"यमुना किनारे सुरम्य वातावरण में आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण गेट बंद कालोनी--
वह गांव में जनमा पला पढा था लेकिन नौौकरी लगी तो शहर आना पड़ा था।वह पड़ता था तभी उसकी शादी हो गयी थी।इसलिए जब नौकरी लगने पर वह शहर आया तो उसकी पत्नी भी उसके साथ आई थी।इस शहर में वह पहली बार आया था।कोई रिश्तेदार या मित्र उसका इस शहर में नही था।इसलिए यहाँ आने पर उसे होटल में कुछ दिन रहना पड़ा था।लेकिन होटल में कितने दिनों तक रह सकता था।उसने ड्यूटी जॉइन करते ही किराये के मकान की तलाश शुरू कर दी।
आजकल बड़े बडे शहरों में किराए का मकान तलाश करना आसमान से तारे तोड़ लाने के समान है।जैसे तैसे भागदौड़ के बाद एक दलाल के जरिये उसे किराये का मकान तो मिल गया।लेकिन गयारह महीने के अनुबंध पर।मतलब हर गयारह महीने बाद मकान बदलो अगर मकान मालिक से दिल मिल जाये तो अनुबंध बढ़ भी सकता है।
लेकिन उसके साथ कभी ऐसा नही हुआ।वह जिस मकान में भी रहने के लिए जाता चार पांच महीने आराम से गुज़र जाते।फिर पत्नी का बिजली,पानी,सफाई को लेकर मकान मालकिन से झगड़ा हो जाता और अनुबंध के शेष महीने बड़ी मुश्किल से गुजरते।और हर ग्यारह महीने बाद मकान बदलते बदलते वह दो बच्चों का बाप भी बन चुका था।बार बार मकान बदलते बदलते पत्नी इतनी परेशान हो चुकी थी कि अक्सर कहती,"अपना मकान हो तो रोज रोज के झगड़े और मकान बदलने के झंझट से तो मुक्ति मिलेगी।
पत्नी की बात से वह भी सहमत था।हर कोई चाहता है ।अपना आशियाना हो।और उसने मकान की तलाश शुरू कर दी।सुबह अखबार हाथ मे लेते ही उसकी नज़र नई बन रही कॉलोनी के विज्ञापन पर पड़ी।यमुना नदी के किनारे आशियाना नाम से गेट बंद कॉलोनी बन रही थी।उसे विज्ञापन इतना पसंद आया कि उसने पत्नी को आवाज लगायी,"अरे जल्दी यहां आओ
पत्नी रसोई में चाय बना रही थी।पति के पास आकर बोली,"क्या है?"
उसने अखबार पत्नी की तरफ बढ़ा दिया।पत्नी विज्ञापन पढ़कर बोली,"बिल्कुल वैसा है, जैसा मैं चाहती हूँ।"
और वह पत्नी के साथ उसी दिन फ्लेट देखने जा पहुंचा।एक फ्लैट पसंद करके बुक कर लिया।
गांव में पुश्तेनी मकान और थोड़ी सी ज़मीन थी।बच्चे शहर मे पैदा हुए और यहीं पल पढ़ रहे थे।पत्नी भी गांव नही जाना चाहती थी।जब गांव जाना ही नही तो जमीन मकान का क्या करेगा? उन्हें बेचकर भी पूर्ति नही हुई तब पत्नी के गहने बेचकर और फण्ड से लोन लेकर पूरी की थी।
अपने मकान में आकर वह ही नही पत्नी और बच्चे भी खुश थे।कॉलोनी में रहने वाले सर्विस और बिज़नेस वलास के लोग थे।किराये के मकानों में बच्चों के खेलने के लिए कोई जगह नही होती थी।यहाँ प्लेग्राउंड और स्विमिंग पूल था।मन्दिर और पार्क था।जहाँ सुबह शाम मर्द औरत इकट्ठे होते।।
यहाँ आकर उसे ऐसा लग रहा था।नरक से निकलकर स्वर्ग में चला आया हो। दिन मजे से गुज़र रहे थे।न मकान बदलने का झंझट,न मकान मालिक से झगड़ा।।अपने मकान में रहने का आनंद ही कुछ और था।
लेकिन एक दिन अखबार में छपे समाचार ने उसके पैरों तले से जमीन निकाल दी।कॉलोनाइजर ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके अवैध रूप से कॉलोनी बसा दी थी।यह जगह नदी के डूब क्षेत्र में थी।यहाँ रिहायशी मकान नही बन सकते थे।इसलिए कोर्ट ने पूरी कॉलोनी तोड़ने का फैसला सुना दिया था।
उस समाचार को पढकर वह सोच रहा था।
न माया मिली,न राम
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