vaha laal gulab nahi the books and stories free download online pdf in Hindi

वहां लाल गुलाब नहीं थे

मौत और मौत के आसपास - ‘वहां लाल गुलाब नहीं थे’

डॉ. [श्रीमती] विजय शर्मा, जमशेदपुर

मौत के कई कारण हो सकते हैं। उम्र, हारी-बीमारी, दुर्घटना, हत्या-आत्महत्या। मगर सबसे दु:खद होती है आत्महत्या और उससे भी अधिक वीभत्स होती है हत्या को आत्महत्या का जामा पहना कर प्रस्तुत करना। मगर समाज में यह कार्य लगातार होता है, आए दिन होता है। वैसे तो पुरुष की हत्या को भी आत्महत्या के लिबास में दिखाने की कोशिश की जाती है मगर स्त्री की हत्या को आत्महत्या कह कर प्रचारित करना बहुत आम बात है। सब जानते हैं यह हत्या है मगर गवाही देने के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता है। और दुष्ट लोग यह अमानवीय कार्य कर शान से समाज में रहते हैं। इस तरह के जघन्य कार्य मायके में कदाचित होते हैं, हाँ, ससुराल में कभी स्टोव फ़ट जाता है इसी कहानी के पुण्या के सांय सांय करते घर के सामने से गुज़रते नायिका अपनी नन्ही बेटी नम्रता का अपने हाथ से कस कर जकड़ लेती है। उसी आदिम स्त्री प्रश्न से टकरा रही है,"...पता नहीं, नम्रता की बेटी, उस की भी बेटी की बेटी, उस की भी बेटी की बेटी....पता नहीं वह कौन सी बेटी होगी, जो यह लड़ाई जीत पायेगी...सिर्फ एक इनसान के रूप में सही ढंग से जीने व पहचाने जाने की लड़ाई ---------------?

.कभी भरे-पूरे सम्पन्न घर, नौकर-चाकर वाले घर की मालकिन भी पानी भरने पर जाती है और पाँव फ़िसलने से डूब कर मर जाती है। इस हत्या का कारण कभी दहेज का लालच होता है, कभी विवाहेतर प्रेम।

लेकिन कई बार आदमी काँपता रहता है, चाह कर भी हत्या नहीं कर पाता है। भले ही वह अपनी आँखों से अपनों के विवाहेतर शारीरिक संबंध देख ले। अंदर बर्फ़ जम जाती है। अफ़ीम उसका इलाज नहीं होता है, लेकिन आदमी अफ़ीम की शरण में जा कर इस दारुण जघन्य वितृष्णा से बचने का प्रयास करता है।

कुछ जीनियस न जाने कैसे मर जाते हैं और उनके साथ उनके अजूबे भी समाप्त हो जाते हैं जिंदगी रुकती नहीं है बस उसकी जगह नए अजूबे आ जाते हैं। कभी बटमार-लुटेरों का राज था, नक्सलाइट, माओवादी से लोग परेशान रहते हैं लेकिन उन सफ़ेदपोशों का क्या जो ड्र्ग्स का धंधा करते हैं और जो उनसे टकराने की कोशिश करता है उसे डराने का भरपूर प्रयास करते हैं। हम माने या न माने पशु-पक्षी आदमी से अधिक संवेदनशील होते हैं उन्हें आगामी खतरे का आभास पहले हो जाया है और वे दूसरों को भी इससे आगाह करने का प्रयास करते हैं। विद्वान गौतम सान्याल के अनुसार --- "बयान से परे 'विश्व की उन कुछ उन्नीस बीस कहानियों में से एक है जो 'एनीमल इंस्टिंक्ट' पर लिखी गईं हैं। "

अगर पृथ्वी पर कोई असंवेदनशील, अमानवीय है तो वह आदमी ही है। अपने प्रयोगों के लिए, स्वाद के लिए जानवरों को सताता है, उनकी हत्या करता है, आवारा कुत्तों को कभी ज़हर देकर भी मारा जाता है। कोई धर्म के नाम जानवरों की हत्या करता है।

