यह सारी तकलीफ़, सारी कठिनाइयां झेली हैं। यदि मैं आपके गर्भ में ना आता तो शायद आप इस दुनिया से मुँह मोड़ लेतीं। आप चाहती तो अपनी एक अलग दुनिया बसा लेतीं। आपने तो ज़माने की चिंता छोड़कर मुझे जन्म दिया है माँ। मैं समझ सकता हूँ कि यह सब इतना आसान नहीं था।"  

रागिनी तिलक के मुँह से यह सुनकर आज बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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