घुटन - भाग ९ Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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घुटन - भाग ९

तिलक की नाराज़ी देख कर रागिनी ने उसे समझाते हुए कहा, "नहीं-नहीं तिलक तुम मुझे वचन दो कि तुम कभी उस तरफ नहीं जाओगे जहाँ से उसके घर का रास्ता मिलता है। कभी उसके जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करोगे।" 

"माँ आप यह कैसा वचन मांग रही हो मुझसे? उसे उसकी ग़लतियों का एहसास तो कराना ही पड़ेगा। जिस ने मेरी नानी की जान ले ली, जिसने मेरी माँ को घुट-घुट कर जीने के लिए छोड़ दिया, जिसने मुझसे पिता का साया छीन लिया, उसके लिए आप वचन मांग रही हो?"

"तिलक जो बीत गया उसके पीछे भागने से अच्छा है, हम आने वाला अपना भविष्य सुधारें। बदला लेना हमारा काम नहीं है बेटा। जीने दो उसे उसकी ज़िंदगी जो उसने चुनी है। अब उसका भी परिवार है, उसके भी बच्चे होंगे, सब के बीच उसकी इज़्जत उतार कर तुम्हें क्या मिलेगा?"

"माँ मैं आपको एक नहीं दो वचन देता हूँ कि मैं समाज में उसे शर्मिंदा नहीं करूँगा लेकिन हाँ माँ उसे उसकी ग़लती का एहसास तो ज़रूर कराऊँगा और यह मेरा दूसरा वादा है माँ," इतना कहकर तिलक कमरे से बाहर चला गया।

रागिनी तिलक को इस तरह देखकर घबरा गई लेकिन जवान बेटे को ज़्यादा कुछ कहना सुनना अब उसे ठीक नहीं लग रहा था।  

तिलक अपने कॉलेज की राजनीति में पहले से ही सक्रिय था, चाहे जो भी हो उसकी रगों में खून तो वीर प्रताप का ही था। वह अपने कॉलेज का प्रेसिडेंट था और अब स्नातक होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसने उसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया जिस शहर में वीर प्रताप रहता था। उस कॉलेज में प्रवेश पाने के समय तिलक को यह पता चला कि वहाँ का ट्रस्टी वीर प्रताप है।

इस बात से रागिनी बिल्कुल अनजान थी। एमबीए के पहले साल तिलक ने पढ़ाई के साथ-साथ अपने काम से सभी विद्यार्थियों और प्रोफेसरों को बहुत प्रभावित किया। वह सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता था। सभी की बहुत मदद भी करता था। धीरे-धीरे कुछ ही महीनों में सब उसे बहुत पसंद करने लगे थे। अब तक रागिनी भी उसका भेद जान गई थी कि तिलक ने उसी शहर के कॉलेज में प्रवेश ले लिया है। यह बात अधिक दिनों तक कहां छुप सकती थी लेकिन जवान बेटे को बार-बार टोकना वह ठीक नहीं समझती थी इसलिए वह शांत ही रही।

तिलक ने यहाँ के कॉलेज में भी अगले चुनाव में उतरने की तैयारी कर ली। वह इस चुनाव में खड़ा होना और जीतना भी चाहता था शायद यह उसके आगे की तैयारी की शुरुआत थी। 

कॉलेज में वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम की पूरी रूप रेखा तिलक तैयार कर रहा था। विद्यार्थियों द्वारा तैयार किए गए नृत्य, नाटक आदि सभी का चयन उसी के हाथ में था। इसी कार्यक्रम के दौरान उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई जो अभी सेकेंड ईयर में थी। उस लड़की को वीर ने अपने नाटक में नायिका की भूमिका के लिए पसंद किया था।

वीर ने उससे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

उसने कहा, " कुमुदिनी"

दिखने में वह बहुत ही खूबसूरत थी। उसके साथ तिलक ने अपने नाटक का अभ्यास शुरू कर दिया। तिलक कई बार वीर प्रताप की हवेली के आसपास से अपनी बाइक से गुजरता था। एक दिन हवेली की बड़ी सी बालकनी में उसे कोई ऊँचा पूरा इंसान खड़ा नज़र आया। उसे देखते से तिलक की बाइक का ब्रेक अपने आप ही लग गया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः