कहानी सुनते समय अपनी माँ की डबडबाई आँखों को देख कर तिलक पूछता, "माँ आप रो क्यों रही हो?"
हर बार रागिनी उसके प्रश्न को टाल दिया करती लेकिन अपने प्रश्न का उत्तर ना मिलने के कारण यह प्रश्न तिलक के मन में गहराई तक बस गया था।
उधर विवाह के दो वर्ष के बाद वीर प्रताप के घर भी किलकारी गूँजने की ख़बर आ गई और रुक्मणी ने एक बहुत ही खूबसूरत बिटिया को जन्म दिया।
पंद्रह वर्ष का होने के बाद एक दिन तिलक ने रागिनी से कहा, "माँ मैं वो ही कहानी एक बार फिर से सुनना चाहता हूँ जिसे सुनाते समय आप अपनी आँखों के आँसुओं को टपकने नहीं देती थीं पर वह मानते नहीं थे।"
रागिनी ख़ुद भी अब वह कहानी तिलक को एक बार फिर से सुनाना चाहती थी। वह चाहती थी कि तिलक समझदार हो जाए तो तब वह उसे अपने आँसुओं का असली कारण और उसके जीवन की पूरी सच्चाई बता देगी। कहानी पूरी होने पर वह यह भी बता देगी कि इस कहानी की नायिका उसकी अपनी माँ है। धीरे-धीरे कहानी परत दर परत खुलती गई। तिलक को कुछ याद था कुछ भूल गया था क्योंकि तब वह बहुत छोटा था; लेकिन अपनी माँ के आँसू और वह प्रश्न तो उसे अच्छे से याद था। अपने प्रश्न की गुत्थी वह सुलझाना चाहता था इसलिए दूसरी बार कहानी सुनकर उसे और अच्छी तरह समझने की कोशिश कर रहा था।
समय गुजरता जा रहा था रागिनी कहानी को रोज थोड़ा-थोड़ा सुनाती थी। धीरे-धीरे कहानी अपने अंत की ओर अग्रसर हो रही थी। इस बार भी वह उस कहानी को सुनते समय अपनी माँ की आँखों में छलछलाए आँसुओं को महसूस कर रहा था। माँ की आवाज़ में कहानी का दर्द मानो कई गुना बढ़ जाता था।
आज रात को कहानी सुनाते समय रागिनी ने कहा, "एक दिन उस कहानी का नायक आया और नायिका से कहा कि वह उसे भूल जाए। उसके मुँह से यह सुनकर नायिका रोने लगी उसके आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। नायिका ने रोते हुए कहा, क्या ग़लती हो गई मुझसे, भूलने का कारण तो बता दो। मैंने तो तुम्हें अपना भगवान माना था। तुम्हें असीम प्यार किया था, तुम पर पूरा विश्वास किया था। तुम्हारे प्यार के ऊपर मैंने अपना तन-मन सब तुम पर न्यौछावर कर दिया। फिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। नायक के पास नायिका के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं था। वह क्या कहता तिलक कि उसका मन लालच के भँवर में फँस गया है। वह क्या कहता कि वह एक साधारण रूप रंग की उस लड़की को छोड़ देना चाहता है जो उसे ख़ुद से ज़्यादा प्यार करती है। वह क्या कहता कि उसे एक खूबसूरत परी मिल गई है।"
इतना कहकर रागिनी कुछ देर के लिए चुप हो गई तब तिलक ने कहा, "माँ आगे क्या हुआ सुनाओ ना?"
"तिलक जिस समय वह नायक नायिका को यह कहकर छोड़ गया उस समय वह नायिका गर्भवती थी पर तब वह ख़ुद भी नहीं जान पाई थी कि उसके गर्भ में उसके प्रेमी के प्यार का बीज रोपित हो चुका है; लेकिन तिलक यदि वह जानती तो भी ऐसे धोखेबाज इंसान को वह कभी नहीं बताती।"
तिलक का मन यह सुनकर विचलित हो गया उसने गुस्से में कहा, "माँ ऐसे किरदार को नायक नहीं खल नायक कहना चाहिए आप उसे नायक क्यों कह रही हैं?"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः