गुजरात का अनूठा पावागढ़ -जहाँ महाकाली मंदिर के ऊपर मजार है Neelam Kulshreshtha द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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गुजरात का अनूठा पावागढ़ -जहाँ महाकाली मंदिर के ऊपर मजार है

क्या आप उत्तरप्रदेश व कश्मीर के पहाड़ देख चुके हैं ? उन के सौंदर्य से हट कर कुछ अलग देखना चाहते हैं ? अगर आप किसी शांत, छोटी सी पहाड़ी जगह जाना चाहते हैं तो गुजरात राज्य की पूर्वी सीमा के पंचमहाल जिले में स्थित पावागढ़ चले जाइए । यह स्थान समुद्र की सतह से लगभग 3,000 फ़ीट  ऊँचा और वड़ोदरा के उत्तरपूर्व में 53 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । सुंदर अरावली पहाड़ी श्रंखला की यह पहाड़ी न तो बहुत बड़ी है और न ही कश्मीर सा सौंदर्य अपने में समेटे हुए है । लेकिन फिर भी पर्यटकों को इस में कुछ नवीनता दिखाई देती है ।

पावागढ़ हिंदूओं और जैनियों का एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। कहा जाता है की जब शिव  अपने श्वसुर के यहां से  हवनकुंड में से उठाकर पार्वती का  जला हुआ शरीर ले जा रहे थे यहाँ सीधे पैर का अंगूठा गिरा था इसलिए इसे शक्तिपीठ की मान्यता मिली हुई है। मंदिर में तीन मूर्तियां हैं -बीच में दक्षिण मुखी कालिका माता , दायीं ओर काली ,बाँयीं ओर बहुचराजी माता।  जब से गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग ने रुचि ले कर यहाँ पर्यटकों के ठहरने की समुचित व्यवस्था की है इस हेरिटेज पर ध्यान दिया है तब से यहाँ भारी संख्या पर्यटक आने लगे हैं ।

पावागढ़ प्रसिद्ध  है महाकाली के मंदिर कालिका माता मंदिर के लिए,जो पहाड़ी पर बसा हुआ है। । इस पहाड़ी के उत्तर की तरफ़  के जंगल के बीच एक छोटा सा गांव बसा है जो  चंपानेर  के नाम से प्रख्यात है । चावड़ा  वंश के प्रतापी राजा वनराज चावड़ा  के मंत्री चांपा वाणिया की स्मृति में बने इस के किले के अवशेषों तथा पावागढ़ पर राजपूतों, मुगलों, मराठों का आधिपत्य रह चुका है ।

पावागढ़ की सैर अपने आप में एक अनन्य अनुभव है । 3 से 4-5 मील की दूरी पर अनेक इमारतें हैं इन में नीला गुंबज, जामा मसजिद, केवड़ा मसजिद, बड़ा तालाब वगैरहा है । यहाँ के भवनों की स्थापत्य कला संकेत करती है कि 8  वीं और 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था।

वड़ोदरा  से पावागढ़ पंचमहल ज़िले में ४५ किलोमीटर दूर है .पावागढ़ पहुंचने के लिये वड़ोदरा के पावागढ़ मार्ग पर स्थित चंपानेर  रोड जंकशन नाम के स्टेशन से जाया  जा सकता है। अहमदाबाद, नड़ियाद व सूरत  से राज्य परिवहन की बस की यात्रा  सुविधाजनक रहती है । बस मांची हवेली तक जाती है । कम समय में आराम से यात्रा करने के लिये गुजरात पर्यटन विभाग से  संपर्क किया जा सकता है । पावागढ़ गांव से ऊपर चोटी के ठीक नीचे मांची   हवेली है । यहाँ  ज़िला पंचायत की धर्मशाला है , मांची हवेली नामक स्थान पर - होटल व अन्य धर्मशालाएं व खाने पीने की दुकानें हैं । यहीं पर गुजरात राज्य ने पर्यटकों के लिये आरामदायक होटल चंपानेर  बनाया है ।

मांची हवेली से पहाड़ की चोटी तक जाने के दो तरीके है । अगर आप पहाड़ पैदल चढ़ना चाहें तो रास्ते के भग्नावशेष देखते हुए व प्राचीन द्वारों से गुजरते हुए जाइए या फिर गुजरात सरकार की तरफ़  से लगाये गये ‘रोप वे’ की ट्रोलियों में आसपास के विहंगम दृश्य का आनंद लेते हुए ऊपर जाइये ।

थोड़ा ऊपर चढ़ कर दूधिया तालाब के पास के एक मंदिर से कालिका मंदिर के लिये सीढ़ियाँ आरंभ हो जाती हैं । काली के इस मंदिर में ऊपर किसी पीर की दरगाह है । मांची हवेली के पास से  यहाँ विश्वामित्र आश्रम भी स्थित है। जनश्रुति के अनुसार अमृत मंथन के बाद विश्वामित्र कामधेनु गाय को लेकर यहाँ  आ गये थे। ऋषि विश्वामित्र ने यहाँ हजारों वर्ष पूर्व तपस्या की थी,  अप्सरा मेनका ने  अपने सौंदर्य से यहीं उन की तपस्या भंग की  थी ।

आठवीं सदी  में चावड़ा वंश के वनराज चावड़ा ने पावागढ़ को राजधानी बनाया था। इसके समृद्धि को देखकर इस राज्य को बहुत से शासक जीतना चाहते थे पावागढ़ के शासकों के विषय में जो प्राचीनतम ग्रंथ मिलता है वह है ‘पृथ्वीराज रासो’ जिस के अनुसार पृथ्वीराज चौहान के बाद उसकी 13 पीढ़ियों का यहाँ शासन रहा है । इसी वंश के त्रिंबक भूप के समय से अहमदाबाद के सुलतान अहमदशाह की चंपानेर  पर निगाह थी, लेकिन त्रिंबक भूप से उस ने अपने संबंध मधुर बनाये रखे क्योंकि वह मालवा से लड़ना चाहता था । रणनीति के लिये पावागढ़ बहुत  अच्छी जगह थी ।

जब त्रिंबक भूप का बेटा गंगादास यहाँ राज करता था तब अहमदशाह के बेटे गयासुद्दीन मुहम्मद शाह ने सन 1449 में पावागढ़ पर हमला कर दिया । गंगादास बहादुरी से लड़ा, लेकिन अपनी शक्ति कम जान कर उसने अपने को किले में बंद कर लिया और मालवा के सुलतान मुहम्मद खिलजी से सहायता मांगी । मुहम्मद खिलजी ने तुरंत अपनी सेनाओं के साथ कूच कर दिया और दाहोद तक पहुंच गया । मुहम्मद शाह ने जैसे ही यह बात सुनी तो वह वापस अहमदाबाद लौट गया ।

सन 1482 में जब बहुत ज़ोर  का सूखा पड़ा तो सुलतान मुहम्मद बेगड़ा के सिपाहियों ने पावागढ़ के गांवों को आ कर लूटा । उस समय यहाँ राजा जयसिंह का राज्य था । बेगड़ा की सेनाओं ने किले के चारों तरफ़  से हमला कर दिया । पावागढ़ को जीतने के लिये गुजरात में पहली बार बंदूकें चलीं । जयसिंह देव ने मालवा के सुलतान गयासुद्दीन से सहायता मांगी । वह सहायता करने निकल भी पड़ा, किंतु मालवा की जनता ने उसे यह कह कर वापस बुला लिया कि वह क्यों एक हिंदू राजा के लिये मुसलमान से टक्कर ले रहा है । तब मुहम्मद बेगड़ा ने अपनी फ़तह के प्रतीक के रूप में चंपानेर  में जानी मसजिद की नींव डाली ।

मुहम्मद बेगड़ा के बारे में मशहूर हो चुका था कि उसके राज्यों को फ़तह करने के रास्ते में जो कोई भी मंदिर पड़ता था उसे वह तोड़ देता था।तब आशंका हो गई थी कि शीघ्र ही उसकी सेनायें किले पर आक्रमण करेंगी . राजा जयसिंह को किसी ने  राय दी कि चोटी पर बने कालिका मंदिर को  किसी  पीर की दरगाह बनवा दो जिस से बेगड़ा  मंदिर न तोड़ पाए । शायद इसी कारण से  यह  प्राचीन मंदिर आज भी सुरक्षित है ।

