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कुछ उलझे, कुछ सुलझे स्त्री जीवन

नीलम कुलश्रेष्ठ को हिंदी साहित्य की एक सशक्त स्त्री विमर्श लेखिका का माना जाता है। उनकी स्त्री विमर्श पुस्तकों में अलग हटकर ऐसा क्या है ? के लिए 'स्त्री पीढ़ा के शोध की रिले रेस 'पुस्तक में उत्तर मिलेंगे। हिंदी साहित्य में इन्होंने ही स्त्री विमर्श को एक रिले रेस कहा था क्योंकि एक पीढ़ी स्त्री के इर्द गिर्द बनी पीड़ाओं के विरोध की रिले रेस का बैटन दूसरी पीढ़ी को सौंपती जाती है। इनकी 'रिले रेस 'कहानी बहुत चर्चित कहानी है। इस पुस्तक की विशेषता है कि भारत में आई विदेशी स्त्रियों को जो यहां दुःख मिले उनकी चर्चा है, अप्रवासी लेखिकाओं की, तेलुगु, गुजराती, मराठी, हिंदी, पंजाबी लेखिकाओं की कहानियों से स्त्री विमर्श को समझकर एक बयान सा दिया है नीलम जी ने. -----"विश्व की एक से धरातल पर खडी तड़पती हाशिये उलांघती औरत  "

इस पुस्तक के ब्लर्ब से इसके विषय में बहुत कुछ समझा जा सकता है:

जब भी राजा महाराजाओं की विदेशी दुल्हनों को याद किया जाता है, बड़ा लुभावना लगता है उनका जीवन लेकिन भंवरों की तरह मंडराने वाले भारतीय शासकों से विवाह करके के बाद उन्हें क्या मिला ?

. पिछली सदी क़ी हमारी आदि लेखिकाओं ने सुई को एक तरफ़ रखकर हाथ में कलम पकड़ी व अपनी आत्मकथाएँ लिखकर कैसे अभिव्यक्त की थी स्त्री होने की त्रासदी व संघर्ष ?

. क्यों विश्व की सभी स्त्रियों को ऐसा महसूस होता है कि वे एक से निचले धरातल पर जीने को मजबूर हैं।

. क्यों स्त्री कलम हमेशा अपनी शारीरिक व मानसिक यातना के लिए इस व्यवस्था में प्रश्न कोंचती रहती है शारीरिक, मानसिक, व अपनी आकाँक्षाओं के लिए स्पेस मांगती नज़र आती है ?

. क्यों कुछ वर्ष पहले विश्वविद्द्यालयों में नारी शोध केंद्र खोले गए या स्त्री संस्थाएं नारी आन्दोलनों का समग्र इतिहास प्रकाशित करने में लगीं हैं।'लेडीज़ फ़र्स्ट 'के पीछे छिपी चालाकी को बताने में लगीं हैं।

. प्रगतिशील नारी की परिभाषा क्या हो ? जब ये प्रश्न ही विस्फ़ोट बन गया तब समाज को बहस की आवश्यकता पड़ी कि स्त्री पुरुष के सहजीवन का क्या प्रारूप हो ?  लिव-इन रिलेशनशिप या विवाह ?

.  इस सदी में एक अवतार की तरह पैदा हुआ 'पैडमेन'. स्त्री समस्यायों के हल भी खोजे जा रहे हैं।

. ' ओ बी आर 'यानि कि अनेक देशों में हर वर्ष वेलेंटाइन डे पर "द वेजाइना मोनोलॉग्स 'की लेखिका न्यूयॉर्क की लेखिका ईव एंसेल का आरम्भ किया 'वन बिलियन राइज़िंग ' क्या है ?

.विभिन्न प्रांतों व भाषाओं की लेखिकाओं ने हरि अनंत हरिकथा अनंता ----जैसे कितने ही पहलुओं पर कहानियां लिखीं हैं .इस अनगिनत कहानियों को एक साथ नहीं पढ़ा जा सकता लेकिन इनकी समीक्षा पढ़कर स्त्री दर्द के बिंदु तो जाने जा सकतें हैं। ये पुस्तक ऐसे ही दर्दीले बिंदुओं का विशाल नेटवर्क है जिसमें उलझ कर आप भी इन समस्यायों को देख पाने सक्षम होंगे व इनका निदान भी खोजेंगे।

उनकी स्त्री विमर्श पुस्तकों में अलग हटकर ऐसा क्या है पढ़िए कुछ विद्वानों के अभिमत डॉ .रोहिणी अग्रवाल, डॉ .ऋषभ देव शर्मा, चन्द्रमोलेश्वर प्रसाद, पूर्णिमा मित्र, निर्झरी मेहता, डॉ .बी बालाजी, सुषमा मुनींद्र, डॉ .के वनजा, अर्चना अनुप्रिया। ये समीक्षाएं देश की जानी मानी पत्रिकाओं 'हंस ', वर्तमान साहित्य ', 'कथाचली ', आदि में प्रकाशित हो चुकीँ हैं।

