[ महेंद्र कुमार, शोधार्थी ]
इक्कीसवीं सदी के आरम्भ से ही महिला कथाकारों का मूल स्वर उभरा 'मैं जीना चाहतीं हूँ मैं भी एक मनुष्य हूँ। 'हालांकि पिछली सदी की मन्नू भंडारी की 'स्त्री सुबोधिनी 'व अन्य लेखिकाओं की कहानियों से ये इशारे मिलने शुरू हो गए थे.और किसी क्षेत्र में हुआ हो या ना हुआ हो महिला कथा लेखन ने बीसवीं सदी की मृगमरीचका से लगते आयाम को सच ही छू लिया है, अपना एक इतिहास रचा है. ऐसा ही है नीलम कुलश्रेष्ठ का ‘उस महल की सरगोशियाँ’ एक कहानी संग्रह है, इसमें कुल बारह कहानियाँ शामिल है।
नीलम कुलश्रेष्ठ जी को अपनी विलक्षण लेखन शैली, अदभुत प्रतिभा, रचनात्मकता एवं कथा कहने के अपने निराले ढंग के कारण ही उन्हें समकालीन महिला कथाकारों एवं स्त्री-विमर्शकारों में एक अलग पहचान मिली है। इनका रचना-संसार अपने सहज, स्वाभाविक और आकषर्क रूप में समाज की सच्चाई को गहन अनुभूति और पूर्णविश्वास के साथ उदघाटित करने का काम करता है. आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी रचनात्मकता का परिचय दिया है। अपने कृतित्व में बुनियादी तौर पर इन्होंने आधुनिक नारी जीवन की विसंग- तियों को अनुभव के धरातल पर जाँचा एवं परखा है और अपनी कृतियों में उन्हे आत्मसात किया है। साथ ही इनका लेखन नारी की विवशता के अंकन में तो सचेष्ट रहा ही है लेकिन इनके स्त्री पात्र अपनी स्थिति को बदलने के लिये निरंतर संघर्षशील रहते हैं।। इनका लेखन सामाजिक समस्याओं, भारतदेश के समृद्धशाली प्रदेश गुजरात राज्य के तीनों सामाजिक वर्गों की सांस्कृतिक विरासत एवं लोक परम्पराओं का विश्र्वस्तर से परिचय को गम्भीरता से प्रदर्शित करते हुए सामने आया है। आप स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर हैं पर उसके नैतिक एवं पारिवारिक दायित्वों के महत्व को बताना नहीं भूलतीं।
'उस महल की सरगोशियाँ’ कहानी संग्रह कहने को तो गुजरात के पृष्ठभूमि की कहानियाँ हैं लेकिन इनमें वही सब भूमण्डलीकरण की समस्यायें दिखाई देतीं हैं जिनसे सारा विश्व जूझ रहा है जैसे कि बच्चों के अपहरण, लिव इन रिलेशन, भाड़े की कोख, गैंग रेप व स्त्री का व्यवसायिक स्थल पर शोषण करने के प्रयास।
ये संग्रह इसलिये भी हमेशा याद किया जायेगा कि इसमें हिंदी साहित्य की प्रथम क्लीनिकल ट्रायल पर लिखी कहानी सम्मिलित है। भारत की दवाई बनाने वालों की कंपनियों की सबसे बड़ी बेल्ट गुजरात के पोर गाँव में है. ‘गिनी पिग्स’ कहानी में नीलम कुलश्रेष्ठ ने दवाइयाँ बनाने वाली कंपनियों और डॉक्टरों के मिली भगत का पर्दाफाश किया है, जो नई-नई दवाइयों का प्रयोग पहले जानवरों पर करके उसके बाद मनुष्यों पर किये जातें हैं. नियम ये है कि पहले उनकी अनुमति लेनी चाहिए लेकिन ये लोग बिना अनुमति लिए ट्रायल करते हैं और युवा नायक पुलिन की तरह कुछ लोगों की जान चली जाती है या कुछ लोग भयंकर बीमारी के शिकार हो जाते हैं। इन्हें नियमानुसार हर्जाना भी नहीं दिया जाता।
‘साक्षात्कार’ कहानी में नीलम कुलश्रेष्ठ ने यह दिखाया है कि कभी किसी साक्षात्कार को लेने में कितनी मुश्किल होती है। किसी महिला पत्रकार पर घर से लेकर बाहर तक कितना पुरुष व्यवस्था का दवाब रहता है. शहर के जाने माने आर्कीटेक्ट जोशी जी का साक्षात्कार लेने से पहले उसका पी. आर. ओ. मानो खुद का ही इंटर्व्यू ले लेता है। वह अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद भी जोशी जी का म्यूज़ियम भी नहीं देख पाती हैं लेकिन म्यूज़ियम का नक्शा देखकर पूरी एकाग्रता से जो लेख लिखती है वह सर्वश्रेष्ठ पत्रिका में प्रकाशित होता है। सच है सारा ज्ञान जो बरसों से पुरुष जेब में संचित था उसे कोई ईमानदार स्त्री बड़ी चतुराई सूझ बूझ से हासिल कर पाती.
गुजरात में जो बरसों पहले एक स्त्री व पुरुष के साथ रहने की व्यवस्था फ़्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट [ मैत्री करार ] प्रचलित हुई थी. बाद में स्त्री व बच्चों के असुरक्षित भविष्य के कारण सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था। उसी की विवेचना की है 'एक फेफड़े वाली हंसा 'कहानी से. कहानी की मुख्य पात्र हंसा है, जो बचपन से ही बीमार रहती थी, बीमारी के कारण ही उसका एक फेफड़ा निकाल दिया जाता है, जिसके चलते वह एकदम दुबली-पतली हो जाती है। वह वंशी नामक एक लड़के से सौगंधनामा[ गंधर्भ विवाह ] कर लेती है । इस प्रकार यहाँ नीलम कुलश्रेष्ठ ने हंसा के करुणामयी जीवनगाथा को चित्रित करने के नाम पर शादी की तुलना में, सौंगंधनामा की ,लिव इन रिलेशनशिप की असुरक्षा को दर्शाया है.
'हंस 'में लम्बी कहानी के अंतर्गत चर्चित कहानी 'हैवनली हैल 'की नायिका एक दमदार बिज़नेस एन्टरप्रिन्योर हो या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट जैसे देश के सर्वोच्च संस्था की प्रोफ़ेसर --कभी भी उनकी देह के शोषण के संकेत दिए जा सकते हैं। किसी भी सशक्त नारी की त्रासदी को व उनके संघर्ष को बहुत गहराई से रचा गया है इन दोनों कहानियों में। ‘योग के पथ पर’ कहानी की मुख्य पात्र सुनयना है, आई. आई. एम. में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है. उस समय उसके मन की जो पीड़ा होती है वह व उसके पति क्या निर्णय लेते हैं ? सुनयना के जीवन संघर्ष के साथ-साथ इसमें योग के महत्व को भी दर्शाया गया है।'हैवनली हैल 'कहानी की नायिका क्यों सिर्फ़ स्त्री होने के कारण एक लम्बे युद्ध करने के लिये अभिशप्त है ? इस कहानी का जीवन दर्शन है ---'सुबह को दोबारा आने के लिये साँझ के रुप में रात में विलय होना पड़ता है, सुख -दुःख़, धूप- छान्ह, यहां तक कि इंसान के अन्दर देवता व दानव एक दूसरे में गडमड हैं. नरक चौदस यानि दिवाली की रात को भी दीपमालाओ की ज्योति से सजाया जाता है यानि कि वही 'हैवनली हेल'.
'गर्ल्स ट्रैफ़िकिंग 'विश्वव्यापी समस्या है लेकिन क्या बीतती है माँ बाप पर जिनका बच्चे का अपहरण किया जाता है। ‘हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली’इस कहानी में अहमदाबाद के ‘शुभम अपार्टमेंट’ में रहने वाले दंपति दिवांग और हेतल की एक प्यारी सी ग्यारह वर्षीय बेटी का जब दिन दहाड़े शादी के भीड़-भाड़ में गायब हो जाती है. पूरे अपार्टमेंट व आस-पास के अपार्टमेंट में किस तरह का दहशत फैला है उसका सजीव चित्रण किया गया है। इसके साथ ही वहीं दूसरी तरफ उसको न खोज पाने वाली निकम्मी पुलिस प्रशासन व सरकार की खूब निंदा की गई है।
‘धरतीकम्प’ कहानी में मानवीय संवेदना व ह्रदय को अंतर्नाद कर देने वाली करुणामयी घटना का यथार्थ चित्रण किया गया है। इसमें गुजरात राज्य के कच्छ जिले के भचाऊ, अंजार तालुका मांडवी व अहमदाबाद सहित अन्य नगर 2001 ई. में 7.7 मैग्निट्यूट स्केल के शक्तिशाली भूकंप के चपेट में सभी आ गए थे। साथ ही कच्छ की औरतों को मेहनतशील और पुरुषों को अकर्मठ दिखाया गया है या कहना चाहिये कि अपनी सुरक्षा के लिये चार दीवारों वाला एक घर स्त्री को चाहिये।
‘फ़तह’ कहानी की मुख्य पात्र जिग्ना है, जो एक दलित लड़की है वह शहर आकर मास्टर ट्रेनिंग कॉलेज में दाखिला लेती है लेकिन उसी ट्रेनिंग कॉलेज के पाँच टीचर उसके साथ सामूहिक बलात्कार करते है, तब “उस लड़की की जाबाज़ अध्यापिका पुलिस व एनजीओ पर दबाव डालकर उस आदिवासी लड़की को न्याय दिलाकर गुजरात में एक इतिहास रचा था, सन 2006 ई. में ये वो समय था जब लड़कियां बलात्कार का रिपोर्ट करने में भी घबरातीं थीं नीलम कुलश्रेष्ठ ने जिग्ना के साहस का तथा उसे न्याय दिलाने वाली आरती मैडम एनजीओ संस्था की तन्वी दीदी और पुलिस अधीक्षक मीरा रामनिवास के साहसिक कार्यो का बखूबी चित्रण किया है। इस बात पर ज़ोर डाला है कि यदि प्रशासन व पुलिस ईमानदारी से काम करें तो क्यों नहीं स्त्रियों को न्याय मिलेगा ?
