बेपनाह - 24 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 24

24

“हे भगवान ! फिर मेरा यहाँ तुम्हारे पास क्या काम रहेगा, मुझे हॉस्पिटल में शिफ्ट होना पड़ेगा ! सिरियस लोग वहीं अच्छे लगते हैं ।“ शुभी ऋषभ को छेड़ने में लगी हुई थी जबकि ऋषभ बहुत गंभीर होकर बातें कर रहे थे ।

“तुझे सुधरना ही नहीं है, चाहें कोई कुछ भी कहे या समझाये !”

“सही कहा मुझे यूं ही रहने दो पागल मूर्ख और कमअक्ल ! दुनिया में समझदार लोग बहुत हैं कुछ हम जैसे भी होने चाहिए न और सुनो, मुझे संभालने के लिए आप तो हो ही फिर मैं नहीं होना चाहती समझदार ।”

“चल भाई मैं हार गया और तू जीत गयी अब तुझे जैसा रहना है वैसा ही रह ले, बस खुश रह और ऐसे ही हँसती मुसकुराती रहा कर।”

“हाँ भाई मैं यही चाहती थी कि आप बार बार हार जाओ और मैं बार बार जीत जाऊँ !” यह कहते हुए शुभी ज़ोर से खिलखिला कर हँस पड़ी।

ऋषभ उसे मुसकुराते हुए देख कर दंग रह गया कितना रंग निखर आया है, कितने सुंदर दाँत चमक रहे हैं, इसकी आँखों में कितनी चमक भर गयी है ?

यूं हँसते मुसकुराते हुए इसकी रंगत कितनी निखर आई है अब मैं इसकी खुशी में कभी दुख को शामिल नहीं होने दूंगा ! मुझे माफ कर दो शुभी ! मैंने तुम्हें बहुत दुख दिया है ! ऋषभ मन ही मन बड़बड़ा उठा ।

“अब यह क्या मन ही मन जाप कर रहे हो, मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा ! ”

“कुछ नहीं बस यूं ही, आओ चले ?”

“हाँ!” कहते हुए वो उठकर खड़ी हो गयी ।

समय कहाँ निकल गया पता ही नहीं चला ! वैसे जिस किसी ने भी यह बात कही है बिल्कुल सही कही है कि मन का साथी अगर साथ हो तो फिर “जंगल में भी मंगल हो जाता है” !

बाहर निकल कर देखा तो बर्फ बहुत तेजी से गिर रही थी और करीब दो फीट बर्फ गिर चुकी थी ! आसमान एकदम सफ़ेद, दूधिया रोशनी से नहाया हुआ लग रहा था।

“अरे ऋषभ अब हम घर कैसे जाएँगे ?” शुभी के स्वर में घबरा हट उभर आई थी।

“घर वाले खुद हमको लेने आएंगे।”

“ऋषभ प्लीज अभी मज़ाक मत करो। बताओ न कैसे जायेंगे ?”

“कार से !” ऋषभ ने संछिप्त सा उत्तर दिया।

“लेकिन इतनी बर्फ में कार चलाना क्या सही रहेगा ?”

“क्यों नहीं रहेगा ! अभी तो ताजी बर्फ है, और कल तक शायद यह जमने लग जाये।”

“लेकिन मैं नहीं जाऊँगी ! क्या पता कहाँ पर खाई है, कहाँ पर सड़क है ? ऐसे में कार चला कर ले जाना ठीक नहीं है।“

“कार हमें चला कर ले जाये यह चाहती हो तुम ?”

“क्या बात करते हैं, हर वक्त मज़ाक अच्छा नहीं लगता है, नहीं जाना है मतलब नहीं जाना है, चाहे कोई कुछ कहे मैं बर्फ के रुकने का इंतजार करूंगी ।”

“यार तू इतनी कमजोर, इतनी डरपोक क्यों है ?”

“क्योंकि मैं प्रेम में हूँ इसलिए डर गयी हूँ, कमजोर हो गयी हूँ।

“लेकिन प्रेम हमें कभी कमजोर नहीं बनाता है ! वो तो हमें मजबूत करता है ! हमारे अंदर ऊर्जा का संचार करता है बुद्धू,,”

“हाँ मैं बुद्धू सही और अब मैं किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती।“

अब मतलब ?”

“मत दोहराओ बार बार वही शब्द ऋषभ, जो मुझे पुरानी बातें याद दिलाते हैं।”

“चलो नहीं करूंगा अब कोई बात जिससे तुम्हें दुख हो ! तुम रो क्यों रही हो ! ऋषभ ने उसके गालों पर ढलक आए आंसुओं को अपने हाथों से पोछा और उसके कंधे को हल्के से दबाते हुए कहा ! बहादुर बच्चे किसी भी हाल में कमजोर नहीं होते हैं !”

“बहादुर बच्चे !” कहकर वो ज़ोर से हँस पड़ी।

“यार देख तू हँसते हुए कितनी प्यारी लगती है और चमकते दांतों के बीच तेरा एक आधा टूटा दाँत भी दिख जाता है।”

“ऋषभ तुम मानोगे नहीं न ?” कहते हुए शुभी उसे मारने के लिए उसकी तरफ आई तब तक ऋषभ कमरे की तरफ दौड़ गया था और वो भी उसके पीछे पीछे भागती हुई चली आई ।

ऋषभ धम्म से बेड पर गिरा और ज़ोर से हँसते हुए बोला, “यार तू बहुत भोली है ! अब यह बता कि हम कब तक बर्फ गिरने के रुकने का इंतजार करेंगे और तब तक हम यहाँ खाएँगे क्या ?”

“कुछ भी खा लेंगे और बर्फ गिरना जल्दी ही रुक जायेगा ।”

“ईश्वर करे ऐसा ही हो फिर हम जल्दी अपने अपने घर पहुंचे ताकि हमारा घर भी जल्दी बस जाये !”

“शुभी, उसकी बात का मतलब समझ मन ही मन मुस्कुरा कर शरमा गयी।

“अरे शुभी, देख सोनी हमारे लाये फलों का पैकेट यही पर छोड़ गयी है।

“लो अब तुम्हारे खाने की टेंशन भी खत्म हो गयी !”

“इन फलों से क्या होगा यार, कुछ गरमागरम चाहिए इतनी ठंड हो रही है !”

“मैं बनाकर खिलाउंगी ! यहाँ यह गैस रखी है तो खाने का समान भी होगा !”

“कोई समान वगैरह नहीं है ! यहाँ कोई आता ही कब है और आया भी तो रुकता कौन है।“

“तुम भी न ऋषभ खुद बुद्धू हो और मुझे कहते हो !”

“वो कैसे ?”

“देखो यहाँ सब सामान है ! शुभी ने आगे बढ़कर गैस के नीचे बनी द्ररार को खोल कर दिखाया ।”

“अरे यह सामान मुझे लगता है काकी ने लाकर रख दिया होगा ! वे कह भी रही थी कि यहाँ पर सब चीजें होगी तो आप कभी आओगे तो कोई परेशानी नहीं होगी ।“

“ अच्छा किया न उन्होने, हैं न ?”

“हाँ बिल्कुल ठीक किया !”

“लेकिन ऋषभ जब आप लोग यहाँ रहते नहीं हो तो फिर यह घर क्यों बनाया ?”

“अब रहेंगे ! हम लोग जब भी यहाँ आएंगे तो एक रात जरूर रुका करेंगे !”

“बस एक रात ? शादी के बाद भी ?”

“हाँ भई शादी तो होने दो ! अभी से क्या खयाली पुलाव पकाना ?”

“हाँ यह भी सही कहा ! होगा वही जो लिखा जा चुका है या ईश्वर चाहेगा ! जैसे यह फल सोनी को दिये थे और उसने यहीं पर रख दिये क्योंकि यह हमारी किस्मत के हैं ! लाओ शुभी एक प्लेट और चाकू ले आओ, मैं तुम्हें फ्रूट चाट बनाकर खिलाता हूँ, वो कहते हैं न दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम!”

“सच में ऋषभ, यह फल खाना हमारी किस्मत में लिखे थे, तुम सही कह रहे हो कि दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, सोनी को देने के बाद भी हमें ही वापस मिल गए ! जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो जाकर भी आ जायेगा और किस्मत में नहीं है तो आकर भी चला जायेगा ! हैं न ऋषभ ?”

“हाँ बिल्कुल ।”

“शुभी ने प्लेट और चाकू दे दिया और फलों की टोकरी भी उठाकर ऋषभ के पास रख दी!”

ऋषभ ने खूब सलीके से फलों को काटा और उसमें नमक मिलाकर एक कटोरी में शुभी को खाने के लिए दे दिया।

खूब तेज भूख लग रही थी शुभी को ! इतनी देर से बर्फ के साथ खेल रही थी, बाग में भी घूमी तो थकान के साथ भूख भी लग आई थी।

“ऋषभ तुम कितने होशियार हो हर काम बड़े सलीके से करते हो ! बहुत अच्छी बनाई है तुमने यह फ्रूट चाट !”

“खाओ न अच्छे से !” ऋषभ ने बड़े प्यार से उसको निहारा ।

“हाँ खा रही हूँ न !” शुभी हौले से मुस्कुराई ।

“लाओ आज मैं खिलाता हूँ !” कहते हुए उसने चम्मच से शुभी को खिलाना शुरू कर दिया ! कितने प्यार से ऋषभ शुभी को खिला रहा था मानों माँ का वात्सल्य उमड़ पड़ा हो ! सच में जब कोई प्यार से खिला रहा हो तब स्वाद कुछ और ज्यादा बढ़ जाता है।

“तुम भी खाओ न ऋषभ !” शुभी ने एक बाइट उसके मुंह में खिला दी !

“चलो अब एक बार बाहर देख कर आते हैं कि बर्फ तो नहीं गिर रही है ?” फ्रूट चाट खत्म करने के बाद ऋषभ बोले।

“हाँ चलो ! वैसे शायद अब नहीं गिर रही है !”

ऋषभ ने बाहर आकर देखा बर्फ गिरनी बंद हो गयी थी बल्ब की हल्की रोशनी में भी सब साफ नजर आ रहा था ! दूर तक कहीं भी रोशनी नहीं थी बिलकुल अंधेरा सुनसान सा माहौल हो गया था !

“कितना सूनापन है यहाँ की वादियों में ! हैं न ऋषभ ?”

“हाँ, दिन में चहकती हुई वादियाँ रात को ऐसे ही सुनसान हो जाती हैं।”

“हे भगवान, अब बर्फ न गिरे !” शुभी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर आसमान की तरफ देखते हुए कहा !

“हाँ अब न गिरे बर्फ, जिससे सुबह जल्दी यहाँ से निकल जाएँ, तुमने कहा था न कि घर में मम्मी बीमार हैं ।

“हाँ ऋषभ !”

“तुम परेशान मत होना सब सही हो जायेगा !”

कमरे में डबल बेड पड़ा हुआ था और दो मोटी मोटी रजाइयाँ रखी हुई थी !ऋषभ ने रुम हीटर ऑन कर दिया और बेड की एक साइड में लेट गया और जल्दी ही उसे नींद आ गयी उसके खर्राटे उसके सोने की बात बता रहे थे !

शुभी भी लेट गयी लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी ! एक तो अंजान जगह दूसरे पेट भी खाली, उसे भूखे पेट कभी नींद आती ही नहीं है ! कमरे में रुम हीटर जलने और मोटी रज़ाई ओढ़ने के बाद भी बेहद ठंड का अहसास हो रहा था ।

अभी मम्मी और घर की बहुत याद आ रही थी ! वो कितना दूर है अपने घर और अपनी मम्मी से, मन किया एक बार मम्मी से बात करके उनके हालचाल पूछ ले लेकिन अभी तो वे सो रही होंगी और फोन किया तो उनकी नींद खराब होगी ! कोई नहीं, सुबह पहले बात करूंगी फिर यहाँ से निकलूँगी !

यही सब सोचते सोचते न जाने कितनी रात निकल गयी, बाहर तेज आवाजें हो रही थी जैसे बारिश हो रही हो ! ऋषभ कह भी तो रहे थे कि अगर बारिश हो गयी तो सारी बर्फ बह जाएगी और सुबह मौसम साफ हो जायेगा।

“शुभी उठो ! आठ बज रहे हैं !” ऋषभ ने उसे उठाते हुए कहा !

“ओहह ! आठ बज गए !” रात न जाने कब नींद आई उसे पता ही नहीं चला और अभी इतनी देर तक सोती रही।

“लो पहले यह चाय पी लो फिर उठना !”

“अरे तुमने चाय भी बना ली ?”

“हाँ यार बना तो ली है लेकिन बिना दूध की बनी है ! यहाँ दूध नहीं था !”

“कोई बात नहीं ! जैसे ब्लैक कॉफी पीते है वैसे आज ब्लैक टी सही !”

शुभी की बात सुनकर ऋषभ मुस्कुरा दिया !

“सुनो, चाय बहुत अच्छी बनाई है !” शुभी ने ऋषभ को मुस्कुराता देख खुद भी मुस्कुराते हुए कहा।

“अच्छा जी !”

“हाँ जी !”

“अभी मौसम कैसा है ?”

“बहुत खराब !”

“क्यों ? अब क्या हुआ ?”

“बर्फबारी !”

“ओहह ! लेकिन वो तो रात में रुक गयी थी?”

“हाँ रुकी तो थी पर फिर से शुरू हो गयी !”

“अब क्या होगा ?”

“वही जो मंजूरे खुदा होगा !”

“हाँ होता तो वही है जो ईश्वर को मंजूर होता है !”

“सही समझा तुमने ! अब फिक्र करना छोड़ कर मस्त हो जाओ, ईश्वर सब सही करेगा !”

“चाय पीकर शुभी बाहर निकल कर देखने लगी तो करीब पाँच फुट बर्फ गिर चुकी थी!”

“ऋषभ यह सब क्या है ?” इतनी बर्फ देखकर अचानक से शुभी के मुंह से चीख सी निकल गयी ।

“शुभी परेशान मत होओ, मैं हूँ न तुम्हारे साथ !”

“लेकिन ऋषभ आसमान तो साफ सफ़ेद सा हो रहा है तो यह बर्फ क्यों ?”

“यह जो सफ़ेद और साफ बादल दिख रहे हैं न, यही तो बर्फ है !”

“फिर तो यह जल्दी थमने वाली नहीं है !” घबराहट में शुभी ऋषभ के गले से लग गयी।

“शुभी ऐसे बच्चों की तरह से नहीं करते !” ऋषभ ने उसके बालों पर हाथ फिराया और माथे को चूम लिया।