किले की नींव के पास एक सुरंग है जिस में हर समय राजपूत सैनिक तैनात रहते थे । जब वे नहाने व पूजा करने में व्यस्त थे तभी सेनापति मलिक सारंग ने हमला कर दिया । उधर मलिक अयाज खां ने किले के मुख्य द्वार पर हमला कर दिया । मुहम्मद बेगड़ा भी ढेर सी सेना के साथ सुरंग में मलिक सारंग की सहायता के लिये पहुंच गया । इस तरह बहुत ज़ोरों की लड़ाई हुई । 20 महीने के संघर्ष के बाद 21 नवंबर, 1484 को मुहम्मद बेगड़ा ने पावागढ़ पर अधिकार कर लिया. ।

किले की स्त्रियों ने जौहर प्रथा को अपनाते हुए एक विशाल चिता में एक साथ प्रवेश कर अपने को भस्म कर डाला । लेकिन घायल जयसिंह अपनी दो युवा बेटियों व एक बेटे के साथ पकड़ा गया । राजा जयसिंह ने जब इस्लाम धर्म स्वीकारने से मना कर दिया तो उसका सिर काट दिया गया । उस की बेटियां हरम में पहुंचा दी गईं और उसके बेटे ने इसलाम धर्म स्वीकार कर लिया  लेकिन १५३५ में  मुग़ल साम्राज्य के बादशाह हुमायुं ने अहमदाबाद को राजधानी बनाने के कारण   चंपानेर   राजधानी उजड़ती  चली  गई थी।

पावागढ़ पर्वत की तलहटी में बसे चंपानेर   को  आठवीं सदी  में चावड़ा वंश के वनराज चावड़ा ने राजधानी बनाया था। बाद में आर्कीटेक्ट कर्ण ग्रोवर जी के वड़ोदरा में विरासत के सरंक्षण के लिए ` हेरिटेज ट्रस्ट ` एन जी ओ के द्वारा भारत में एक इतिहास रचा गया कि प्रथम बार एक एन  जी  ओ के वर्षों के संघर्षों के बाद गुजरात के चंपानेर  की ऐतहासिक इमारतों को यू एन ओ  द्वारा सन  २००४ में `वर्ल्ड हेरिटेज साइट `घोषित  किया गया। अब तक की भारत की पच्चीस वर्ल्ड हेरिटेज साइट  साइट को सरकारी प्रयासों के कारण ये दर्ज़ा मिला था। इस दर्ज़े का परिणाम होता है इन साइट्स का जीर्णोद्धार करने के लिए अपार धनराशि   का समुचित प्रबंध यू एन  ओ करता है।

भारत में रचे गए इस इतिहास का हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा किये गए  जश्न में मैं भी शामिल हुई थी। तब पता लगा था   यू एन  ओ  में दस्तक  देने का प्रयास इतना आसान  नहीं  था।ट्रस्ट ने  कुछ वर्षों तक लगातार चांपानेर  में आमंत्रित अतिथियों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करके जैसे मल्लिका  साराभाई  का नृत्य या कोई नृत्य नाटिका करके ये बात प्रमाणित की कि यहां वहां फैले किले व आस पास की ऐतहासिक इमारतों    को  सरंक्षण की  ज़रुरत है. गुजरात में रहने वाला हर बुद्धिजीवी गांधीजी के विचारों में और रंग जाता है कि समाज का कोई भी लाभ सबसे पहले समाज के निचले दर्ज़े पर रहने वाले अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। इसलिए ये ट्रस्ट कोई भी शो बाहर वालों को दिखाने से एक दिन पहले आस पास के गाँवों को आमंत्रित करके दिखाता  था। इनके प्रयास से  एक बड़ी सफ़लता हासिल हो ही  गई।

इस जीर्णोद्धार के बाद  आज यहां के जंगल में खुदाई के बाद ३९ ऐतहासिक  इमारतों  व एक वृहद आर्किओलॉजीकल पार्क का दर्शनीय स्थल बन चुका है जिसमे मुस्लिम ,जैन व हिन्दू स्थापत्य देखते ही बनता है।

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com