इस संग्रह की 'हंस 'में ही प्रकाशित कहानी 'रस --प्रवाह 'एक दस्तावेजी कहानी है क्योंकि सरकार ने विदेशियों के सरोगेट मदर से बच्चा पैदा करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। ‘रस- - प्रवाह’ कहानी में ‘सरोगेटमदर’ की दु:ख भरी कहानी को दर्शाया गया है। इस कहानी की मुख्य पात्र सोनल है जो न चाहते हुए भी आज अपने पति धीरुभाई के कारण मजबूरन अपनी कोख ब्रिटिश स्मिथ मैडम को किराए पर दे देती है, जब वह नौ महीने बाद अपनी नन्ही सी बच्ची से अलग होती है तो वह दु:ख से इतना व्याकुल हो जाती है कि वह आज एक जिंदा लाश बनकर रह जाती है। इस सरोगेट मदर का दुःख इस बात से अभिव्यक्त होता है, ''सोनल कंगाल हो चुकी है .लेकिन वह पुनर्जन्म कहां ले पाई है ?---वह तो मर चुकी है -----बाद में पृथ्वी पर जो डोलती फिरेगी ,वह तो उसकी छाया भर होगी .''
‘प्यार इस शहर में’ कहानी में मिनिमा के जीवन संघर्ष के माध्यम से समाज में फैले बुराई, अत्याचार तथा समाज का शोषण करने वाले परिवार कल्याण विभाग सब-इंस्पेक्टर, अदालत तथा पुलिस थाने में किस प्रकार एक अबला स्त्री को सताया जाता है, उनका समाज के सामने पर्दाफाश किया गया है।
लेखिका ने ' दृश्यम 'फ़िल्म को देखकर एक कहानी ‘ले देख’ लिखी थी कि किसी लड़की का कोई छिपकर मोबाइल से वीडियो बना ले तो इतना भयभीत होने की क्या आवश्यकता है? इसके साथ लेखिका जी ने बड़ौदा की एम. एस. यूनिवर्सिटी की फ़ाइन आर्ट्स फ़ैकल्टी की एक छात्रा सलोनी सावन्त का उदाहरण दिया है जिसने कुछ पुरुषों की विकृत मानसिकता को करारा जवाब देते हुए उसने प्रदर्शनी में प्लास्टर ऑफ पेरिस से स्त्रियों के विभिन्न वक्षस्थल प्रदर्शित किये थे और फ़ैकल्टी में आयोजित इनकी प्रदर्शनी को नाम दिया -' ले देख ' । कहानी में प्रख्यात कत्थक नृत्यांगना सोनल मानसिंह की माँ पूर्णिमा जी के जीवन संघर्ष को दिखाया है, जिन्होने गुजरात के सापूतरा हिल स्टेशन के पास एक आश्रम बना कर वहाँ की रहने वाली आदिवासी लड़कियों को शिक्षा दिया करती थी। वही आश्रम अब ऋताम्भरा विश्व विद्यापीठ कॉलेज में बदल गया है ।
‘उस महल की ‘सरगोशियाँ’ कथा में भूतपूर्व राजघराने की रानियों एक षणयंत्र का चित्रण किया है जिनमें गुजरात, उदयपुर, हिमाचल प्रदेश के राज परिवार शामिल हैं .इसके साथ ही उदैपुर [गुजरात] के आदिवासियों का भी चित्रण हुआ है जो नवरात्रि के समय में बड़ी-बड़ी बांसुरी में शराब भर कर रात भर पीते अपने सुदूर गाँवों से चलते हुए राजघराने की कुलदेवी के मंदिर में जा पहुँचते हैं और रात भर नृत्य करते हैं, मदमस्त होकर गाते हैं ।
अंततः देखा जाए तो नीलम कुलश्रेष्ठ की ‘उस महल की सरगोशियाँ’ कहानी संग्रह में नारी के जीवन संघर्षों को ही दर्शाता है. इनकी कहानी 'हैवनली हैल 'के इस अंश में ये बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है''हम औरतों के दिल में ब्रह्मांड की कोमलता रोपने वाला एक पुरुष ही है यानि की भगवान.वह अपने दुश्मन को, अपने को बर्बाद करने वालों को भी जीवनदान दे सकती है. जब तुम लोग आसमान की ऊंचाइयां छू रहे होते हो तो समझ लो नीचे किसी स्त्री की लाश पड़ी होती है कराहती, तड़पती, अर्द्धजीवित. यही है 'अ वुमन बिहाइंड अ सक्सेसफुल मैन 'का सत्य. '
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पुस्तक : उस महल की सरगोशियां [कहानी संग्रह]
लेखिका : नीलम कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्य ; 380
शोधार्थी: श्री महेंद्र कुमार
पता: एन. एस. पटेल, कॉलेज, महेंद्रशाह सर्कल, आणंद [ गुजरात ]
मो. न.: 8052177985