बनारस की वो मनमोहक सुबह, गंगा के शितल जल से सुर्य स्नान करके खुदकी दमकती शक्ल पूरे वाराणसी को दिखा रहा था।
"आ ! मेरा गला" रागिनी का गला पूरी तरह सूख रहा था अब कुछ देर बाद गला स्वर्ग सिधार जाता।
रागिनी का आक्रोश सुनते ही, सिद्धार्थ की जो भीक मिली नींद थी वह भी टूट गई।
अब तक सिद्धार्थ रागिनी के साथ उसके बगल में ही सोया था यह उसे समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही चादर सिर से हटी रागिनी कंठ दान देकर चिल्ला उठी।
"How dare you?" और इतना कहते ही, एक किक कृतज्ञता का आभार प्रकट करने के लिए काफी थी।
सिद्धार्थ के दिल, हाथ, पीठ को कम बैठने की जगह को ज्यादा ठेस पोहची थी।
सिद्धार्थ का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, सिद्धार्थ झपाक से उठा।
दांत कड़क रहे थे, आंखे गुस्से से भर चुकी थी, वो रागिनी की तरफ बढ़ा।
रूम में जो ठंडी पानी की कैन रखी थी उसमें से पानी वहां रखे गिलास में भर रागिनी की तरफ बढ़ा दिया।
रागिनी के हाथ काप रहे थे अच्छा था गिलास कांच का नही था वरना सुबह- सुबह अबशगुन हो जाता।
वैसे मालिक "विश्वेश्वर प्रसाद चौरसिया" के वृति के अनुसार कांच की गिलास में सिर्फ मादक मधुशाला ही जंचती है।
मालिक की भाषा मे कहा जाए तो “drik” हा drink का स्पेलिंग इनके लिए यही था। क्योकि अंग्रेजी आए या ना आए फील जरूर आना चाहिए।
जब भी कभी कोई फोरेनर उनसे कांच की गिलास की मांग करता यह वाक्य वो सलीके से चिपकाकर दे देते।
फिलहाल थोड़ा रुख कहानी की तरफ बढाते है।
रागिनी ने पूरा गिलास गटक लिया।
"और एक गिलास पानी चाहिए।"
सिद्धार्थ के पानी देते ही रागिनी का गला फिर से खिल गया।
"यह कुछ देर पहले क्या था?"
"Anger controlling."
"ऐसे?" रागिनी सवाल सवाल कम और आश्चर्य ज्यादा लग रहा था।
"मुझे तुमने पहले धक्का क्यों दिया?"
"तो तुमने मेरे बेहोश होने का फायदा उठाया है।"
इतना कहकर रागिनी रोने लगी।
इतना सुन सिद्धार्थ कल रात की बात याद कर हँस दिया।
फिर रागिनी की गुस्से से भरी आंखे देख फिर शांत हो गया।
"हँसने की क्या बात है, इसमे इडियट?"
"देखा है तुमने खुदको कल रात को, तुम कहती अगर मैंने तुम्हारा दिल चुराया तो मै मान भी लेता लेकिन इज़्ज़त?"
सिद्धार्थ को अपनी हंसी रोकना मुश्किल था और वही दूसरी तरफ यह सब सुन रागिनी का पारा बढ़ चुका था।
"You idiot, I will sue in Court for mental harassment."
"हा.. हा.. कर लेना पहले फ्रेश हो जाओ, जो आंखे काजल की वजह से कजरारी दिखनी चाहिए वो काली मां का रौद्र रूप दिख रही है।"
रागिनी ने बेड पर रखी दोनों तकिया सिद्धार्थ के मुंह पर फेक मारी पर निशाना चुकने के कारण गुस्से से आगबबूला हो, बाथरूम में घुस दरवाजा पटक दिया।
सिद्धार्थ हँसते हुए बेड पर बैठ गया, तभी सिद्धार्थ का फ़ोन बजा।
"हेलो, हा बोलो तुषार।"
"आज बड़े खुश-मिजाज लग रहे हो।"
"क्या हुआ देवदास जंगली का शम्मी कपूर कैसे बन गया?"
"अरे कुछ नही वो बस..."
"अरे वो सब छोड़ो तुम यह बताओ इतनी सुबह- सुबह
फोन?"
"क्या भाई दोस्त को फ़ोन करने के लिए भी वक्त देखना पड़ता है।"
तुषार रुआँसे शब्द में बोला।
उसी की नकल उतारते हुए सिद्धार्थ बोला "नही भाई, अगर दोस्त तुम जैसा हो तो सोचना ही पड़ता है?"
"अब जल्दी बताओ फ़ोन करने की वजह?"
"अरे तुम्हे पता है ना 22 दिसबंर को हमें लंदन जाना है, शूट के लिए। Stephanie william के साथ तू ही तो शो होस्ट करने वाला है।"
"Indian culture in London heritage."
"हा पता है, तो?"
"हा पता है, तो? सिद्धार्थ साहब आप शायद भुल गए है हमे वहा पोहचकर शो होस्ट करने के पहले मीटिंग अटैंन करनी है और रिहर्सल भी।"
"भुला नही हु, मेरे प्यारे मतलबी दोस्त, बस कुछ इधर उधर के कामों में फस गया था।"
"कही चित्रा का भूत फिरसे तो नही सवार हो गया।"
"अरे नही रे, चित्रा..."
बाथरूम खोलने की आवाज से सिद्धार्थ पलटा।
रागिनी का हुलिया और बाल दोनों ठीक हो चुके थे, लेकिन मुँह पर अभीभी 12 के बाद के 13 बजे थे।
सिद्धार्थ को देख जंगली सांड की तरह नथुनिया फुर्रा रही थी, आंखे तो इतनी छोटी की अभी सिद्धार्थ को धरती के छह फिट निचे गाड़ने के लिए तैयार थी।
सिद्धार्थ रागिनी को देख जोरजोरसे हँसा।
"क्या हुआ सिद्धार्थ साहब में इतनी महत्वपूर्ण बात आपसे छेड़ रहा हु और आप ठहाका लगा रहे है?" तुषार वंगात्मक स्वर में बोला।
"कुछ नही, कुछ नही... हा... हा.. हा..."
"You crazy bulldog." रागिनी का तकिया वार इसबार सही निशाने जाकर लगा।
"लड़की की आवाज !?" तुषार रोमांचित होकर फुसफुसाया।
"तेरे साथ लड़की है ? चलो जन्मने के 31साल बाद
तुझमे ठरक महसूस हुई है।"
"अरे ऐसा कुछ नही है, यह सब गलतफहमी है।"
"हा... हा.. सॉरी- सॉरी चित्रा के छोड़ जाने कही सालो बाद ; मुझे लगा तेरा टिकिट कभी कटेगा ही नही।"
"हे भगवान! तुझसे बेहस करना ही बेकार है, चल तु फोन रख मै तुम्हे आने के बाद सबकुछ बताता हू।"
"भाभी से मिलवाना..." वाक्य पूरा करने से पहले ही सिद्धार्थ फ़ोन रखकर अंदर घुसा।
"अभी आँखे इतनी भी छोटी मत करो, मैंने गलत क्या कहा?"
"कल रात को अपनी हालत देखी है, कभी भांग गटकी है?"
"क्या सच मे पागल हो गए हो क्या?"
"हा या ना?" सिद्धार्थ की वाणी कठोर एवं गुस्से से भरी थी।
रागिनी सवाल से और सिद्धार्थ के दोतरफा रवये दोनों से बौखलाई लेकिन सिर्फ ना में उसने जवाब दिया।
"फिर कल रात को खुदपर एक्सपेरिमेंट कर रही थी, की भांग से एक आदमी को नशा चढता है या नही ? या फिर दुख जिंदगी में इतना बढ़ गया था की मरने से पहले एक बार भांग पिने की इच्छा जाग उठी मन मे।"
रागिनी कुछ नही बोली जैसे जुबान पर ताला लग गया हो कल रात उसने ऐसे क्यो किया उसे भी नही पता।
कुछ धुंधला-धुंधला सा याद आ रहा था पर वो मानना नही चाहती थी कि गलती उसकी थी।
"मैने तुम्हे थोडीना कहा था, मेरी मदत करने के लिए।"
"हा क्यो नही, मोक्षप्राप्ति के लिए आने वाले भक्तों को कल ही मोक्ष मिल जाता।"
"क्या!? you know you are impossible."
सिद्धार्थ बिना कुछ बोले बाथरूम में घुस गया।
कुछ देर बाद दिमाग पर जोर डालने पर रागिनी को कल रात का सब कुछ याद आ गया और उसी के चलते चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खिल गयी।
उसने टेबल पर से फ़ोन उठाया और एक नंबर दबाया।
कुछ रिंग बाद..
"हेलो।" वहा से एके औरत की आवाज आयी।
"हेलो मैं रागिनी, mission accomplished."