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घुटन - भाग ११

अब तक तिलक पूरे कॉलेज में बहुत लोकप्रिय हो चुका था । वह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रहा था। अपने कॉलेज के आने वाले चुनाव के लिए भी वह बढ़-चढ़ कर काम कर रहा था। अब सांस्कृतिक कार्यक्रम का दिन भी आ गया। सभी विद्यार्थी बहुत ही उत्साहित हो रहे थे। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में वीर प्रताप सिंह और उनकी पत्नी रुक्मणी को आमंत्रित किया गया था।

शाम के छः बज चुके थे वीर प्रताप के आने का इंतज़ार हो रहा था। कुछ ही समय में वीर प्रताप और उनकी पत्नी रुक्मणी कॉलेज पहुँच गए। कुछ छात्राओं ने फूल माला से उनका स्वागत किया और फिर उन्हें शानदार कुर्सियों पर बैठने के लिए आमंत्रित किया गया। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था। विद्यार्थियों के माता-पिता, परिवार के और भी लोग इस कार्यक्रम का लुत्फ़ उठाने आए हुए थे। कुछ ही समय में प्रोग्राम शुरू हो गया। दीप प्रज्वलित करने के लिए वीर प्रताप और रुक्मणी स्टेज पर आ गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत हुआ। इसके बाद सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। एक से बढ़कर एक नृत्य, नृत्य  नाटिका, कव्वाली, एक के बाद एक होते चले गए। लोग इस कार्यक्रम को देखकर मंत्रमुग्ध हो रहे थे। कभी-कभी बीच में छोटे-मोटे चुटकुलों से सामने बैठी जनता को हँसाया जाता, गुदगुदाया जाता। दो घंटे किस तरह निकल गए पता ही नहीं चला।

अब आज के कार्यक्रम का अंतिम नाटक ही बाकी रह गया था। उसकी शुरुआत हुई जिसमें नाटक की नायिका थी कुमुदिनी। इस नाटक में उसका नाम प्रिया था।  वह एक लड़के अमर से बहुत प्यार करती थी। कॉलेज से ही उनका प्यार शुरु हुआ था। हर रोज़ मिलना-जुलना, प्यार के वादे करना। धीरे-धीरे उनकी नज़दीकियाँ बढ़ने लगी और उनका प्यार परवान चढ़ता गया। यहाँ तक कि प्रिया ने अपना तन-मन सब अपने प्रेमी अमर को सौंप दिया क्योंकि उसका प्यार पर विश्वास था। लेकिन जैसा उसने सोचा था वैसा हुआ नहीं। उनके प्यार को लालच की दीमक लग गई। लालच के साथ-साथ ख़ूबसूरती भी दोनों प्रेमियों के बिछड़ने का कारण बन गई। अमर एक ख़ूबसूरत लड़की को अपना दिल दे बैठा जो बहुत ही धनवान पिता की बेटी थी। धन और सुंदरता के मोह में वह ऐसा मोहित हुआ कि पाँच वर्ष के प्यार को ठुकराने में उसने बिल्कुल देर नहीं की। 

एक दिन वह प्रिया के पास आया और बोला, "देखो प्रिया अब हमारा मिलन असंभव है, मेरे माता पिता ने मेरा विवाह कहीं और तय कर दिया है।"  

प्रिया घबरा गई वह रोने लगी, रोते हुए उसने कहा, "ये क्या कह रहे हो अमर? अंकल आंटी तो मुझे कितना पसंद करते हैं।"  

अमर ने कहा, "नहीं तुम ग़लत सोच रही हो प्रिया, उन्होंने ही मेरा रिश्ता तय किया है।"

"नहीं अमर तुम झूठ कह रहे हो। खोट तो तुम्हारी ही नीयत में आ गई है। इन पाँच वर्षों में शायद तुम्हारा मुझसे मन भर गया है।"

लेकिन अमर पीठ दिखा कर हमेशा के लिए उससे दूर चला गया। प्रिया उदास होकर अपने घर लौट आई। घर पहुँचने के बाद प्रिया उदास बिस्तर पर लेटे आँसू बहा रही थी।

वीर प्रताप बहुत ग़मगीन होकर इस नाटक को देख रहे थे। उन्हें ऐसा लग रहा था मानो उनकी बेटी जो कि इस नाटक की नायिका है उसके साथ सच में ही यह सब कुछ हो रहा है।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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