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घुटन - भाग ३

वीर के मुँह से शादी की बात सुनते ही अपना आपा खोते हुए रागिनी ने वीर को झकझोरते हुए कहा, "तय कर दिया है, यह क्या कह रहे हो वीर," और वह वीर की बाँहों से अलग हो गई। 

"किसके साथ वीर?" 

वीर ने लड़खड़ाती ज़ुबान से कहा, "मैं नहीं जानता रागिनी, है एक लड़की रुकमणी।" 

"तुम नहीं जानते और बिना तुमसे पूछे, तुम्हें दिखाए बिना, विवाह तय कर दिया और तुम चुप रहे, कुछ नहीं बोले वीर? हमारे प्यार के बारे में अंकल आंटी को सब कुछ तो पता है, फिर कैसे?"

आज वीर की ज़ुबान बार-बार लड़खड़ा रही थी और वीर का झूठ रागिनी समझ रही थी। उसकी आँखों से टप-टप कर के आँसू ज़मीन पर टपक रहे थे। जो वीर कभी रागिनी की आँखों को डबडबाने तक नहीं देता था, वही वीर आज बहते हुए रागिनी के आँसुओं को चुपचाप खड़ा देख रहा था और जल्दी से जल्दी वहाँ से चले जाना चाह रहा था।

उसने कहा, " रागिनी मुझे माफ़ कर दो।" 

"वीर क्या तुम्हारी ग़लती इतनी छोटी है जिसे तुम माफ़ी के केवल इन शब्दों से सुधार लेना चाहते हो। मैं समझ रही हूँ वीर, खोट तुम्हारी ही नीयत में आ गई है। इन पाँच वर्षों में तुम्हारा मन मुझसे भर गया या फिर तुम्हें कोई खजाना हाथ लग गया है, बोलो वीर?"

वीर शांत खड़ा था।

रागिनी ने कहा, " तुम डरो नहीं वीर, यदि तुम्हें मेरे साथ जीवन बिताने में तकलीफ़ हो रही है तो फिर मैं तुमसे या अंकल आंटी से भीख मांग कर तुम्हारे जीवन का हिस्सा नहीं बनना चाहती। जाओ वीर तुम आज़ाद हो यह जबरदस्ती का सौदा नहीं है।"

"रागिनी तुम मुझे ग़लत समझ रही हो।" 

"नहीं वीर अब तक मैं तुम्हें ग़लत समझती आई थी। आज बात करने में तुम्हारी जीभ इतना लड़खड़ा रही है कि तुम्हारा झूठ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अंकल आंटी मुझे पसंद करते हैं, यह बात मैं अच्छी तरह जानती हूँ। मुझे दुःख इस बात का नहीं है वीर कि तुमने मुझे अपनाने से इंकार कर दिया। मुझे दुःख तो इस बात का है कि मैंने अपने जीवन के पाँच साल एक ऐसे इंसान के लिए बर्बाद कर दिए जिसके सीने में दिल ही नहीं और यदि है तो वह इतना बेवफा है। मैं तो तुम्हें प्यार करती हूँ इसलिए तुम्हें बद्दुआ भी नहीं दे सकती पर तुमने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा वीर। जाओ भगवान तुम्हें सदा ख़ुश रखे तुम्हारी नई जीवन साथी के साथ," इतना कहते हुए रागिनी अपनी आँखों से बहते हुए आँसुओं के साथ जाने लगी। 

वीर उसे जाते हुए देख रहा था। उसके शब्द सच्चाई लिए हुए थे और वीर के कानों को तीर की तरह भेद कर चले गए थे। ग़लती तो उसी की थी, वीर जानता था।

कुछ दूर जाकर रागिनी ने आख़िरी बार उसे पलट कर देखा तो वीर उसे ऐसा क्षितिज की तरह दिखाई दे रहा था जिससे उसका मिलन कभी नहीं हो सकता था और वह केवल मृगतृष्णा मात्र ही था।

आज पूरी रात रागिनी वीर की आँखों में जल परी की तरह तैरती रही। उसकी आँखों से कुछ आँसू भी टपक कर नीचे तकिये पर गिर रहे थे। गिरे हुए उन आँसुओं के साथ वह जल परी भी उसकी आँखों से ओझल हो गई और वीर प्रताप भूतकाल की उन गलियों में भटक कर वापस वर्तमान में लौट आया। आज पहली बार उसे रागिनी से दूर होने का अफ़सोस हो रहा था; यह सोच कर कि वह कहाँ होगी? कैसी होगी? क्या करती होगी?

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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