लेखिका ने भूमिका में लिखा है ---"मेरी आदत है कि मैं अपनी नारी विमर्श की पुस्तक की लम्बी भूमिका लिखतीं हूँ लेकिन ये पुस्तक ही एक भूमिका है बहुत से स्त्री से जुड़े अनेकानेक मुद्दों की अनेकानेक कलमकारों द्वारा, कहीं कोई मनोरंजन जैसा कुछ नहीं है इसलिए संक्षिप्त में अपनी बात कहना चाहूँगी। ये पुस्तक बहुत सी स्त्रियों के शोध, कहानियों व लेखों की समीक्षा व ऐसे महिलाओं के इंटर्व्यु का संकलन है जो हर वर्ग की स्त्री का जीवन बेहतर बनाने की कोशिश कर रहीं हैं।मैंने इन सबकी पांडुलिपी बनाकर अनुज्ञा प्रकाशन के सुधीर वत्स जी को मेल कर दी व महीनों तक इसकी सुधि नहीं ली क्योंकि मैं सोच रही थी कि कौन ऐसी गंभीर व अटपटी पुस्तक प्रकाशित करेगा ?सितंबर महीने में मैंने सँकोच से सुधीर जी को फ़ोन किया और मैं आश्चर्यचकित रह गई, वे बोले, "आपकी पुस्तक कम्पोज़ कर ली गई है, पृष्ठ कम हैं इसलिए और सामिग्री भेजिए। "

सुधीर जी ने बहुत ख़ूबसूरत कवर डिज़ाइन करवा कर इसको प्रकाशित किया है व अमेज़ॉन पर इसका किंडल एडीशन भी उपलब्ध है।

स्त्री शोध से ही पता लगा है कि वैदिक काल में भी स्त्री को बराबरी का दर्ज़ा नहीं दिया गया था क्योंकि वेदों में स्त्री रचित बहुत नगण्य ऋचाएं हैं। क्या आज भी मानसिकता बदली है ? नोबेल पुरस्कार विजयेता पोलैंड देश की मैडम क्यूरी छिपकर गोदाम में बने कॉलेज में गुप चुप पढ़ने जातीं थीं। 'द वेजाइना मोनोलॉग्स 'की लेखिका न्यूयॉर्क की लेखिका ईव एंसेल ने क्यों वेलेंटाइन डे पर 'ओ बी आर '[वन बिलियन राइज़िंग ] आरम्भ किया। अब हर वर्ष बहूत से देशों की स्त्रियां इससे जुड़ जातीं हैं।

इस बात को पढ़कर आपको और समझ में आएगा कि विश्व के कोने कोने में स्त्रियां क्यों स्त्री की स्थिति के शोध में लगीं हैं, क्यों नारीवाद का इतिहास खोजकर उसे प्रकशित करवाया जा रहा है, क्यों परिवार नियोजन के चक्कर में स्त्री ही क्यों शिकार हो रही है ? क्यों विशिष्ट स्त्रियों की आत्मकथाएं पढ़कर महिलायें कुछ कर गुज़रने की प्रेरणा पा रहीं हैं ? क्यों गाँव में काम कर रही एन जी ओ की दी हुई हिम्मत से मासिक धर्म पर चर्चा सरे आम की जा सकती है ?

कोयम्बटूर के श्री अरुणाचलम मुरुनगनंथम व अक्षय कुमार दोनों पैडमेन को ये पुस्तक सलाम करती है जिनकी वजह से निचले तबके की स्त्रियां स्वस्थ जीवन जी रहीं हैं.

एक नर्तकी व विद्वान डॉ मल्लिका साराभाई कला की ही उपासना नहीं कर रही बल्कि नारी चेतना के लिए भी निरंतर काम कर रहीं हैं। यही काम प्रसिद्द साहित्यकार रमणिका गुप्ता ' व 'आवाज़ 'संस्था से इला भट्ट या गुजरात पुलिस की उप महाप्रबंधक डॉ. मीरा रामनिवास करती रहीं हैं। मल्लिका साराभाई, रमणिका गुप्ता, इला बेन पाठक व गुजरात की आई पी एस मीरा रामनिवास जी के सारगर्भित साक्षात्कारों से विभिन्न समस्यायों व उनके निदान की जानकारी ये पुस्तक देती है।

उभरती कवयित्री अर्चना अनुप्रिया ने मेरे द्वारा सम्पादित काव्य संग्रह 'घर की मुंडेर से कूकती स्त्री कलम 'की समीक्षा के अंत में लिखा है कि मेरा सविनय अनुरोध नीलम जी से है कि स्त्री जीवन के लिए पुरुषों के सकारात्मक योगदान पर भी वह एक पुस्तक संपादित करें।मैं उनसे ही नहीं आप सबसे भी कहना चाहूंगी स्त्री साहित्य में मुझे ऐसा दिखाई भी तो दे जो पुरुष के सकारात्मक योगदान पर कुछ कह रहा हो। नि ;संदेह विश्व की प्रगति के लिए समर्पण, उन्हीं की निष्ठा, उन्हीं की बुद्धि व उन्हीं की कड़ी मेहनत से हुई है लेकिन जहां स्त्री पुरुष सम्बन्धों की बात आती है तो --------- इसलिए स्त्री लेखन स्त्री क्रंदन'का अधिक साहित्य बनता जा रहा है।

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पुस्तक --- स्त्री पीढ़ा के शोध की रिले रेस

लेखिका ---- नीलम कुलश्रेष्ठ

समीक्षात्मक परिचय - नीलम कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक --अनुज्ञा बुक्स, देल्ही

मूल्य --४५० रु

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