बेपनाह - 25 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 25

25

“कितना प्यारा है ऋषभ, एकदम निश्चल मन का है न स्वार्थ है, न कोई लालच। कल से उसके साथ है पर एक बार भी उसने उसे गलत तरीके से टच नहीं किया। ऋषभ तुम मुझे सच में प्यार करते हो, सच्चा और पवित्र प्यार। वैसे प्यार तो पवित्र ही होता है लोगों के मन में कलुषता होती है वे ही प्रेम के मुंह पर गंदगी फेंक देते हैं।

“क्या सोचने लगी? सब अच्छा ही होगा और मेरे होते तुम्हें दुखी होने की जरूरत नहीं है ! आओ बर्फबारी में फोटो खींचते हैं !” किसी छोटे बच्चे की तरह से ऋषभ एक कुर्सी ले आए और बर्फ के बीच में रख दी ! जाओ शुभी पहले तुम बैठो मैं फोटो खींच रहा हूँ !कई तरह से पोज बना बना कर फोटो लेने के बाद वो खुद कुर्सी पर आ बैठा !

“लो यह मोबाइल और मेरे सुंदर सुंदर पिक्स निकालो !”

“ठीक है बाबा !”

“फोटो खीचने के बाद भूख लगने लगी थी चलो कुछ खाते हैं ऋषभ !,” शुभी ने ऋषभ से कहा।

“कहाँ से खाएँगे ? काका अकेले हैं घर पर ! सोनी और काकी हैं नहीं !”

“हम यहाँ बनाते हैं न !”

“कहाँ से बना लोगी ?”

“समान है तो ! अब तुम फिक्र मत करो मैं हूँ न !” शुभी मुसकुराते हुए बोली।

“हाँ सिर्फ हम दोनों हैं !”

“उसने आटे में नमक मिलाकर थोड़ा प्याज काट कर डाला और उसे गूँदकर पराठे सेक दिये।

“अरे वाह शुभी, तुम्हें तो खाना बनाना भी आता है ! खैर अब हमें भूखे नहीं रहना पड़ेगा।”

“तो आपने क्या सोचा था कि मैं आपको खाना नहीं दूँगी? ”

“नहीं ऐसा तो नहीं सोचा था लेकिन यह भी नहीं सोचा था कि तुम्हें खाना बनाना आता होगा।“

“क्यों नहीं आता होगा मुझे खाना बनाना? जाओ मुझे आपसे बात नहीं करनी !”

“अरे भई बात नहीं करोगी तो हमारा मन कैसे लगेगा और समय कैसे बीतेगा ?”

“क्यों सब मैं ही करूँ ?”

“हाँ और क्या ! सब तुम्हें ही करना होगा ! कोई और नहीं है यहाँ पर तुम्हारे सिवाय”

“ओहह मैं कहाँ फंस गयी हूँ ! मुझे घर की याद आ रही है मुझे अपनी मम्मी के पास जाना है ! उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की !

“अब क्या हुआ माता रानी ?”

“.......!”

“अरे कुछ तो बोलो यार, क्या गलती हुई मुझसे ?”

“तुमसे नहीं बल्कि मुझसे हुई है !”

“वो कैसे ?”

“मुझे कल रात ही निकल जाना चाहिए था ! मुझे क्या पता था कि बर्फ गिरनी बंद ही नहीं होगी !शायद मैं फंस गयी हूँ।“

“अरे यार अब इतनी भी फिक्र किसलिए? सब ठीक होगा ! वैसे जो भी होता है न सब अच्छे के लिए ही होता है और हमें हर पल एक नई सीख दे कर जाता है ! जीवन के अनुभवों से दोचार कराता है !”

“हाँ यह सही कहा तुमने लेकिन घर में मम्मी बीमार हैं और कम जीवन में ही जिंदगी ने मुझे बहुत सारे अनुभव दे दिये हैं। अब तुम भी मुझे सही से समझ आ गए हो।”

“तुमने एक दिन में ही समझ लिया, लोग तो मुझे सालों से समझ रहे हैं अभी तक समझ नहीं पाये।”

“वे मूर्ख होंगे।” शुभी ने कहा ।

“हाँ जी सब मूर्ख हैं, एक आप ही होशियार हो आखिर महान आत्मा जो हो !” ऋषभ ने चिढ़ते हुए कहा।

बाहर लगातार बर्फ गिर रही थी और अंदर एक दूसरे के प्रति नाराजगी अपने चरम पर थी ! किसी एक का झुकना जरूरी हो गया था लेकिन अहम किसे झुकने देगा भला?

थोड़ी देर तक शुभी बेड के एक किनारे बैठी रोती रही और ऋषभ भी उदास निराश बैठा रहा ! आखिर शुभी उठी और ऋषभ के पैरों के पास आकर बैठी गयी !

“सोर्री ऋषभ !” उसने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा।

कितनी निश्छलता थी उसकी आँखों में ! रोने से आँखें लाल हो रही थी लेकिन उनमें जो भोलापन झलक रहा था, उसे देख कर उससे कोई भी ज्यादा देर नाराज रह ही नहीं सकता था।

“मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ फिर माफी क्यों ? गलती तो मेरी भी थी न ! फालतू में तुम्हें डांटने लगा !” ऋषभ ने उसके माथे को चूमा और हाथ से पकड़ कर जमीन से उठाकर बैड पर बैठा दिया।

“पक्का आप नाराज नहीं हो न ?”

“हाँ बाबा नहीं हूँ नाराज, बिल्कुल भी नहीं और अब बार बार इस तरह से उन बातों को मत दोहराओ !”

“ठीक है, नहीं कहूँगी !” उसने ऋषभ के कंधे पर अपना सिर रख दिया और ऋषभ ने उसके चारो तरफ अपनी बाहों का घेरा बनाकर उसे अपने प्रेमबंध में जकड़ लिया ।

प्रेम में अहम का होना ही खराब होता है क्योंकि जहां अहम होता है वहाँ प्रेम नहीं होता और जहां प्रेम होता है वहाँ अहम नहीं रहता ! सच्चा प्रेम अहंकार रहित होता है प्रेम में जो झुकता है वो पा लेता है और जो पा लेता है उसे फिर कोई और चाह नहीं रह जाती।

“ऋषभ अब किस तरह हम अपने घर पहुंचेंगे ?” ऋषभ के बंधन में पिघलती हुई शुभी ने कहा।

“क्यों भई, तुम्हें घर क्यों जाना है मैं हूँ न ? वो उसे प्रेम से उसके गालों को चूमते हुए बोला।

“यार यह बर्फ गिरनी तो बंद ही नहीं हो रही है !” शुभी ने उसकी बाहों से निकलते हुए कहा।

“बंद हो जाएगी न ! अभी तुम इसका आनंद लो यूं सबको स्नो फाल देखने को नहीं मिलती है, यह बर्फ नहीं आसमा से गिरता हुआ ईश्वर का आशीर्वाद है जो हम पर बरस रहा है !” ऋषभ ने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लिया।

“क्या सच मेँ ?”

“हाँ बिल्कुल ! तुम पहली बार आई और यहाँ आते ही ईश्वर ने तुम्हें अपने प्यार और आशीर्वाद से नवाज दिया !”

“हाँ यह तो सही कहा ! पता है मैंने कभी स्नो फॉल नहीं देखा था ! मुझे पता ही नहीं था बर्फ कैसे गिरती है ? लोग कहते थे कि रुई जैसे झरती है ! आज मैं वाकई बहुत खुश हूँ कि मुझे यह सब देखने को मिला और संभव हुआ तुम्हारे कारण अगर तुम नहीं होते तो मैं कभी भी न इन पहाड़ों को देख पाती और न ही कभी बर्फ को ।“

“अब जब चाहों देखो ! सब अपना ही है !”

अच्छा?”

“हाँ भई हाँ !”

“ऋषभ मैं यहाँ आकर बहुत खुश हूँ लेकिन मुझे घर मेँ मम्मी की बहुत फिक्र है !”

“हाँ मुझे भी घर की चिंता होती है, लो तुम सबसे बात कर लो !”

“अरे यह क्या, फोन स्विच ऑफ कैसे हो गया?”

“शायद बैटरी खत्म हो गयी है !”

“चलो इसे चार्ज कर लेते हैं, पर चार्जर कहाँ है ?”

“चार्जर कार मेँ पड़ा हुआ है लेकिन वहाँ से कैसे लाये ? चार कदम की दूरी पर खड़ी कार मेँ चार्जर तो पड़ा हुआ है लेकिन हम लेने नहीं जा सकते हैं अगर गए तो बर्फ मेँ अटक जाएँगे !”

“हाँ यह तो है लेकिन अब हम क्या करें ?”

“कुछ भी नहीं ! देखना सब सही हो जाएगा !” ऋषभ ने कह तो दिया लेकिन उसके दिल मेँ भी अंदर से बड़ी घबराहट सी होने लगी ।

“तुम इतना परेशान और उदास क्यों लग रहे हो ?” अब शुभी ने उसके माथे पर अपने प्रेम चुंबन अंकित करते हुए कहा।

“नहीं तो मैं खुश हूँ ! मैं भला उदास क्यों होने लगा, मेरा प्रेम मेरे साथ है तो उदासी कैसी?”

“ऋषभ एक बात बताएं ?”

“हाँ बताओ न !”

“मुझे देहारादून मेँ एक महिला मिली थी ! बेहद खूबसूरत लेकिन अंदर से एकदम से कमजोर मानों जरा सी देर मेँ भावनाओं मेँ बह जाएगी ! इतना भी कमजोर होना किस काम का कि लोग आपका फायदा उठा लें ! खास तौर से अपने ही फायदा उठा लेते हैं और हम अपनी आँखों पर भ्रम की पट्टी बांधे रहते हैं ! झूठ, दुख, दर्द सब अपने ही देते हैं बाहर वाले और कुछ अपने हमें समझ ही नहीं पाते अपना सर्वस्व मिटा देने के बाद भी उनके लिए हम घर की मुर्गी दाल बराबर ही बने रहते हैं !!”

“अरे ऐसा क्या हुआ किसने किसका फायदा उठा लिया ?”

“उस महिला के पति ने ही उस भोली महिला का और वह निर्दोष बिना कुछ गलत किए सजा भुगत रही है अपने पति की करनी की सजा !” यह कहते हुए शुभी की आँखें छलक पड़ी।

“तू क्यों इतना परेशान होती है, यह दुनिया है और यहाँ यही सब होता है पर अगर हम दुनिया के लिए कुछ अच्छा करना और देना चाहते हैं तो खुद को ही अच्छा और सच्चा बना लें बस !”

“हाँ यह तो सही है लेकिन मैंने उसकी मदद करने का कहा था !”

“क्या मदद ?”

“उसको खोया आत्मविश्वास वापस देने का वादा किया था ! मैंने कह दिया था कि जब कभी भी तुम टूट कर बिखरो मुझे फोन करना ! अब क्या करें ? फोन कैसे ऑन करें ?”

“क्या तुम्हारा फोन भी बंद हो गया ?”

“हाँ कल रात ही बंद हो गया था ! मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं गेम खेल रही थी और गेम खेलते खेलते ही फोन स्विच ऑफ हो गया !”

“चल कोई नहीं, सब सही होगा, तुम चिंता मत करो बस !”

“हाँ मैं चाहती हूँ उसके साथ सब सही ही हो क्योंकि वो बहुत प्यारी महिला हैं !”

“तू खुद इतनी प्यारी है तभी तुझे सब सरल भोले और प्यारे लगते हैं। आइ लाइक यू शुभी!”

“हुम्म बस लाइक ?”

“अरे यार वो तो मैं तुझे बेपनाह प्यार करता हूँ लेकिन तेरी आदतें, तेरी बातें और सब कुछ मुझे पसंद है न उसके लिए लाइक कहा !”

“चलो माफ किया क्या याद करोगे, वैसे हम जल्दी किसी को माफ नहीं करते है !”

“हाहाहा तू पागल है, कहाँ जाएगी अगर माफ नहीं करेगी तो ? इतनी बर्फ, रास्ते बंद और दूर दूर तक किसी कानी चिड़िया का नामों निशान तक नहीं है !”

“मुझे डरा रहे हो ? मत डराओ क्योंकि हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं वैसा ही हमारे साथ होता है !”

“अच्छा मेरे साथ क्या होगा ?”

“खुद से ही डर जाओगे ! आखिर कब तक भूखे प्यासे और अकेले रह पाओगे ?”

“तू है न मेरे साथ, मैं अकेला कब हूँ ?”

“यार बात खत्म करो, मैं डरती नहीं हूँ लेकिन ऐसे माहौल में घबराहट होना स्वाभाविक है!”

“यार मुझे सच में घबराहट हो रही है क्योंकि दादा जी बहुत परेशान हो रहे होंगे और मम्मी पापा को तो यह पता ही नहीं है कि मैं यहाँ पर हूँ !”

“क्यों नहीं पता ? क्या तुमने बताया नहीं ?”

“कहाँ से बताता ? सीधे जॉब से ही आया हूँ न।”

“ओहह ! मेरी मम्मी को भी कहाँ पता है ? उनको लग रहा होगा कि मैं अपने ग्रुप के साथ हूँ और “दादा जी बेचारे परेशान होने के साथ न जाने क्या सोच रहे होंगे?”

“किसके बारे में?”

“मेरे बारे में।”

“कुछ नहीं सोच रहे होंगे ! मेरे दादा जी बहुत खुले विचारों के हैं और दादी जी तो हमारी सहेली हैं ! मैं उनसे सब बातें खुल के कर लेता हूँ !”

और सुन शुभी, हमारे मन साफ और पवित्र होने चाहिए बाकी सब भगवान के ऊपर छोड़ दो ! हम सही हैं और रहेंगे बाकी दुनिया जाये भाड़ में।”

“ऋषभ पता है, तुम बहुत अच्छे हो, तुमने मेरा मन जीत लिया है !”

“अच्छा, हम्म वो कैसे ?” ऋषभ ने अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया।

“बस यह राज रहने दो लेकिन एक लड़की का मन जीतना इस दुनिया का सबसे मुश्किल काम है !”

“हाँ यार सब पता है ! तभी तो जीत लिया है !”

“क्या जीत लिया है ?”

“तुम्हारा मन !” ऋषभ बड़ी प्यारी मुस्कान के साथ बोला।

“हुंह अब यह छोड़ो और यह बताओ हम क्या खाएँगे आज, क्योंकि सिर्फ प्यार से भूख नहीं मिट्ती है, पेट की भूख ज्यादा बड़ी है न “?

“जो तुम कहो अभी खाने को मिल जाएगा !”

“ओहो बड़े आये अभी लाने वाले ! कहाँ से आ जायेगा ? बर्फ देख रहे हो ?”

“अरे तू चिंता क्यों करती है, मैं तुझे खिलाऊंगा न !”

“क्या खिलाएँगे ?”

“तू बस बता दे, क्या खायेगी ?”

“जो भी तुम खिला दोगे !”

“ठीक है मैं पहले चाय पिलाता हूँ !”