हीरोइन - 13 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हीरोइन - 13

सदी जा रही थी और एक नई सदी आ रही थी। नया ज़माना दस्तक दे रहा था।
शाहरुख खान और काजोल की सुपर हिट फ़िल्म "कुछ कुछ होता है" में जब एक नई तारिका ने मीठे स्वर में सनातन शाश्वत आरती "ओम जय जगदीश हरे..." गाना शुरू किया तो सिनेमा घरों में अवाम ने भी उसके साथ- साथ गुनगुना कर मानो ये ऐलान कर दिया कि ईश्वरीय आस्थाएं नई सदी में भी हमारे साथ जाएंगी।
ये अभिनेत्री रानी मुखर्जी थी। हमारी फ़िल्मों में कभी ये रिवाज़ था कि हीरो- हीरोइन स्क्रीन टेस्ट के साथ - साथ वॉइस टेस्ट लेकर ही चुने जाएंगे। पर खरखरी,कुछ बैठी सी आवाज़ के साथ इस हीरोइन ने गुलाम, हैलो ब्रदर,नायक, हे राम,साथिया जैसी फ़िल्मों से कुछ ऐसा सिक्का जमाया कि लोग वाह वाह कर उठे। ये कटहल के दूध सी चिपचिपी कच्ची आवाज़ लोगों को पसंद आई।
रानी मुखर्जी को स्टार स्क्रीन अवार्ड के साथ साथ फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। एक रिकॉर्ड ये भी था कि वो एक ही साल में बेस्ट एक्ट्रेस और बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का पुरस्कार एक साथ ले गईं।
तमाम कामयाबियों के साथ रानी मुखर्जी को उर्मिला मातोंडकर, बिपाशा बसु, सोनाली बेंद्रे, शिल्पा शेट्टी और अमीषा पटेल जैसी हिट हीरोइनों से निरंतर चुनौती मिलती रही। इनकी कई फ़िल्में बड़ी- बड़ी कामयाबी हासिल कर रही थीं।
लेकिन इधर एक अभिनेत्री और थी जो फ़िल्म जगत में अपनी आमद दमदार तरीक़े से दर्ज़ करा रही थी, नाम था प्रिटी ज़िंटा।
देश में स्त्री विमर्श का असर अब यहां तक पहुंच गया था कि ज़ीनत अमान जैसी एक्ट्रेस को अपने विदेशी नाम के कारण हुए नुक़सान को देखते हुए भी प्रिटी ज़िंटा ने अपना नाम नहीं बदला। फ़िल्म जगत में मीडिया ने उनके नाम की स्पेलिंग सुधार कर उन्हें "प्रीति" बनाने की भी कोशिश की, पर वो इस बात पर अडिग रहीं कि वो "प्रिटी" ही हैं, और उनका सरनेम है "ज़िंटा"। यही दृढ़ता उनमें उनकी फिल्मों "सोल्जर,क्या कहना,दिल चाहता है, मिशन कश्मीर" में भी झलकी।
"हर दिल जो प्यार करेगा" की सफ़लता के बाद "कल हो न हो" ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवॉर्ड भी दिलवाया।
ऐसे में रानी मुखर्जी के साथ उनकी कड़ी टक्कर चलती रही।
वीर ज़ारा में दोनों साथ भी आईं।
लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ "ब्लैक" में अपनी अविस्मरणीय भूमिका के साथ रानी मुखर्जी अपने समय की "नंबर एक" सिनेतारिका सिद्ध हुईं। बंटी और बबली में भी उनकी भूमिका को सराहा गया। रानी मुखर्जी का ग्लैमर एक नए किस्म का ग्लैमर सिद्ध हुआ। एक ऐसी आभा, जिसमें भारतीय पवित्र पावन खूबसूरती लोगों को अभिभूत करती हो। रानी ने कुछ फिल्में बेहद अलग मिजाज़ की भी कीं। मर्दानी, हैय्या आदि ऐसी फ़िल्में थीं जिनमें रानी मुखर्जी फ़िल्म के नायक से भी कहीं बहुत आगे दिखाई देती रहीं। ऐसी फिल्मों को चाहें बहुत बड़ी व्यावसायिक सफलता न मिली हो लेकिन इन्हें सराहना ज़रूर मिली। हिंदी फ़िल्मों का इतिहास ये कहता है कि यहां चाहें व्यावसायिक सफलता पाने वालों को एक बार भुला भी दिया गया हो, पर दर्शकों की सराहना पाने वालों की अनदेखी कभी नहीं की गई। यहां कई कलाकार ऐसे हैं जिनका ज़िक्र अच्छे कलाकार के रूप में होता ही रहता है चाहे उनकी फिल्में ज़्यादा चलें या कम। रानी मुखर्जी भी ऐसा ही एक नाम बन गईं और पहुंच गईं उस मुकाम पर जो फ़िल्म जगत में गिने चुने लोगों को ही हासिल हुआ।
और इस तरह नई सदी के आगाज़ पर पुरानी चली आ रही फ़ेहरिस्त के स्वर्णिम पट पर नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी,वैजयंती माला, साधना, शर्मिला टैगोर, हेमा मालिनी, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित,काजोल, ऐश्वर्या राय के साथ रानी मुखर्जी का नाम "नंबर वन एक्ट्रेसेस ऑफ बॉलीवुड" में अंकित हो गया।