नीलम जी की 'गिनी पिग्स 'कहानी भी क्लीनिकल ट्रायल पर बहस करती है - ये अंश पढ़िये -' बाज़ार में उपलब्ध एक एक दवा किसी वैज्ञानिक की निष्ठा व किसी की भुगती हुई पीड़ा का परिणाम है. हम जो अस्पताल से अपने अजीजों को सही सलामत घर लातें हैं कहाँ सोच पातें हैं इसके लिए कितनी जिंदगियां मुसीबत में पड़ गईं होंगी. सम्रद्ध देशों की दवाई की कंपनियों के भी एजेंट्स भारत व अफ्रीका में मानव शरीर तलाशते फिरते हैं. लगभग दो सौ मेडिकल कोलेज क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े हुए हैं. '

'निचली अदालत 'का विचार मंथन भी' इच्छा मृत्यु 'के इर्द गिर्द उलझकर रह गया है---   ' गुज़ारिश 'फिल्म का वह दादी वाला ,घुंघराले बालों वाला खूबसूरत जादूगर तो कैसे इच्छा म्रत्यु के  लिए तरसता  था ,शायद इसलिए कि वह हर समय होश में रहता था .इच्छा म्रत्यु - - --यानि मर्सी किलिंग - - - -यानि यूथनेशिया - -- ये शब्द कितने ख़ूबसूरत उच्चारण से भरा है और इसका अर्थ कितना  विकृत है .दुनियां की सबसे बड़ी नियामत जीवन ! -- --अपने जीवन को आदमी सबसे अधिक प्यार करता है - --- यदि उसे ही समाप्त  करने की इच्छा उत्पन्न हो जाये  तो ? - ----तो वह आदमी कितने कष्ट का जीवन जी रहा होगा - -- पापा अर्द्ध बेहोशी में अपना कष्ट महसूस ही नहीं कर पा रहे  - -- - -=कष्ट में तो वह जी रही है .वह पापा के लिए यूथनेशिया मांग रही है ----- या अस्पताल के भरे पुरे माहौल में अकेली घूमती वह अपने लिए ?'

ये कुछ विचार हैं जो एक कहानी संग्रह से गुजरते हुए मिले। 11 कहानियों का यह संग्रह मुझे बहुत पहले, करीब एक साल पहले बैंगलोर में मिला था। फ़िर हमने साथ में एक फ़िल्म 'आर्टिकल- 15'भी देखी थी। असल में वह पहली प्रति थी जो मुझे बहुत प्रेम और आदर के साथ दी गई थी। कहानियाँ पढ़ ली थीं मगर व्यस्तता के कारण लिखना नहीं हो पा रहा था। मैं बात कर रही हूँ नीलम कुलश्रेष्ठ के कहानी संग्रह ‘वहाँ लाल गुलाब नहीं थे’ की। ‘जली हुई लड़की’, ‘विभाजन’, ‘मातम पुर्सी’, ‘बस एक अजूबा’, ‘वहाँ लाल गुलाब नहीं थे’ की कहानियाँ हमारे आसपास के परिवेश, हमारे समाज से उठाई गई कहानियाँ हैं। इन्हें शब्दों में गूँथने का काम नीलम कुलश्रेष्ठ ने किया है। इस गूँथने के लिए वे बधाई की पात्र हैं।

इस पुस्तक का कमाल ये है कि इसमें क्लीनिकल ट्रायल से हुई मृत्यु, इच्छामृत्यु [ यूथनेशिया ], किसी के जन्म देने के दृश्य से लेकर किसी की मृत्यु से पहले जान जाने वाले दृश्य को चित्रित करना, व मृत्यु के रहस्य के सामने सारी समझदारी का हाथ मलते, खाली हाथ रह जाना -सब कुछ शामिल हैं। मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं। एक बार पुन: धन्यवाद !

पुस्तक --'वहां लाल गुलाब नहीं थे '[ कहानी संग्रह ]

लेखक - नीलम कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक - अनुज्ञा बुक्स, देल्ही

मूल्य – 300रु

समीक्षक - डॉ [श्रीमती] विजय शर्मा

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED