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घुटन - भाग १०  

हवेली की बालकनी में खड़े इंसान को और अच्छे से देखने के लिए तिलक बाइक पार्क करके हवेली के सामने के एक शानदार होटल के खुले हिस्से में जाकर बैठ गया और उसने वेटर को एक चाय का आर्डर दिया। दूर से वह उस बालकनी पर खड़े इंसान को देख रहा था। वही नैन नक्श, वैसी ही काठी, देख कर तिलक को यह समझने में देर नहीं लगी कि यही वीर प्रताप है। वह सोच रहा था कि जब उसकी उम्र उसके जितनी होगी तब वह भी शायद बिल्कुल वैसा ही दिखेगा। वेटर से बात करने पर उसे पता चला कि यह होटल वीर प्रताप का ही है।

वह उनकी तरफ देख ही रहा था कि तभी कुमुदिनी भी वहां आ गई और वीर प्रताप के पास खड़ी हो गई। वीर प्रताप ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फिराया और माथे का चुंबन लेते हुए वह उससे कुछ बात करने लगे। कुमुदिनी को वहां देख कर तिलक टेबल से उठ कर खड़ा हो गया। वह आश्चर्यचकित रह गया। वह बहुत भावुक हो गया यह जान कर कि कुमुदिनी तो उसकी छोटी बहन है। आज अपनी बहन पर उसे बेइंतहा प्यार आ रहा था लेकिन वीर प्रताप के लिए नफ़रत और अधिक बढ़ती जा रही थी। वह सोच रहा था कैसा इंसान है ये जीवन का भरपूर सुख उठा रहा है। इतने में रुक्मणी भी वहाँ आ गई, जहाँ एक आलीशान झूला लगा था। रुक्मणी के आते ही वह तीनों उस झूले पर बैठ गए।

तिलक ध्यान से उनकी तरफ देख रहा था। उसकी आँखें देखतीं वीर प्रताप के बाजू में रागिनी बैठी हुई है और वह ख़ुद उन दोनों के बीच आकर बैठ जाता है। कभी देखता वीर प्रताप के एक तरफ रागिनी और दूसरी तरफ़ वह बैठा हुआ है। वीर उसके सर पर प्यार से हाथ फिरा रहा है लेकिन दूसरे ही पल शीशे की तरह टूट कर उसका वह सपना भी चकनाचूर हो जाता और जो हक़ीकत थी, जो जीवन की सच्चाई थी, वह सामने प्रत्यक्ष दिखाई देने लग जाती।

तिलक ने जो चाय ऑर्डर की थी वह भी पी ना पाया और वह गुस्से में वहाँ से उठकर अपनी बाइक से चला गया। जब वह घर आया, उसे दुःखी देखकर रागिनी ने पूछा, "तिलक क्या हुआ? इतना उदास क्यों दिख रहा है?" 

"कुछ नहीं माँ।" 

"तिलक सच बता, क्या बात है?"

"कहा ना माँ, कुछ नहीं।"

"तुझे क्या लगता है तिलक, मुझे मालूम नहीं कि तूने किस कॉलेज में प्रवेश लिया है?"

"तो क्या हुआ माँ?"

"मैंने तुझे मना किया था ना फिर क्यों?"

"माँ वह कॉलेज ज़्यादा अच्छा है और हमारे शहर से पास भी तो है। बाइक से आधे घंटे में ही पहुँच जाता हूँ। आपका और नाना जी का भी तो ध्यान रखना है, दूर किसी शहर में जाकर पढ़ता तो ख़र्चा भी बहुत होता और आप दोनों से दूर भी रहना पड़ता, बस इसलिए।"

रागिनी तिलक की चिकनी चुपड़ी बातों के अंदर की गहराई को समझ रही थी। वह जानती थी तिलक के मन में एक तूफ़ान उठा है जिसे शांत किए बिना अब वह नहीं रुकेगा। 

धीरे-धीरे सांस्कृतिक कार्यक्रम का दिन नज़दीक आ रहा था। तिलक उसी की तैयारियों में व्यस्त था। तिलक ने जो नाटक ख़ुद तैयार किया था, जिसका लेखक भी वही था, वह नाटक उसकी माँ रागिनी और वीर प्रताप के जीवन की कहानी पर आधारित था। रागिनी के जीवन का किरदार निभा रही थी कुमुदिनी। इस नाटक के चलते कुमुदिनी तिलक से रोज मिलती और धीरे-धीरे वह तिलक को पसंद भी करने लगी थी। तिलक अभिनय करवाते समय कई बार प्यार से उसके सर पर हाथ फिराता था। यह उससे अपने आप ही हो जाता था। वह तो जानता था कि कुमुदिनी उसकी बहन है।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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